जम्मू कश्मीर पुलिस ने 30 जनवरी को पुलवामा में हुई एक मुठभेड़ को लेकर एक प्रमुख टीवी कमेंटेटर माजिद हैदरी, ऑनलाइन पोर्टल न्यूज़क्लिक के वीडियो पत्रकार कामरान यूसुफ़ और फ्री प्रेस कश्मीर के पत्रकार विकार सैयद को सोमवार को पूछताछ के लिए बुलाया था.
श्रीनगरः जम्मू एवं कश्मीर पुलिस ने पुलवामा जिले में बीते सप्ताहांत में हुई मुठभेड़ की जांच के संबंध में चार पत्रकारों को तलब किया है. 30 जनवरी को हुई इस मुठभेड़ में जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर सहित उसके साथियों को मार गिराया गया था.
अधिकारियों का कहना है कि टीवी के एक प्रमुख कमेंटेटर माजिद हैदरी, ऑनलाइन पोर्टल ‘न्यूक्लिक’ के पत्रकार कामरान यूसुफ और’ फ्री प्रेस कश्मीर’ के पत्रकार विकार सैयद को सोमवार को पुलवामा में पुलिस ने पूछताछ के लिए तलब किया.
बता दें कि माजिद हैदरी इससे पहले कश्मीर के सबसे बड़े अंग्रेजी समाचार पत्र से जुड़े थे.
इस मामले में ‘कश्मीर वाला’ पत्रिका के संपादक फहद शाह चौथे पत्रकार हैं, जिनसे पूछताछ की गई. शाह से पहले भी उनके काम को लेकर पूछताछ की जा चुकी है. वे अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों के लिए भी लिखते रहे हैं.
सूत्रों का कहना है कि तीन पत्रकारों से पुलवामा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय और पुलवामा पुलिस थाने में 31 जनवरी को उनके कामकाज को लेकर पूछताछ की गई. हालांकि, पुलिस ने उन्हें पूरे दिन रोककर रखा. शाम को इन्हें घर जाने की इजाजत दी गई.
सूत्रों का कहना है कि उनसे आगे भी पूछताछ हो सकती है.
स्थानीय रिपोर्ट के मुताबिक, पत्रकारों से पुलवामा के नायरा गांव में 30 जनवरी को रातभर हुई मुठभेड़ की कथित गलत रिपोर्टिंग को लेकर पूछताछ की गई. इस मुठभेड़ में एक अधिकारी सहित दो गरुड़ कमांडो घायल हो गए थे.
अधिकारियों का कहना है कि इस मुठभेड़ के दौरान 2017 में जैश-ए-मोहम्मद में शामिल हुए जाहिद अहमद वानी को एक संदिग्ध पाकिस्तानी आतंकी कफील भारी उर्फ छोटू और एक स्थानीय आतंकी वहीद अहमद रेशी के साथ मार गिराया गया था.
पुलवामा में जिस घर में मुठभेड़ हुई, उस घर के मालिक के बेटे इनायत अहमद मीर इस मुठभेड़ में मारे गए चौथे शख्स हैं.
आधिकारिक बयान के मुताबिक, पुलिस ने कहा कि इनायत हाल ही में आतंक में शामिल हुआ था. हालांकि, इस बयान में उसके किसी पुलिस रिकॉर्ड का उल्लेख नहीं किया गया.
इनायत के परिवार ने रविवार को श्रीनगर में पुलिस कंट्रोल रूम के बाहर प्रदर्शन कर बेटे के शव की मांग की. परिवार का दावा है कि उनके बेटा ने आजीविका के लिए भेड़े पाली हुई थी. इनायत की मां मुगली बेगम ने मीडिया को बताया कि उनका बेटा निर्दोष था.
फ्री प्रेस कश्मीर सहित कश्मीर के स्थानीय न्यूज पोर्टल ने अपनी रिपोर्ट में इनायत के परिवार के दावों को जगह दी. फ्री प्रेस कश्मीर ने अपने इंस्टाग्राम पेज पर इसकी रील भी बनाते हुए कहा कि परिवार और पुलिस के दावे विरोधाभासी हैं.
कश्मीर वाला ने मुठभेड़ को लेकर दोनों पक्षों के वर्जन को पेश किया.
हालांकि, मामले में रोचक मोड़ तब आया, जब इनायत की पांच बहनों में से एक बहन से पुलिसकर्मियों ने पूछताछ की. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ.
इनायत की यह बहन विवाहित है और उनकी उम्र 30 से 35 साल के बीच है. इस वीडियो में उनके परिवार के सदस्यों के अपने भाई के निर्दोष होने दावों का खंडन करती हैं.
वीडियो में इनायत की बहन को पुरुष पुलिसकर्मियों के मुठभेड़ के बारे में पूछे गए सवालों से असहज होते देखा जा सकता है.
उल्लेखनीय है कि पुलिस के पूछताछ नियमों के मुताबिक, किसी भी महिला संदिग्ध से महिला पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में पूछताछ की जाती है लेकिन इनायत की बहन को वीडियो में कथित तौर पर पुरुष पुलिसकर्मियों से घिरा देखा जा सकता है, जो उनसे मुठभेड़ को लेकर सवाल पूछ रहे हैं.
वीडियो में इनायत की बहन को पुलिसकर्मियों के सवालों के जवाब देते देखा जा सकता है. हालांकि, यह पुलिस अधिकारी वीडियो में नजर नहीं आ रहा. वीडियो में वो कह रही हैं, ‘वे (आतंकी) गुरुवार को रात 10 बजे आए थे. वे तीन थे.’
इसके बाद एक अन्य पुलिस अधिकारी उससे उन घटनाओं के बारे में बताने को कहता है, जब शनिवार को सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ के बाद उनके परिवार को घर से बाहर आने को कहा था.
3 of the 4 killed in Naira (Pulwama) encounter established as enlisted militants. 4th one was the house owner's son Inayat Mir who refused to come out and chose to die with the 3 militants hiding at his home. His sister narrates the episode calmly, as if nothing big has happened. pic.twitter.com/yuYNtBnHKs
— Ahmed Ali Fayyaz (@ahmedalifayyaz) January 30, 2022
इस पर इनायत की बहन जांचकर्ता अधिकारी से कहती हैं, ‘हम दो बहनें और मां घर से बाहर आए. पिता पास के गांव त्रिचल में थे. वो (इनायत) उनके (आतंकियों) साथ था. मैं आपको सच बताने की हिम्मत नहीं जुटा सकी.’
उन्होंने आगे कहा, ‘वह बाहर आने को तैयार नहीं हुआ. उसने कहा कि वह उनके (आतंकियों) साथ मर जाएगा.’
इस 58 सेकेंड के वीडियो को एक अज्ञात स्थान पर शूट किया गया है. हालांकि, ऐसा लगता है कि जिस कमरे से इस वीडियो को शूट किया गया, वहां तीन से चार पुलिस अधिकारी थे.
इस वीडियो को कश्मीर जोन पुलिस के आधिकारिक ट्विटर एकाउंट और अन्य आधिकारिक एकाउंट से शेयर किया गया.
कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार ने रविवार को संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि इनायत हाइब्रिड आतंकवाद का बेहतरीन उदाहरण है, जो कश्मीर में सुरक्षाबलों के लिए बड़ी चुनौती के रूप में उभरकर सामने आया.
उन्होंने परिवार के दावों को खारिज करते हुए कहा कि कश्मीर में कई लोग हैं, जो आतंकियों से जुड़े हुए हैं लेकिन उनका कोई पुलिस रिकॉर्ड नहीं है.
कुमार ने कहा, ‘जब वे मुठभेड़ों में मारे जाते हैं तो हमें लैपटॉप और मोबाइल जैसे डिजिटल डेटा से आतंक में उनकी भागीदारी के स्तर का पता चलता है.’
कुमार ने कहा, ‘इनायत को आत्मसमर्पण का मौका दिया गया था. उसके परिवार ने उसे बाहर आने को कहा था लेकिन वह सुरक्षाबलों पर फायरिंग करता रहा. वह जाहिद जैसे खूंखार आतंकियों के साथ घूम रहा था इसलिए हम यूएपीए के तहत मामला दर्ज कर रहे हैं. परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया जाएगा.’
मुठभेड़ के बाद आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास), शस्त्र अधिनियम और यूएपीए की धारा 16 (आतंकी कृत्य के लिए सजा), धारा 18 (साजिश के लिए दंड), धारा 20 (आतंकी संगठन के सदस्य होने पर दंड) और धारा 38 (आतंकी संगठन का सदस्य होने से संबंधित अपराध) के तहत मामला दर्ज किया गया.
बता दें कि सोमवार को चारों पत्रकारों को पुलवामा पुलिस थाने के अधिकारियों का फोन आया, जिन्होंने उनसे मुठभेड़ की गलत रिपोर्टिंग को लेकर पूछताछ के लिए एसएचओ के समक्ष पेश होने को कहा.
द वायर से बातचीत में इन चार पत्रकारों में से एक माजिद ने कहा कि उनसे एक न्यूज स्टोरी को लेकर पूछताछ की गई, जो उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर की थी.
माजिद ने कहा, ‘मैंने स्थानीय न्यूज पोर्टल द्वारा प्रकाशित एक स्टोरी शेयर की थी. मैंने इस रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी नहीं की थी. हमारे पेशे में हमें दोनों पक्षों के रुख को स्टोरी में जगह देनी होती है.’
फ्री प्रेस कश्मीर के पत्रकार विकार ने अपने ट्विटर पेज पर उस घर के कमरे की तस्वीर पोस्ट की थी, जहां मुठभेड़ हुई थी. उन्होंने इस तस्वीर के साथ कैप्शन में लिखा था, ‘पुलवामा के नायरा गांव में 17 साल के इनायत अहमद के घर पर स्थानीय लोग. इनायत के परिवार के सदस्य और संबंधियों का कहना है कि वह एक आम नागरिक था लेकिन पुलिस का कहना है कि वह एक हाइब्रिड आतंकी था.’
पत्रकार कामरान ने भी अपने ट्विटर टाइमलाइन पर 12 सेकेंड का एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसमें उसी घर को दिखाया गया. कामरान से सोमवार को पुलिस ने पूछताछ की थी.
साल 2017 में कामरान को एनआईए ने पत्थरबाजी करने के संदेह में गिरफ्तार किया था. तब उन्होंने नई दिल्ली की एक जेल में छह महीने बिताए थे, जिसके बाद अदालत ने उन्हें जमानत देते हुए कहा था कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने का कोई साक्ष्य नहीं है.
द वायर ने इस मामले पर टिप्पणी के लिए अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की. पत्रकारों को तलब किए जाने के बारे में पूछने पर आईजी कुमार ने वॉट्सऐप पर जवाब में कहा, ‘उनसे पूछो.’
पुलवामा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गुलाम हसन वानी ने जानकारी मुहैया कराने से इनकार करते हुए कहा कि आईजी पहले ही इस मुद्दे पर बहुत कुछ बोल चुके हैं. उन्होंने कहा, ‘मेरे पास कहने को और कुछ नहीं है.’
उनसे इस मामले पर प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
अभिव्यक्ति की आजादी के पक्षधर कार्यकर्ताओं का कहना है कि पुलिस के समन उस डर और दबाव के माहौल को उजागर करते हैं, जिसके साये में पत्रकार कश्मीर में अपना काम कर रहे हैं.
वैश्विक संगठनों और अधिकारों की वकालत करने वाले समूहों के मुताबिक, अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में प्रेस की स्वतंत्रता घटी है और स्थानीय पत्रकारों से पुलिस अधिकारी उनके काम को लेकर नियमित तौर पर पूछताछ कर रहे हैं और उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं.
संपादकों और पत्रकारों के वैश्विक नेटवर्क इंटरनेशल प्रेस इंस्टिट्यूट (आईपीआई) का कहना है कि पुलिस के समन कश्मीर में स्वतंत्र पत्रकारों पर दबाव और उनके उत्पीड़न को उजागर करते हैं क्योंकि सरकार उनके नैरेटिव को नियंत्रित करने का प्रयास करती है.
Summoning journalists for ‘incorrect reporting’ is shooting the messenger for publishing the truth. Adding ambiguous terms like white collar & hybrid militants to security vocabulary widens scope of impunity enjoyed by armed forces to justify encounters. https://t.co/zGEJmPdosR
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) February 1, 2022
इस मामले पर जम्मू एवं कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट कर कहा, ‘गलत रिपोर्टिंग के लिए पत्रकारों को तलब करना सच प्रकाशित करने के लिए मैसेंजर को गोली मारने जैसा है. ह्वाइट कॉलर और हाइब्रिड आतंकी जैसे शब्दों को सुरक्षा शब्दावली में जोड़ना मुठभेड़ों को न्यायोचित ठहराने के लिए सुरक्षाबलों के दंड से बचने के दायरे को और बढ़ा देता है.’
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)