गुजरात सरकार के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी ने कहा कि गीता में मौजूद नैतिक मूल्यों एवं सिद्धांतों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय केंद्र की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की तर्ज़ पर लिया गया है. वहीं, कर्नाटक की भाजपा सरकार ने कहा है कि वह गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने से पहले विशेषज्ञों से चर्चा करेगी.
गांधीनगर/बेंगलुरू: गुजरात सरकार ने भगवद गीता को अकादमिक वर्ष 2022-23 से पूरे राज्य में छठी से 12वीं कक्षाओं तक के स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल करने की 17 मार्च को विधानसभा में घोषणा की.
वहीं, कर्नाटक सरकार ने कहा कि भगवद गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने से पहले वह विशेषज्ञों से चर्चा करेगी.
शिक्षा मंत्री जीतू वघानी ने शिक्षा विभाग के लिए बजटीय आवंटन पर विधानसभा में एक चर्चा के दौरान यह घोषणा की.
मंत्री ने कहा कि भगवद गीता में मौजूद नैतिक मूल्यों एवं सिद्धांतों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का निर्णय केंद्र की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की तर्ज पर लिया गया है.
उन्होंने कहा कि एनईपी आधुनिक और प्राचीन संस्कृति, परपंराओं एवं ज्ञान प्रणाली को शामिल करने की हिमायत करती है, ताकि छात्र भारत की समृद्ध और विविध संस्कृति पर गर्व महसूस कर सकें.
बाद में, संवाददाताओं से बात करते हुए वघानी ने कहा कि सभी धर्मों के लोगों ने इस प्राचीन हिंदू ग्रंथ में रेखांकित किए गए नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को स्वीकार किया है.
उन्होंने कहा, ‘इसलिए, हमने छठी से 12वीं कक्षाओं तक के पाठ्यक्रमों में भगवद गीता को शामिल करने का निर्णय लिया.’
उन्होंने कहा कि ग्रंथ के आधार पर स्कूल प्रार्थना, श्लोक का पाठ, गद्यांश, नाटक, क्विज, पेंटिंग जैसी गतिविधियां भी आयोजित करेंगे. मंत्री ने कहा कि पुस्तक एवं ऑडियो-वीडियो सीडी जैसी अध्ययन सामग्री सरकार द्वारा विद्यालयों को उपलब्ध कराई जाएगी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जून में नए शैक्षणिक सत्र से भगवद गीता को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने के निर्णय पर सरकारी प्रस्ताव में कहा गया है, ‘स्कूली शिक्षा में भारतीय संस्कृति और ज्ञान प्रणाली शामिल होगी. … राज्य के सरकारी स्कूलों में कक्षा छठवीं से 12वीं में इस तरह से शामिल किया जाना चाहिए कि उनमें (विद्यार्थियों) इसे समझने के साथ-साथ इनके प्रति रुचि भी पैदा हो सके.’
अधिसूचना के तहत तैयार किए गए नियमों के अनुसार, गीता को कहानी और पाठ के रूप में पेश किया जाएगा- जिसका मूल्यांकन भी कक्षा 6-8 में किया जाएगा.
शिक्षा सचिव विनोद राव ने को कहा, ‘उदाहरण के लिए कुछ अध्याय जैसे कि महात्मा गांधी, विनोबा भावे या अन्य महान व्यक्तियों ने भगवद गीता के बारे में क्या कहा है. यह गुजराती जैसे मुख्य माध्यम का हिस्सा होगा न कि वैकल्पिक विषय. इस प्रकार गुजराती विषय की परीक्षा में गांधी की गीता की व्याख्या पर एक प्रश्न हो सकता है.’
उन्होंने कहा कि गीता पाठ और कहानी सुनाना भी स्कूल की सभाओं का हिस्सा होगा. इसके अतिरिक्त, पाठ पर पाठ्येतर गतिविधियां- जैसे वाद-विवाद, निबंध-लेखन, नाटक, ड्राइंग और क्विज़ – सरकारी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में शुरू किए जाएंगे.
इंडिया टुडे के मुताबिक, भगवद गीता को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने के फैसले का कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ने स्वागत किया है.
इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता हेमंग रावल ने कहा, ‘हम श्रीमद् भगवद गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने के निर्णय का स्वागत करते हैं, लेकिन गुजरात सरकार को भी श्रीमद भगवद गीता से ही सीखने की जरूरत है.’
रावल ने कहा, ‘भगवद गीता स्पष्ट रूप से कहती है कि किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए, आपको पहले उस स्थिति को स्वीकार करना होगा. गुजरात में शिक्षा की वर्तमान स्थिति क्या है? कुल 33,000 स्कूलों में से केवल 14 स्कूल ए-प्लस ग्रेड स्कूल हैं. 18,000 तक शिक्षकों के पद खाली हैं और 6,000 स्कूल बंद हैं.’
रावल ने कहा, ‘गुजरात में स्कूल छोड़ने वालों की संख्या सबसे अधिक है और कई छात्र कक्षा 8 तक पढ़ना-लिखना भी नहीं जानते हैं. उम्मीद है कि सरकार उनके लिए भी कुछ करेगी.’
गुजरात आप के प्रवक्ता योगेश जादवानी ने राज्य सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, ‘हम गुजरात सरकार के फैसले का स्वागत करते हैं. इससे छात्रों को फायदा होगा.’
पाठ्यक्रम में गीता को शामिल करने से पहले विशेषज्ञों से चर्चा करेगी कर्नाटक सरकार
गुजरात के स्कूली पाठ्यक्रम में भगवद गीता को शामिल किए जाने के फैसले के बाद कर्नाटक के माध्यमिक शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने शुक्रवार को कहा कि ऐसा कोई भी निर्णय करने से पहले राज्य सरकार शिक्षाविदों के साथ चर्चा करेगी.
नागेश ने संवाददाताओं से कहा, ‘गुजरात में नैतिक विज्ञान को पाठ्यक्रमों में तीन से चार चरणों में शामिल करने फैसला किया गया है. पहले चरण में वे भगवद गीता को शामिल करेंगे. यह बात मेरे संज्ञान में आई है. हम नैतिक विज्ञान को पाठ्यक्रम में शामिल करने के संदर्भ में मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई से चर्चा करने के बाद कोई फैसला करेंगे.’
मंत्री ने दावा किया कि बच्चों के बीच सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण हुआ है. उनका कहना था कि बहुत सारे लोगों ने मांग की है कि नैतिक विज्ञान की पढ़ाई शुरू की जाए.
नागेश के अनुसार, पहले सप्ताह में एक कक्षा नैतिक विज्ञान की होती थी जिसमें रामायण और महाभारत से संबंधित अंश पढ़ाए जाते थे.
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी भी अपने बचपन की शिक्षा का श्रेय रामायण और महाभारत को देते थे. जब वह बड़े हुए तो राजा हरिश्चंद्र का उनके जीवन पर बहुत बड़ा असर हुआ.
मंत्री ने कहा कि उन चीजों को पाठ्यक्रम में शामिल करना हमारा कर्तव्य है जिनका समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, नागेश ने कहा कि हालांकि, यह फैसला शिक्षाविदों पर छोड़ दिया जाएगा कि क्या पेश किया जाना चाहिए.
मंत्री ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि बच्चों को भगवद गीता नहीं सिखाई जानी चाहिए क्योंकि एसएम कृष्णा मुख्यमंत्री रहते हुए मुझसे कहते थे कि वह हर रात भगवद गीता पढ़ते हैं, जो उनकी ताकत थी.’
उन्होंने कहा, ‘भगवद गीता, रामायण, महाभारत या ईसा मसीह की कहानियां, बाइबिल और कुरान में अच्छी शिक्षाओं को पेश करने के बारे में विशेषज्ञ जो कुछ भी कहते हैं, उसे बरकरार रखा जा सकता है.’
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने कहा कि उन चीजों को और महिमामंडित करने की जरूरत नहीं है, जो पहले से ही पाठ्यपुस्तकों में हैं.
उन्होंने कहा, ‘विभिन्न धर्मों की धार्मिक प्रथाओं के बारे में जानने में कुछ भी गलत नहीं है. हम देखेंगे कि वे (भाजपा सरकार) शिक्षा प्रणाली में क्या सामग्री लाना चाहते हैं. पाठ्यपुस्तकों में विभिन्न धर्मों की सामग्री होती है. मुझे नहीं लगता कि नई चीजों का महिमामंडन करने की कोई जरूरत नहीं है.’
उन्होंने रेखांकित किया कि भाजपा एक नया विचार पेश नहीं कर रही है. शिवकुमार ने कहा, ‘मुख्यमंत्री केंगल हनुमंतैया ने भगवद गीता से संबंधित पुस्तकों को दो रुपये में वितरित किया था. ये लोग (कर्नाटक में भाजपा सरकार) कुछ नया नहीं कर रहे हैं. उन्हें इसका श्रेय लेने की कोई आवश्यकता नहीं है.’
इसके अलावा, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का पूरी तरह से विरोध करते हुए कहा कि नीति की आवश्यकता नहीं थी.
उन्होंने कहा, ‘राज्य और देश में एनईपी की कोई जरूरत नहीं है. लोग पहले से ही पढ़े-लिखे और जानकार हैं. नीति को बदलने के लिए कोई परिस्थिति नहीं है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)