पहले इनकार के बाद केंद्र ने माना- पात्र न होने के बावजूद हुई आईआईएम रोहतक के निदेशक की नियुक्ति

आईआईएम रोहतक के निदेशक धीरज शर्मा की नियुक्ति को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. जहां शिक्षा मंत्रालय ने माना कि शर्मा को स्नातक स्तर पर द्वितीय श्रेणी मिलने के बावजूद इस पद पर नियुक्त किया गया जबकि इसके लिए प्रथम श्रेणी से डिग्री होना अनिवार्य शर्त है. शर्मा को नियुक्ति के साथ दूसरे कार्यकाल की मंज़ूरी भी मिली थी.

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आईआईएम रोहतक के निदेशक धीरज शर्म (फोटो साभारः फेसबुक)

आईआईएम रोहतक के निदेशक धीरज शर्मा की नियुक्ति को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. जहां शिक्षा मंत्रालय ने माना कि शर्मा को स्नातक स्तर पर द्वितीय श्रेणी मिलने के बावजूद इस पद पर नियुक्त किया गया जबकि इसके लिए प्रथम श्रेणी से डिग्री होना अनिवार्य शर्त है. शर्मा को नियुक्ति के साथ दूसरे कार्यकाल की मंज़ूरी भी मिली थी.

आईआईएम रोहतक के निदेशक धीरज शर्मा. (फोटो साभारः फेसबुक)

नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में आखिरकार यह स्वीकार किया है कि भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) के निदेशक को न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के मानदंडों को पूरा नहीं करने के बावजूद न सिर्फ उनके नियुक्त किया गया बल्कि उनके दूसरे कार्यकाल को भी मंजूरी दी गई.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने एक हलफनामे में यह स्वीकार किया कि आईआईएम रोहतक के निदेशक धीरज शर्मा ने द्वितीय श्रेणी में स्नातक डिग्री हासिल की थी जबकि इस पद के लिए प्रथम श्रेणी में डिग्री अनिवार्य है.

शर्मा की नियुक्ति और इस पद पर उन्हें बने रहने को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी.

सितंबर 2021 में अखबार की रिपोर्ट में बताया गया था कि उनकी स्नातक की डिग्री के लिए शर्मा को तीन पत्र भेजे गए थे लेकिन उन्होंने अभी तक सरकार को अपनी डिग्री मुहैया नहीं कराई है.

हालांकि, आईआईएम एक्ट के तहत दूसरे कार्यकाल के लिए दोबारा नियुक्ति से उन्हें रोका नहीं जा सकता.

2018 के कानून में 20 आईआईएम को बोर्ड के निदेशकों, अध्यक्षों और सदस्य नियुक्त करने की शक्तियां दी गई हैं. शर्मा को इसी के तहत इस साल 28 फरवरी को दोबारा नियुक्त किया गया था.

शर्मा को सबसे पहले प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने 2017 में नियुक्त किया था.

शिक्षा मंत्रालय ने अपने हलफनामे में अब स्वीकार किया है कि इस नियुक्ति को अवैध माना जाएगा.

रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार की यह स्वीकारोक्ति बार-बार किए गए उस दावे के बाद आई है कि जिसे लेकर सरकार कहती रही कि शर्मा इस पद के योग्य थे.

रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल पहले सरकार ने हाईकोर्ट से यह कहते हुए याचिका खारिज करने का आग्रह किया गया कि याचिकाकर्ता के पास कोई अधिकार नहीं है क्योंकि निदेशक पद के लिए 60 आवेदकों में से किसी ने भी इस नियुक्ति को चुनौती नहीं दी थी.

इस साल फरवरी में शिक्षा मंत्रालय द्वारा भेजे गए तीन पत्रों का कोई जवाब नहीं मिलने के बाद इस साल फरवरी में शर्मा ने सरकार को पत्र लिखते हुए कहा कि वह एक नोटरीकृत हलफनामा पेश करेंगे, जिसमें बताया जाएगा कि उनके पास 1997 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से बैचलर डिग्री, 1999 में बीआर आंबेडकर यूनिवर्सिटी से मास्टर्स डिग्री और 2006 में लुइसियाना टेक यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हैं और उन्होंने सात साल से एक प्रतिष्ठित संस्थान में पूर्णकालिक प्रोफेसर के रूप में काम किया है.

सरकार ने कहा है कि वह अब इस बात की जांच कर रहे हैं कि शर्मा की नियुक्ति कैसे की गई और उनकी नियुक्ति के लिए कौन जिम्मेदार हैं.