जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ने इन शोधार्थियों से इस आधार पर अपना शोध पर्यवेक्षक बदलने को कहा कि उनका शोध पर्यवेक्षक तीन साल से भी कम समय में सेवानिवृत्त हो जाएगा. इन शोधकर्ताओं ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि विश्वविद्यालय का यह फैसला अवैध, अनावश्यक और दुर्भावनापूर्ण है.
नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के दो शोधार्थियों ने विश्वविद्यालय के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया है.
दरअसल विश्वविद्यालय ने इन शोधार्थियों से इस आधार पर अपना शोध पर्यवेक्षक (Research Supervisor) बदलने को कहा कि उनका शोध पर्यवेक्षक तीन साल से भी कम समय में सेवानिवृत्त हो जाएगा.
इन शोधकर्ताओं ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि विश्वविद्यालय का यह फैसला अवैध, अनावश्यक और दुर्भावनापूर्ण है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ये दोनों छात्र अखिलेश रावत और ओम प्रकाश स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम्स साइंसेज (एससीएंडएसएस) में एमफिल-पीएचडी के चौथे वर्ष के छात्र हैं.
इन छात्रों ने 2018 में दाखिला लिया था और उस समय प्रोफेसर राजीव कुमार को इनका शोध पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया था.
पिछले साल सितंबर में डीन ने मौखिक रूप से इन्हें अपना पर्यवेक्षक बदलने को कहा था, लेकिन इस साल जनवरी में इन्हें लिखित निर्देश देकर ऐसा करने को कहा गया और बाद में 28 फरवरी को रेक्टर ने इसकी पुष्टि की.
अब इन दोनों छात्रों ने अपने रेक्टर और एससीएंडएसएस के डीन के जरिये जेएनयू के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया है. पहली सुनवाई के बाद जस्टिस रेखा पल्ली ने 11 मार्च को लिखित आदेश में विभिन्न पक्षों को नोटिस जारी किया था.
हाईकोर्ट के समक्ष याचिका में दोनों शोधार्थियों ने कहा कि जेएनयू ने शोध पर्यवेक्षक में बदलाव के लिए अध्यादेश के क्लॉज 6.2 का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया, ‘संबंधित सेंटर या स्कूल/विशेष केंद्रों को शोध पर्यवेक्षक के तौर पर किसी सेंटर या स्कूल/विशेष केंद्र को शोध पर्यवेक्षक के रूप में फैकल्टी के किसी पूर्णकालिक नियमित सदस्य (जिसकी आयु अगले तीन शैक्षणिक वर्षों तक सेवानिवृत्ति की उम्र तक नहीं पहुंचे.) की ही अनुशंसा करनी चाहिए. कुमार को मार्च 2024 में सेवानिवृत्त होना है.’
हालांकि, इन छात्रों का दावा है कि जब कुमार को पर्यवेक्षक बनाया गया तो उस समय उनकी उम्र सेवानिवृत्ति की तारीख (31 मार्च 2014) से पांच साल दूर थी और इस तरह यह क्लॉज मौजूदा मामले पर लागू नहीं होता.
याचिका में कहा गया, ‘पीएचडी कार्यक्रम के दौरान शोध पर्यवेक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, जो उम्मीदवारों का तालमेल, शोध की दिशा और मार्गदर्शन की निरंतरता पर अत्यधिक निर्भर होती है. प्राथमिक पर्यवेक्षक के तौर पर एक नए शख्स की नियुक्ति से शोध को पूरा करने में याचिकाकर्ताओं की क्षमता में बाधा उत्पन्न होगी. याचिकाकर्ताओं को उनकी छात्रवृत्ति खोने का भी खतरा है.’