यूपी: पूर्वांचल के गन्ना बेल्ट में विस्थापित गन्ना शोध केंद्र की सुध लेने वाला कोई नहीं है

ग्राउंड रिपोर्ट: पूर्वी यूपी के गन्ना किसानों को उन्नत क़िस्म की प्रजाति मुहैया कराने, सूखा, जलभराव व ऊसर क्षेत्रों में उपयोगी प्रजातियों को विकसित करने जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए 1939 में गोरखपुर के कूड़ाघाट में गन्ना शोध केंद्र की स्थापना की गई. 2017 में केंद्र की ज़मीन एम्स बनाने के लिए देते हुए इसे पिपराइच स्थानांतरित कर दिया गया, लेकिन आज तक वहां शोध केंद्र की एक ईंट भी नहीं रखी गई है.

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खुले में पड़े गन्ना शोध केंद्र के उपकरण. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

ग्राउंड रिपोर्ट: पूर्वी यूपी के गन्ना किसानों को उन्नत क़िस्म की प्रजाति मुहैया कराने, सूखा, जलभराव व ऊसर क्षेत्रों में उपयोगी प्रजातियों को विकसित करने जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए 1939 में गोरखपुर के कूड़ाघाट में गन्ना शोध केंद्र की स्थापना की गई. 2017 में केंद्र की ज़मीन एम्स बनाने के लिए देते हुए इसे पिपराइच स्थानांतरित कर दिया गया, लेकिन आज तक वहां शोध केंद्र की एक ईंट भी नहीं रखी गई है.

खुले में पड़े गन्ना शोध केंद्र के उपकरण. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

पिपराइच: पूर्वांचल के गन्ना बेल्ट में आजादी के पहले का बना गन्ना शोध केंद्र आज विस्थापित है और अपने उद्धार की राह देख रहा है. गोरखपुर में एम्स बनाने के लिए गन्ना शोध केंद्र की जमीन ले ली गई और उसे गोरखपुर से 19 किलोमीटर दूर पिपराइच भेज दिया गया लेकिन चार वर्ष बाद भी शोध केंद्र के लिए एक ईंट तक नहीं रखी जा सकी है.

शोध केंद्र की इस स्थिति के कारण गन्ने की प्रजातियों पर होने वाला शोध व बीज संवर्धन का काम पूरी तरह से ठप हो गया है.

गोरखपुर मंडल के चार जिलों में करीब सवा लाख हेक्टेयर में गन्ने की खेती होती है. सबसे अधिक गन्ने की खेती कुशीनगर जिले में होती है. चार जिलों में 22 चीनी मिलें थी लेकिन इनमें से 13 बंद हो गईं हैं और इस समय सिर्फ नौ चीनी मिलें चल रही हैं.

कुशीनगर जिले में पांच, महराजगंज में दो, देवरिया और गोरखपुर में एक-एक चीनी मिल इस समय गन्ने की पेराई कर रही है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को उन्नत किस्म की गन्ना प्रजाति मुहैया कराने, सूखा, जलभराव व ऊसर क्षेत्रों के लिए उपयोगी गन्ना प्रजातियों को विकसित करने तथा गन्ना किसानों को वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए पूर्वांचल में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती को देखते हुए 1939 में गोरखपुर के कूड़ाघाट में गन्ना शोध केंद्र की स्थापना की गई.

आजादी के पहले प्रदेश में स्थापित हुए तीन शोध केंद्रों में यह एक था. सबसे पहले 1912 में शाहजहांपुर में कृषि रसायनज्ञ जॉर्ज क्लार्क ने गन्ना शोध केंद्र स्थापित किया था. इसके बाद 1934 में मुजफ्फरनगर में गन्ना शोध केंद्र बना. चार वर्ष बाद गोरखपुर में 41 हेक्टेयर भूमि में गन्ना शोध केंद्र स्थापित हुआ. आज प्रदेश में दो गन्ना शोध संस्थान सहित कुल 10 शोध केंद्र व बीज संवर्धन केंद्र हैं.

गोरखपुर से हटाने के पहले गन्ना शोध केंद्र से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से 10 लाख किसान जुड़े थे. यह केंद्र गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, बाराबंकी और मुरादाबाद जिलों तक चीनी मिल क्षेत्र को कवर करता था.

संस्थान द्वारा अधिक उपज व चीनी परिता देने वाली प्रजातियों विकसित करने से इस क्षेत्र के गन्ना किसानों को अपार लाभ हुआ है. पूर्व में इस क्षेत्र में गन्ना की उत्पादकता 35 टन प्रति हेक्टेयर थी जो अब बढ़कर 70 टन प्रति हेक्टेयर हो गई है.

संस्थान ने गन्ने की 23 प्रजातियां विकसित कीं, जिनमें सामान्य खेती हेतु 12, जल प्लावित क्षेत्र हेतु पांच और शीघ्र पकने वाली छह प्रजातियां हैं. संस्थान द्वारा विकसित को.शा. 8436 और को.शा. 8432 किसानों में खूब प्रचलित है. वर्ष 2011 में संस्थान द्वारा विकसित शीघ्र पकने वाली यूपी 05125 पूरे प्रदेश के लिए स्वीकृत की गई है और यह बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही है.

जिस समय गन्ना शोध केंद्र को गोरखपुर से हटाया गया उस समय यहां पर गन्ना शोध केंद्र में 23 शोध परीक्षण कार्य चल रहे थे.

गोरखपुर के गन्ना शोध केंद्र के पास 32.96 हेक्टेयर कृषिगत भूमि थी जिसमें गन्ना किसानों के लिए अच्छी किस्म की गन्ना प्रजातियों के संवर्धन का काम होता था. इसके अलावा पूरी तरह उपकरणों से सुसज्जित प्रयोगशाला थी. साथ ही केंद्र में बाद में उप गन्ना आयुक्त कार्यालय, गन्ना प्रशिक्षण केंद्र, कृषि रक्षा इकाई, मृदा प्रशिक्षण, बीज भंडार व मृदा सर्वेक्षण कार्यालय भी स्थापित हुआ.

गन्ना शोध केंद्र के परिसर में आम, महुआ, कटहल, सागौन, शीशम, नीम, आवंला, बेल, अमरूद, आदि के 487 पेड़ थे जिन्हें काट दिया गया.

वर्ष 2015 में जब गोरखपुर में एम्स बनाने की बात आई तो इसके लिए जमीन की खोज शुरू हुई. प्रस्तवित भूमि में पहले गन्ना शोध केंद्र की जमीन को भी रखा गया लेकिन एक महत्वपूर्ण शोध केंद्र की वजह से इसकी भूमि को एम्स के लिए देने का विचार त्याग दिया गया.

तत्कालीन अखिलेश सरकार ने गोरखपुर में खुटहन में एम्स के लिए जमीन प्रस्तावित की लेकिन केंद्र से आए प्रतिनिधिमंडल ने उस जमीन को यह कहकर अनुपयुक्त करार दे दिया कि वह स्थान फोर लेन से नहीं जुड़ा है.

गन्ना शोध केंद्र के लिए ली गई जमीन.

अखिलेश सरकार ने खुटहन की जमीन के पास फोर लेन सड़क बनाने का भी प्रस्ताव रखा लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार और यहां स्थानीय नेता इस स्थान पर एम्स बनाने का विरोध करने लगे. यह भी कहा गया कि इस जमीन को लेकर वन विभाग और यहां के एक पूर्वं जमींदार परिवार में केस चल रहा है.

तब गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ ने गन्ना शोध केंद्र की भूमि पर एम्स बनाने की जोरदार वकालत की थी. हालांकि उस समय कई संगठनों ने गन्ना शोध केंद्र की भूमि पर एम्स बनाने का विरोध किया और कहा कि एम्स के लिए दूसरे स्थान ढूंढा जाना चाहिए.

ये संगठन यह तर्क दे रहे थे कि गोरखपुर और आस-पास के इलाके में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती है. इसको देखते हुए गन्ना शोध केंद्र को हटाकर दूसरे जगह ले जाने पर उसका कार्य प्रभावित होगा.

इन संगठनों का यह भी कहना था कि गन्ना शोध केंद्र गोरखपुर स्थित वायु सेना केंद्र के पास है जहां से लड़ाकू विमानों की उड़ान होती है. इसलिए यहां एम्स बनाना ठीक नहीं होगा लेकिन इन आवाजों को नहीं सुना गया और गन्ना शोध केंद्र की ही भूमि को दिल्ली से आई केंद्रीय टीम ने सबसे उपयुक्त करार दिया और प्रदेश सरकार ने भी उनके प्रस्ताव को मान लिया.

2017 के विधानसभा चुनाव के पहले अखिलेश सरकार ने हटाने गन्ना शोध केंद्र की भूमि को ही एम्स को देने का निर्णय लिया और यह जमीन एम्स के नाम स्थानांतरित कर दी गई. तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उस समय कहा था कि उन्होंने एम्स के लिए गोरखपुर की सबसे कीमती जमीन दी है. वे इस बात को आज भी सभाओं में दुहराते हैं.

गन्ना शोध केंद्र की भूमि एम्स को देने के बाद यहां स्थित सभी 15 भवनों-कार्यालयों को ढहा दिया गया. गन्ना शोध केंद्र के सभी उपकरणों को पिपराइच में स्थित पुराने चीनी मिल के महाप्रबंधक कार्यालय में भेज दिया गया. यहां स्थित अन्य कार्यालय भी हटा दिए गए.

आज इनमें से कई कार्यालय पर किराए के भवनों में चल रहे हैं. गन्ना शोध केंद्र के उपकरणों को यहां से पिपराइच भेजने पर गोरखपुर प्रशासन ने बहुत जल्दी और सख्ती दिखाई. उस समय कहा गया कि पिपराइच में जल्द ही गन्ना शोध केंद्र बन कर तैयार हो जाएगा और वहां पहले की तरह शोध व अन्य कार्य संचालित होंगे.

गन्ना शोध केंद्र का बोर्ड.

पिपराइच में उसी समय उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम की नई चीनी मिल का शिलान्यास हुआ. चीनी मिल तीन वर्ष के अंदर बन कर तैयार हो गई और उसने नवंबर 2019 में पेराई भी शुरू कर दी. गोरखपुर में एम्स का भी कार्य बहुत तेजी से हुआ और उसका निर्माण भी पूरा होने वाला है लेकिन गन्ना शोध केंद्र चार वर्ष बाद भी अस्तित्व में नहीं आ सका है.

गन्ना शोध केंद्र के लिए पुरानी पिपराइच चीनी मिल के पास 19 हेक्टेयर भूमि खरीदे जाने की योजना बनी. अभी तक सिर्फ 16 हेक्टेयर भूमि ही खरीदी जा सकी है. भूमि पर चहारदीवारी भी अभी नहीं बनी है. शोध केंद्र के लिए लैब व अन्य भवन बनने का काम भी शुरू नहीं हुआ है.

पुरानी चीनी मिल के जीएम कार्यालय परिसर में शोध केंद्र के कुछ उपकरण खुले में रखे हुए हैं तो कुछ को कमरों में रखा गया है. अब इनका कोई उपयोग नहीं हो रहा है.

गन्ना शोध केंद्र को गोरखपुर से पिपराइच भेजे जाने के बाद यहां के सभी वैज्ञानिकों को दूसरे शोध संस्थानों व केंद्रों पर भेज दिया गया. इस समय यहां पर शोध केंद्र प्रभारी समेत सिर्फ 11 स्टाफ हैं. इसमें वैज्ञानिक सहायक ग्रुप-2, लैब अटेंडेंट, लैब असिस्टेंट, लिपिक व परिचारक हैं.

पिपराइच आने के बाद गन्ना शोध केंद्र का काम पूरी तरह ठप पड़ा हुआ है. पिछले वर्ष जमीन मिलने के बाद यहां पर बीज संवर्धन का कार्य शुरू किया गया. इसके लिए पांच हेक्टेयर में कई प्रजातियों के गन्ने की बुआई की गई लेकिन भारी बारिश के कारण हुए जलजमाव से पूरा गन्ना सूख गया. रेड राट बीमारी भी लग गई. अब फिर से गन्ना लगाने की तैयारी हो रही है.

गन्ना शोध केंद्र के प्रभारी ज्ञानेश्वर मिश्र ने बताया कि शोध केंद्र की स्थापना के लिए करीब 30 करोड़ का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है. धन मिलने के बाद शोध केंद्र का भवन व लैब बन सकेगा. उन्होंने कहा कि अभी उन्होंने गन्ना बीज संवर्धन का काम शुरू किया है.

शोध केंद्र के लिए जो भूमि मिली है वह गोरखपुर-नरकटियागंज रेलवे लाइन पर पिपराइच के पास है. इस भूमि से पानी निकासी के लिए कोई ड्रेन नहीं है. आस-पास के क्षेत्र को पूरा पानी यहां आकर इकट्ठा हो जाता है. यदि ड्रेन की व्यवस्था नहीं हुई तो शोध केंद्र यहां पर बीज संवर्धन का काम भी नहीं कर पाएगा और हर वर्ष यहां लगाया गया गन्ना जलजमाव से सूख जाएगा.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)