नॉर्थईस्ट डायरीः सरकारी मदरसों को सामान्य स्कूल बनाने का असम सरकार का फ़ैसला बरक़रार

इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में असम, मणिपुर और मेघालय के प्रमुख समाचार.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में असम, मणिपुर और मेघालय के प्रमुख समाचार.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

गुवाहाटी/इम्फाल/शिलॉन्ग/अगरतला: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम सरकार के उस कानून को शुक्रवार को बरकरार रखा है, जिसके तहत सरकार द्वारा वित्त पोषित सभी मदरसों को सामान्य स्कूलों में तब्दील किया जाना है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर 2020 में जब शर्मा शिक्षा मंत्री थे, राज्य सरकार ने सभी सरकारी मदरसों को खत्म करने और पाठ्यक्रम से इस्लामिक विषयों को हटकार इसमें बदलाव करने के लिए असम मदरसा शिक्षा (प्रादेशिक) अधिनियम 1995 और असम मदरसा शिक्षा (प्रादेशिक कर्मचारियों की सेवाओं एवं मदरसा शिक्षा संस्थान पुनर्गठन) अधिनियम 2018 को निरस्त करने के लिए एक कानून पारित किया.

शर्मा ने तब कहा था कि शैक्षणिक प्रणाली में सुधार कर उसे धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए ऐसा किया गया.

इसके बाद 13 याचिकाकर्ता वे लोग थे, जो या तो उन जमीन की प्रबंध समितियों के अध्यक्ष थे या फिर वे दानकार्ता, जिनकी जमीन पर मदरसे बने हैं.

उन्होंने गुवाहाटी हाईकोर्ट का रुख कर कहा कि सरकार के इस कदम से अनुच्छेद 25, 26, 29, 30 और अन्य अधिकारों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है.

दोनों पक्षों को सुनने के बाद चीफ जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस सौमित्र सैकिया की पीठ ने शुक्रवार को याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी, ‘धर्मनिरपेक्षता संविधान का मूल ढांचा है और अनुच्छेद 28 (1) के मुताबिक यह राज्य की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति है जिसके लिए अनिवार्य है कि पूरी तरह से राज्य के धन से बनाए गए किसी भी शैक्षणिक संस्थान में कोई भी धार्मिक निर्देश नहीं दिया जाएगा.’

अदालत ने राज्य में मदरसों के इतिहास को याद करते हुए कहा, ‘इन मदरसों की शुरुआत सामुदायिक स्कूलों के तौर पर हुई, जिसके बाद ये मदरसे बन गए, इन्हें सरकार से फंड मिलने लगा. 1995 में इन्हें 1995 प्रांतीयकरण अधिनियम के तहत प्रांतीय बना दिया गया और पूरी तरह से राज्य के दायरे में लाया गया. 2018 प्रांतीयकरण अधिनियम के तहत और मदरसों का प्रांतीयकरण किया गया.’

इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने ट्वीट कर ऐतिहासिक फैसला बताया. दिसंबर 2020 में इस कानून के लिए विधानसभा में विधेयक पेश करते हुए शर्मा ने कहा था कि ‘हम तुष्टीकरण नहीं करते. इस समुदाय के साथ हमारा कोई निहित स्वार्थ नहीं है, लेकिन राजनीति से दूर, हम उस समुदाय को आगे ले जाना चाहते हैं. जब डॉक्टर और इंजीनियर इन स्कूलों से बाहर आएंगे, तो यह आपके लिए प्रशंसा का कारण बनेगा.’

तब विपक्ष ने इसे ध्रुवीकरण का हथकंडा बताया था.

बताया गया था कि उस समय राज्य में दो तरह के सरकारी मदरसे संचालित किए जा रहे थे. जानकारी दी गई थी कि 189 उच्च मदरसा और मदरसा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय माध्यमिक शिक्षा मंडल असम (एसईबीए) और असम उच्चतर माध्यमिक शिक्षा परिषद (एएचएसईसी) द्वारा संचालित होते हैं.

इसके अलावा 542 प्री सीनियर, सीनियर और मदरसा तथा अरबी कॉलेज राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के द्वारा संचालित हो रहे थे, जहां शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड को भंग कर दिया जाने और सभी रिकॉर्ड, बैंक खातों और कर्मचारियों को एसईबीए में स्थानांतरित करने की बात कही गई थी.

यह भी बताया गया था कि एसईबीए द्वारा संचालित उच्च और उच्चतर माध्यमिक मदरसों की तरह नियमित स्कूलों के रूप में उनके नाम और संचालन को बदला जाएगा. मदरसों के कर्मचारियों, विशेष रूप से धार्मिक विषयों को पढ़ाने वाले शिक्षकों को बरकरार रखा जाएगा या अन्य विषयों को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा.

पश्चिम गुवाहाटी के विधायक ने कहा- असम के क्षेत्र में ही रहेंगे सत्र, नामघर

पश्चिम गुवाहाटी के विधायक रामेंद्र नारायण कलीता ने दावा किया कि असम और मेघालय के बीच सीमा विवाद हल करने को लेकर मंजूर करार के तहत बोकलापाार में कोई भी सत्र (वैष्णव मठ) और नामघर (प्रार्थना गृह) को मेघालय को नहीं दिया जाएगा.

द शिलॉन्ग टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कलीता ने यहां बयान जारी कर असम सत्र महासभा (एएसएम) के उन आरोपों का जवाब दिया, जिसमें कहा गया कि दो सत्र और 20 नामघरों को दोनों राज्यों के बीच आपसी समझ के तहत मेघालय को दिए जा सकते हैं.

बता दें कि पश्चिम गौहाटी निर्वाचन क्षेत्र के कामरुप जिले का बोकलापाड़ा दोनों राज्यों के बीच मतभेदों वाले छह इलाकों में से एक है.

असम सत्र महासभा का आरोप है कि इस समझौते की वजह से असम स्थित उसके दो सत्र  और 20 से ज्यादा नामघर मेघालय चले जाएंगे, जो उसे मंजूर नहीं है.

जनवरी में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा और मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर उन्हें दोनों राज्यों की क्षेत्रीय समितियों की सिफारिशों से अवगत कराया था.

इन समितियों ने 12 विवादित सीमा क्षेत्रों में से छह को विभाजित करने का सुझाव दिया है. समझौते पर अमल दोनों राज्यों के बीच लेन-देन यानी जमीनों की अदला-बदली के रूप में होगा. दोनों मुख्यमंत्रियों ने शाह से आग्रह किया कि केंद्र सरकार इस बारे में आवश्यक कदम उठाए ताकि इन सिफारिशों पर अमल किया जा सके.

इन सिफारिशों के अनुरूप दोनों राज्यों के छह इलाकों की 36.79 वर्ग किलोमीटर जमीन विवादित है. असम के गिजांग, ताराबेरी, बोकलापाड़ा, खानपाड़ा-पिलिंगकाटा और राताछेर्रा को 18.51 वर्ग किलोमीटर जमीन जबकि मेघालय को 18.28 वर्ग किलोमीटर जमीन मिलेगी.

इन सिफारिशों के जरिये दोनों पड़ोसी राज्यों के बीच लगभग छह दशक पुराने सीमा विवाद को हल करने की मांग की गई और इसे पहले दोनों राज्यों की कैबिनेट से भी मंजूरी मिल गई है.

बीते सप्ताह असम सत्र महासभा के महासचिव कुसुम कुमार महंता ने कहा था, ‘हमने सीखा है कि इस सौदे की वजह से दो सत्र और 20 नामघर, जो असम का हिस्सा हैं, वे मेघालय को सौंप दिए जाएंगे. यह हमें स्वीकार्य नहीं है और हम इसकी मंजूरी नहीं देंगे.’

रिपोर्टों के मुताबिक, बोकलापाड़ा में 1.57 वर्ग किलोमीटर विवादित क्षेत्र में से 1.01 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र असम का और बाकी बचा 0.56 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मेघालय को जाएगा.

विधायक कलीता ने कहा, ‘बोकलापाड़ा के एक हिस्से को पड़ोसी राज्य के लिए छोड़ा जाएगा. इस क्षेत्र में सत्र और नामघरों का कोई अस्तित्व नहीं है जबकि इस इलाके में एक चर्च है इसलिए मेघालय के लिए कोई सत्र या नामघर छोड़ने का सवाल ही नहीं है.’

उन्होंने कहा कि हालांकि, मतीखार, लोंगसाई और उमसूर में एक-एक सत्र है. इन इलाकों को पड़ोसी राज्य में विलय करने का कोई प्रस्ताव नहीं है.

कलीता ने एएसएम से अपील करते हुए इस तरह के बयान नहीं देने को कहा, जिससे असम के लोगों और लंबे समय से असम, मेघालय सीमा पर रह रहे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हों.

उन्होंने एएसएम से स्थिति का पता लगाने के लिए स्पॉट वेरिफिकेशन कराने को भी कहा.

नागरिकता साबित करने की लड़ाई लड़ रहे मोरीगांव के 60 वर्षीय व्यक्ति मृत पाए गए

असम के मोरीगांव जिले में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में नाम होने के बावजूद विदेशी (नागरिक) न्यायाधिकरण में मुकदमा लड़ रहे 60 वर्षीय एक व्यक्ति द्वारा कथित तौर पर आत्महत्या करने का मामला सामने आया है.

पुलिस ने बताया कि माणिक दास बीते 30 जनवरी से लापता थे और एक फरवरी की शाम को उनके घर के पास एक पेड़ से लटका हुआ उनका शव मिला.

अधिकारियों ने बताया कि जिले के बोरखाल गांव के माणिक दास के परिवार ने दावा किया है कि उन्हें अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए न्यायाधिकरण की कार्यवाही का सामना करने के दौरान मानसिक प्रताड़ना और परेशानी झेलनी पड़ी. इस वजह से उन्होंने आत्महत्या कर ली.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सूखी मछली बेचने का काम करने वाले माणिक दास दिसंबर 2019 से विदेशी न्यायाधिकरण के समक्ष अपने मामले का बचाव कर रहे थे, जबकि इससे कुछ महीने पहले ही प्रकाशित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में उनका नाम शामिल था.

दास के परिवार ने आरोप लगाया कि विदेश न्यायाधिकरण में चल रहे मामले के कारण वह मानसिक तनाव से गुजर रहे थे.

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उनके बेटे 35 वर्षीय कार्तिक दास ने को बताया, ‘मेरे पिता सहित हमारे परिवार के सभी सदस्यों के नाम एनआरसी में शामिल हो गया है, लेकिन उन्हें दिसंबर 2019 में यह कहते हुए नोटिस मिला कि उन्हें अपनी नागरिकता साबित करनी है.’

कार्तिक बढ़ई का काम करते हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे पिता समय पर अपनी सभी सुनवाइयों में समय पर उपस्थित होते थे, लेकिन विशेष रूप से वित्तीय नुकसान के कारण ये पूरी प्रक्रिया उन पर भारी पड़ती थी. वह जगीरोड के पास स्थित अपने गांव में लगने वाले साप्ताहिक बाजार में सूखी मछली बेचा करते थे.’

कार्तिक ने आगे कहा कि न्यायाधिकरण में केस लड़ने के बाद वित्तीय परेशानियां बढ़ गई थीं. उनके पिता को कार्यवाही पर एक लाख रुपये से अधिक खर्च करना पड़ा था. उन्होंने कहा कि कि उनके पिता गांव में सभी के साथ उसकी दुर्दशा पर चर्चा किया करते थे.

कार्तिक ने कहा, ‘उनके सारे दस्तावेज ठीक थे, लेकिन वह अक्सर चिंता करते हुए पूछते थे, मैं कैसे बचूंगा?’ हम सभी जानते थे कि वह इससे परेशान थे, लेकिन उनके कभी ऐसा कदम उठाने की उम्मीद नहीं की थी. हम सभी हैरान हैं.’

दास के कानूनी वकील दीपक बिस्वास ने कहा कि उनके पास पैन कार्ड, आधार कार्ड और भूमि रिकॉर्ड जैसे पहचान से जुड़े सभी दस्तावेज थे.

उन्होंने कहा, उनके पास अपनी मां से जुड़े जरूरी दस्तावेज भी थे. अन्य दस्तावेज भी क्रम में थे और वह अपनी सभी सुनवाइयों के लिए समय पर उपस्थित होते थे. पिछली सुनवाई लगभग एक महीने पहले हुई थी, जहां हमने अपना जवाब न्यायाधिकरण को सौंप दिया था और अगली सुनवाई में हमें गवाह पेश करने थे.’

उन्होंने कहा कि यह संभावना थी कि वे न्यायाधिकरण के समक्ष अपनी नागरिकता साबित करने में सक्षम हो सकते थे.

मणिपुरः भाजपा से टिकट न मिलने पर 10 विधायक जेडीयू से चुनाव लड़ेंगे

मणिपुर में विधानसभा चुनाव के दौरान जनता दल (यूनाइटेड) उस समय अचानक सुर्खियों में आ गया, जब भाजपा के 10 से अधिक सदस्य उनके खेमे में चले गए.

दरअसल भाजपा द्वारा इन विधायकों को टिकट नहीं दिए जाने के बाद ये जेडीयू में शामिल हो गए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा के इन असंतुष्ट सदस्यों का नाम जदयू की बुधवार को जारी 36 चुनावी उम्मीदवारों की सूची में है.

भाजपा और जेडीयू बिहार और केंद्र में एनडीए के सहयोगी हैं लेकिन दोनों पार्टियां 60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ रहे हैं. मणिपुर में विधानसभा चुनाव दो चरणों में 27 फरवरी और तीन मार्च को होगा.

अन्य दलों के कई नेता अपनी पार्टियों से टिकट नहीं मिलने पर हाल के दिनों में जेडीयू में शामिल हुए हैं, विशेष रूप से विपक्षी दल कांग्रेस के.
जेडीयू के उम्मीदवारों की सूची में प्रमुख नाम जिरीबाम से विधायक अशब उद्दीन (स्वतंत्र), थआंगमेबंद विधायक ख जॉयकिशन (कांग्रेस), लिलोंग से स्वतंत्र विधायक मोहम्मद अब्दुल नसीर, भाजपा के पूर्व विधायक सैमुअल जेंडाई, पूर्व डीजीपी एलएम खोंटे (भाजपा), कांग्रेस के उपाध्यक्ष द्विजामणि और कांग्रेस के पूर्व विधायक देवेंद्रो सिंह हैं.

जेडीयू की इस सूची में एकमात्र महिला उम्मीदवार टी. बृंदा हैं. पूर्व पुलिस अधिकारी बृंदा को भी भाजपा ने टिकट नहीं दिया था. वे मणिपुर की पहली महिला पुलिस अधिकारी हैं, जिन्हें वीरता पुरस्कार मिला है.

हालांकि, मणिपुर में जेडीयू 2003 में अस्तित्व में आई थी लेकिन वह अब तक किसी भी चुनाव में एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही.

मणिपुर जेडीयू के अध्यक्ष हांखानपाओ ताइथुल का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के नेतृत्व की वजह से पार्टी ने लोकप्रियता हासिल की है.

एनजीओ का आरोप- बिना नियमित स्टाफ के चल रहा है मणिपुर का राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय

भारत के अधिक से अधिक अंतरराष्ट्रीय खेलों में हिस्सा लेने और गोल्ड मेडल जीतने के उद्देश्य से स्थापित राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय का संचालन बिना किसी नियमित स्टाफ के हो रहा है.

द फ्रंटियर मणिपुर की रिपोर्ट के अनुसार, यूनिवर्सिटी के सभी कर्मचारी मौजूदा समय में अनुबंध के तहत काम कर रहे हैं जबकि कुछ की भर्तियां डेप्युटेशन के आधार पर की गई.

एनजीओ अपुनबा इमागी मचासिंग (एआईएमएस) द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे गए एक ज्ञापन में यूनिवर्सिटी की दयनीय स्थिति का उल्लेख किया और यूनिवर्सिटी के समक्ष पेश आ रही समस्याओं की तरफ उनका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया.

ज्ञापन में एआईएमएस ने आरोप लगाया, ‘कुछ लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों को ही कर्मचारी के तौर पर यूनिवर्सिटी में नियुक्त किया है. चूंकि कोई नियमित फैकल्टी या गैर शिक्षण स्टाफ को नियुक्त नहीं किया गया है, इस वजह से यूनिवर्सिटी अधर में लटकी है. इससे छात्रों के करिअर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.’

ज्ञापन में यह भी कहा गया, ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के सेवानिवृत्त अधिकारी आरसी मिश्रा को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों के खिलाफ एनएसयू का कुलपति नियुक्त किया गया था.’

युवा मामलों और खेल के मंत्रालय के विज्ञापन के मुताबिक, वाइस चांसलर के पास उत्कृष्ट अकादमिक रिकॉर्ड होना चाहिए और किसी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के रूप में कम से कम दस सालों का अनुभव या किसी अकादमिक या प्रशासनिक संगठन में समान पद पर समान अनुभव हो. उसकी उम्र आवेदन प्राप्ति की अंतिम तिथि से 65 वर्ष कम होनी चाहिए.

ज्ञापन में कहा गया कि मिश्रा के पास इस पद के लिए आवश्यक योग्यता या अनुभव नहीं है.

एआईएमएस का आरोप है कि मिश्रा ने ज्यादातर काम नई दिल्ली से किया है. हालांकि, उनका आधिकारिक आवास लैम्फेल के रूप में सूचीबद्ध है. उनकी नियुक्ति के शुरुआती छह महीने में वह सिर्फ एक महीने ही इम्फाल में रहे.

यह भी दावा किया गया कि न तो एनएसयू के वीसी और न ही रजिस्ट्रार ने कोर्ट, कार्यकारी परिषद, शैक्षणिक और गतिविधि परिषद, विभागीय खेल अध्ययन बोर्ड और स्कूल ऑफ बोर्ड ऑफ स्टडीज जैसे किसी अनिवार्य विश्वविद्यालय निकायों का गठन किया है.

यूजीसी के दिशानिर्देशों के मुताबिक, कोई यूनिवर्सिटी इन निकायों के बिना संचालित नहीं हो सकती.

एआईएमएस ने यूनिवर्सिटी के मुद्दों को हल करने के लिए प्रधानमंत्री से कार्रवाई करने की मांग की है.

मेघालय: एनपीपी सांसद अगाथा संगमा ने फिर संसद में की आफस्पा निरस्त करने की मांग

लोकसभा में अगाथा संगमा. (स्क्रीनग्रैब साभार: संसद टीवी)

मेघालय के तुरा से भाजपा की सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की सांसद अगाथा संगमा ने शुक्रवार को फिर एक बार लोकसभा में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफस्पा) को निरस्त करने की मांग की है.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, संगमा ने नगालैंड के मोन में हुई घटना में सेना की फायरिंग में 14 लोगों की मौत का हवाला देते हुए आफस्पा हटाने की मांग की.

उन्होंने संविधान की आठवीं सूची में गारो और खासी भाषाओं को भी शामिल किए जाने की भी मांग की.

लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए संगमा ने पिछले साल संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान उठाई गई मांग को दोहराया.

उन्होंने खुद को सामान्य रूप से पूर्वोत्तर राज्यों का प्रतिनिधि बताते हुए कहा, मैं आग्रह करती हूं कि उत्तरपूर्व के संबंध में आफस्पा को निरस्त किया जाए.

उन्होंने कहा, ‘पिछले साल दिसंबर में नगालैंड में एक घटना हुई थी, जिसमें निर्दोष लोग मारे गए थे और यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण था.’

इससे पहले उन्होंने संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान आफस्पा को एक प्रमुख समस्या बताते हुए कहा था कि कि यह पहली बार नहीं है कि निर्दोष लोगों को आफ़स्पा की वजह से जान गंवानी पड़ी है. अब समय आ गया है कि इस क़ानून को हटाया जाए.

मालूम हो कि दिसंबर 2021 की शुरुआत में नगालैंड में 14 नागरिकों की हत्या के कारण पूर्वोत्तर से आफस्पा को वापस लेने की मांग ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है.

घटना के बाद  नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के साथ-साथ मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने भी आफस्पा को रद्द करने की मांग उठाई थी.

कोनराड संगमा सरकार ने सरकारी नौकरी के लिए अधिकतम उम्र की सीमा बढ़ाई

मेघालय सरकार ने सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने वाले सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए अधिकतम आयु सीमा 32 वर्ष और अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए 37 वर्ष कर दी है.

अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने गुरुवार को एक अधिसूचना में मेघालय सरकार द्वारा दोनों श्रेणियों में अधिकतम आयु सीमा में ढील देने के निर्णय को मंजूरी दे दी.

इससे पहले सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए अधिकतम उम्र 27 साल थी जबकि अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए यह सीमा 32 वर्ष थी.

मेघालय की मुख्य सचिव आरवी सूचियांग ने कहा कि अधिकतम उम्र की सीमा में यह छूट कुछ विशिष्ट पदों को छोड़कर सभी श्रेणियों के पदों के लिए लागू होगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)