आपके हाथ की लकीरों में ही भारत की क़िस्मत की लकीर है. और जिस दिन भारत की क़िस्मत चमक गई, उस दिन हम सब भारतीयों की क़िस्मत एक साथ चमक जाएगी.
अगर आप 80 या 90 के दशक में बड़े हुए थे तो आपके मोहल्ले में या पास की कॉलोनी में किसी न किसी की लॉटरी जरूर लगी होगी. अक्सर उन दिनों, ये अफवाह सुनने में आती थी कि फलां-फलां के चाचा के भतीजे के साले के दोस्त के बड़े भाई की लॉटरी लग गई.
आज वायर में ये आर्टिकल पढ़ते ही एहसास हुआ कि वो सारी अफवाहें सच थीं. उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि आज भी लोगों की लॉटरी लगती है.
बचपन में एक पड़ोसी भैया लॉटरी खेलते थे. मेरे घर के बाहर ही एक लॉटरी वाला एक छोटी सी टेबल पर टिकट सजा कर लॉटरी बेचता था. मैं छोटा था, भैया ने मुझे अपने पास बुलाया और मुझसे पूछा 0-9 के बीच एक नंबर चुन ले. मैंने कहा 5.
लॉटरी वाला बोला 5 नंबर तो कल ही निकला था. पर भैया ने उसको कहा बच्चे के मुंह से 5 निकला है, मैं आज 5 ही खेलूंगा. उन्होंने दस टिकट जो 5 नंबर पर खत्म होते थे खरीद लिए. शाम को जब में घर के बाहर क्रिकेट खेल रहा था.
भैया हमारे पास आये, उनके हाथ में नारंगी वाली टॉफी का पूरा पैकेट था, हमने जिंदगी में कभी इतनी सारी टॉफी नहीं देखी थी. हम सारे बच्चों ने अगले आधे घंटे में पूरा पैकेट खत्म कर दिया. साथ ही उस दिन हम सारे बच्चों को लॉटरी की ताकत पे यकीन हो गया था. ईमानदारी से जल्दी पैसे कमाने का बेहतरीन तरीका था.
लेकिन बड़े होते-होते, लॉटरी ने अपनी चमक खो दी. जिंदगी की सच्चाई ने मुझे ये समझा दिया कि ईमानदारी के 100 रुपयों के लिए भी बड़ी मेहनत करनी पड़ती है. अब या तो यूपीए वालों जैसे करप्शन करो या फिर आराम से गरीबी की जिंदगी काटो.
लेकिन जो अमित शाह जी के बेटे जय अमित शाह जी ने उम्मीद जगाई है लगता है मैं भी लॉटरी खेलने लगूं. मोदी जी के पीएम बनने के बाद से जो जय अमित शाह भाई ने 16,000 गुना की तरक्की की है. उसने बचपन की लॉटरी की याद दिला दी.
अब आप लोग बोलेंगे मैं इसे लॉटरी क्यों बोल रहा हूं? ऐसा मैं इसलिए बोल रहा हूं क्योंकि बीजेपी वाले करप्शन नहीं करते हैं. मैं वापस दोहराता हूं ‘बीजेपी वाले करप्शन नहीं करते हैं.’ और क्योंकि मेरे पास इस 16,000 गुना वाली तरक्की के लिए कोई और शब्द नहीं है तो सोच समझ के मैंने फैसला लिया मैं इसे ‘लॉटरी’ बोलूंगा.
तो आइये मैं आपको समझाता हूं, ये लॉटरी कैसे है. क्योंकि दोनों में एक मौलिक समानता है, दोनों ‘टिकट’ के जरिये खेली जाती है. एक लॉटरी का टिकट है और दूसरा सीट का टिकट. जितनी बड़ी सीट हो उतनी बड़ी लॉटरी. चाहे पार्षद हो, चाहे एमएलए, चाहे एमपी, मामला टिकट का है.
आज हम क्योंकि 16,000 गुना वाली तरक्की की बात कर रहे हैं तो भारत की सबसे बड़ी लॉटरी की बात करते हैं, एमपी के टिकट की लॉटरी. ये लोकतंत्र की लॉटरी है. यहां कुछ टिकट बंटते है, कुछ खरीदे जाते हैं, कुछ हथियाए जाते हैं. जिसका टिकट जीत जाता है उसे व्यक्तिगत तौर पर तो कई फायदे होते ही हैं, पर उसके आसपास वालों की भी चांदी हो जाती है.
ये नगालैंड या गोवा टाइप की स्टेट लॉटरी नहीं है, ये है हमारे गणतंत्र की लॉटरी है. अभी तीन-चार साल पहले तक लोग खुल कर भ्रष्टाचार को भ्रष्टाचार कहते थे. पर अब शायद 70 की नौकरी के बाद अब इस शब्द को रिटायर कर दिया गया है.
2014 में बड़ी धूमधाम से इसे फेयरवेल पार्टी दी गई, उसके बाद से वो एक वृद्ध आश्रम में रह रहा है. आखिरी ख़बर ये थी दिन भर पाठ करके अपने कर्मों का प्रायश्चित करता है. पर अब क्योंकि भ्रष्टाचार की जगह खाली हुई थी, वहां लॉटरी को नौकरी मिली.
अब जय अमित शाह भाई को देख लीजिये, उनकी टेंपल एंटरप्राइज नाम की एक कंपनी का राजस्व साल 2014-15 में सिर्फ 50,000 था. लेकिन सिर्फ एक साल में ये बढ़ कर साल 2015-16 में 80.2 करोड़ हो गया. मेरे पास इस तरह की तरक्की की ना कोई सफाई है ना कोई व्याख्या है.
एक और खास बात है, ये टेंपल एंटरप्राइज, कृषि उत्पादों की बिक्री से पैसा कमाती है. अब सोचिये, आपको पता था कि किसानी और उस से संबंधित कामों में इतना पैसा है? काश हमारे किसान भाइयों को भी ये बात पता होती, तो आज कोई किसान आत्महत्या नहीं करता.
तीसरी बात और है. और ये समझदार को इशारा काफी वाली बात है. 2016 अक्टूबर में, कंपनी भयानक घाटों के चलते बंद कर दी जाती है. वो कंपनी जिसने पिछले साल, सिर्फ एक साल में 80 करोड़ डुबाये थे.
वैसे शायद इसमें किसी को ये बताने की जरूरत नहीं है कि कुछ दिन बाद नवम्बर में नोटबंदी की जाती है. जब पूरा भारत लाइनों में खड़ा गुलाबी ठंड में धूप सेंक रहा था.
और चौथी बात, ये कंपनी आखिर क्या थी? शायद किसी का लौंडे का नाकाम इश्क थी. बहुत दिन अकेला घूमा, फिर एक दिन किसी लड़की से एकतरफा इश्क हुआ. शायद लड़की ने एक दो बार कैंटीन में बात भी कर ली. उसका बड़ा पीछा किया, लव लेटर लिखे जो कभी भेजे नहीं.
फिर अहसास हुआ कि उसका तो पहले से बॉयफ्रेंड है और फिर इश्क की सारी उम्मीद छोड़कर कंपनी बंद कर दी. 2012 के बाद से हमने कई शेल कंपनियों के बारे में पढ़ा है. ये कंपनियां न कुछ बेचती है, न उनमे कोई काम करता है, अचानक उनमे कहीं से पैसे आने लगते हैं और फिर वो घाटा दिखा कर बंद कर दी जाती हैं. मुझे इस तरह की दुनिया के बारे में ज्यादा पता नहीं है पर, ये इस सौदे में शेल कंपनी की बू जरूर है.
पर इन ऊपर दिए हुए चार प्वाइंट्स पर तो जिरह-बहस होती रहेगी. और वैसे भी किसी को दोषी या निर्दोषी ठहराना न्यायालय का काम है, हमारा नहीं. हम तो बस इशारा कर सकते हैं, वो हमने कर दिया है. लेकिन वायर पर ख़बर ब्रेक होने के बाद कुछ नई चीजें देखने को मिली हैं, जो कि बात करने लायक हैं.
बीजेपी के सबसे कट्टर सपोर्टरों में भी, इस ख़बर के बाद मैंने एक अजीब सी बौखलाहट देखी. और ये वो नहीं है, जो सोचते हैं, ये सब सोचने वाले हैं. ये अंधभक्त की कैटेगरी में नहीं हैं. जब इनसे बहस करो तो ये तार्किक बहस करते हैं. और जिस चीज ने इनको सबसे ज्यादा आहत किया वो बताने लायक है. क्योंकि वो मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकता था.
और वो चीज थी, माननीय पीयूष गोयल जी का प्रेस कॉन्फ्रेंस करके, जय अमित शाह की तरफ से सफाई देना. मैंने इनमे से एक से पूछा: ‘भाई, ये तो नॉर्मल सी बात है, कांग्रेस वाले भी वाड्रा के लिए करते थे.’
तो उनका कहना था, यही तो सबसे बड़ी दुख की बात है. आज बीजेपी और कांग्रेस में हमें फर्क ही नज़र नहीं आ रहा है. उनके हिसाब से, बाकी सब तो हुआ सो हुआ. पर पीयूष गोयल का प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सफाई देना, उनके लिए सबसे बड़ा कुकर्म था.
मैंने थोडा उनसे, छेड़ के पूछा: ‘यार तुम्हे पैसे की हेराफेरी से प्रॉब्लम नहीं है, पर इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से है?’ तो उनमे से एक नाराज होकर बोला, ‘अबे कोई घपला प्रूव हो गया क्या? किसी को कोर्ट में सजा हो गई क्या?’ मैंने कहा,‘नहीं’.
‘तो फिर, सिर्फ आरोप है ना?’. ‘हमें कांग्रेस से सिर्फ ये प्रॉब्लम नहीं थी कि वहां बहुत करप्शन है, हमें कांग्रेस से इस बात की ज्यादा प्रॉब्लम थी, वहां कुछ लोग बाकी लोगों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. हमें बीजेपी में लगता था, सब बराबर हैं’. मैं इस बात को एक दो चुटकियां लेकर और आगे बड़ा सकता था, पर मैंने चुप रहने का फैसला किया और जले पे नमक नहीं छिड़का.
दूसरी बात जो सामने आई वो भी अपने आप में अनोखी है, दिन भर जिस बात पर सोशल मीडिया में आग लगी हुई थी. रात को मेनस्ट्रीम मीडिया ने जैसे अनदेखी कर दी. एक दो चैनल्स को छोड़कर कहीं उसका ज़िक्र तक नहीं था. इतनी बड़ी ख़बर की कैबिनेट मिनिस्टर पीयूष गोयल जी को हड़बड़ी में प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी और उसका ज़िक्र तक नहीं. ये तो ऐसी बात हो गई कि ‘घर के चौक में, जहां सब लोग बैठे थे, मोर नाचा, पर किसी ने नहीं देखा.’
ये तो हो गई चकल्लस, अब काम की बात करते हैं. अपनी लॉटरी वाली बात. देखिये अमित शाह जी पहले ही टेक्निकल रीज़न का ज़िक्र कर चुके हैं, जिस पर मैंने बुरा मान कर एक लंबा आर्टिकल फेंट दिया था. लेकिन अब मुझे उनकी टेक्निकल रीज़न वाली बात ज्यादा समझ आ रही है.
गरीबों की गरीबी के पीछे चाहे कुछ टेक्निकल रीज़न हो या न हो, पर कुछ अमीरों की अमीरी के पीछे टेक्निकल रीज़न जरूर है. और ये हमारी लोकसभा की जो औपचारिक लॉटरी का टिकट है. वो एक बहुत बड़ा टेक्निकल रीज़न है. ये 1 के 16,000 और 100 के 16,00,000 साल भर में कर सकता है.
तो आप सब लोगों से अपील है, 2019 में 545 लोक सभा सीटों की लॉटरी खुलेगी. आप सब लोग थोड़ा-थोड़ा इन्वेस्ट करें. क्या पता आपका वाला टिकट लॉटरी जीत जाए. ये सारे टिकट असल में भारत की क़िस्मत खोलने के लिए थे, लेकिन 2019 तक, 72 साल हो जायेंगे. और इन 72 साल में बहुतों की क़िस्मत खुली है. और उनके आस-पास के लोगों की भी. सोच-समझ कर इन टिकटों में इन्वेस्ट करें. क्या पता आप की क़िस्मत में भी 16,000 गुना वाली तरक्की लिखी हो.
अगली बार वोट करें तो याद रखें कि ये लॉटरी भारत की क़िस्मत खोलने के लिए थी और आपका सही वोट, असल में भारत की क़िस्मत खोल सकता है. आपके हाथ की लकीरों में ही भारत की क़िस्मत की लकीर है. और जिस दिन भारत की क़िस्मत चमक गई, उस दिन हम सब भारतीयों की क़िस्मत एक साथ चमक जाएगी.
(दाराब फ़ारूक़ी पटकथा लेखक हैं और फिल्म डेढ़ इश्किया की कहानी लिख चुके हैं.)