राजनीति

उत्तर प्रदेश: 255 सीटों के साथ भाजपा की ऐतिहासिक जीत, सपा ने 111 सीटों पर क़ब्ज़ा जमाया

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजों में भाजपा ने पूर्ण बहुमत तो पा लिया है, लेकिन पिछली बार से उसकी 57 सीटें कम हो गईं, जिसका लाभ समाजवादी पार्टी को मिला है. इतना ही नहीं उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य समेत योगी सरकार के 11 मंत्रियों का ​हार का सामना करना पड़ा.

उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिली जीत के बाद लखनऊ स्थित प्रदेश कार्यालय में योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में जुटी कार्यकर्ता और समर्थकों की भीड़. (फोटो साभार: ट्विटर)

लखनऊ: निर्वाचन आयोग ने गुरुवार रात करीब दो बजे उत्तर प्रदेश की सभी 403 सीटों पर चुनाव परिणाम घोषित कर दिए, जिनमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सरकार बनाने के लिए सहयोगियों समेत 273 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया है.

राज्‍य के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ गोरखपुर शहर विधानसभा सीट पर करीब एक लाख से अधिक मतों से चुनाव जीत गए हैं. हालांकि, उप-मुख्‍यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कौशांबी जिले की सिराथू सीट पर सात हजार से अधिक मतों से चुनाव हार गए.

वहीं, राज्‍य के मुख्‍य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) ने 111 सीटों पर जीत दर्ज कर ली है. सपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) ने आठ और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) ने छह सीटों पर जीत दर्ज की है.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मैनपुरी जिले की करहल सीट पर केंद्रीय मंत्री और भाजपा उम्मीदवार प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल को 67 हजार से अधिक मतों से पराजित कर दिया.

आजमगढ़ से सांसद अखिलेश ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा. करहल विधानसभा क्षेत्र मैनपुरी संसदीय क्षेत्र का हिस्‍सा है, जिसका प्रतिनिधित्‍व सपा संस्‍थापक और अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव करते रहे हैं. मुलायम ने अखिलेश के लिए चुनाव प्रचार भी किया था.

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और सपा के वरिष्ठ नेता राम गोविंद चौधरी बलिया की बांसडीह सीट से भाजपा की केतकी सिंह से चुनाव हार गए. केतकी सिंह को 1,03,305 मत तथा चौधरी को 81,953 मत मिले.

जसवंतनगर सीट पर सपा के शिवपाल सिंह यादव 1,59,718 मत पाकर चुनाव जीत गए और उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के विवेक शाक्य को 68,739 मतों से संतोष करना पड़ा.

बहरहाल, योगी सरकार के 11 मंत्री चुनाव हार गए हैं.

निर्वाचन आयोग के अनुसार, सिराथू में भाजपा उम्मीदवार और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को सपा की डॉक्टर पल्लवी पटेल ने 7,337 मतों से पराजित किया. पल्लवी पटेल अपना दल (कमेरावादी) की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं.

मौर्य के अलावा राज्य सरकार के गन्ना मंत्री सुरेश राणा शामली जिले की थाना भवन सीट पर सपा समर्थित राष्‍ट्रीय लोकदल के अशरफ अली खान से 10 हजार से अधिक मतों से चुनाव हार गए.

वहीं, बरेली जिले की बहेड़ी विधानसभा सीट से राज्‍य मंत्री छत्रपाल सिंह गंगवार सपा के अताउर्रहमान से 3,355 मतों से पराजित हो गए.

योगी के नेतृत्व वाली सरकार में ग्राम्‍य विकास मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह प्रतापगढ़ जिले की पट्टी विधानसभा सीट से सपा के राम सिंह से 22,051 मतों से पराजित हो गए. राज्यमंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय चित्रकूट सीट पर सपा के अनिल कुमार से 20,876 मतों से पराजित हो गए.

इसी तरह, राज्य मंत्री आनंद स्‍वरूप शुक्‍ला को बलिया जिले की बैरिया सीट पर सपा के जयप्रकाश अंचल ने 12,951 मतों से पराजित किया. आनंद स्‍वरूप पिछली बार बलिया सीट से जीते थे, लेकिन उन्हें मौजूदा विधायक सुरेंद्र सिंह का टिकट काटकर बैरिया भेज दिया गया और उनकी जगह पार्टी ने दयाशंकर सिंह को उम्मीदवार बना दिया.

टिकट कटने पर सुरेंद्र सिंह भाजपा से बगावत कर विकासशील इंसान पार्टी से चुनाव मैदान में उतरे और भाजपा को बैरिया सीट गंवानी पड़ी. बलिया जिले की ही फेफना सीट पर खेल मंत्री उपेंद्र तिवारी सपा के उम्मीदवार संग्राम सिंह से 19,354 मतों से पराजित हुए.

सपा की उषा मौर्या ने फतेहपुर जिले की हुसैनगंज सीट पर भाजपा उम्मीदवार और राज्‍य सरकार के मंत्री रणवेंद्र सिंह धुन्नी को 25,181 मतों से पराजित कर दिया. औरैया जिले की दिबियापुर सीट पर राज्‍य मंत्री लाखन सिंह राजपूत सपा के प्रदीप कुमार यादव से मात्र 473 मतों के अंतर से पराजित हुए.

विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और सपा के उम्मीदवार माता प्रसाद पांडेय ने सिद्धार्थनगर जिले की इटवा सीट पर बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी को 1,662 मतों से हराया. गाजीपुर सीट पर राज्यमंत्री संगीता बलवंत को सपा के जयकिशन ने 1692 मतों के अंतर से पराजित किया.

योगी सरकार के अन्य मंत्रियों की बात करें तो ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा और राज्य मंत्री अतुल गर्ग ने गाजियाबाद में एक लाख से अधिक मतों के अंतर से चुनाव जीतने का रिकार्ड बनाया है.

इनके अलावा, राज्य सरकार के मंत्री सुरेश खन्ना (शाहजहांपुर), सतीश महाना (महराजपुर), आशुतोष टंडन (लखनऊ पूर्व), सिद्धार्थनाथ सिंह (इलाहाबाद पश्चिम), नंद गोपाल गुप्ता नंदी (इलाहाबाद दक्षिण), सूर्य प्रताप शाही (पथरदेवा), रमापति शास्त्री (मनकापुर) जय प्रताप सिंह (बांसी) राम नरेश अग्निहोत्री (भोगांव), अनिल राजभर (शिवपुर), राज्‍य मंत्री रविंद्र जायसवाल (वाराणसी उत्तरी) नीलकंठ तिवारी (वाराणसी दक्षिणी), पल्‍टू राम (बलरामपुर) अजीत पाल (सिकंदरा) भी चुनाव जीत गए हैं.

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेकर भाजपा में शामिल हुए अपर पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी रहे असीम कुमार कन्नौज से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा के अनिल कुमार दोहरे से छह हजार से अधिक मतों से जीत गए.

वहीं, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के संयुक्त निदेशक स्तर के अधिकारी रहे और मूलतः उत्तर प्रदेश पुलिस सेवा के अधिकारी रहे राजेश्वर सिंह भी वीआरएस लेकर भाजपा में शामिल हुए और उन्होंने लखनऊ की सरोजिनी नगर विधानसभा सीट पर अपने निकटम प्रतिद्वंद्वी सपा के अभिषेक मिश्रा को 56186 मतों के अंतर से पराजित कर दिया.

उत्तर प्रदेश की 403 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए कम से कम 202 सीटें जीतना जरूरी है.

निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश की सभी 403 सीटों के परिणाम घोषित किए जा चुके हैं और इनमें भाजपा ने 255 सीटों पर जीत दर्ज कर ली है.

इसके अलावा, भाजपा की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने 12 सीटों पर जीत दर्ज कर प्रदेश में तीसरे सबसे बड़े दल के रूप में अपनी जगह बना ली है, जबकि भाजपा की एक और सहयोगी निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) भी छह सीटों पर जीत गई है.

कभी उत्तर प्रदेश की एक बड़ी सियासी ताकत रही बसपा मात्र एक सीट पर जीत हासिल कर सकी है.

विधानसभा में बसपा विधायक दल के नेता उमाशंकर सिंह बलिया जिले की रसड़ा विधानसभा सीट से 87,887 मत पाकर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सुभासपा के महेंद्र से 6583 मतों के अंतर से जीत गए हैं. महेंद्र को 81,304 मतों पर ही संतोष करना पड़ा है.

कांग्रेस ने दो सीटें जीती हैं. कांग्रेस विधानसभा मंडल दल की नेता आराधना मिश्रा ‘मोना’ प्रतापगढ़ जिले की अपनी परंपरागत सीट रामपुर खास जीतने में कामयाब हुई हैं.

1980 से लगातार उनके पिता और 2014 में उपचुनाव के बाद आराधना भी लगातार इस सीट को जीतकर ‘विरासत’ बचाने में कामयाब रही हैं. हालांकि, यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्‍लू कुशीनगर जिले की तमकुहीराज सीट से चुनाव हार गए हैं. महराजगंज जिले की फरेंदा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार वीरेंद्र चौधरी ने भी जीत दर्ज की है.

प्रतापगढ़ जिले से ही आने वाले रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) के नेतृत्व वाली जनसत्ता दल लोकतांत्रिक ने दो सीटों पर जीत दर्ज की है. इनमें अपनी परंपरागत सीट कुंडा में रघुराज ने अपनी जीत का सिलसिला बनाए रखा है.

इसके पहले वह 1993 से लगातार निर्दलीय जीत रहे थे, लेकिन पहली बार खुद की बनाई पार्टी के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़े और जीते. बाबागंज विधानसभा सीट पर भी जनसत्ता दल के उम्मीदवार को जीत मिली है.

चुनाव आयोग के मुताबिक, भाजपा को 41.29 प्रतिशत मत हासिल हुए हैं जबकि सपा को 32.06 फीसद और बसपा को 12.88 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हैं.

राज्य के राजनीतिक इतिहास में 71 साल बाद योगी ऐसे पहले नेता बने जिसने मुख्यमंत्री के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा करके लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे. वहीं, 37 सालों बाद ऐसा हुआ है कि किसी पार्टी ने अपनी सरकार बचा ली.

योगी आदित्यनाथ गोरखपुर में एक लाख से अधिक मतों से जीते

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र में अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी सुभावती उपेंद्र शुक्‍ला को 1,03,390 मतों से पराजित किया.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो: पीटीआई)

वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ विधान परिषद के सदस्य चुने गए थे. इसके पहले वह गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से 1998 से लगातार पांच चुनावों में लोकसभा सदस्य निर्वाचित होते रहे.

पहली बार गोरखपुर शहर से विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले योगी आदित्यनाथ को 1,65,499 मत मिले, जबकि सपा की सुभावती शुक्‍ला को 62,109 मत मिले. यहां योगी के खिलाफ आजाद समाज पार्टी के प्रमुख और भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद को महज 7,640 मतों से संतोष करना पड़ा.

योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर कहा, ‘मेरे प्रिय गोरखपुर वासियों, आप सभी को प्रचंड विजय की हृदयतल से बधाई एवं शुभकामनाएं! आप सभी का अटूट विश्वास, अथाह समर्थन और असीम स्नेह मेरी ऊर्जा और प्रेरणा का अक्षय स्रोत है. अपनी ‘मत शक्ति’ से गोरखपुर की विकास यात्रा को अविराम रखने के लिए आप सभी का धन्यवाद!’

योगी समेत कुल 13 उम्मीदवारों में कांग्रेस की चेतना पांडेय को 2,880 मत मिले, जबकि बहुजन समाज पार्टी के ख्वाजा शमसुद्दीन को 8,023 और आम आदमी पार्टी के विजय कुमार श्रीवास्तव को महज 853 मत मिले.

सुभावती शुक्ला भाजपा के दिवंगत नेता उपेंद्र दत्त शुक्ल की पत्नी हैं. योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके इस्तीफे से रिक्त हुई गोरखपुर संसदीय सीट पर 2018 में उपेंद्र दत्त शुक्ल भाजपा के उम्मीदवार थे, लेकिन वह पराजित हो गए.

सुभावती शुक्‍ला ने ऐन विधानसभा चुनाव के दौरान उपेक्षा का आरोप लगाते हुए भाजपा छोड़कर सपा की सदस्यता ग्रहण की थी.

भाजपा से बगावत करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिंह सैनी हारे, दारा सिंह चौहान जीते

चुनाव से ठीक पहले भाजपा सरकार से इस्तीफा देकर सपा में शामिल होने वाले तीन पूर्व मंत्रियों में से स्वामी प्रसाद मौर्य और धर्म सिंह सैनी चुनाव हार गए, हालांकि दारा सिंह चौहान को जीत मिली है.

स्वामी प्रसाद मौर्य. (फोटो साभार: फेसबुक)

योगी सरकार में श्रम एवं सेवायोजन मंत्री रह चुके सपा उम्मीदवार मौर्य को कुशीनगर जिले की फाजिलनगर विधानसभा सीट पर भाजपा सुरेंद्र कुशवाहा ने करीब 45,000 मतों से हरा दिया.

अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से पांच बार विधानसभा सदस्य रह चुके स्‍वामी प्रसाद मौर्य 2016 में बसपा विधायक दल के नेता (नेता प्रतिपक्ष) से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए और 2017 में वह कुशीनगर की पडरौना सीट से भाजपा के टिकट पर चुने गए.

उन्हें योगी सरकार में श्रम एवं सेवायोजन मंत्री पद की शपथ दिलाई गई. अति पिछड़ी कोइरी जाति से आने वाले राज्य के कद्दावर नेता मौर्य ने जनवरी माह में भाजपा सरकार पर पिछड़ों और दलितों की उपेक्षा करने का आरोप लगाकर मंत्री पद से इस्तीफा दिया. उनके इस्तीफे के बाद भगदड़ जैसी स्थिति हो गई और भाजपा के कई विधायक इस्तीफा देकर सपा में शामिल हो गए.

सपा ने मौर्य की सीट बदलते हुए कुशीनगर की ही फाजिलनगर सीट से उनको उम्मीदवार बनाया, लेकिन चुनाव में उन्हें जबर्दस्त झटका लगा.

भाजपा ने स्वामी मौर्य की चुनौती के बाद कांग्रेस के कद्दावर नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह को भाजपा की सदस्यता दिलाई. पिछड़ी सैंथवार बिरादरी से आने वाले पडरौना की पूर्व रियासत के मुखिया आरपीएन सिंह ने भाजपा उम्मीदवारों की जीत के लिए सभी सीटों पर प्रचार किया. राजनीतिक जानकारों का दावा है कि भाजपा को आरपीएन सिंह को साथ लाने का लाभ मिला.

भाजपा गोरखपुर क्षेत्र पंचायत प्रकोष्ठ के प्रमुख अजय तिवारी ने बताया कि कुशीनगर की सभी सातों सीटें भाजपा और सहयोगी दलों ने जीत ली हैं.

गौरतलब है कि पिछले चुनाव में भाजपा की लहर के बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू तमकुहीराज से चुनाव जीत गए थे, लेकिन इस बार उन्हें भी पराजय का सामना करना पड़ा.

मौर्य के इस्तीफा देने के अगले ही दिन धर्म सिंह सैनी ने राज्य के आयुष मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और वह भी सपा में शामिल हो गए थे. सपा ने सैनी को सहारनपुर जिले की उनकी परंपरागत सीट नकुड़ से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वह भाजपा प्रत्याशी मुकेश चौधरी से महज 315 मतों से मामूली अंतर से हार गए. सैनी भी मौर्य की कोईरी बिरादरी से ही आते हैं.

हालांकि, दारा सिंह चौहान ने मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट से सपा उम्मीदवार के रूप में करीब 22,000 मतों से जीत दर्ज की.

मौर्य की राह पर चलते हुए दारा सिंह चौहान ने भी वन एवं पर्यावरण मंत्री पद से इस्तीफा देकर सपा की सदस्यता ग्रहण की थी. अति पिछड़ी चौहान बिरादरी से आने वाले दारा सिंह चौहान 2015 में बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे.

बसपा और सपा से राज्यसभा के दो बार सदस्य रह चुके दारा सिंह चौहान 2009 में घोसी लोकसभा क्षेत्र से बसपा के सांसद चुने गए और उन्हें बसपा प्रमुख मायावती ने लोकसभा में बसपा संसदीय दल का नेता बनाया था.

बसपा प्रमुख पर आरोपों की बौछार करके भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी नेतृत्व ने दारा को भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा का राष्‍ट्रीय अध्यक्ष बनाया था. 2017 में भाजपा के चिह्न पर मऊ जिले की मधुबन विधानसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद दारा चौहान ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की भाजपा सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री पद की शपथ ली थी.

चुनाव के ऐन मौके पर सपा में शामिल होने के बाद मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने मऊ जिले की एक सभा में दारा सिंह चौहान को ‘दगाबाज’ कहा था. सपा ने दारा सिंह चौहान को मधुबन की बजाय मऊ जिले की ही घोसी सीट से उम्मीदवार बनाया और उन्हें जीत मिल गई.

सपा गठबंधन में शामिल सुभासपा छह सीटों पर जीती

सपा गठबंधन में शामिल पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) छह सीटों पर जीत गई.

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर (फोटो सभार: ट्विटर/@samajwadiparty)

सुभासपा अध्यक्ष और पूर्व मंत्री ओमप्रकाश राजभर गाजीपुर जिले की जहूराबाद तथा बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी मऊ सीट से चुनाव जीत गए हैं. सपा गठबंधन से सुभासपा राज्य की 18 विधानसभा सीटों पर चुनाव मैदान में थी.

ओमप्रकाश राजभर को निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के कालीचरण पर 45,632 मतों के अंतर से जीत मिली.

वहीं, वाराणसी जिले की शिवपुर विधानसभा सीट पर सुभासपा के प्रमुख महासचिव और ओमप्रकाश के पुत्र अरविंद राजभर को योगी सरकार के मंत्री अनिल राजभर ने पराजित कर दिया. अरविंद राजभर 2017 में बलिया जिले की बांसडीह सीट से भाजपा समर्थित सुभासपा के उम्मीदवार थे और तब भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

मऊ में सुभासपा उम्मीदवार अब्‍बास अंसारी को उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के अशोक कुमार सिंह पर 38 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीत मिली.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा ने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर आठ सीटों पर चुनाव लड़ा और चार सीटों पर जीत मिली थी. इसके बाद मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के नेतृत्व की भाजपा सरकार में ओमप्रकाश राजभर ने कैबिनेट मंत्री की शपथ ली थी.

हालांकि, कुछ ही महीनों बाद भाजपा से उनकी अनबन शुरू हो गई. 2019 में राजभर ने भाजपा से विद्रोह कर दिया और मंत्री पद छोड़ने के बाद वह लगातार विरोधी तेवर अपनाए रहे. इस बार विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने सपा के साथ गठबंधन किया.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया, मऊ, गाजीपुर, जौनपुर, अंबेडकरनगर, आजमगढ़, देवरिया आदि जिलों में राजभर बिरादरी के मतदाताओं की अच्छी संख्या है और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस दल की सबसे प्रमुख ताकत राजभर बिरादरी है.

अनुप्रिया पटेल के अपना दल ने 12 सीट जीतीं, दूसरे धड़े की अगुवाई करने वाली मां हारीं

चुनाव में मां-बेटी (कृष्णा पटेल-अनुप्रिया पटेल) की अगुवाई वाले अपना दल के दोनों घटकों ने किस्मत आजमाई. हालांकि, अनुप्रिया के नेतृत्व वाले अपना दल (सोनेलाल) ने 12 सीटें जीत लीं, जबकि दूसरे धड़े का नेतृत्व करने वाली उनकी मां कृष्णा पटेल प्रतापगढ़ में हार गईं.

अनुप्रिया पटेल. (फोटो साभार: फेसबुक)

केंद्र सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल (एस) ने भाजपा के साथ गठबंधन किया है, जबकि उनकी मां कृष्णा पटेल के अपना दल (कमेरावादी) ने सपा के साथ गठबंधन किया है. अपना दल (एस) के 17 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे.

अपना दल (एस) के विजेताओं में प्रदेश सरकार में मंत्री जय कुमार सिंह जैकी को अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा के रामेश्वर दयाल पर 3,797 मतों से जीत मिली.

उधर, सपा के गठबंधन में शामिल अपना दल (कमेरावादी) की अध्यक्ष कृष्णा पटेल प्रतापगढ़ में गठबंधन की उम्मीदवार रहीं, उन्हें भाजपा के राजेंद्र कुमार ने 25,063 मतों से हराया.

भाजपा गठबंधन ने प्रतापगढ़ सीट पहले अनुप्रिया पटेल के अपना दल (एस) के लिए छोड़ी थी, लेकिन अपना दल (कमेरावादी) से मां कृष्णा पटेल के चुनाव मैदान में आने से विपरीत ध्रुवों पर रहने के बावजूद अनुप्रिया ने मां के सम्मान में प्रतापगढ़ से अपनी पार्टी के उम्मीदवार को हटाकर सीट भाजपा को वापस कर दी.

उल्लेखनीय है कि अति पिछड़ी कुर्मी बिरादरी से आने वाले डॉक्टर सोनेलाल पटेल ने अपना दल की स्थापना की थी, लेकिन उनके निधन के बाद पार्टी का नेतृत्व उनकी पत्‍नी कृष्णा पटेल ने संभाला. तब अनुप्रिया अपनी मां के साथ पार्टी की मजबूती के लिए प्रदेश स्तर पर सक्रिय हुईं.

2012 में अपना दल से अनुप्रिया पटेल वाराणसी की रोहनिया सीट से विधानसभा सदस्य चुनी गईं और इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में अपना दल ने भाजपा से गठबंधन किया.

लोकसभा चुनाव में इस पार्टी से अनुप्रिया पटेल समेत दो सांसद विजयी हुए, लेकिन थोड़े दिनों बाद में मां-बेटी के बीच मतभेद शुरू हो गया. अनुप्रिया को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली सरकार में भी मंत्री बनाया था.

अपना दल में मां और बेटी के बीच टकराव के बाद दो फाड़ होने पर केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की अगुवाई वाले अपना दल (एस) ने 2017 में भाजपा के समझौते से 11 सीटों पर चुनाव लड़ा और नौ सीटों पर उसे जीत मिली.

अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल ने 2017 से पहले दल का गठन किया लेकिन मान्यता न मिलने से वह 2017 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर वाराणसी की रोह‍िनिया विधानसभा सीट से मैदान में उतरीं और उन्‍हें करीब 10 हजार मत मिले थे.

अयोध्या और मथुरा में भाजपा का परचम

राम मंदिर आंदोलन का केंद्र रही अयोध्या और चुनाव प्रचार का केंद्र रहे मथुरा में भाजपा ने परचम लहराया है. चुनाव आयोग द्वारा घोषित परिणाम के मुताबिक, अयोध्या सीट से भाजपा उम्मीदवार वेद प्रकाश ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के तेज नारायण उर्फ पवन पांडे को 19,990 वोटों से पराजित करके यह सीट बरकरार रखी.

(फोटो साभार: ट्विटर)

भाजपा की राजनीति का केंद्र रही अयोध्या का विधानसभा चुनाव उसके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न था. वहीं, मथुरा जिले की पांचों विधानसभा सीटों पर भी भाजपा ने जीत हासिल की. आगरा जिले की भी सभी नौ सीट भाजपा के खाते में गईं.

वहीं, एक गौर करने वाला नतीजा मेरठ जनपद की सरधना विधानसभा सीट पर रहा, जहां सपा-रालोद गठबंधन के अतुल प्रधान ने भाजपा उम्मीदवार संगीत सोम को हरा दिया.

सरधना सीट को भाजपा का गढ़ भी माना जाता है. इसी सीट पर भाजपा विधायक संगीत सोम ने वर्ष 2012 और 2017 में इस बार के विजेता अतुल प्रधान को हराकर जीत हासिल की थी. सरधना सीट पर ऐसा पहली बार हुआ है जब सपा का कोई प्रत्याशी जीता है.

वहीं, चुनाव परिणामों में एक खास बात देखी गई कि कृषि कानूनों के मुद्दे पर चले किसान आंदोलन का उत्तर प्रदेश के पश्चिमी एवं किसानों के प्रभाव वाले इलाकों पर असर नहीं पड़ा.

इसका नुकसान सपा को हुआ, क्योंकि उसने इसी को ध्यान में रखते हुए ही रालोद से गठबंधन किया था ताकि जयंत चौधरी के साथ आने के बाद उसे जाट मतदाताओं का साथ मिले.

चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि किसानों की नाराजगी को भुनाने के सपा गठबंधन तथा कांग्रेस के प्रयास विफल साबित हुए. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अधिकांश सीटों पर भाजपा ने बढ़त बना ली.

चुनाव प्रचार के दौरान विपक्षी दलों ने कोविड-19 महामारी के दौरान गंगा में तैरती लाशों के मुद्दे को भी जोर-शोर से उठाया था, लेकिन चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि चुनाव पर इसका भी प्रभाव नहीं पड़ा.

कांग्रेस और सपा ने चुनाव प्रचार के दौरान लखीमपुर खीरी में किसानों को गाड़ी से कुचले जाने और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र के इसमें शामिल होने से जुड़े आरोपों का विषय भी उठाया था, लेकिन इस जिले की सीटों पर भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया .

बहरहाल, उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन 2017 की तरह तो नहीं रहा, लेकिन राज्य में भाजपा की निर्णायक जीत से, साढ़े तीन दशक से ज्यादा वक्त बाद कोई मुख्यमंत्री कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा सत्ता में आ रहा है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)