मलयालम समाचार चैनल ‘मीडिया वन’ के प्रसारण संबंधी लाइसेंस को 31 जनवरी को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा रद्द किए जाने के एक दिन बाद केरल के 10 लोकसभा सांसद संबंधित मंत्री अनुराग ठाकुर से मिले थे. तब उन्होंने उन्हें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने को बोला था. सांसदों का कहना है कि लाइसेंस रद्द करने का कोई स्पष्ट कारण नहीं दिया गया है, यह मीडिया की आवाज़ दबाने का प्रयास है.
नई दिल्ली: जमात-ए-इस्लामी के एक प्रमुख सदस्य से जुड़े मलयालम चैनल ‘मीडिया वन’ के प्रसारण संबंधी लाइसेंस को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (आईबी) द्वारा रद्द किए जाने के एक दिन बाद केरल से लोकसभा के 10 सांसद आईबी मंत्री अनुराग ठाकुर से मिले थे.
ठाकुर ने सांसदों को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने का सुझाव दिया, क्योंकि चैनल को सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार गृह मंत्रालय ने ही किया था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इन सांसदों में कांग्रेस के कोडिकुन्नील सुरेश और के. सुधाकरण एवं रिवोल्युशनरी सोशलिस्ट पार्टी से एनके प्रेमचंद्रन शामिल थे.
पार्टी लाइन को परे रखते हुए एनसीपी की सुप्रिया सुले, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा आईयूएमएल के ईटी मोहम्मद बशीर और कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने भी ‘मीडिया वन’ के लिए अपना समर्थन जताया.
बसपा सांसद कुंवर दानिश अली ने ट्वीट किया कि सरकार को मीडिया की स्वतंत्रता पर नए-नए तरीकों से हमला करके आपात काल को वापस नहीं लाना चाहिए.
वहीं, बीते रविवार को डीएमके की कनिमोझी ने ट्वीट किया था, ‘लोकतंत्र में लोगों, मीडिया और सिविल सोसायटी की आवाज सुनी जानी चाहिए. असहमति, बहस और संवाद पर लगाम कसना लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह है.’
ठाकर ने इन आलोचनाओं पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
केरल के 10 सांसदों ने ठाकुर और गृह मंत्री अमित शाह के कार्यालय को इस संबंध में ज्ञापन सौंपा है और इसे चौंकाने वाली दुर्भाग्यपूर्ण घटना बताते हुए कहा है कि सरकार यह नहीं बता रही है कि वे कारण और चिंताएं क्या हैं, जिनके चलते सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार किया गया.
ठाकुर से मिलने वाले प्रतिनिधि मंडल में बशीर, हिबी ईडेन, अब्दुस्समद समदानी, टीएन प्रथपन, अदूर प्रकाश, डीन कुरियाकोस और राजमोहन उन्नीथन शामिल थे.
प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व करने वाले सांसद सुरेश ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि एक फरवरी को बजट पेश होने के बाद सात से आठ सांसद ठाकुर से मिले थे.
उन्होंने बताया कि पहले हम सदन के अंदर मिले, उसके बाद सदन के बाहर लॉबी में मिले, हमारी उनसे विस्तार से बातचात हुई, उन्होंने हमें बताया कि कार्रवाई सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय मंत्रालय द्वारा नहीं की गई थी और वह चैनल का लाइसेंस रद्द करने के लिए जिम्मेदार नहीं है.
सुरेश के मुताबिक, उसी दौरान ठाकुर ने बताया कि गृह मंत्रालय ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय मंत्रालय से कहा था कि सुरक्षा कारणों से चैनल के लाइसेंस का नवीनीकरण न किया जाए.
सुरेश का कहना है, ‘गृह मंत्रालय ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है, केवल सुरक्षा कारणों का हवाला दिया है.’
उन्होंने बताया, ‘ठाकुर ने हमें कहा कि मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा, क्योंकि यह सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का फैसला नहीं, गृह मंत्रालय का फैसला है, इसलिए आपको गृह मंत्री से मिलना होगा और वे फैसला लेंगे. अगर वे कहते हैं कि हम लाइसेंस रद्दीकरण की कार्रवाई वापस ले लें तो हम तत्काल वापस ले लेंगे. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को इससे कोई समस्या नहीं है.’
सुरेश ने बताया है कि प्रतिनिधि मंडल ने संसद भवन में गृहमंत्री से उनके चेंबर में मिलने की कोशिश की थी, लेकिन बताया गया कि वे व्यस्त हैं. इसलिए हमने अपना ज्ञापन उनके के स्टाफ को दे दिया, लेकन अब तक गृह मंत्री के कार्यालय की ओर से हमें मिलने का समय नहीं दिया गया है.
आरएसपी सांसद प्रेमचंद्रन ने बताया कि ठाकुर ने हमसे कहा कि वे विवश हैं और उनके मंत्रालय का इससे कुछ लेना देना नहीं है, जो कुछ कर सकता है, गृह मंत्रालय कर सकता है.
उन्होंने आगे कहा कि प्रतिबंध का कोई वाजिब कारण नहीं दिया गया है. गृह मंत्रालय को या तो चैनल से सफाई मांगनी चाहिए थी या बताना चाहिए था कि उसने किस चीज का अनुपालन नहीं किया है या उनकी सामग्री राष्ट्रविरोधी है, लेकिन ऐसा कोई नोटिस कभी जारी नहीं हुआ.
ठाकुर को दिए अपने ज्ञापन में प्रतिनिधि मंडल ने कहा है कि चैनल ने लाइसेंस के नवीनीकरण के लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया था. यह 2013 से चल रहे एक मीडिया हाउस की आवाज दबाने का एकतरफा कदम है. सजा से पहले आरोपी को सुनने संबंधी प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांत की यहां स्पष्ट रूप से अनदेखी की गई है.
इससे पहले 31 जनवरी को जब यह आदेश पारित हुआ था, तब कैराली टीवी के प्रमुख सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास और कांग्रेस के हिबी ईडेन ने भी ठाकुर को पत्र लिखकर चिंता व्यक्त की थी.
रविवार को कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी अनुराग ठाकुर को लिखा था कि सुरक्षा कारणों जैसे अस्पष्ट आरोपों की आड़ में प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने से हमारा राज्य एक अधिनायकवादी शासन में बदल जाएगा. इस पत्र में उन्होंने तत्काल लाइसेंस पर लगा प्रतिबंध हटाने की मांग की थी.