बॉम्बे हाईकोर्ट ने आदिवासी क्षेत्र मेलघाट में कुपोषण और चिकित्सकीय सुविधाओं के अभाव के चलते हो रही महिलाओं और बच्चों की मौत के संबंध में जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि हमें पता चला है कि लड़कियों की शादी 12-13 वर्ष की उम्र में कराई जा रही है, वे 15 और 16 साल की उम्र में बच्चों को जन्म दे रही हैं और यही एक कारण है जिससे माताओं और उनके बच्चों की मौत हो रही है.
मुंबईः बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से राज्य में हुए बाल विवाहों के आंकड़े पेश करने को कहा है.
अदालत का कहना है कि बाल विवाह आदिवासी क्षेत्र मेलघाट में महिलाओं और बच्चों की मौत का एक प्रमुख कारण हो सकता है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एमएस कार्णिक की पीठ महिलाओं और बच्चों की मौत, विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्र मेलघाट में कुपोषण और चिकित्सकीय सुविधाओं के अभाव के कारण, के संबंध में कुछ जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.
ये जनहित याचिकाएं डॉ. राजेंद्र बर्मा और कार्यकर्ता बंधु संपतराव साणे द्वारा दायर की गईं थीं.
अदालत ने कहा, ‘हमें एक बहुत ही विश्वसनीय सूत्र से पता चला है कि लड़कियों की शादी 12-13 वर्ष की उम्र में कराई जा रही है, वे 15 और 16 साल की उम्र में बच्चों को जन्म दे रही हैं और यह एक कारण है जिससे मांओं और उनके बच्चों की मौत हो रही है.’
अदालत ने कहा कि वह सभी जिला मजिस्ट्रेट, कलेक्टर को बाल विवाह संबंधी आंकड़े जुटाने कहेगी और कम उम्र में जिन लड़कियों की शादी हुई है उनकी सूची पेश करने को कहेंगे ताकि जागरूकता कार्यक्रमों की दिशा में निर्देश दिए जा सकें.
अदालत ने कहा, ‘क्योंकि इस संबंध में हमें उन्हें जागरूक करने की जरूरत है कि भारत में विवाह की उम्र 18 है. उन्हें इस बारे में शिक्षित करने की जरूरत है, अन्यथा आप जितना भी खर्च करेंगे वह बर्बाद ही होगा. अगर वे चाहते हैं कि उनकी बेटियां जीवित बचें तो जागरूकता फैलाने की जरूरत है.’
अदालत ने मौखिक तौर पर कहा कि राज्य के आगामी बजट में आदिवासी इलाकों के लिए अलग से बजटीय आवंटन होना चाहिए. दरअसल, इससे पहले याचिकाकर्ता ने बताया था कि इन इलाकों के लिए इस साल बजट में 12 फीसदी की कटौती की गई है.
महाराष्ट्र सरकार के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) आशुतोष कुंभकोणी ने कहा कि बाल विवाह और गर्भ निरोधक व्यवस्था की कमी महिला मृत्युदर का सबसे बड़ा कारण है.
कुंभकोणी ने कहा, ‘मैंने शुरुआत में इन मौतों के दो पहलुओं की ओर इशारा किया था. पहला बाल विवाह और दूसरा यह है कि ये महिलाएं गर्भ निरोधक गोलियों का इस्तेमाल नहीं करती, जिस वजह से वे कई बार गर्भधारण कर लेती हैं. पहले वे झोलाछाप डॉक्टरों से सलाह लेती हैं और एक बार मामला हाथ से निकल जाने पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाती हैं.’
इसके जवाब में चीफ जस्टिस ने कहा, ‘क्या आप एक सर्वे कर हमें बता सकते हैं कि 18 साल से कम उम्र की कितनी लड़कियों की शादी हो गई है. हमें उनके रिवाजों का सम्मान करना होगा लेकिन उन्हें भी जागरूक होना होगा. हमें बच्चियों को बचाना होगा. हमें लगता है कि कोर्ट का आदेश यहां काम नहीं करेगा. हम महाराष्ट्र में सर्वेक्षण का निर्देश देंगे.’
याचिकाकर्ता साणे की ओर से मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता जुगल किशोर गिल्डा ने दोहराया कि किस तरह धीमी गति से इसमें सुधार हो रहा है क्योंकि इन इलाकों में डॉक्टर नहीं हैं. तीन दशकों से यही कहानी दोहराई जा रही है. इन इलाकों के लिए इस साल बजट में 12 फीसदी की कटौती की गई है.