यूपी: गोरखपुर में कई प्रत्याशियों के आंसुओं ने मतदाताओं में पैदा की सहानुभूति

गोरखपुर और बस्ती मंडल की कई विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के प्रति मतदाताओं में उमड़ी हमदर्दी ने राजनीतिक दलों के बने-बनाए समीकरण उलट दिए हैं.

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एक सभा में अखिलेश यादव के साथ शुभावती शुक्ल. (फोटो साभार: फेसबुक/@shubhawatiupendrashukla)

गोरखपुर और बस्ती मंडल की कई विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के प्रति मतदाताओं में उमड़ी हमदर्दी ने राजनीतिक दलों के बने-बनाए समीकरण उलट दिए हैं.

निर्मेष मंगल का काफिला और एम्बुलेंस में निर्मेष मंगल. (फोटो साभार: फेसबुक/@nirmesh.mangal.5)

गोरखपुर: गोरखपुर और बस्ती मंडल की कई सीटों पर प्रत्याशियों की भावुक अपील और आंसुओं ने अच्छा-खासा असर डाला है. दो सीटों पर तो प्रत्याशियों के आंसुओं से पैदा हुई सहानुभूति की लहर ने मुख्य राजनीतिक दलों के बने-बनाए समीकरण को उलट-पुलट दिया है.

महराजगंज सुरक्षित सीट पर निर्दल चुनाव लड़ रहे निर्मेष मंगल एम्बुलेंस से प्रचार कर रहे हैं. नामांकन के बाद उनकी तबियत खराब हो गई और वे बेहोश हो गए. इसके बाद हृदय संबधी रोग के कारण उन्हें दो सप्ताह से अधिक समय तक अस्पताल में रहना पड़ा. इस दौरान उनके बेटे और पत्नी ने चुनाव प्रचार की कमान संभाला.

इसके बाद निर्मेष मंडल अस्पताल से डिस्चार्ज होकर एम्बुलेंस से अपने क्षेत्र में आए और प्रचार करने लगे. पिछले चार-पांच दिन से निर्मेष मंगल एम्बुलेंस से प्रचार में जा रहे हैं. एम्बुलेंस में वे लेटे रहते हैं और उनके समर्थक पर्चे आदि बांटते हुए उन्हें जिताने की अपील करते हैं. लोग उन्हें देखने के लिए एम्बुलेंस तक आते हैं और सहानुभूति जताते हैं.

महराजगंज सीट पर 2007 और 2012 में सपा और पिछले चुनाव में भाजपा जीती थी. तीनों चुनाव निर्मेष मंगल बसपा से लड़े और दूसरे स्थान पर रहे. वर्ष 2007 के चुनाव में वह सिर्फ 889 मत से हारे थे.

इस चुनाव में भाजपा ने अपने सीटिंग विधायक जयमंगल कन्नौजिया को उम्मीदवार बनाया है. सपा की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) से गीता रत्नम, बसपा से ओमप्रकाश और कांग्रेस से आलोक प्रसाद चुनाव मैदान में है. चुनावी संघर्ष इन्हीं मुख्य दलों में हैं लेकिन निर्मेष मंगल का एंबुलेंस से प्रचार, भावुक अपील ने चुनाव को एक अलग ही दिशा दे दी है.

निर्मेष मंगल चुनाव प्रचार में लोगों से मतदान कर जीवनदान देने की भावुक अपील कर रहे हैं. उन्होंने इस अपील का एक वीडियो भी जारी किया है. मंगल पिछले तीन चुनाव से महराजगंज सीट पर लड़ रहे हैं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.

पिछले चुनाव के बाद वे सपा में शामिल हो गए. वे टिकट के प्रबल दावेदार थे लेकिन यह सीट सपा की सहयोगी (सुभासपा) में चली गई और सुभासपा ने यहां से गीता रत्नम को प्रत्याशी बना दिया. निर्मेष मंगल ने सपा से बगावत कर दी और वे निर्दल चुनाव में कूद गए लेकिन नामांकन के बाद तबियत बिगड़ने से स्थिति एकदम बदल गई.

निर्मेष मंगल ने बताया, ‘मुझे मधुमेह के अलावा कोई बीमारी नहीं थी. अस्पताल में डॉक्टरों ने बताया कि हृदय की धमनियों में ब्लॉकेज है और ब्लॉकेज हटाने के लिए दो स्टेंट डाले गए हैं.’

वह प्रचार के दौरान कह रहे हैं कि वे 20 वर्ष से जनता की सेवा कर रहे थे. उन्हें टिकट नहीं मिला. अब जनता ही उनका प्रचार कर रही है. लोग उन्हें मतदान कर जीवनदान देंगे. ‘

निर्मेष मंगल के प्रचार में उनके समर्थकों ने एक पोस्टर जारी किया है जिसमें लिखा है- ‘आपका अपना, तीन बार का हारा, निर्मेष बेचारा.’ निर्मेष मंगल के एक समर्थक अशोक मानव ने उन्हें जिताने के लिए भावुक अपील करते हुए गीत गाया है और सोशल मीडिया पर अपलोड किया है. गीत के बोल हैं-

निर्मेष भइया हमार भइया
महराजगंज के सनवा हो
चाचा चाची दादा दादी दे द
उनके जीवनदनवा हो
बीस बरस तक सबके कइलें सेवा
केहू न कइलस उन पर विश्वास हो
एक बार साथ दे द
पइहन जीवनदनवा हो

इसी तरह संतकबीरनगर के जिले की खलीलाबाद सीट पर आम आदमी पार्टी (आप) से चुनाव लड़ रहे पूर्व सांसद भालचंद्र यादव के बेटे सुबोध चंद्र यादव ने सहानुभूति के बदौलत चुनावी समीकरण को ही बदल दिया है.

सुबोध यादव सपा से टिकट के दावेदार थे लेकिन पार्टी ने भाजपा छोड़कर आए निवर्तमान विधायक जय चौबे को टिकट दे दिया. इस सीट पर भाजपा ने नए प्रत्याशी अंकुर तिवारी को उतारा है.

अपनी माता और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के साथ सुबोध यादव. (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

मुस्लिम बहुल इस सीट पर पीस पार्टी के अध्यक्ष डाॅ. अयूब भी चुनाव लड़ रहे हैं. उन्हें एआईएमआईएम का भी समर्थन है. बसपा ने आफताब आलम और कांग्रेस ने अमरेंद्र भूषण को चुनाव मैदान में उतारा है.

सपा से टिकट नहीं मिलने पर सुबोध यादव आप का टिकट लेकर चुनाव मैदान में उतर गए. वे अपनी मां फूला देवी, भाई, बहन के साथ चुनाव प्रचार कर रहे हैं. उनके साथ युवाओं की एक बड़ी संख्या देखी जा रही है. वे अपनी सभाओं में अपने पिता भालचंद्र यादव का बार-बार जिक्र करते हैं और अक्सर भावुक हो जाते हैं.

वे कहते हैं, ‘यदि उनके पिता जीवित होते तो उन्हें परिवार सहित जनता के बीच नहीं खड़ा होना पड़ता. आज यह दिन नहीं देखना पड़ता. पिताजी कुछ छोड़कर नहीं गए हैं. बस मेरी अंगुली पकड़कर जनता की सेवा का राह दिखा गए हैं. आखिरी वक्त भी यही कहा कि बेटा जनता की सेवा करना.’

सुबोध यादव के पिता भालचंद्र यादव संतकबीरनगर के लोकप्रिय नेता थे. अक्टूबर 2019 में उनका निधन हो गया. वे दो बार संतकबीरनगर के सांसद रहे. वे 1999 में सपा से और 2004 में बसपा से चुनाव जीतकर सांसद बने थे. 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने कांग्रेस से लड़ा था लेकिन हार गए थे.

सुबोध के पक्ष में सहानुभूति देखते हुए आम आदमी पार्टी ने यहां पूरी ताकत लगा दी है. पार्टी प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी यहां आकर सभा की. राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने इस क्षेत्र में कई सभाएं की हैं.

आप आदमी पार्टी के नेता पूरे प्रदेश में अपने लिए इस सीट को ही सबसे ज्यादा संभावनाशील बताने लगे हैं. सुबोध की इस चुनाव में दमदार उपस्थिति को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को भी नोटिस लेना पड़ा.

सोमवार को खलीलाबाद की जनसभा में उन्होंने बिना नाम लिए इसकी तरफ इशारा कर दिया. उन्होंने कहा, ‘बताओ कोई गड़बड़ तो नहीं है. हमें लग रहा है कि कुछ गड़बड़ है. कहीं झाड़ू-वाड़ू तो नहीं चल रही? झाड़ू के चक्कर में तो कोई नहीं है. हमीं बन गए थे इस चक्कर में लेकिन बताओ बच गए कि नहीं इस चक्कर से. बताओ हम लोगों को बचाओगे कि नहीं?

इन दोनों सीटों के अलावा गोरखपुर के पिपराइच विधानसभा सीट पर सपा से लड़ रहे अमरेंद्र निषाद को कई सभाओं में रोते हुए देखा गया है.

चुनाव प्रचार के दौरान अमरेंद्र निषाद. (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

शनिवार को बांसस्थान पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सभा में भाषण करते हुए अमरेंद्र निषाद अपने पिता जमुना निषाद को याद करते हुए उनका गला रूंध गया और वह रोने लगे. मंच पर मौजूद उनकी मां- पूर्व विधायक राजमती निषाद बेटे को ढांढस बंधाने गईं लेकिन उनकी भी आंखों में आंसू बहने लगे.

पार्टी नेताओं ने दोनों को संभाला. मां-बेटे को रोता देखा पूरी सभा में एकाएक सन्नाटा हो गया लेकिन कुछ देर बाद ही ‘जमुना निषाद-अमरेंद्र निषाद जिंदाबाद’ के नारे लगने लगे. अमरेंद्र निषाद ने इस सभा में कहा, ‘मेरे पिता ने वर्षों तक राजनीति की लेकिन अपने परिवार के लिए कुछ नहीं बनाया. आज हमारे सिर पर पिता का साया नहीं है. अब क्षेत्र की जनता ही हमें सहारा देगी.’

सभा में उन्होंने ब्लॉक प्रमुख चुनाव के समय अपने साथ हुए दुर्व्यवहार का भी जिक्र किया और कहा कि जिस तरह उनके पिता को उनसे छीन लिया गया, उसी तरह उनकी हत्या करने की साजिश की गई थी.

अमरेंद्र निषाद पिछला चुनाव सपा से ही लड़े थे लेकिन हार गए. वे तीसरे स्थान पर रहे. बसपा दूसरे स्थान पर रही. यहां से भाजपा के महेंद्रपाल सिंह जीते.

पिपराइच सीट निषाद बहुल सीट है. इस सीट से अमरेंद्र निषाद के पिता जमुना निषाद 2007 में विधायक चुने गए थे और बसपा सरकार में मत्स्य एवं सैनिक कल्याण राज्यमंत्री बनाया गया. एक वर्ष बाद 2008 में लड़की से रेप के मामले में पुलिस द्वारा कार्रवाई नहीं किए जाने को लेकर यमुना निषाद महराजगंज कोतवाली पहुंचे और वहां पुलिस से झड़प के दौरान गोली चल गई और एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई.

इस मामले में उन पर केस दर्ज हुआ और उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा. वर्ष 2010 में रोड एक्सीडेंट में उनकी मौत हो गई. उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी राजमती निषाद सपा से चुनाव लड़ी और जीत कर विधायक बनीं. इसके बाद 2012 में वह दोबारा जीतीं.

जमुना निषाद गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ तीन बार चुनाव लड़े. वे चुनाव जीते तो नहीं लेकिन दो बार उन्होंने कड़ी टक्कर दी थी. जमुना निषाद को गोरखपुर और आस-पास के जिलों में निषादों का सबसे बड़ा नेता माना जाता है और हर निषाद नेता चाहे वह किसी दल में हो, उनका नाम लेता है.

गोरखपुर सदर सीट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ रही सपा प्रत्याशी शुभावती शुक्लाा अपने दिवंगत पति उपेंद्र दत्त शुक्ला की भाजपा में हुई उपेक्षा और उनकी मृत्यु के बाद परिवार से मुंह मोड़ लेने की बात करते हुए अक्सर रोती देखी जाती हैं.

एक सभा में अखिलेश यादव के साथ शुभावती शुक्ला. (फोटो साभार: फेसबुक/@shubhawatiupendrashukla)

मीडिया इंटरव्यू में भी वह अक्सर यही कहती हैं कि उनके पति की मौत के बाद कोई नहीं आया. यह कहने के बाद उनकी आंखें भर आती हैं और उनके साथ मौजूद दोनों बेटे उन्हें ढांढस बंधाते हैं. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 27 फरवरी को गोरखपुर शहर में किए गए रोड शो में शुभावती शुक्ला को समाजवादी माता कहते हुए कहा कि उनके साथ बहुत अन्याय हुआ है.

उपेंद्र दत्त शुक्ला भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष रह चुके थे. उनका पिछले वर्ष निधन हो गया था. वे 2018 का गोरखपुर से लोकसभा उपचुनाव भाजपा से लड़े थे लेकिन हार गए थे. उपेंद्र दत्त कौड़ीराम विधानसभा (परिसीमन के बाद अब गोरखपुर ग्रामीण) से तीन बार चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं पाए. दो बार तो पार्टी ने टिकट भी काट दिया था.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

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