एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों और इंडिया जस्टिस रिपोर्ट द्वारा उसके विश्लेषण बताता है कि साल 2020 में जेल में बंद विचाराधीन क़ैदियों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है जबकि दोषसिद्धि के आंकड़े में कमी आई है. इसके चलते जेल में बंद कुल क़ैदियों में विचाराधीन बंदियों की संख्या तीन-चौथाई से अधिक है.
नई दिल्लीः साल 2020 में जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या तेजी से बढ़ी है. हालांकि, दोषसिद्धि की संख्या में कमी आई है, जिस वजह से जेल में बंद कुल कैदियों में विचाराधीन कैदियों की संख्या तीन-चौथाई से अधिक है, जो बीते एक दशक में सबसे अधिक है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों और इंडिया जस्टिस रिपोर्ट द्वारा उसके विश्लेषण के बाद ये तथ्य सामने आए हैं.
2020 में जमानत पर रिहा विचाराधीन कैदियों की संख्या में 2019 के मुकाबले 2.6 लाख की गिरावट आई है. ऐसा 2020 में न्यायपालिका तक कैदियों की कम पहुंच की वजह से हो सकता है क्योंकि कई राज्यों में कैदियों के अदालत पहुंचने की संख्या घटी है.
हालांकि, यह पैटर्न अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है क्योंकि जेलों में सुनवाई के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधाएं भी हैं.
विचाराधीन कैदियों की संख्या में सबसे अधिक इजाफा पंजाब में हुआ है, जहां 2019 के 66 फीसदी की तुलना में 2020 में विचाराधीन कैदियों की संख्या 85 फीसदी बढ़ी है. इसके बाद हरियाणा में 2019 के 64 फीसदी की तुलना में 2020 में 82 फीसदी बढ़ी है और मध्य प्रदेश में यह संख्या 54 फीसदी से बढ़कर 70 फीसदी हो गई है.
छत्तीसगढ़ में विचाराधीन कैदियों की संख्या में 10 फीसदी से अधिक का इजाफा हुआ है.
मध्य प्रदेश को छोड़कर बाकी अन्य तीन राज्यों में कैदियों की रिहाई की वजह से जेल में कैदियों की कुल संख्या घटी है और इस तरह विचाराधीन कैदियों का अनुपात बढ़ा है.
पंजाब के मामले में 2019 की तुलना में 2020 में विचाराधाधीन कैदियों की संख्या कम होने के बावजूद अनुपात बढ़ा है. दिल्ली में जहां विचाराधीन कैदियों की संख्या 2019 के 82 फीसदी की तुलना में 2020 में 91 फीसदी बढ़ी है लेकिन यहां विचाराधीन कैदियों का अनुपात बढ़ा है.
हालांकि, इसी तरह का पैटर्न कई अन्य राज्यों और बड़े केंद्रशासित प्रदेशों में नहीं है, जहां विचाराधीन कैदी और अन्य की संख्या 2020 में बढ़ी है, जो महामारी की वजह से न्यायिक सेवाओं तक पहुंच न होने का संकेत है.
उदाहरण के लिए, बिहार में 2020 में कैदियों की संख्या 12,120 बढ़ी है, जिनमें से अधिकतर विचाराधीन है. यही मामला उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख का है.
2019 में जम्मू कश्मीर और लद्दाख में संयुक्त विचाराधीन कैदियों का अनुपात 83.4 फीसदी था, जो देश में सबसे अधिक है. यह 2020 में बढ़कर 90.5 फीसदी हो गया.
तमिलनाडु में विचाराधीन कैदियों की आबादी सिर्फ 61 फीसदी है, जो पहले से ही देश में सबसे कम है. तेलंगाना में यह 64.5 फीसदी है. केरल में 2020 में विचाराधीन कैदियों की संख्या सबसे कम सिर्फ 59 फीसदी थी.
लगभग सभी राज्यों में कोविड-19 प्रतिबंधों की वजह से कैदियों के अदालत और अस्पताल पहुंचने की संख्या में कमी आई है.
हालांकि, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में बिना कैदियों को अदालत ले जाए जेल में ही सुनवाई की सुविधा दी गई. इन इंतजाम के बावजूद देशभर में विचाराधीन कैदियों और कैदियों की रिहाई की संख्या में भी कमी आई है.