परिसीमन आयोग ने अपनी दूसरी मसौदा रिपोर्ट में सुचेतगढ़ विधानसभा सीट का आरएस पुरा सीट में विलय करने का प्रस्ताव दिया है. इस तरह सुचेतगढ़ विधानसभा का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, जिसके विरोध में भाजपा के करीब 200 स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस्तीफ़ा दे दिया है.
श्रीनगर: परिसीमन को लेकर किए जा रहे महत्वाकांक्षी दावों के बीच जम्मू में भाजपा को झटका लगा है. उसके दर्जनों स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने सुचेतगढ़ निर्वाचन क्षेत्र के आरएस पुरा निर्वाचन क्षेत्र के साथ प्रस्तावित विलय के विरोध में इस्तीफा दे दिया है.
सुचेतगढ़ भाजपा का मजबूत गढ़ है, जहां वह पिछले चार में से तीन विधानसभा चुनावों में जीती है. लेकिन, अब यह सीट उन 19 विधानसभा सीटों में शामिल हो गई है जो परिसीमन आयोग का नया चुनावी नक्शा मंजूर होने पर के मौजूदा चुनावी नक्शे से गायब हो जाएंगी.
अपनी दूसरी मसौदा रिपोर्ट में तीन सदस्यीय आयोग ने 28 मौजूदा निर्वाचन क्षेत्रों की चुनावी सीमाओं को बदलने का प्रस्ताव दिया है और सूबे की विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी है.
नये चुनावी नक्शे के मुताबिक, कश्मीर घाटी में दस और जम्मू क्षेत्र में नौ निर्वाचन क्षेत्रों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा. उनका मौजूदा या नये निर्वाचन क्षेत्रों में विलय कर दिया जाएगा. इसके अलावा, आयोग ने केंद्र शासित प्रदेश के सभी पांच लोकसभा क्षेत्रों की सीमाओं में भी फेरबदल किया है.
जम्मू के भाजपा नेता और सुचेतगढ़ खंड विकास परिषद के अध्यक्ष तारसेम सिंह ने बताया कि भाजपा के करीब 200 स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं, जिनमें मंडल और शक्ति केंद्रों के प्रमुख और बूथ प्रभारी शामिल हैं, ने 7 फरवरी को संयुक्त तौर पर में भाजपा के संगठन महासचिव अशोक पंडित को इस्तीफा सौंपा है.
सिह ने द वायर को बताया, ‘हम नई विधानसभा सीट नहीं मांग रहे हैं. अगर सीट खत्म की जाती है तो सुचेतगढ़ के लोग अपनी पहचान खो देंगे.’
उन्होंने इस पर भी आपत्ति जताई कि नया विधानसभा क्षेत्र (आरएस पुरा) अनुसूचित जाति (एससी) के उम्मीदवार के लिए आरक्षित होगा.
सिंह ने बताया कि परिसीमन आयोग की दूसरी मसौदा रिपोर्ट जारी होने के बाद से सुचेतगढ़ में पार्टी कार्यकर्ता और नेता अनिश्चितकालीन आंदोलन पर चले गए हैं. असंतुष्ट नेता जम्मू के भाजपा सांसद जुगल किशोर से मिलने की योजना बना रहे हैं.
जुगल किशोर परिसीमन आयोग के पांच सहयोगी सदस्यों में से एक हैं.
सिंह ने कहा, ‘ हम उनसे आग्रह करेंगे कि वे प्रस्ताव को खारिज कर दें. इससे पार्टी में असंतोष पैदा हो गया है जो चुनाव के दौरान नुकसानदेह साबित हो सकता है.’
एक स्थानीय कार्यकर्ता ने बताया कि यह विधानसभा क्षेत्र शहरी केंद्रों से दूर है और देश की सीमा से लगा हुआ है, जिसके चलते इसकी अपनी चुनौतियां हैं. इसकी स्थिति में और सुधार करने की जरूरत थी, लेकिन अब इसे पंचायत स्तर का बना दिया गया है.
भाजपा के एक पदाधिकारी ने द वायर को बताया कि उन्हें इस्तीफा मिल गया है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. पार्टी के नेतृत्व को इस संबंध में सूचित कर दिया गया है.
उन्होंने कहा, ‘आयोग ने अभी केवल मसौदा रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें बदलाव किया जा सकता है.’
भाजपा पदाधिकारी ने बताया कि 90 विधानसभाओं में से सात को एससी वर्ग के लिए आरक्षित किया गया है, जिसका आधार उन सीटों पर एससी समुदाय की आबादी का प्रतिशत अधिक होना है. आरएस पुरा की कुल आबादी 1,54,905 है, जिसमें एससी की संख्या 58,460 है.
जम्मू के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक ज़फर चौधरी ने द वायर को बताया, ‘जम्मू का जाट समुदाय कांग्रेस छोड़कर भाजपा की ओर आया था, लेकिन अब आरएस पुरा सीट के आरक्षित होने से जाट नेता चिंतित और परेशान हैं.’
मूल आरएस पुरा निर्वाचन क्षेत्र के कुछ हिस्से, जिनमें पश्चिम पाकिस्तान के शरणार्थियों की खासी संख्या है, गांधी नगर निर्वाचन क्षेत्र में मिला दिए गए हैं और उस क्षेत्र का नाम बदलकर जम्मू दक्षिण कर दिया गया है.
नाम न छापने की शर्त पर एक राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं, ‘इससे पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को मजबूती मिलेगी. अगर वे अपना खुद का उम्मीदवार खड़ा करते हैं और उसे सामूहिक तौर पर वोट करते हैं, तो उन्हें अगली विधानसभा मे जगह मिल जाएगी जिसे भाजपा अपनी एजेंडा की जीत के रूप में पेश करेगी.’
कश्मीर में भी पनप रहा असंतोष
नये चुनावी नक्शे ने कश्मीर क्षेत्र मे भी हलचल बढ़ा दी है, जहां दस विधानसभा सीटें खत्म करने का प्रस्ताव है.
उत्तरी कश्मीर में संग्रामा निर्वाचन क्षेत्र के नए निर्वाचन क्षेत्र तंगमर्ग के साथ विलय से स्थानीय लोगों में चिंता बढ़ गई है.
कश्मीर के एक राजनीतिक विश्लेषक ने गोपनीयता की शर्त पर द वायर से कहा, ‘अगर कल को तंगमर्ग से एक उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है तो सोपोर से उसके मतदाता को उस तक पहुंचने के लिए 100 किमी की यात्रा करनी होगी. इसी तरह, क्रालपोरा (उत्तरी कश्मीर में) को करनाह में जोड़ा गया है. अगर क्रालपोरा का कोई व्यक्ति चुनाव जीत जाता है तो उसके मतदाताओं को उनसे मिलने के लिए सड़कें खुलने का छह महीने तक इंतजार करना होगा.’
कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि परिसीमन आयोग ने कई निर्वाचन क्षेत्रों में ‘मौजूदा चुनावी व्यवस्था को बाधित’ करके जम्मू और कश्मीर में सभी दलों के लिए समान संभावनाओं वाली स्थिति तैयार की है.
साथ ही उनका मानना है कि इससे कई निर्वाचन क्षेत्रों में लोगों को लग रहा है कि आयोग की सिफारिशें उन्हें कमजोर बनाने वाली हैं.
एक अन्य विश्लेषक का कहना है कि आयोग का प्रस्ताव जनसांख्यिकीय वास्तविकताओं को बदल सकता है और कश्मीर को अक्षम करने के उद्देश्य को कुछ हद तक पूरा कर सकता है.
साथ ही, उन्होंने भविष्य में सामाजिक विद्वेष बढ़ने की भी बात कही.
बता दें कि आयोग ने अपनी दूसरी मसौदा रिपोर्ट अपने पांच सहयोगी सदस्यों के साथ साझा की है. उन्हें 14 फरवरी तक इस पर अपने जवाब देने हैं.
कश्मीर में सभी क्षेत्रीय दलों ने मसौदे का विरोध किया है और इसे भाजपा के एजेंडे को पूरा करने वाला ठहराया है. भाजपा ने आरोपों को खारिज किया है.
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