पिछले साल चार और पांच दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग और तिरु गांवों के बीच सेना की गोलीबारी में कम से कम 14 नागरिकों के मौत हो गई थी. मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने कहा कि सेना के पैरा-कमांडो द्वारा 14 नागरिकों की कथित हत्या की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के नतीजे केंद्र से दोषियों पर मुक़दमा चलाने की मंज़ूरी मिलने के बाद सार्वजनिक किए जा सकते हैं.
कोहिमा: नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने बुधवार को कहा कि राज्य में पिछले साल दिसंबर में सेना के पैरा-कमांडो द्वारा 14 नागरिकों की कथित हत्या की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के नतीजे केंद्र से दोषियों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी मिलने के बाद सार्वजनिक किए जा सकते हैं.
मोन जिले के ओटिंग इलाके में नागरिकों की हत्या के बाद राज्य सरकार ने एसआईटी का गठन किया था और उससे 30 दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था. विभिन्न वर्गों से रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की जा रही है.
मुख्यमंत्री ने कोहिमा में एक आधिकारिक कार्यक्रम के इतर कहा कि राज्य सरकार को जांच दल की रिपोर्ट मिली है.
उन्होंने कहा, ‘एसआईटी घटना में आरोपियों पर मुकदमा चलाने के लिए एक मामला दायर करेगी. इसमें भारत सरकार की अनुमति चाहिए होगी और अनुमति मिलने पर जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी.’
गौरतलब है कि पिछले साल चार और पांच दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग और तिरु गांवों के बीच सेना की गोलीबारी में कम से कम 14 नागरिकों के मौत हो गई थी. ऐसा दावा किया गया था कि यह घटना गलत पहचान का नतीजा थी.
गोलीबारी की पहली घटना तब हुई जब चार दिसंबर (2021) की शाम कुछ कोयला खदान के मजदूर एक पिकअप वैन में सवार होकर घर लौट रहे थे.
सेना की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि जवानों को प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-के (एनएससीएन-के) के युंग ओंग धड़े के उग्रवादियों की गतिविधि की सूचना मिली थी और इसी गलतफहमी में इलाके में अभियान चला रहे सैन्यकर्मियों ने वाहन पर कथित रूप से गोलीबारी की, जिसमें छह मजदूरों की जान चली गई.
अधिकारियों ने बताया था कि जब मजदूर अपने घर नहीं पहुंचे तो स्थानीय युवक और ग्रामीण उनकी तलाश में निकले तथा इन लोगों ने सेना के वाहनों को घेर लिया था. इस दौरान हुई धक्का-मुक्की व झड़प में एक सैनिक की मौत हो गई और सेना के वाहनों में आग लगा दी गई थी. इसके बाद सैनिकों द्वारा आत्मरक्षार्थ की गई गोलीबारी में सात और लोगों की जान चली गई थी.
इस घटना के खिलाफ उग्र विरोध और दंगों का दौर अगले दिन पांच दिसंबर को भी जारी रहा और गुस्साई भीड़ ने कोन्याक यूनियन और असम राइफल्स कैंप के कार्यालयों में तोड़फोड़ की और उसके कुछ हिस्सों में आग लगा दी. सुरक्षा बलों द्वारा हमलावरों पर की गई जवाबी गोलीबारी में कम से कम एक और नागरिक की मौत हो गई, जबकि दो अन्य घायल हो गए.
छह दिसंबर (2021) को अमित शाह ने घटना का ब्योरा देते हुए संसद में कहा था कि 4 दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले में भारतीय सेना को उग्रवादियों की आवाजाही की सूचना मिली थी और उसके 21वें पैरा कमांडो ने उस जगह पर इंतजार किया.
उन्होंने कहा था कि शाम को एक वाहन उस स्थान पर पहुंचा और सशस्त्र बलों ने उसे रोकने का संकेत दिया, लेकिन वह नहीं रुका और आगे निकलने लगा. इस वाहन में उग्रवादियों के होने के संदेह में इस पर गोलियां चलाई गईं, जिसमें वाहन पर सवार 8 में से छह लोग मारे गए.
अमित शाह ने कहा था कि बाद में इसे गलत पहचान का मामला पाया गया.
घटना के बाद विभिन्न छात्र संगठन और राजनीतिक दल सेना को विशेष अधिकार देने वाले आफस्पा हटाने की मांग कर रहे हैं.
नगालैंड में इन हत्याओं के बाद से राजनेताओं, सरकार प्रमुखों, विचारकों और कार्यकर्ताओं ने एक सुर में आफस्पा को हटाने की मांग उठाई है. इनका कहना है कि यह कानून सशस्त्र बलों को बेलगाम शक्तियां प्रदान करता है और यह मोन गांव में फायरिंग जैसी घटनाओं के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है.
पिछले साल 19 दिसंबर 2021 को नगालैंड विधानसभा ने केंद्र सरकार से पूर्वोत्तर, खास तौर से नगालैंड से आफस्पा हटाने की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया था. प्रस्ताव में ‘मोन जिले के ओटिंग-तिरु गांव में चार दिसंबर को हुई इस दुखद घटना में लोगों की मौत की आलोचना की गई थी.
इसी दौरान पिछले साल दिसंबर में केंद्र ने नगालैंड की स्थिति को अशांत और खतरनाक करार दिया तथा आफस्पा के तहत 30 दिसंबर से छह और महीने के लिए पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)