छत्तीसगढ़: ‘जातिगत’ टिप्पणी व मारपीट करने वाले कोच के ख़िलाफ़ महीने भर बाद भी कार्रवाई नहीं

बस्तर संभाग के बीजापुर ज़िले की स्पोर्ट्स अकादमी के पांच युवा आदिवासी जूडो-कराटे खिलाड़ियों ने सवर्ण जाति के दो कोच पर आरोप लगाया है कि ट्रेनिंग को लेकर ढुलमुल रवैये की बात कहने पर दोनों ने खिलाड़ियों को बुरी तरह पीटा और उसके बाद सभी बच्चों की ट्रेनिंग बंद करवा दी गई. 

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बीजापुर स्पोर्ट्स अकादमी में खेलते खिलाड़ी. (फोटो साभार: bijapur.gov.in)

बस्तर संभाग के बीजापुर ज़िले की स्पोर्ट्स अकादमी के पांच युवा आदिवासी जूडो-कराटे खिलाड़ियों ने सवर्ण जाति के दो कोच पर आरोप लगाया है कि ट्रेनिंग को लेकर ढुलमुल रवैये की बात कहने पर दोनों ने खिलाड़ियों को बुरी तरह पीटा और उसके बाद सभी बच्चों की ट्रेनिंग बंद करवा दी गई.

बीजापुर स्पोर्ट्स अकादमी में खेलते खिलाड़ी. (फोटो साभार: bijapur.gov.in)

रायपुर: आदिवासी बहुल इलाकों से अक्सर ही नस्लीय भेदभाव पर आधारित घटनाएं सुर्ख़ियों में आती रहती हैं, लेकिन अगर यह भेदभाव प्रशासनिक स्तर पर हो रहा है, तो यह सीधे संविधान की अवहेलना के तौर पर दर्ज होता है.

ऐसी ही एक घटना बीते जनवरी में छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के बीजापुर जिले से सामने आई, जो न केवल आदिवासियों द्वारा झेले जा रहे दुर्व्यवहार बल्कि उनके प्रति प्रशासन के रवैये पर भी सवालिया निशान खड़े करती है.

आरोप है कि बीजापुर जिले की एकमात्र राष्ट्रीय स्पोर्ट्स अकादमी में 4 जनवरी की शाम कथित ऊंची जाति से ताल्लुक रखने वाले दो कोच- सूरज गुप्ता और प्रकर्ष राव ने पांच आदिवासी कराटे और जूडो खिलाड़ियों से गाली-गलौज की और उन्हें डंडे से बुरी तरह पीटा.

खिलाड़ियों के अनुसार, बात इतनी-सी थी कि इन नाबालिग खिलाड़ियों को हरियाणा में होने वाले आगामी खेलो इंडिया यूथ गेम 2022 की तैयारी करनी थी लेकिन कोच ने लॉकडाउन का हवाला देते हुए ट्रेनिंग से मना कर दिया. इसे लेकर जब खिलाड़ियों ने सवाल किए, तब दोनों कोच ने ‘अनुशासन सिखाने की बात कहते हुए’ उन्हें मारना शुरू कर दिया.

मुरिया जनजाति से आने वाले 17 वर्षीय राष्ट्रीय जूडो खिलाड़ी ओनिश कोडियम इन खिलाड़ियों में से एक थे. उन्होंने बताया कि वे खेलो इंडिया के लिए चयनित हुए हैं. वे इस मौके को गंवाना नहीं चाहते इसीलिए ज्यादा से ज्यादा प्रैक्टिस करना चाहते हैं.

उन्होंने बताया, ‘जब मैंने प्रैक्टिस की बात कही तब हमारे सर ने कहा कि अभी लॉकडाउन लगने वाला है, ट्रेनिंग नहीं दी जाएगी. मैंने जवाब दिया कि वैसे भी आप लोग ट्रेनिंग देते नहीं हो और ट्रेनिंग के खत्म होने के वक्त आते हो. उतने में कराटे वाले सर तंबाकू चबाते हुए कहने लगे कि इनको सबसे पहले डिसिप्लिन सिखाने की जरूरत हैं. यह कहते हुए उनके मुंह से तबांकू गिर गया जिसे देखकर मेरा साथी अनिराम मुस्कुराने लगा और इतना देखना था कि वो हमें चिल्लाकर मारने लगे.’

प्रशासकीय अनदेखी?

बस्तर क्षेत्र में शिक्षा के बाद एक खेल ही ऐसी शय है जो यहां के बच्चों को नक्सली संगठनों से दूर रख सकती है, लेकिन प्रशासन की लापरवाही और ऐसे भेदभाव की मानसिकता खेल में रुचि रखने वाले बच्चों को इससे दूर कर देती है.

आदिवासी समुदाय को हमेशा से प्रशासन और नक्सलियों ने अपने हिसाब से उपयोग ही किया है. एक तरफ सरकार, जिसे आदिवासियों को कलम देनी थी वहां उन्होंने विकास के नाम पर उन्हें ठगते हुए नक्सलियों के खिलाफ उपयोग करके बंदूक थमा दी. दूसरी ओर नक्सलियों ने आदिवासी बच्चों को शिक्षा से दूर कर उन्हें प्रशासन के खिलाफ बंदूक थमा दी.

2005 का सलवा जुडूम आंदोलन भी एक ऐसा राज्य नियोजित मौत का कुआं था जिसमें आदिवासियों को जानबूझकर धकेला गया. इसके चलते बहुत से आदिवासियों को विस्थापित भी होना पड़ा था. ऐसा ही एक परिवार है 18 वर्षीय मुड़िया आदिवासी अनिराम कोरसा का.

4 जनवरी को हुई मारपीट में शिकार हुए अनिराम को सलवा जुडूम के बाद परिवार के साथ बीजापुर जिले के मनकेली गांव को छोड़कर बीजापुर के एक शिविरपारा बस्ती में आना पड़ा. सलवा जुडूम में उनका घर लूट लिया गया था. 2016 में नक्सलियों ने अनिराम के पिता को पुलिस की मुखबिरी करने के आरोप में उनके घर में घुसकर मार दिया. पिता के मृत्यु के बाद अनिराम 2017 से खेल में रुचि लेने लगे और कराटे खिलाड़ी के रूप में ट्रेनिंग शुरू की.

2022 में अनिराम और छह अन्य आदिवासी बच्चे गुजरात में होने वाली कराटे की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता के लिए चुने गए हैं. ये सभी बीजापुर जिले की स्पोर्ट्स अकादमी के हॉस्टल में रहकर इस स्पर्धा की तैयारी कर रहे हैं.

अनिराम के परिवार में मां, एक बहन और दो भाई हैं और वो अपने घर के अकेले कमाने वाले शख्स हैं. उन्होंने बताया कि एक दिन ऑटो चलाते हैं और एक दिन कॉलेज जाते हैं. हॉस्टल के अधीक्षक ने उन्हें छात्रावास में ऑटो रखने की अनुमति दे रखी है, लेकिन अनिराम की चिंता ट्रेनिंग और स्पोर्ट्स अकादमी के जूडो-कराटे जिम का बंद होना है.

अनिराम ने बताया, ‘हमारे कोच हमारी कोई चिंता नहीं करते, कभी-कभी तो शराब पीकर आते हैं और मां-बहन की गालियां देते है. वे ट्रेनिंग में ध्यान भी नहीं देते. हमें मारने-पीटने के बाद दोनों कह रहे थे कि उनकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता. जब हम बीजापुर कोतवाली थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराने गए थे तब भी हम पर दबाव बनाया जा रहा था कि हम शिकायत न करें. डिप्टी कलेक्टर, जो इस समय अकादमी के इंचार्ज हैं, का भी कहना था कि हमें पुलिस के पास जाने से पहले उनके पास जाना चाहिए था.’

चार जनवरी की घटना के बाद से अकादमी में बच्चों की ट्रेनिंग रोक दी गई है. अनिराम, ओनिश और जूडो-कराटे सीखने वाले खिलाड़ी बीते कई हफ़्तों से डिप्टी कलेक्टर अमित नाथ योगी से उनके जिम के ताले खोलने और नए कोच नियुक्त करने की गुजारिश कर रहे हैं.

हालांकि योगी ने द वायर  से कहा कि ऐसा करना अभी मुमकिन नहीं है. उन्होंने कहा, ‘नए कोच की नियुक्ति अभी नहीं की जा सकती क्योंकि हाल ही में हमने स्विमिंग और तीरंदाजी के कोच की नियुक्ति की हैं. जिम की चाभी इसीलिए नहीं दे सकते क्योंकि जूडो कराटे वाले हॉल में 15 से 20 लाख का सामान रखा हुआ है. उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?’

जब खिलाड़ियों ने यह कहा कि वे खुद उस कीमती सामान को दूसरे कमरे में शिफ्ट करके ताला लगा देंगे, इस पर डिप्टी कलेक्टर ने दावा किया कि चूंकि मारपीट की शिकायत के अनुसार घटनास्थल वही हॉल है, तो पुलिस की छानबीन पूरी होने तक इसे नहीं खोला जा सकता.

उधर, इन खिलाड़ियों से लेकर सर्व आदिवासी समाज का सवाल है कि जब इस बारे में कोई प्राथमिकी ही दर्ज नहीं हुई है तो किस बात की छानबीन होगी? उन्होंने बताया, ‘कोतवाली पुलिस ने बस लिखित शिकायत ले ली थी.’

हालांकि इस शिकायत को कहीं दर्ज किया भी गया है या नहीं, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. जब द वायर  ने बीजापुर कोतवाली के थाना प्रभारी शशिकांत भारद्वाज से संपर्क किया, तब उनका जवाब था, ‘मुझे किसी कोच के खिलाफ कोई शिकायत नहीं मिली है, आप आजाद थाने में पता कीजिए.’

नया नहीं है भेदभाव 

इन खिलाड़ियों का आरोप है कि चार जनवरी की घटना के आरोपी कोच पहले भी जातिगत और नस्लीय भेदभाव भरा रवैया दिखाते रहे हैं.

खिलाड़ियों ने बताया कि वे दोनों आदिवासी बच्चों को गोंड और मुड़िया कहकर गालियां दिया करते थे और अक्सर उन्हें बेल्ट से मारा पीटा गया. उन्होंने कुछ बच्चों को तो अकादमी से बाहर भी निकाल दिया, जबकि यह कोच के अधिकारक्षेत्र में नहीं आता है.

यह भी बताया गया कि दोनों कोच संविदा पर नियुक्त हुए थे लेकिन बीते चार सालों से वे अकादमी में बने हुए हैं.

डोरला समुदाय से आने वाले मुकेश कड़ती राज्य स्तर के जूडो खिलाड़ी हैं. उन्होंने बताया, ‘मेरी उम्र 21 वर्ष है. साल 2020 में सूरज गुप्ता सर ने मुझे नक्सली कहकर अकादमी से निकाल दिया था.’

मुकेश ने आगे बताया, ‘मैंने एक बार अपने वॉट्सऐप के स्टेटस पर अपने भाई की पुलिस की वर्दी पहने हुए एक फोटो पोस्ट की थी, जिसे देखकर सूरज सर मुझे कहा कि तू तो नक्सली हैं और खेलने के लायक नहीं है. उन्होंने एक दिन मुझसे कहा कि वो मुझे अकादमी छोड़ने के लिए तीन दिन का समय दे रहे हैं वरना वो मुझे निकाल देंगे. इसीलिए मैंने अकादमी छोड़ दी.’

खिलाड़ियों ने बताया कि भिलाई के रहने वाले सूरज गुप्ता अक्सर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां किया करते हैं. वे बच्चों को ताना मारते थे कि वे ‘बस यहां मुफ्त का दाल-भात खाने आए’ हैं.

खिलाड़ी अपनी डाइट को लेकर भी शिकायत करते हुए बताते हैं कि पूर्व कोच भुवन नागे इस बात का बेहद खयाल रखा करते थे.

नागे पुलिस विभाग में काम करते हैं और उनका दावा है कि बीजापुर में स्पोर्ट्स अकादमी उन्होंने ही शुरू करवाई थी. उन्होंने बताया, ‘मैं बच्चों का हेड कोच हुआ करता था और नक्सलियों ने मुझे डराने के लिए दो बार चेतावनी भरे पर्चे भी फिंकवाए थे.’

नागे ने आगे बताया कि मारपीट की घटना को लेकर आरोपी कोच- सूरज गुप्ता और प्रकर्ष राव उन्हीं के छात्र थे जिन्हें उन्होंने इस नौकरी पर लगवाया था. वे कहते हैं, ‘लेकिन उन्होंने मेरे खिलाफ ही षड्यंत्र करके मुझे निकलवा दिया. इस बार बच्चों ने जो शिकायत की है, उसे लेकर भी कहा जा रहा है कि मैंने उन्हें भड़काया है.’

इस बीच बीजापुर का आदिवासी समाज आरोपी कोच के खिलाफ कार्रवाई का इंतजार कर रहा है. सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष अशोक तालांडी कहते हैं, ‘कोच कोई भी हो, कहीं से भी आता हो, उन्हें यह अधिकार किसने दिया है कि वह बच्चों को अभद्र गालियां दें?’

वे कहते हैं कि अगर सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करती है तो आदिवासी समाज कोविड नियमों का पालन करते हुए आंदोलन करेगा.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)