कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब को इस्लाम धर्म का हिस्सा न मानते हुए शिक्षण संस्थानों में इस पर प्रतिबंध को बरक़रार रखा है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए इस्लामिक विद्वान व संगठनों ने हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा बताया, वहीं कुछ नेताओं ने चयन की स्वतंत्रता का सवाल उठाया है.
नई दिल्ली: देश में मुसलमानों के प्रतिष्ठित संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को ठीक ठहराने के कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर मंगलवार को गहरी मायूसी जताते हुए कहा कि इस फैसले से धार्मिक स्वतंत्रता और मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर विपरीत असर पड़ेगा.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है और उसने कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति देने के लिए मुस्लिम छात्राओं की खाचिकाएं खारिज कर दीं. अदालत ने इसके साथ ही राज्य में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध बरकरार रखा.
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए जमीयत (महमूद मदनी गुट) के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि निर्णय बेहद निराशाजनक है और इसका धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा प्रभाव पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि कोई भी समाज केवल कानूनी बारीकियों से नहीं चलता है, बल्कि सामाजिक और पारंपरिक रूप से इसका स्वीकार्य होना जरूरी है.
एक बयान में प्रमुख मुस्लिम नेता ने कहा, ‘इस फैसले के कई नकारात्मक प्रभाव होंगे, विशेषकर मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर असर पड़ेगा और वर्तमान में जिस तरह की परिस्थितियां उत्पन्न की गईं, उसमें वह अपनी स्वतंत्रता और भरोसा खो देंगी.’
उन्होंने कहा, ‘हमारे देश की एक बहुत ही प्राचीन परंपरा और सभ्यता है, खासकर मुस्लिम महिलाओं की मान्यताओं और अवधारणा में सदियों से पर्दे का बड़ा महत्व है. इसे केवल अदालत के फैसले से मिटाया नहीं जा सकता.’
मदनी ने जोर देकर कहा, ‘फैसला जिस धर्म के संबंध में दिया जा रहा है, उसकी स्वीकार्य मान्यताओं, उस धर्म के आधिकारिक विद्वानों और जानकारों के अनुसार होना चाहिए. अदालतों द्वारा इस संबंध में अपनी तरफ से अलग रास्ता नहीं अपनाया जाना चाहिए.’
उन्होंने राज्य सरकारों और केंद्र सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि वह किसी कौम की स्वीकृत संस्कृति, परंपरा और मान्यता की रक्षा करने की जिम्मेदारी पूरी करें.
मौलाना महमूद मदनी ने युवाओं से सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने से परहेज करने और धैर्य दिखाने की अपील की.
बता दें कि मंगलवार को ही कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है.
महिला अधिकार समूहों ने हिजाब पर कोर्ट के फैसले पर रोक की मांग उठाई
वहीं, महिला और नागरिक अधिकार समूहों ने भी उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) से हिजाब पर कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा है कि इसका मुस्लिम लड़कियों की सुरक्षा, सम्मान और शिक्षा पर दूरगामी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि जैसे सिख लड़के और पुरुष पगड़ी पहन सकते हैं और हिंदू रक्षा सूत्र, बिंदी, तिलक और सिंदूर लगा सकते हैं, उसी तर्ज पर कर्नाटक में कॉलेज विकास समितियां मुस्लिम छात्राओं को यूनिफॉर्म के साथ हिजाब पहनने की अनुमति दें.
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ, सहेली महिला संसाधन केंद्र, भारतीय महिला संघ, बेबाक कलेक्टिव जैसे नागरिक अधिकार समूहों और कनीज फातिमा तथा स्मिता शर्मा जैसी साामजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की अपील की है.
उन्होंने एक बयान में कहा कि उच्चतम न्यायालय के समक्ष इस मामले को ले जाया गया है और हमें विश्वास है कि उच्चतम न्यायालय हिजाब पहनने वाली मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं को स्कूल या कॉलेज की यूनिफॉर्म के नाम पर भेदभाव और बहिष्कार से बचाएगा.
जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दलों ने फैसले को अत्यंत निराशाजनक बताया
वहीं, जम्मू कश्मीर के कई राजनीतिक दलों ने कर्नाटक हाईकोर्ट के इस फैसले को ‘बेहद निराशाजनक’ बताते हुए मंगलवार को कहा कि यह केवल धर्म की बात नहीं है, बल्कि चयन की स्वतंत्रता की भी बात है.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया, ‘कर्नाटक हाईकोर्ट का हिजाब प्रतिबंध को बरकरार रखने का फैसला अत्यंत निराशाजनक है. एक तरफ हम महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं और दूसरी तरफ हम उन्हें एक सरल चयन का अधिकार भी देने से इनकार कर रहे हैं. यह केवल धर्म की बात नहीं है, बल्कि चयन की स्वतंत्रता की भी बात है.’
वहीं, नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यह ‘हास्यास्पद’ है कि अदालत ने महिलाओं के इस मौलिक अधिकार को बरकरार नहीं रखा कि वे अपनी पसंद के अनुसार कपड़े पहन सकें.
उमर ने ट्वीट किया, ‘मैं कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से बहुत निराश हूं. आप हिजाब के बारे में भले ही कुछ भी सोचते हों, लेकिन यह किसी कपड़े की बात नहीं है, यह इस बात का चयन करने के महिलाओं के अधिकार की बात है कि वे क्या पहनना चाहती हैं. अदालत द्वारा इस मूलभूत अधिकार को बरकरार नहीं रखा जाना हास्यास्पद है.’
इस बीच, सज्जाद लोन के नेतृत्व वाली जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने ट्वीट किया, ‘कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब प्रतिबंध को बरकरार रखा. देश में पहले से ही बढ़ता असंतुलन भारत की अवधारणा पर व्यक्ति के विश्वास को और कम करता है तथा लोकतंत्र को प्रभावित करता है.’
उन्होंने कहा, ‘परिणामस्वरूप भाग्यवाद के कारण अधिकतम लोग लोकतंत्र त्याग देते हैं और इससे अलगाव को बढ़ावा मिलता है.’
जिस बात की हिदायत कुरान में दी गई है, वह इस्लाम का हिस्सा: इस्लामी विद्वान
कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से इस्लामी विद्वानों ने असहमति जताते हुए मंगलवार को कहा कि कुरान में जिस बात का हुक्म (आदेश) दिया गया है, वह मज़हब का अनिवार्य हिस्सा है और कुरान की सूराह (अध्याय) में महिलाओं को सिर ढकने को कहा गया है.
जामिया मिलिया इस्लामिया के इस्लामी अध्ययन विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर एमेरिट्स अख्तर उल वासे ने कहा कि वह एक शिक्षक के तौर पर यूनिफॉर्म लागू करने के हिमायती हैं और किसी भी बहाने से इससे बचना नहीं चाहिए, लेकिन छात्राओं को यूनिफॉर्म के रंग के कपड़े से सिर ढकने की इजाज़त दी जा सकती है, जैसे सिख समाज के लोग करते हैं.
इस्लाम के तीन अलग-अलग विद्वानों ने अदालत के फैसले से असहमति देते हुए कहा कि इस्लाम में महिलाओं के लिए हुक्म है कि वे सिर ढकेंगी.
प्रोफेसर वासे ने कहा, ‘कुरान-ए-करीम में किसी चीज़ के लिए साफ तौर पर हिदायत (निर्देश) मौजूद हैं तो वह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है.’ उन्होंने कहा कि साथ में जो पैगंबर मुहम्मद ने अपनी जिंदगी में किया, वह भी इस्लाम का हिस्सा है.
उन्होंने कहा, ‘सिर ढकने का जिक्र सूर-ए-अहज़ाब और सूर-ए-नूर में मौजूद है कि महिलाएं अपना चेहरा, हाथ और पैर खुला रखेंगी, लेकिन वे सिर ढकेंगी.’
उन्होंने कहा कि सूर-ए-नूर में मर्दों के लिए भी हुक्म है कि वे अपनी नज़र को झुकाकर रखेंगे.
प्रोफेसर वासे ने कहा, ‘हज और उमरा (हज के अलावा आम दिनों में होने वाली मक्का मदीना की यात्रा) के दौरान महिलाएं अपने सिर को ढकती हैं.’
वासे ने कहा कि यूनिफॉर्म की आड़ में महिलाओं को तालीम (शिक्षा) और हिजाब में से किसी एक का चयन करने का मौका नहीं देना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘भारत में राजस्थान और बृज प्रदेश की महिलाएं घूंघट करती हैं, इसे आप क्या कहेंगे? यह भारतीय संस्कृति है.’
चांदनी चौक स्थित फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने भी कहा कि हिजाब इस्लाम में कुरान और हदीस (पैगंबर मुहम्मद की शिक्षा) का हिस्सा हैं.
मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने कहा, ‘सिर ढकने का हुक्म कुरान में है, इसलिए यह जरूरी है. सूर अल अहज़ाब में, सूर-ए-नूर में सिर ढकने का हुक्म है, इसलिए यह इस्लाम का जरूरी हिस्सा है.’
विश्व प्रसिद्ध इस्लामी शिक्षण संस्थान के दारूल उलम देवबंद के प्रवक्ता अशरफ उस्मानी ने कहा, ‘महिलाओं का सिर ढकना कुरान से साबित है और जो बात कुरान में आ गई है वह फर्ज है, चाहे वो नमाज़, रोज़ा ज़कात या हज हो.’
उन्होंने कहा, ‘इस्लाम के 1400 साल के इतिहास में हिजाब को लेकर कभी कोई विवाद नहीं हुआ है. दुनियाभर के उलेमा मानते हैं कि इस्लाम में सिर ढकना फर्ज है.’
उन्होंने कहा कि अदालत यह फैसला नहीं कर सकती है कि इस्लाम का हिस्सा क्या है और क्या हिस्सा नहीं है.
प्रोफेसर वासे ने कहा, ‘हम इस फैसले से संतुष्ट नहीं है. मेरी अपील है कि जो लोग इस फैसले से संतुष्ट नहीं है, उन्हें इसका विरोध नहीं करना चाहिए और बल्कि फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती देनी चाहिए.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)