मेरे प्रति सरकार के नकारात्मक विचार मेरी न्यायिक स्वतंत्रता का प्रमाणपत्र हैं: जस्टिस कुरैशी

राजस्थान हाईकोर्ट के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश एए कुरैशी ने अपने विदाई भाषण में कहा कि अदालतों के अस्तित्व का मूल कारण नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है. नागरिकों के लोकतांत्रिक मूल्यों और अधिकारों पर सामने से हो रहे किसी भी हमले से कहीं अधिक चिंतनीय चोरी-छिपे होने वाला अतिक्रमण है.

राजस्थान हाईकोर्ट के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश एए कुरैशी ने अपने विदाई भाषण में कहा कि अदालतों के अस्तित्व का मूल कारण नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है. नागरिकों के लोकतांत्रिक मूल्यों और अधिकारों पर सामने से हो रहे किसी भी हमले से कहीं अधिक चिंतनीय चोरी-छिपे होने वाला अतिक्रमण है.

 

जोधपुर: राजस्थान उच्च न्यायालय के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश अकील अब्दुलहमीद कुरैशी ने शनिवार को कहा कि उनके बारे में सरकार की नकारात्मक अवधारणा उनकी न्यायिक स्वतंत्रता का प्रमाणपत्र है.

जस्टिस कुरैशी की यह टिप्पणी भारत के एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) की आत्मकथा में की गई टिप्पणियों के संदर्भ में है.

पूर्व सीजेआई ने आत्मकथा में इस बारे में विस्तार से चर्चा की है कि मध्य प्रदेश और त्रिपुरा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति पर राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिशें क्यों खारिज कर दी गई थी?

अपने कार्यकाल के अंतिम दिन राजस्थान उच्च न्यायालय के वकीलों और न्यायाधीशों को संबोधित करते हुए जस्टिस कुरैशी ने न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए उच्च न्यायालयों द्वारा भेजी गई अधिवक्ताओं की सूची में शीर्ष अदालत द्वारा व्यापक रूप से काट-छांट करने करने को लेकर आश्चर्य व्यक्त किया.

उन्होंने आगाह किया कि इस तरह के कदम से बेहतर न्यायिक सोच वाले न्यायाधीशों का अभाव हो जाएगा.

जस्टिस कुरैशी ने किसी पूर्व सीजेआई का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका इशारा स्पष्ट तौर पर पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई की ओर था, जिनकी आत्मकथा दिसंबर में विमोचित की गई थी.

इसमें उन्होंने (पूर्व सीजेआई ने) गुजरात उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश जस्टिस कुरैशी और मद्रास उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सहित कई न्यायाधीशों के तबादले के बारे में चर्चा की है.

जस्टिस कुरैशी ने कहा, ‘मैंने (पूर्व सीजेआई की) आत्मकथा नहीं पढ़ी है, लेकिन मीडिया में प्रकाशित खबरें देखी हैं, जिसमें मध्य प्रदेश और त्रिपुरा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर मेरे नाम की सिफारिशों में हेरफेर के बारे में कुछ खुलासे किए गए हैं. यह कहा गया है कि सरकार के पास मेरे न्यायिक विचारों के आधार पर मेरे प्रति नकारात्मक अवधारणा बनी हुई थी.’

उन्होंने कहा, ‘एक संवैधानिक अदालत के न्यायाधीश के तौर पर हमारा कर्तव्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों और मानवाधिकारों की रक्षाा करना है, मेरा मानना है कि यह न्यायिक स्वतंत्रता का प्रमाणपत्र है.’

लाइव लॉ के अनुसार, उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे लिए इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि न्यायपालिका की क्या धारणा थी जिसके बारे में मुझे आधिकारिक तौर पर बताया नहीं गया.’

जस्टिस कुरैशी को 7 मार्च 2004 को गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था. 14 नवंबर, 2018 से 15 नवंबर, 2019 तक वे बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश रहे. 16 नवंबर, 2019 को उन्होंने त्रिपुरा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. इसके बाद उन्हें 12 अक्टूबर, 2021 को राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया था.

उल्लेखनीय है कि देश के वरिष्ठतम मुख्य न्यायाधीश होने के बावजूद उनके सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त न होने को लेकर सवाल उठते रहे हैं. देश की क़ानूनी बिरादरी में यह धारणा है कि गुजरात हाईकोर्ट में उनके कार्यकाल के दौरान सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के खिलाफ दिए गए कुछ आदेशों के चलते केंद्र सरकार उनके पक्ष में नहीं है.

बता दें कि साल 2010 में गुजरात हाईकोर्ट के जज के तौर पर जस्टिस कुरैशी ने तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह को सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले में सीबीआई रिमांड पर भेज दिया था. लोकायुक्त नियुक्ति मामले में भी जस्टिस कुरैशी ने गुजरात सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया था.

इसके बाद राज्य की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए नरोदा पाटिया हत्याकांड में गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी की आपराधिक अपील पर सुनवाई से जस्टिस कुरैशी को अलग करने की भी मांग की थी.

2018 में जब वह गुजरात हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनने वाले थे, तब एक जूनियर जज के बतौर उनका तबादला बॉम्बे हाईकोर्ट में कर दिया गया. उस समय गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन ने इसका विरोध करते हुए उनके समर्थन में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया.

इसके बाद मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उनकी पदोन्नति की सिफारिश की लेकिन केंद्र ने इसे स्वीकार नहीं किया, हालांकि उसी प्रस्ताव में दिए अन्य तीन नामों को मंजूरी दी गई थी.

तब भी गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर कर केंद्र द्वारा जस्टिस कुरैशी की फाइल पर फैसले में देरी को चुनौती दी थी. केंद्र की आपत्तियों के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अपने प्रस्ताव को संशोधित किया और जस्टिस कुरैशी को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के बजाय त्रिपुरा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने का प्रस्ताव दिया.

इसके बाद अक्टूबर 2021 में वे राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनाए गए. शनिवार को अपने विदाई भाषा में उन्होंने जस्टिस एचआर खन्ना का भी जिक्र किया, जिन्हें एडीएम जबलपुर मामले में असहमति के चलते देश का मुख्य न्यायाधीश नहीं बनाया गया था. जस्टिस कुरैशी ने उन्हें ‘साहस का ज्वलंत उदाहरण’ बताया.

उन्होंने कहा, ‘अब तक भारत के 48 मुख्य न्यायाधीश हुए हैं लेकिन जब हम नागरिकों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए साहस और बलिदान की बात करते हैं, तो हमें एक ऐसे व्यक्ति की याद आती है जिसे भारत का मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए था, लेकिन वह कभी नहीं बना. एडीएम जबलपुर मामले में उनकी एकमात्र असहमति की आवाज के लिए जस्टिस एचआर खन्ना को हमेशा याद किया जाएगा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अदालतों के अस्तित्व का मूल कारण नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है. नागरिकों के लोकतांत्रिक मूल्यों और अधिकारों पर सामने से हो रहे किसी भी हमले से कहीं अधिक चिंतनीय चोरी-छिपे होने वाला अतिक्रमण है.’

जस्टिस कुरैशी ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा प्रस्तावित नामों को स्वीकार करने से इनकार करने पर भी चिंता जाहिर की.

उन्होंने कहा, ‘उच्च न्यायालयों द्वारा अधिवक्ताओं की सिफारिश करना और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इन्हें ख़ारिज करना आश्चर्यजनक है. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच नजरिये के इस अंतर का कारण जो भी हो, इसका समाधान निकालना होगा अन्यथा अच्छे अधिवक्ताओं को बेंच में शामिल होने के लिए राजी करना मुश्किल होगा.’

अपने भावपूर्ण भाषण में उन्होंने अपने सहयोगियों की भी सराहना की. उन्होंने कहा, ‘क्या मुझे कोई पछतावा है? बिल्कुल नहीं. मेरा हर फैसला मेरी कानूनी समझ पर आधारित था, मैं गलत भी रहा हूं, कई मौकों पर गलत साबित भी हुआ हूं लेकिन कभी भी मैंने अपने कानूनी विश्वास से अलग कुछ तय नहीं किया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं इस गर्व के साथ जा रहा हूं कि मैंने मेरे लिए फैसले के क्या नतीजे होंगे, इस सोच के आधार पर कोई निर्णय नहीं लिया. कुछ लोगों का मानना ​​है कि मुझे प्रगति के लिए घुटने टेकने चाहिए थे. खैर, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस चीज को प्रगति मानते हैं. मैं जहां भी गया वकीलों और सहकर्मियों से मुझे जो समर्थन, प्यार और स्नेह मिला है, वह किसी भी तरह की प्रगति से कहीं अधिक है. मैं इसे किसी भी प्रगति के लिए नहीं बदलूंगा. मैं इसे किसी भी चीज़ के लिए नहीं बदलूंगा.’

उन्होंने जोड़ा, ‘यदि कभी मुझे आप सभी के स्नेह और तथाकथित प्रगति के बीच चुनना हो, तो मैं खुशी-खुशी पहले वाले को ही चुनूंगा.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)