केंद्र सरकार ने पार-तापी-नर्मदा नदियों को जोड़कर बांध बनाने का निर्णय लिया है. इस नदी लिंक परियोजना के क्षेत्र में दक्षिण गुजरात और महाराष्ट्र का नासिक ज़िला आएगा. साल 2007-08 में आदिवासियों के कड़े विरोध के बाद यह परियोजना रुक गई थी. आदिवासी नेताओं का आरोप है कि केंद्र ने नर्मदा योजना की विफलता छिपाने के लिए परियोजना को डिजाइन किया है.
वलसाड: गुजरात और पड़ोसी महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों के करीब पांच हजार आदिवासियों ने सोमवार को वलसाड जिले के धरमपुर में एकत्र होकर पार नदी पर बांध बनाने के फैसले के विरोध में प्रदर्शन किया.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने पार-तापी-नर्मदा नदियों को जोड़कर बांध बनाने का निर्णय लिया है. इस नदी लिंक परियोजना के क्षेत्र में दक्षिण गुजरात और महाराष्ट्र का नासिक जिला आने वाला है.
आदिवासियों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन कर स्थानीय ‘मामलतदार’ को इस संबंध में एक ज्ञापन सौंपा.
कांग्रेस विधायक अनंत पटेल और शिवसेना नेता अभिनव देल्कर ने प्रदर्शन कर रहे लोगों को संबोधित किया और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करने का संकल्प लिया.
पूर्व सांसद मोहल देल्कर के पुत्र अभिनव देल्कर ने कहा, ‘सिर्फ गुजरात और दादर नगर हवेली ही नहीं, बल्कि हमें यहां से संदेश देना चाहिए कि आदिवासी समुदाय सरकार के समक्ष नहीं झुकेगा.’
धरमपुर थाने के उपनिरीक्षक एसजे परमार ने बताया कि पूर्वी गुजरात के वलसाड, दांग, नवसारी जिलों और महाराष्ट्र तथा दादर नगर हवेली से 4-5 हजार लोगों ने इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन में हिस्सा लिया.
भारत जल संसाधन सूचना प्रणाली के अनुसार, पार-तापी-नर्मदा नदी लिंक परियोजना के तहत पश्चिमी घाट क्षेत्र में उपलब्ध अतिरिक्त जल को सौराष्ट्र और कच्छ के कम जल वाले क्षेत्र में भेजने का प्रस्ताव है. इसके लिए उत्तरी महाराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में सात जलाशयों के निर्माण की योजना है.
इस नदी लिंक परियोजना के तहत छह जलाशयों का निर्माण गुजरात के वलसाड और दांग जिलों में होना है, जबकि एक जलाशय महाराष्ट्र के नासिक जिले में बनना है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, पिछले महीने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अपने बजट भाषण में इस परियोजना के लिए बजटीय आवंटन की घोषणा के बाद विपक्ष को गति मिली है.
आदिवासी नेताओं ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र के डांग, वलसाड और नासिक जिले में छह जलाशय विकसित होने से करीब 50,000 लोग सीधे प्रभावित होंगे. इनमें से तीन बांध डांग में, एक वलसाड में और दो महाराष्ट्र में विकसित किए जाएंगे. डांग जिले के वाघई तालुका में बनने वाले तीन बांधों के डूब क्षेत्रों में कम से कम 35 गांव पूरी तरह से जलमग्न हो जाएंगे.
वंसदा से कांग्रेस विधायक अनंत पटेल ने कहा, ‘कई स्थानों पर पुलिस ने आदिवासियों को रैली में पहुंचने से रोकने के लिए बैरिकेड्स लगाए थे. अगर सरकार परियोजना को नहीं छोड़ती है तो हमारा विरोध आक्रामक हो जाएगा.’
उन्होंने कहा, ‘हम क्षेत्र के अन्य हिस्सों में विरोध प्रदर्शन जारी रखने जा रहे हैं और अगली रैली तापी जिले में होगी.’
रैली में शामिल एक कार्यकर्ता ने कहा, ‘नदी जोड़ने की परियोजना की लागत 10,211 करोड़ रुपये है और अगर सरकार सौराष्ट्र और कच्छ में सिंचाई के लिए बड़े बांध बनाना चाहती है तो उन्हें वहां इन बांधों को विकसित करना चाहिए. यहां बांध बनाने और वहां पानी लेने का कोई मतलब नहीं है.’
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पार-तापी-नर्मदा नदियों को जोड़ने वाली इस परियोजना के तहत सात बांधों के निर्माण के कारण लगभग 7,500 हेक्टेयर भूमि जलमग्न हो जाएगी.
इससे पहले साल 2007-2008 में आदिवासियों के कड़े विरोध के बाद यह परियोजना रुक गई थी. आदिवासी नेताओं का आरोप है कि केंद्र ने नर्मदा योजना की विफलता को छिपाने के लिए परियोजना को डिजाइन किया है. परियोजना के परिणामस्वरूप डांग, वलसाड और तापी जिलों में सैकड़ों आदिवासी विस्थापित होंगे. सागौन और बांस और अन्य लकड़ियों से भरपूर डांग के जंगल जलमग्न हो जाएंगे.
आदिवासी नेताओं का कहना है कि उन्होंने नर्मदा योजना, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, उकाई आदि जैसी कई परियोजनाएं देखी हैं, जहां आदिवासियों को उनकी भूमि से विस्थापित होने के लिए मुआवजा दिया जाना बाकी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)