12 जुलाई 2009 को राजनांदगांव ज़िले में मानपुर थानाक्षेत्र के मदनवाड़ा, कोरकट्टा और कोरकोट्टी गांव के पास नक्सलियों ने पुलिस दल पर हमला किया था. इसमें ज़िले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक समेत 29 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे. भूपेश बघेल सरकार द्वारा गठित जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अभियान का नेतृत्व ग़ैर-ज़िम्मेदाराना तरीके से किया गया.
रायपुर: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा नक्सली हमले की जांच कर रहे न्यायिक जांच आयोग ने क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक की भूमिका पर सवाल उठाया है और कहा कि यह घटना घमंड का परिणाम थी जिसमें अभियान का नेतृत्व बेहद गैर-जिम्मेदाराना तरीके से किया गया.
राजनांदगांव जिले के मानपुर थाना क्षेत्र के मदनवाड़ा, कोरकट्टा और कोरकोट्टी गांव के करीब 12 जुलाई 2009 को नक्सलियों ने पुलिस दल पर घात लगाकर हमला किया था. इस हमले में जिले के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक वीके चौबे समेत 29 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे.
कांग्रेस नीत मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने जनवरी, 2020 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एसएन श्रीवास्तव के नेतृत्व में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था.
छत्तीसगढ़ विधानसभा में बुधवार को बघेल ने मानपुर थाना क्षेत्र में हुए नक्सली हमले की जांच के लिए नियुक्त न्यायिक जांच आयोग का प्रतिवेदन और उस पर शासन द्वारा की गई कार्यवाही का विवरण सदन के पटल पर रखा.
जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए तथा साक्ष्यों का गहनता से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि यह घटना घमंड का परिणाम थी जिसमें अभियान का नेतृत्व गैरजिम्मेदाराना ढंग से किया गया.’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इसमें स्पष्ट है कि पुलिस एक ओर बस हमला झेलने के लिए खड़ी थी और भारी नुकसान उठाया. सामने वाले पर न कोई हमला किया और न ही हमले को रोका गया. यह इस तथ्य से सिद्ध होता है कि किसी भी नक्सली को कोई चोट नहीं पहुंची, न ही कोई हताहत हुआ. यह पूरी तरह से अभियान के कमांडर इन चीफ (प्रमुख) दुर्ग के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) मुकेश गुप्ता की लापरवाही, कमी और विफलता है.’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मदनवाड़ा शिविर की स्थापना 26 जून 2009 को बरसात के मौसम में की गई थी. यह साक्ष्य है कि शिविर की स्थापना आईजी मुकेश गुप्ता के आदेश पर की गई थी. तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने बरसात में शिविर लगाने का विरोध भी किया था. वहां सामान्य सुविधाएं भी नहीं थीं.’
रिपोर्ट के अनुसार, ‘12 जुलाई 2009 को सुबह करीब छह बजे जब सशस्त्र बल के जवान शौच के लिए गए थे तभी नक्सलियों ने उन पर हमला कर दिया, जिसमें दो जवान शहीद हो गए.’
उसमें कहा गया है, ‘जांच के दौरान यह तथ्य आया है कि आईजी मुकेश गुप्ता ने पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे को घटना के बाद मदनवाड़ा जाने को कहा था. गुप्ता ने यह भी संदेश दिया था कि वह भी थोड़ी देर बाद मदनवाड़ा के लिए निकल रहे हैं.’
जांच समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘आईजी गुप्ता जानते थे कि पुलिस अधीक्षक चौबे नक्सलियों की हिट लिस्ट में थे, इसके बावजूद उनकी सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया. जबकि सीआरपीएफ, एसटीएफ, जिला बल और अन्य पुलिस अधिकारी वहां विभिन्न करीबी क्षेत्रों में मौजूद थे.’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘घटना के दिन विनोद चौबे ने मानपुर पुलिस स्टेशन को निर्देश दिया था कि बाइक युक्त पुलिस बल को तैयार रखा जाए. जब चौबे मदनवाड़ा की ओर आगे बढ़ रहे थे तभी उनके पीछे चल रहे वाहन के चालक को गोली लगी. चौबे वहीं रुक गए और मानपुर थाने को सूचित किया कि नक्सलियों ने कोरकोट्टी गांव के करीब घात लगाकर हमला किया है.’
रिपोर्ट के अनुसार, ‘चौबे ने निर्देश दिया कि मोटरसाइकिल युक्त पुलिस कर्मियों को न भेजा जाए. उन्होंने इसकी जानकारी आईजी मुकेश गुप्ता को भी दी. जानकारी मिली कि इससे पहले ही मोटरसाइकिल युक्त पुलिस दल पहले ही मानपुर से निकल चुका था.’
रिपोर्ट के अनुसार, घटनास्थल पर मोटरसाइकिल सवार 12 जवानों का पहला पुलिस दल पहुंचा और नक्सलियों की गोलियों का शिकार हुआ, बाद में 12 जवानों का एक और दल पहुंचा और वे सभी भी नक्सलियों की गोलियों से शहीद हो गये. इसके बाद वहां एंटी लैंड माइन व्हीकल पहुंचा, जिसपर नक्सलियों ने भारी गोलीबारी की.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बचे हुए अतिरिक्त बल को आक्रमण का आदेश देने का पर्याप्त समय था लेकिन उच्चाधिकारी (तत्कालीन आईजी) ने कुछ नहीं किया. वह सिर्फ खुद को गोलियों की बौछार से बचाते रहे और बुलेटप्रुफ वाहन में बैठे रहे.’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘रिकार्ड पर जो तथ्य हैं उनसे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वरिष्ठतम अधिकारी ने अनेक गलतियां की हैं और अभियान के दौरान बलों का नेतृत्व उचित तरीके से नहीं किया.’
रिपोर्ट कहती है, ‘संबंधित अधिकारी के खराब दृष्टिकोण से बड़ी संख्या में ऐसे लोग हताहत हुए जिन्हें आसानी से बचाया जा सकता था. यदि पहले से सक्रिय रहते और योजनाबद्ध तथा उचित तरीके से कार्रवाई करते तो इतने लोग हताहत नहीं होते.’
साथ ही, रिपोर्ट में दर्ज है, ‘आईजी जोन को इस जांच आयोग के समक्ष अपना साक्ष्य देने बुलाया गया लेकिन वे नहीं आए तथा उन्होंने एक आवेदन लगाया कि इस जांच आयोग के अध्यक्ष को ही हटा दिया जाए. यह एक तरह से खुद को प्रस्तुत करने से बचाने जैसा था. उनकी अनुपस्थिति से अनेक प्रश्न अनुत्तरित रह गए हैं.’
आयोग ने सुझाव दिया है कि नक्सलियों से युद्ध के मैदान में असफल होने का मुख्य कारण अनुभवहीनता तथा कमांडर के त्रुटिपूर्ण निर्णय हैं. आयोग ने रिपोर्ट में कहा है कि इन बातों को ध्यान में रखते हुए अनुभवी अधिकारियों को छांटना चाहिए, उन्हें कठिन प्रशिक्षण देना चाहिए और उनकी क्षमताओं को बढ़ाना चाहिए.
गौरतलब है कि मदनवाड़ा घटना के दौरान दुर्ग क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक रहे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी मुकेश गुप्ता को वर्तमान सरकार ने 2019 में निलंबित कर दिया था.
गुप्ता के खिलाफ नागरिक आपूर्ति निगम घोटाले (2015) की जांच के दौरान कथित रूप से आपराधिक साजिश रचने और अवैध फोन टैप करने का मामला दर्ज किया गया है.
वहीं, टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, आयोग की जांच में सामने आया है कि माओवादी पुलिस के वायरलेस संदेशों को इंटरसेप्ट कर रहे थे., जिससे वे कोरकट्टी में घात लगाकर हमला करने में कामयाब हुए.
बहरहाल, गुप्ता ने रिपोर्ट के निष्कर्षों को खारिज करते हुए कहा है कि वे इसे हाईकोर्ट में चुनौती देंगे.
उन्होंने कहा है, ‘क्या यह विडंबना नहीं है कि न्यायिक आयोग की रिपोर्ट के लिए सरकार ने उस जज का चयन किया जिसके खिलाफ मैं छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुका हूं और उनके खिलाफ मामला अभी भी लंबित है?’
उन्होंने आगे कहा कि जांच रिपोर्ट तैयार करने के लिए जज का चयन साफ तौर पर दुर्भावना से प्रेरित है क्योंकि सरकार पहले से जानती थी कि उनके और मेरे बीच पहले से ही अनबन है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)