जेएनयू की पहली महिला कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित ने पिछले महीने एम. जगदीश कुमार के स्थान पर कुलपति का पदभार संभाला है. एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के बारे में नकारात्मक धारणा को बदलकर इसे बेहतर बनाना होगा. वास्तव में जेएनयू असहमति और विविधता का प्रतिनिधित्व करता है.
नई दिल्लीः जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की पहली महिला कुलपति के रूप में पिछले महीने पदभार संभालने वाली शांतिश्री धुलिपुड़ी पंडित का कहना है कि कैंपस को अधिक जेंडर अनुकूल बनाने सहित उनकी विश्वविद्यालय को लेकर कई योजनाएं हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अगले पांच वर्षों के लिए कुलपति का पदभार संभाल रहीं शांतिश्री ने एक साक्षात्कार के दौरान यूनिवर्सिटी को लेकर अपनी कई योजनाएं साझा कीं.
उन्होंने कहा, ‘मेरी नियुक्ति के साथ मौजूदा सरकार ने तीन बाधाओं को हटाया है. मैं गैर हिंदी भाषी राज्य से पिछड़े वर्ग से जुड़ी महिला हूं.’
उन्होंने कहा, ‘जेएनयू की स्थापना 1969 में हुई थी और जेएनयू में इस शीर्ष नेतृत्व पद तक पहुंचने के लिए किसी महिला को पांच दशक से अधिक का समय लगा.’
उन्होंने कहा कि महिलाओं का कल्याण परिवार के भीतर और बाहर शिक्षा और शिक्षित भागीदारी से प्रभावित हो रहा है लेकिन चयन समितियों में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व नहीं है, हालांकि यह वैधानिक है.
साल 1990 में जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से इंटरनेशनल रिलेशंस में पीएचडी की पढ़ाई कर चुकीं पंडित (59) का कहना है, ‘महिलाओं के साथ पुरुषों की तुलना में सर्वाइवल नुकसान अधिक है. हमारे सामने अभी भी घरेलू हिंसा और वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे हैं, जिन्हें उचित रूप से सुलझाया नहीं गया. साक्षरता और शिक्षा से अधिक सभी को संवेदनशील बनने की जरूरत है. मैं ऐसे प्रोफेसर से मिली हूं, जो सोचते हैं कि स्त्री विरोधी टिप्पणियां करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है. उन्हें कार्यस्थलों पर नैतिकता के बारे में संवेदनशील होने की जरूरत है और जेएनयू में ऐसा करना पहला काम होगा.’
उन्होंने कहा, ‘लोग कहते हैं कि हम (जेएनयू) सबसे बुद्धिजीवी लोग हैं लेकिन सवाल है कि क्या असल में हम हैं? कुछ महीने पहले हमारे यहां कैंपस में छेड़छाड़ की एक घटना हुई थी और मैं नहीं चाहती कि ऐसी घटना दोबारा हो.’
उन्होंने ‘जेंडर इक्वॉलिटी ‘ के बजाय ‘जेंडर इक्विटी’ को समय की जरूरत बताते हुए कहा कि उनका विजन जेएनयू को अधिक जेंडर अनुकूल कैंपस बनाना है.
शांतिश्री ने कहा, ‘जेएनयू में हमारे पास बहुत ढाबे हैं और मैं चाहती हूं कि उनकी कमान महिला स्वयंसेवी समूहों (एसएचजी) को दी जाए. जब हम समानता की बात करते हैं तो हम समान पहुंच की बात करते हैं. मैं सहमत हूं कि जेएनयू में आज पुरुषों की तुलना मे अधिक महिला छात्राएं हैं लेकिन महिलाओं का प्रतिनिधित्व सिर्फ प्रवेश के स्तर पर ही बढ़ रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘क्या नौकरीपेशा महिलाओं के खिलाफ संरचनात्मक हिंसा है? महिलाओं का उतनी तेजी से एसोसिएट प्रोफेसर या प्रोफेसर स्तर पर चुनाव नहीं होता, जितनी तेजी से इन पदों पर पुरुषों का चयन होता है.’
उन्होंने बताया कि कर्नाटक में हिजाब विवाद के बीच शैक्षणिक परिसरों में हेडस्कार्फ पहनने को लेकर महिलाओं की पसंद के समर्थन में कई पुरुषों ने उनसे संपर्क किया था.
उन्होंने कहा, ‘जेएनयू में मेरा सिद्धांत यह है कि हर कोई तय करे कि वे क्या पहनना चाहते हैं. यहां इसे लेकर हमारे कोई नियम या कायदे नहीं है और यह हर व्यक्ति की पसंद है लेकिन मैं नहीं चाहती कि पुरूष यह निर्धारित करें कि महिलाओं को क्या पहनना चाहिए.’
उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य जेएनयू को अधिक छात्र केंद्रित कैंपस बनाना है.
उन्होंने कहा, ‘यह अद्भुत और समावेशी कैंपस है. इसकी सामाजिक प्रतिबद्धता भी है और इसे बनाए रखना होगा. मैं चिंतित हूं क्योंकि मैं इस यूनिवर्सिटी की पूर्व छात्रा भी हूं. मैं जब तमिलनाडु से यहां आई थी तो जेएनयू ने मेरे लिए पूरी दुनिया खोल दी थी. मैं चाहती हूं कि जो छात्र यहां आ रहे हैं, उन्हें भी इसी तरह का अनुभव हो ताकि वे उच्च पदों तक पहुंच सके और हमारे द्वारा मुहैया कराई जाने वाली सुविधाओं का सर्वोत्तम लाभ उठाएं.’
जेएनयू की कुलपति के रूप में शांतिश्री की सूची में डिजिटाइजेशन एक अन्य प्रमुख कार्य है.
उन्होंने कहा, ‘संसाधनों, सुविधाओं और बुनियादी ढांचे में सुधार करना होगा और अभी हम वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं इसे मैनेज करना होगा. हम देख रहे हैं कि हम कैसे अकादमिक उत्कृष्टता और शोध की दृष्टि से कैंपस को अधिक योग्य बना सकते हैं.’
उन्होंने कहा कि जब वह यूनिवर्सिटी की छात्रा थी, तब की तुलना में यहां छात्रों की संख्या तीन गुना बढ़ी है और वह इस संस्थान को एक बेहतर स्थान बनाना चाहती हैं.
उन्होंने कहा, ‘उस समय यूनिवर्सिटी में लगभग 3,000 छात्र थे और अब यहां लगभग 9,000 छात्र हैं. उस समय हमारे पास सिर्फ सात हॉस्टल थे लेकिन आज लगभग 17 हॉस्टल है. मैं चाहती हूं कि देश के विभिन्न हिस्सों से छात्र यहां आकर पढ़े. हम इसे एक बेहतर जगह बना सकते हैं और जेएनयू के बारे में नकारात्मक धारणा को बदल सकते हैं, जिसे लेकर मुझे दुख होता है. वास्तव में जेएनयू असहमति और विविधता का प्रतिनिधित्व करता है.’