समाचार पोर्टल ‘द कश्मीरवाला’ के संपादक फहद शाह को एक महीने के भीतर तीसरी बार गिरफ़्तार करने से पहले दो बार ज़मानत मिल गई थी. फहद की बार-बार गिरफ़्तारी और यूएपीए के तहत मामला दर्ज करने का बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है. वैश्विक मीडिया एडवोकेसी समूहों और कार्यकर्ताओं ने उनकी तुरंत रिहाई की मांग की है.
श्रीनगरः जम्मू एवं कश्मीर पुलिस ने श्रीनगर के पत्रकार और द कश्मीरवाला के संपादक फहद शाह पर लगभग एक महीने में दूसरी बार गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया है.
फहद को एक महीने के भीतर तीसरी बार गिरफ्तार करने से पहले दो बार जमानत मिल गई थी. फहद को बार-बार गिरफ्तार करने और उन पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज करने का बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है. वैश्विक मीडिया एडवोकेसी समूहों और प्रमुख कार्यकर्ताओं ने उनकी तुरंत रिहाई की मांग की है.
कश्मीर में सरकार की आलोचना करने वालों या उनसे असहमति जताने वालों के खिलाफ बड़े पैमाने पर यूएपीए के इस्तेमाल के मामले सामने आए हैं. फहद के वकील उमैर रोंगा का कहना है कि उनके मुवक्किल को दक्षिण कश्मीर की अदालत ने एक मामले में पांच मार्च को जमानत दी थी.
यह मामला पिछले साल शोपियां जिले के इमाम साहेब पुलिस थाने में आईपीसी की धारा 153 (दंगे के लिए उकसाना) और 505 (अफवाह फैलाने) के तहत दर्ज किया गया था.
फहद को जमानत मिलने के कुछ घंटों बाद श्रीनगर जिला पुलिस ने कश्मीरवाला के खिलाफ दर्ज पहले मामले में फहद को हिरासत में लिया.
कश्मीरवाला के खिलाफ यह मामला जम्मू एवं कश्मीर पुलिस ने मई 2020 में दर्ज किया था.
Today journalist Fahad Shah @pzfahad was remanded for 5 days in the Srinagar case — the third arrest.
He has been booked under UAPA again. Second UAPA in the last 37 days. @tkwmag @pzaqib @pzshakir6 @yashjournals @JunaidKathjoo pic.twitter.com/ahtMlzu2em— Umair Ronga (@umairronga) March 11, 2022
इस मामले में फहद पर आईपीसी की धारा 109 (अपराध के लिए उकसाना), 147 (दंगा करने), 307 (हत्या का प्रयास), 501 (मानहानिकारक सामग्री का प्रकाशन) और 505 (अफवाह फैलाने) के तहत दर्ज किया गया था.
रोंगा ने द वायर को बताया, ‘पुलिस ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट में अदालत को बताया कि जांच के दौरान आईपीसी की तीन धाराएं (109, 147 और 307) हटा दी गईं जबकि यूएपीए की धारा 13 मामले में जोड़ दी गई.’
उन्होंने कहा, ‘फहद को अब हिरासत में रखने की जरूरत नहीं है क्योंकि ऐसा लगता है कि जांच पूरी हो गई है. बीते दो सालों में मामले की परिस्थितियों में कोई बदलाव नहीं आया. मामले में फहद की हिरासत अनुचित है.’
श्रीनगर पुलिस ने 19 मई 2020 को कश्मीरवाला के लिए श्रीनगर के नवा कदाल इलाके में हुई मुठभेड़ की कवरेज के लिए फहद के खिलाफ मामला दर्ज किया था. इस मुठभेड़ में दर्जनभर से अधिक घरों को ध्वस्त कर दिया गया था.
स्थानीय लोगों का कहना है कि सुरक्षाबलों ने घरों को आग लगाने से पहले नकदी और आभूषण लूट लिए थे लेकिन इन आरोपों से अधिकारियों ने इनकार किया है.
द कश्मीरवाला सहित स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया ने व्यापक पैमाने पर इन आरोपों और प्रशासन द्वारा इम्हें खारिज करने को लेकर खबरें लिखी थीं.
फहद के सहकर्मियों ने द वायर को बताया कि उन्हें (फहद) इस मामले में बीते दो सालों में तीन बार तलब किया गया है. फहद के एक सहकर्मी ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताया, ‘फहद ने जांचकर्ताओं के साथ हमेशा सहयोग किया है और वह कानून का सामना करने से कभी नहीं कतराते.’
दूसरा मामला जिसमें फहद को पांच मार्च को जमानत मिली, वह दरअसल 30 जनवरी 2021 को शोपियां में दर्ज किया गया था.
द कश्मीरवाला ने अपनी रिपोर्ट में यह बताया था कि सेना शोपियां में एक निजी स्कूल के प्रबंधन पर गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन करने के लिए दबाव बना रही है जबकि शोपियां आतंकी गतिविधियों का केंद्र है.
सेना ने इन आरोपों से इनकार किया था और इस संबंध में पुलिस में शिकायत की, जिसके बाद एफआईआर दर्ज की गई.
श्रीनगर के एक थाने में बंद फहद को एक विवादित मुठभेड़ की रिपोर्टिंग के लिए यूएपीए और राजद्रोह के आरोपों में चार फरवरी को गिरफ्तार किया गया था.
दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में हुई इस मुठभेड़ में तीन संदिग्ध आतंकियों सहित एक किशोर की मौत हो गई थी.
जम्मू एवं कश्मीर पुलिस का कहना है कि यह किशोर आतंकी था जबकि द कश्मीरवाला ने अपनी रिपोर्ट में किशोर के परिवार के हवाले से बताया था कि उनका बेटा निर्दोष था, जिस वजह से फहद के खिलाफ तीसरी एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें पिछले महीने अदालत ने उन्हें जमानत दे दी.
एफआईआर में जम्मू कश्मीर पुलिस ने फहद पर ‘आतंक का महिमामंडन करने, कानून प्रवर्तन एजेंसियों की छवि को नुकसान पहुंचाने और देश के खिलाफ असंतोष फैलाने’ का आरोप लगाया.
एक महीने में तीन बार फहद की गिरफ्तारी के बाद अमेरिकी मीडिया एडवोकेसी समूह कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने भारतीय प्रशासन से राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर पत्रकारिता का अपराधीकरण बंद करने को कहा जबकि कई अन्य ने इसे देश की लोकतांत्रिक साख पर हमला बताया.
वकीलों, नागिरक समाज कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के अधिकारों की वकालत करने वाले एक समूह फ्री स्पीच कलेक्टिव की स्थापना करने वाली गीता सेशु का कहना है, ‘फहद को बार-बार गिरफ्तार किया जाना दरअसल उन्हें चुप कराने और जेल की सलाखों के पीछे रखने का प्रयास है ताकि वह अपने पत्रकारिता के कर्तव्यों का पालन नहीं कर सके.’
एक पूर्व पत्रकार गीता ने द वायर को बताया, ‘अगर हम पुलिस के आरोपों पर विश्वास भी करें तो यह समझ के परे हैं कि पिछले साल दर्ज हुए मामलों में कार्रवाई करने और गिरफ्तारी में पुलिस को इतना समय क्यों लगा? यकीनन वे तब यह कर सकते थे. वे दो सालों से क्या कर रहे थे? उनके व्यवहार से यह स्पष्ट है कि वह नहीं चाहते कि फहद पत्रकारिता करे.’
स्वीडन में रहे वाले प्रख्यात शिक्षाविद अशोक स्वैन का कहना है, ‘फहद की गिरफ्तारी से पता चलता है कि सत्तारूढ़ सरकार कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय एजेंडा से बाहर रखने के लिए जो बन पड़ रहा है, कर रही है. इस संदर्भ में वह कश्मीर से किसी भी तरह की स्वतंत्र पत्रकारिता पर अंकुश लगाना चाहती है.’
उप्साला यूनिवर्सिटी में पीस एंड कंफ्लिक्ट के प्रोफेसर अशोक ने द वायर को बताया, ‘कश्मीर में पत्रकारों और उनके परिवार के सदस्यों की बार-बार गिरफ्तारी और उत्पीड़न का उद्देश्य डर का माहौल बनाना है ताकि स्थानीय स्वतंत्र पत्रकारिता खत्म हो जाए.’
न्यूयॉर्क में सीपीजे के प्रोग्राम निदेशक कार्लोस मार्टिनेज डे ला सेर्ना ने जारी बयान में ‘फहद की गिरफ्तारी और उत्पीड़न की कड़ी निंदा करते हुए प्रशासन से राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर पत्रकारिता का अपराधीकरण नहीं करने को कहा.’
बयान में कहा गया, ‘पत्रकारों को हिरासत में लिए जाने की तेजी से बढ़ रहे मामले से प्रेस की आजादी और सरकार की आलोचना को लेकर प्रशासन की असहिष्णुता का पता चलता है. प्रशासन को फहद शाह को तुरंत रिहा करना चाहिए, उनके पत्रकारिता कार्यों की जांच को बंद कर देना चाहिए और पत्रकारिता के अपराधीकरण को रोकने के कदम उठाने चाहिए.’
फहद की गिरफ्तारी के बाद इंडियन एक्सप्रेस अखबार के संपादकीय में जम्मू कश्मीर प्रशासन पर पत्रकारों को तलब कर, उनकी रिपोर्ट के बारे में उनसे पूछताछ करने, उन पर यूएपीए, पीएसए और राजद्रोह के तहत मामले दर्ज करने की धमकी देकर उनका उत्पीड़न करने का आरोप लगाया गया.
अखबार के 10 मार्च के संपादकीय में कहा गया, ‘आधिकारिक जवाबदेही के अभाव में अदालतों को आगे आना चाहिए. उन्हें एक कड़ा संदेश देना चाहिए कि पत्रकारों और पत्रकारिता पर हमला लोकतंत्र पर हमला है.’
फहद पर जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा दूसरी बार यूएपीए लगाने के बाद द कश्मीरवाला की रिपोर्ट में कहा गया, ‘फहद के परिवार और कश्मीरवाला टीम इस मामले में ताजा घटनाक्रमों से स्तब्ध थे. हालांकि, हमने न्ययापालिका और कानून में विश्वास बनाए रखा. हमारी टीम फहद और उनके परिवार के साथ खड़ी है, हम मनोज सिन्हा की अगुवाई में जम्मू कश्मीर प्रशासन से दोबारा अपील करते हैं कि फहद को तुरंत रिहा किया जाए. हमें उम्मीद है कि वह जल्द ही न्यूजरूम में हमारे साथ होंगे.’
कई कार्यकर्ता और पत्रकार भी फहद के समर्थन में आगे आए और उनकी रिहाई की मांग की.
Dead journalists are more valuable, is it ? Because when they are alive, we do not seem to care. Both Siddique Kappan, Fahad Shah have been incarcerated for doing their job and our collective condemnation is not loud enough. This injustice will NOT stop at them..
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) March 12, 2022
पत्रकार राणा अय्यूब ने ट्वीट कर कहा, ‘मर चुके पत्रकारों का अधिक महत्व होता है, है न? क्योंकि जब वे जीवित होते हैं तो हमें उनकी परवाह नहीं होती. सिद्दीक कप्पन और फहद शाह दोनों सिर्फ अपना काम करने की वजह से जेल में हैं और इसके लिए हमारी सामूहिक निंदा पर्याप्त नहीं है. यह अन्याय उन पर ही नहीं रुकेगा.’
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)