त्रिपुरा: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद लोगों को नोटिस भेजने पर राज्य सरकार को फटकार

मामला बीते साल त्रिपुरा में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद की गई सोशल मीडिया पोस्ट करने वालों से जुड़ा है. कोर्ट के आदेश के बावजूद इन लोगों को नोटिस भेजने को लेकर अदालत ने कहा कि अगर पुलिस ने लोगों को परेशान करना बंद नहीं किया, तो वह राज्य के गृह सचिव और संबंधित पुलिस अधिकारियों को तलब करेंगे.

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(फोटो: पीटीआई)

मामला बीते साल त्रिपुरा में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद की गई सोशल मीडिया पोस्ट करने वालों से जुड़ा है. कोर्ट के आदेश के बावजूद इन लोगों को नोटिस भेजने को लेकर अदालत ने कहा कि अगर पुलिस ने लोगों को परेशान करना बंद नहीं किया, तो वह राज्य के गृह सचिव और संबंधित पुलिस अधिकारियों को तलब करेंगे.

(फोटो: पीटीआई)

नयी दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपुरा में कथित सांप्रदायिक हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले लोगों को नोटिस भेजने के लिए राज्य पुलिस को फटकार लगाई है.

दरअसल त्रिपुरा पुलिस ने अदालत के अंतरिम रोक लगाने के आदेश के बावजूद कथित हिंसा को लेकर पोस्ट करने वाले लोगों को नोटिस भेजा था.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने राज्य के अधिवक्ता को आगाह किया कि अगर त्रिपुरा पुलिस ने लोगों को परेशान करना बंद नहीं किया, तो वह राज्य के गृह सचिव और संबंधित पुलिस अधिकारियों को तलब करेंगे.

सुप्रीम कोर्ट दरअसल पत्रकार समीउल्लाह शब्बीर खान की याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

शब्बीर खान ने त्रिपुरा पुलिस द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41ए (पुलिस अधिकारी के समक्ष पेशी के लिए नोटिस) के तहत पेश होने के लिए उन्हें जारी किए नोटिस के खिलाफ यह याचिका दायर की थी.

पीठ ने राज्य से कहा, ‘पुलिस अधीक्षक को सूचित करें कि इस तरह से लोगों को परेशान नहीं करें. किसी को सुप्रीम कोर्ट आने की जरूरत क्यों पड़े? अगर यह उत्पीड़न नहीं है तो क्या है?’

पीठ ने कहा, ‘अगर हमें पता लगा कि पुलिस अधीक्षक लोगों को नोटिस जारी करके आदेश के अनुपालन से बचने की कोशिश कर रहे हैं, तो हम उन्हें अदालत बुलाएंगे और उनकी जवाबदेही तय की जाएगी. हम गृह सचिव सहित सभी को अदालत में पेश होने को कहेंगे. एक बार जब हमने इस संबंध में आदेश पारित कर दिया है तो आपको जिम्मेदाराना रवैया दिखाना चाहिए.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, खान की ओर से पेश अधिवक्ता शाहरुख आलम ने पीठ को बताया कि उनके मुवक्किल को मंगलवार तलब किया गया और कई अन्य सोशल मीडिया यूजर्स को इस मामले पर नोटिस भेजे गए.

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी को एक अंतरिम आदेश पारित कर पुलिस को पत्रकार के ट्वीट के खिलाफ कार्रवाई करने से रोक दिया था.

रिपोर्ट के मुताबिक,  ‘सुनवाई के दौरान आलम ने अदालत को बताया कि कई अन्य सोशल मीडिया यूजर्स को भी नोटिस भेजे गए हैं और इनमें से कुछ ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किाय है.’

बता दें कि यह मामला पिछले साल नवंबर महीने में त्रिपुरा में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद की गई सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़ा हुआ है. बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हमलों के बाद राज्य में तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं हुई थीं.

त्रिपुरा सरकार के वकील ने आग्रह किया कि इस मामले को दो हफ्ते के लिए स्थगित किया जाए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘जब आपने आज के लिए नोटिस जारी किया है तो दो सप्ताह तक रुकने का क्या मतलब है?’

अदालत ने त्रिपुरा पुलिस को मामले में खान को पेश होने के नोटिस के संबंध में आगे कोई कदम नहीं उठाने को कहा है.

पीठ न कहा, ‘याचिकाकर्ता को क्योंकि 10 जनवरी को पारित आदेश के तहत संरक्षण मिल चुका है, इसलिए आगामी आदेश लंबित रहने तक धारा 41ए के तहत जारी नोटिस के अनुरूप कोई कदम नहीं उठाया जाएगा. त्रिपुरा राज्य के वकील मौजूदा आदेश और 10 जनवरी के पूर्ववर्ती आदेशों की प्रतियां पुलिस अधीक्षक को पहुंचाएं.’

पीठ ने कहा, ‘जब राज्य सरकार के वकील ने कहा कि उन्हें मामले में कोई निर्देश नहीं है तो यह उत्पीड़न नहीं तो क्या है? यह बयान बहुत ही नुकसानदेह है कि आपको कोई निर्देश नहीं है जबकि आप सब कुछ कर रहे हो.’

मामले की सुनवाई लगभग खत्म होने से पहले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए और पीठ को आश्वासन देते हुए कहा, ‘मैं इस मामले को देखूंगा और यह सुनिश्चित करूंगा कि आपके आदेशों का पालन हो.’

उच्चतम न्यायालय ने 10 जनवरी को त्रिपुरा पुलिस को राज्य में कथित सांप्रदायिक हिंसा को लेकर किए गए एक पत्रकार के ट्वीट के संबंध में ट्विटर को दिए नोटिस पर कार्रवाई करने से रोक दिया था.

बीते साल 17 नवंबर को अदालत ने राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर की गई हिंसा से जुड़ी सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये कथित तौर पर तथ्य उजागर करने के लिए यूएपीए के तहत उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर के संबंध में त्रिपुरा पुलिस को निर्देश दिया था कि पत्रकार सहित नागरिक समाज संगठनों के तीन सदस्यों के खिलाफ किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई नहीं करें.

ये तीनों लोग उस फैक्ट फाइंडिंग समिति का हिस्सा थे, जिन्होंने इस आधार पर यूएपीए के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी कि गैरकानूनी गतिविधियों की परिभाषा अस्पष्ट और व्यापक है और इस कानून के तहत आरोपी को जमानत मिलना मुश्किल हो जाता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)