कुशीनगर ज़िले के तमकुहीराज विधानसभा क्षेत्र से पिछली दो बार से विजयी रहे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के लिए इस बार चुनावी लड़ाई आसान नहीं है. उनके विरोधी नेताओं और दलों की कड़ी घेराबंदी ने उनकी जीत की राह को कठिन बना दिया है.
तमकुही (कुशीनगर): सेवरही में 28 फरवरी को कांग्रेस की महासचिव एवं उत्तर प्रदेश (यूपी) की प्रभारी प्रियंका गांधी की सभा के कुछ घंटों बाद दुदही कस्बे के पास खाखड़ चौराहे (टैक्सी स्टैंड) पर पान की एक गुमटी पर पान खा रहे लोग यहां के कांग्रेस के प्रत्याशी अजय कुमार लल्लू के बारे में बात कर रहे थे.
पान खा रहे व्यक्ति ने टिप्पणी की, ‘लल्लू घर का नेता है.’ दुकानदार ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा, ‘हां, लल्लू घर का बेटा है.’ पास ही खड़े दो-तीन नौजवान तमकुही विधानसभा के चुनावी समीकरण की चर्चा कहते हुए कह रहे हैं कि ‘इस बार लड़ाई कठिन है. परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि सपा प्रत्याशी के साथ उसके वोटर जाते हैं कि लल्लू के साथ आते हैं. यदि सपा का वोट नहीं कटे तो मुश्किल होगी.’
बातचीत में शामिल एक नौजवान कहता है, ‘यहां सब वोट लल्लू भइया का व्यक्तिगत है. हमन के उनकर पार्टी थोडे़ देखल जाला.’
एक और युवक की टिप्पणी थी, ‘उनकर फिजां पहले चलल. ए बेरा थोड़ा कम हो गईल बा लेकिन सबकर लड़ाई उनहीं से बा.’
अजय कुमार लल्लू के प्रशंसक जान पड़ रहे जितेंद्र कुशवाहा बातचीत में हस्तक्षेप करते हुए कहते हैं, ‘हमार वोट उनहीं के जाई. उ हमन के हमेशा बीच में रहेलन. जब फोन कईल जाला तुरंत जा जालन. उ इस सब नाहीं देखलन कि हम बड़का नेता हईं. कुछ दिन पहले अंगोछा लपेटले आ गईल रहलन. उनके बॉडीगार्ड के जरूरते नाहीं पड़ेला. उनकर बॉडीगार्ड कहत रहे कि हमरे पास कौनो कामे नाहीं बा. बस खाकर सूतल रहेलीं. उनकर कौनों निगेटिव नाहीं बा. उन्हें खाली जातिवादी लोग वोट नाहीं देई.’
यह चर्चा कुशीनगर जिले के तमकुहीराज विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू की चुनावी लड़ाई को ठीक से बयां कर रही है. अजय कुमार लल्लू के लिए इस बार लड़ाई आसान नहीं है और उनके विरोधी नेताओं ने ठीक से उनकी घेराबंदी की है. इससे निकलने के लिए उन्हें इस बार बहुत अधिक जोर लगाना पड़ रहा है.
भाजपा ने इस बार यहां से गोरखपुर के एक सर्जन डॉ. असीम कुमार राय को प्रत्याशी बनाया है. डाॅ. राय को भाजपा के सहयोगी दल निषाद पार्टी से उम्मीदवार घोषित किया गया है लेकिन उन्हें भाजपा का चुनाव चिह्न मिला है. सपा ने अपने कार्यकर्ता उदय नारायण गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है.
यहां के दिग्गज नेता पूर्व विधायक नंद किशोर मिश्र सपा से टिकट चाह रहे थे लेकिन पार्टी ने उदय नारायण गुप्ता को टिकट दे दिया. मिश्र ने पहले तो सपा में ही रहने की बात कही लेकिन फिर भाजपा में शामिल होकर भाजपा प्रत्याशी के प्रचार में जुट गए हैं. बसपा ने यहां से संजय गुप्ता को प्रत्याशी बनाया है.
नंद किशोर मिश्र पिछले चुनाव में भाजपा में ही थे लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया जिस पर वह बागी बनकर चुनाव मैदान में उतर गए. वे 23,423 मत प्राप्त कर चौथे स्थान पर रहे. भाजपा प्रत्याशी जगदीश मिश्र उर्फ़ बाल्टी बाबा दूसरे, बसपा प्रत्याशी विजय राय तीसरे और पूर्व विधायक निषाद पार्टी के उम्मीदवार डॉ. पीके राय चौथे स्थान पर रहे.
माना जाता है कि पंचकोणीय टक्कर में नंद किशोर मिश्र के चुनाव लड़ने से अजय कुमार लल्लू को फायदा हुआ था लेकिन इस बार वे चुनाव न लड़कर भाजपा की मदद कर रहे हैं. उनकी यह कोशिश मतों का बंटवारा रोकने की है ताकि अजय कुमार लल्लू की राह कठिन की जा सके.
इसके पहले 2012 वाले चुनाव में अजय कुमार लल्लू भाजपा से चुनाव लड़े नंद किशोर मिश्र हो हराकर जीते थे. तब फासला करीब छह हजार वोटों का था लेकिन 2017 के चुनाव में लल्लू ने अपने जीत का अंतर 18 हजार तक बढ़ा लिया.
इस बार का चुनाव पंचकोणीय के बजाय त्रिकोणीय है. जाहिर है कि वोटों का बंटवारा कम होगा. सपा प्रत्याशी को पहले कमजोर माना जा रहा था लेकिन इस चुनाव में आम तौर पर देखा जा रहा है कि सपा का परंपरागत मत भाजपा को हराने के नाम पर जीतने वाले प्रत्याशी के पक्ष में ध्रुवीकृत होने के बजाय अपने दल में ही रहने को वरीयता दे रहा है. यही कारण है कि लोग एंटी-भाजपा वोट दो खेमों में बंटने की बात करते हुए लल्लू की स्थिति का आकलन कर रहे हैं.
पूर्व विधायक डॉ. पीके राय और पिछला चुनाव बसपा से लड़े विजय राय भी इस समय भाजपा में हैं. इस तरह यहां के सभी बड़े नेता अपने अंतर्विरोध को छोड़ते हुए एक साथ लल्लू के विरोध में आ गए हैं.
चुनाव प्रचार के दौरान लल्लू को ‘अगड़ा विरोधी’ बताते हुए कुछ वीडियो जारी कर चुनाव को अगड़ा बनाम पिछड़ा बनाने की भी कोशिशें हुईं.
अजय कुमार लल्लू का तमकुहीराज विधानसभा की राजनीति में उतरना और तमाम दिग्गजों को पीछे छोड़ते हुए लगातार दो बार जीतना कभी आसान नहीं रहा. वैश्य समुदाय के बेहद सामान्य परिवार से आने वाले अजय कुमार लल्लू इस विधानसभा क्षेत्र की जातिगत समीकरण में फिट नहीं बैठते लेकिन उन्होंने इन समीकरणों को छिन्न-भिन्न करते हुए इस क्षेत्र में खुद को गरीबों के नेता के रूप में स्थापित करने में कामयाबी पाई है.
जनता के मुद्दे पर आंदोलन और लोगों से सहज संपर्क उनकी ताकत रही है और सफलता का राज भी. आंदोलन के कारण उन पर 28 केस दर्ज हो चुके हैं जिनमें से कई केस 2017 के बाद दर्ज हुए हैं.
लल्लू किसी भी समय सहजता से उपलब्ध रहने वाले नेता हैं. क्षेत्र के लोग उन्हें जब चाहे पा सकते हैं. क्षेत्र के लोग उन्हें अपने बीच का ही व्यक्ति समझते हैं और उनसे अधिकार पूर्वक बात करते हैं. यही बात उन्हें अन्य नेताओं से अलग करती है.
42 वर्षीय अजय कुमार लल्लू का राजनीतिक जीवन संघर्षमय रहा है. वे आंदोलन से निकले हुए नेता है. उन्होंने अपना राजनीतिक करिअर छात्र नेता के रूप में शुरू किया. वह सेवरही स्थित किसान डिग्री कॉलेज के छात्र संघ के महामंत्री और अध्यक्ष रहे.
वर्ष 2007 में उन्होंने पहली बार सेवरही विधानसभा से निर्दल चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. उन्हें सिर्फ 2891 वोट मिले. इसके बाद 2012 में वह कांग्रेस से तमकुही से चुनाव लड़े और विधायक बने.
यह विधानसभा परिसीमन के बाद तमकुही के नाम से हो गई थी. वे 2017 में भाजपा की लहर के बावजूद दोबारा जीते. कुशीनगर जिले की सात सीटों में से छह पर भाजपा जीती थी.
दो वर्ष बाद उन्हें कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया. जब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो सभी चौंक गए. कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर उन्हें आगे लाया गया था. यह बात आज तक कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को नहीं पची.
इसी जिले के कांग्रेस के बड़े नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह और पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद भले ही कांग्रेस छोड़ने के अन्य कारण गिनाएं, लेकिन वे अजय कुमार लल्लू को प्रदेश नेतृत्व से सौंपे जाने से असंतुष्ट होकर ही पार्टी छोड़ गए थे.
कांग्रेस की महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी ने 28 फरवरी को तमकुहीराज की सभा में अजय कुमार लल्लू को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के कारण की सार्वजनिक रूप से चर्चा की.
उन्होंने कहा, ‘जब कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष चुनने की बात आई तो मैंने अपने भाई राहुल गांधी से पूछा. उन्होंने तुरंत अजय कुमार लल्लू का नाम लिया और कहा कि प्रदेश में वही एक नेता है जो निर्भय होकर जनता का संघर्ष कर सकता है. वहीं संघर्ष के समय में पार्टी को आगे बढ़ा पाएंगे. मेरे भाई ने एकदम ठीक कहा था. अजय लल्लू कभी संघर्ष से पीछे नहीं हटे. उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा. बड़े-बड़े घरों के मंत्री, बड़े नेताओं के पुत्र संघर्ष से पीछे हटकर दुम दबाकर भाग गए लेकिन अजय कुमार लल्लू नहीं डरे.’
कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में ऐसे ही नेता की जरूरत थी जो आंदोलन और संघर्ष कर सके. अजय कुमार लल्लू ने तमकुहीराज में आंदोलन-संघर्ष से ही अपनी पहचान बनाई थी. अध्यक्ष बनने के बाद वे इसे पूरे प्रदेश में ले गए और आज यदि कांग्रेस को यूपी में कम ताकत के बावजूद सड़क पर संघर्ष करने वाली पार्टी की छवि बनी है तो उसमें अजय कुमार लल्लू का बड़ा योगदान है.
हालांकि प्रदेश अध्यक्ष बन जाने के बाद उनका क्षेत्र में उस तरह रहना नहीं हो पाया जिस तरह पहले रहते थे. इस चुनाव में यह एक कमजोर पहलू के रूप में उभरा. लल्लू ने इसे समय रहते भांप लिया था और प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद पिछले तीन-चार महीने वे तमकुही छोड़कर बाहर निकले ही नहीं. वे अपने चुनावी क्षेत्र और आस-पास के कुछ विधानसभा क्षेत्र को छोड़ दूसरे इलाकों में प्रचार करने भी नहीं गए.
लल्लू का विधानसभा क्षेत्र नारायणी नदी के किनारे बिहार से सटा हुआ है. बाढ़ और नदी कटान से व्यापक नुकसान होता है. लोगों का नदी पार कर आना-जाना भी एक मुश्किल कार्य होता है.
बड़ी नदी होने के कारण पुल नहीं बने हैं. पांटून ब्रिज के जरिये या बड़ी नावों से लोगों की आवाजाही होती है. अवैध बालू खनन और तमकुहीराज क्षेत्र की खराब सड़कें भी चुनावी मुद्दा बनती रही है. विपक्षी प्रत्याशी उन पर दो कार्यकाल में कोई कार्य न करने का आरोप लगा रहे हैं. जवाब में लल्लू अपनी हर सभाओं में क्षेत्र के लिए किए गए संघर्ष और विकास के कार्यों को गिनाते हैं.
लल्लू अपने हर भाषण में अपने को ‘तमकुही का बेटा और भाई’ बताते हैं और कहते हैं कि उनके अलावा कोई और जनता के सुख-दुख में नहीं रह सकेगा. वे क्षेत्रीय मुद्दों के अलावा बेरोजगारी, महंगाई, कृषि संकट, शिक्षा-चिकित्सा की स्थिति छुट्टा पशुओं की समस्या सहित देश स्तरीय मुद्दों की भी चर्चा करते हैं.
नुक्कड़ सभाओं में उनका भाषण काफी लंबा होता है और आखिर में वह भोजपुरी में लोगों से सवाल जवाब के अंदाज में बात करते हुए कहते हैं-
‘इ बताव तरोई, परोरा, गोभी कब मिलेला? सीजने-सीजने की बारहो महीना ?
भीड़ से आवाज आती है- ‘सीजने-सीजने’
‘अउर आलू’
‘बारहो महीने’
‘त इहे हव न तोहर लालू. तोहरा बेटवा. बारहो महीना मिलिहं. बाकी नेता तरोई, परोरा, गोभी हवं. सीजन में दिखाई दिहें फिर गायब हो जइहें. पांच साल फिर ना भेंटिइहें. हमहीं भेंटाईब.’
छठे चरण के विधानसभा क्षेत्रों में लगभग हर क्षेत्र में जातिगत समीकरण बहुत अहम है लेकिन तमकुहीराज में अलहदा चुनाव हो रहा है. यहां अजय कुमार लल्लू ने चुनावी लड़ाई को गरीब-अमीर की लड़ाई बना दिया है. देखना होगा कि जबरदस्त घेराबंदी को भेदकर वे जीत की हैट्रिक लगा पाते हैं कि नहीं.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)