यूपी: ‘नीलगाय अउर गोरू बड़ा तबाह कइले बा, सब खेत बारी चर जात हैं’

महराजगंज ज़िले के वनग्रामों में किसान आवारा पशुओं द्वारा उनके खेतों को नुकसान पहुंचाए जाने की समस्या से जूझ रहे हैं. अब फसल बचाने के लिए उन्होंने स्टन मशीन यानी हल्का झटका देने वाली मशीन इस्तेमाल करना शुरू किया है, हालांकि इसके महंगे होने और एक जगह खेत न होने के चलते यह बहुत लाभकारी नहीं है.

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खेत से पशु भगाते एक किसान. (फाइल फोटो: द वायर)

महराजगंज ज़िले के वनग्रामों में किसान आवारा पशुओं द्वारा उनके खेतों को नुकसान पहुंचाए जाने की समस्या से जूझ रहे हैं. अब फसल बचाने के लिए उन्होंने स्टन मशीन यानी हल्का झटका देने वाली मशीन इस्तेमाल करना शुरू किया है, हालांकि इसके महंगे होने और एक जगह खेत न होने के चलते यह बहुत लाभकारी नहीं है.

छुट्टा पशुओं से फसल बचाने के लिए किसान तार, जाली के बाड़ लगा रहे हैं. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

महराजगंज: छुट्टा (आवारा या छोड़ दिए गए) पशुओं से अपनी फसल बचाने के लिए महराजगंज जिले के वन ग्रामों में रहने वाले वनटांगिया हजारों रुपये खर्च कर ‘झटका देने वाली मशीन’ लगा रहे हैं.

इस मशीन से उन्हें रात में जागकर खेतों की रखवाली से थोड़ी राहत मिल रही है लेकिन वन ग्रामों में चकबंदी न होने और एक जगह खेत नहीं होने से यह तरकीब भी बहुत फायदा नही पहुंचा रहा है.

छुट्टा पशुओं से होने वाले नुकसान को देखते हुए तमाम वनटांगिया अपने जमीन परती (बिना कोई फसल लगाए) छोड़ दे रहे हैं.

गोरखपुर और महराजगंज जिले में 23 वन ग्राम हैं. महराजगंज के 18 वन ग्राम में 4,500 से अधिक वनटांगिया परिवार रहते हैं. इन सभी परिवारों के पास खेती है. खेती की यह जमीन उन्हें वन अधिकार कानून (अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन अधिकारों की मान्यता) के तहत पट्टे पर मिली है.

वनटांगिया अंग्रेजी राज में 100 वर्ष पहले गोरखपुर, महराजगंज के इलाके में साखू और सागौन के प्लांटेशन के लिए लाए गए थे. टांगिया म्यांमार में पहाड़ों पर खेती करने की एक पद्धति का नाम है. इसमें पेड़ों के बीच की जगह में खेती करते हैं. अंग्रेजों ने 1922 में इसी पद्धति से गोरखपुर, महराजगंज में मजदूरों से साल यानी साखू और सागौन के जंगल तैयार कराए. टांगिया पद्धति से साखू के जंगल तैयार करने के कारण इन्हें वनटांगिया कहा गया.

वनटांगिया तभी से जंगल में रह रहे हैं और अपने उपभोग की भूमि पर खेती कर जीवनयापन कर रहे हैं. वन अधिकार कानून लागू होने के बाद उन्हें अपनी जमीन पर कानूनी मालिकाना मिल गया.

वन अधिकार कानून के तहत महराजगंज जिले के 3,798 परिवारों को 128.361 हेक्टेयर आवासीय और 1488.761 हेक्टेयर खेती की जमीन मिली. गोरखपुर जिले के 504 परिवारों को 24.970 हेक्टेयर आवासीय भूमि और 202.800 हेक्टेयर खेती की जमीन मिली, हालांकि अब भी कुछ परिवार वन अधिकार कानून के तहत भूमि अधिकार पाने से वंचित हैं.

इन वन ग्रामों में वनटांगियों के पास उपजाऊ जमीन है जिस पर वे गेहूं, धान के साथ-साथ सब्जी की खेती करते हैं. साथ ही बड़ी संख्या में मवेशी पालन करते हैं.

महराजगंज जिले के 18 वन ग्रामों में 12 गांव सोहगीबरवा सेंचुरी के घने जंगल में हैं जबकि वेलासपुर, दौलतपुर, बरहवां, भारी वैसी, सूरपार और खुर्रमपुर जंगल किनारे हैं.

खुर्रमपुर वन ग्राम निवासी मंगरू ने अपने घर के पास खेत की तार का बाड़ लगा दिया है और तार को झटका देने वाली मशीन से जोड़ दिया है. यह मशीन रात में ऑन कर दी जाती है जिससे तारों में हल्का करंट प्रवाहित होता है. यदि छुट्टा पशु खेत में जाने की कोशिश करते हैं तो उन्हें हल्का झटका लगता है जिससे वे वापस लौट जाते हैं.

मंगरू ने यह व्यवस्था छुट्टा पशुओं से अपनी फसल बचाने के लिए किया है. मंगरू बताते हैं, ‘दिन हो चाहे रात झुंड के झुंड छुट्टा पशु खेतों में घुस जाते हैं और पूरी फसल चौपट कर देते हैं. पिछले वर्ष हम  और गांव के कई लोग ये झटका देने वाली मशीन लेकर आए हैं.’

मंगरू ने बताया कि उन्होंने एक छोटी और एक बड़ी मशीन लगा रखी है. छोटी मशीन 4,500 रुपये में मिली जबकि बड़ी मशीन पर 13 हजार खर्च आया. खेत को चारों ओर से तार से घेरने में अलग से खर्च हुआ.

मंगरू.

वह कहते हैं, ‘इस मशीन से यह फायदा हुआ है कि रात भर खेत की रखवाली नहीं करनी पड़ रही है. रात को मशीन चला देते हैं, जब जानवर खेत की तरफ जाते हैं तो उन्हें तार झटका देता है. मशीन से आवाज भी आती है. जरूरत पड़ने पर टॉर्च और लाठी लेकर जानवरों को भगाने के लिए खेत की तरफ चले जाते हैं.’

मंगरू कहते हैं कि घर से दूर वाले खेत में वह यह मशीन नहीं लगा सकते हैं क्योंकि उसके लिए काफी खर्च करना होगा. उन्होंने घर के पास के खेत, जिसमें सब्जी की खेती की है, यह मशीन लगाई है.

खुर्रमपुर वन ग्राम के वन अधिकार समिति के अध्यक्ष राजाराम कहते हैं, ‘सरकार ने गांव में बिजली, सड़क की सुविधा तो दे दी है लेकिन आवारा पशु हमारा बहुत नुकसान कर रहे हैं. हम लोग जंगली जानवरों- सेही, सुअर के साथ-साथ नीलगाय से फसल का नुकसान तो पहले से झेल रहे थे, अब छुट्टा जानवरों ने तो तबाही ला दी है. खेती करना मुश्किल हो गया था. झटके वाली मशीन एक उपाय के रूप में हमारे सामने आई तो है लेकिन इसमें खर्च बहुत है.’

राजाराम के अनुसार, एक मशीन पर 15 हजार रुपये खर्च आ रहा है. गांव के आठ-दस लोग मिलकर सहकारी रूप में मशीन लगा रहे हैं. आपस में चंदा लगाया जाता है.

झटका देने वाली मशीन.

उन्होंने बताया, ‘हमने कई वनटांगियों के साथ मिलकर करीब 20 एकड़ खेत को तार से घेरकर झटके वाली मशीन लगा दी है. इस तरह कई लोगों ने किया है लेकिन हमारी दिक्कत यह है कि राजस्व गांव घोषित होने के बावजूद हमारे गांव में चकबंदी नहीं हुई है. खेत इकट्ठा नहीं है. इसलिए सभी खेतों में तार की बाड़ और मशीन नहीं लगा पा रहे हैं.’

राजाराम मशीन की कार्यप्रणाली समझाते हैं, ‘ई मशीन रात में चलावल जाला. तार में करंट आ जाला. जानवर जब खेत में जाला तो ओके झन्न से धक्का लगेगा और उ भाग जाला. जउन जानवर के एक बार झटका लग जाला उ तार देख के नगीचे नाहीं जाला. बिना बिजली वाला तार से भी जानवर सब डराये लगेला.’

खुर्रमपुर गांव के कई वनटांगिया काश्तकारों को इस मशीन ने राहत दी है लेकिन सबकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे मशीन लगा लें.

इसी गांव के रामराज सवाल करते हैं, ‘हम गरीब हैं. हमारे पास पांच हजार-दस हजार खर्च कईले के बेवत (हैसियत) नाहीं बा. हम कइसे इ झटका वाली मशीन खरीद पाइब. हम तो असमर्थ हैं. एकरी आगे हम अब का कहीं. टाटी बांधकर खेत के बचावत हईं लेकिन तब्बो फसल नहीं बचत बा.’

खुर्रमपुर के झिनकी छुट्टा पशुओं से होने वाली बर्बादी का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘मेन समस्या पशु क ह. नील गाय अउर गोरू बड़ा तबाह कइले बा. बहुतै पशु आ गइल बांटे. सब खेत-बारी चर जात हैं. चार-पांच बरस से इ समस्या अउर गंभीर हो गईल बा.’

वन ग्राम भारी वैसी के वनटांगिया भी छुट्टा पशुओं से फसल बचाने के लिए तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं. यह वनग्राम कैम्पियरगंज कस्बे के पास है. वनटांगियों ने अपने खेत को तार और जाली से बाड़ाबंदी की है.

इस गांव के हरिराम कहते हैं, ‘पशु क दिक्कत बहुत बा. सब फसल चर जात हईं. खेत परती छोड़े के पड़त बा. तार, जाली बांध फसल बचइले के कोशिश होत बा लेकिन सब मनई के पास इंतजाम नाहीं बा. चकबंदी नाहीं भइले से खेत इकट्ठा नइखे. एने ओने खेत बा.’

राजाराम.

खुर्रमपुर में 304 वनटांगिया परिवारों को 119 हेक्टेयर जमीन और भारी वैसी में 147 वनटांगिया परिवारों को 68.597 हेक्टेयर जमीन खेती के लिए पट्टे पर दी गई है. दोनों गांव फरेंदा विधानसभा क्षेत्र में आते हैं.

छुट्टा पशुओं से खेती को हो रहे नुकसान ने वन ग्रामों से पलायन के बढ़ाया है. वन ग्रामों से बड़ी संख्या में युवा मजदूरी करने दिल्ली, मुंबई और गुजरात जा रहे हैं. वन ग्रामों में पलायन की स्थिति कितनी गंभीर है, इसका पता तब चला जब कोरोना लाॅकडाउन में महराजगंज के वन ग्रामों में करीब एक हजार मजदूर वापस आए.

हाल के वर्षों में वनटांगियों के लिए खेती करना बहुत मुश्किल हो रहा है. आवारा पशुओं से जंगल भर गया है. शहरों से अवारा गोवंशीय पशुओं को पकड़कर जंगल की तरफ छोड़ दिया जा रहा है. झुंड के झुंड पशु बड़ी मेहनत से तैयार फसल को तहस-नहस कर देते हैं.

साथ ही, जंगली जानवरों में सुअर, हिरन, साही, नील गाय आदि भी फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. इनसे फसलों को बचाने के लिए वनटांगियों को दिन के अलावा रात में भी रखवाली करनी पड़ती है.

झटका देने वाली मशीन एक उपाय के रूप में जरूर सामने आई है लेकिन इसके इंतजाम में आने वाला खर्च उठा पाना सभी वनटांगियों के लिए मुश्किल है. राजाराम कहते हैं, ‘सरकार न तो छुट्टा पशुओं का इंतजाम कर रही है, न इससे होने वाले नुकसान की उसे चिंता है. हम अपने बूते इस समस्या से जूझ रहे हैं.’

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)