पत्नी द्वारा लगाए गए बलात्कार के आरोप पर दायर चार्जशीट के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 375 के तहत मिले अपवाद का हवाला देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट पहुंचे एक शख़्स को कोर्ट ने राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि क़ानून से मिली कोई भी छूट इतनी असीमित नहीं हो सकती कि यह अपराध करने का लाइसेंस बन जाए.
बेंगलुरु: एक महत्वपूर्ण निर्णय में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि एक व्यक्ति केवल इसलिए बलात्कार के मुकदमे से बच नहीं सकता क्योंकि पीड़िता उसकी पत्नी है.
कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के तहत मिले अपवाद के बावजूद पति के खिलाफ बलात्कार के आरोप मानते हुए कहा कि विवाह संस्था किसी महिला पर हमला करने के लिए पुरुष को कोई विशेषाधिकार या क्रूरता का लाइसेंस नहीं दे सकती है. अगर यह किसी पुरुष के लिए दंडनीय है तो यह हर पुरुष के लिए दंडनीय होना चाहिए भले ही वह पति ही क्यों न हो.
अदालत ने सुझाव दिया कि सांसदों को ‘चुप्पियों’ पर ध्यान देना चाहिए और क़ानून में असमानताओं को दूर करना चाहिए.
अदालत एक ऐसे शख्स की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके खिलाफ पुलिस ने बलात्कार सहित कई अपराधों के लिए आरोपपत्र दायर किया था.
उनकी पत्नी ने उन पर शादी की शुरुआत से ही उन्हें ‘यौन रूप से गुलाम’ (सेक्स स्लेव) बनाने का आरोप लगाया है, जिस पर आरोपी पति का कहना है कि आईपीसी की धारा 375 में दिए गए अपवाद के चलते वैवाहिक बलात्कार एक स्वीकृत प्राप्त अपराध नहीं है.
पीठ ने याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं. इस व्यक्ति पर बलात्कार, क्रूरता के साथ ही पॉक्सो अधिनियम के तहत भी आरोप हैं.
जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता पति के खिलाफ बलात्कार के आरोप को हटाने से इनकार करते हुए कहा सदियों पुरानी उस घिसी-पिटी सोच को मिटा दिया जाना चाहिए कि पति अपनी पत्नी के शासक हैं, उनके शरीर, मन और आत्मा के मालिक है.
लाइव लॉ के अनुसार उच्च न्यायालय ने कहा, ‘कोई क्रूर यौन हमला या पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना पति की ओर से की गई यौन प्रताड़ना को कुछ और नहीं बस रेप कहा जा सकता है. किसी पति द्वारा किए जा रहे ऐसे कृत्य का पत्नी की मानसिक स्थिति पर गंभीर असर होगा, इसका उस पर मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दोनों ही प्रकार का असर होगा.’
अदालत ने आगे कहा, ‘पति के इस प्रकार के कृत्य पत्नियों की आत्मा को आघात पहुंचाते हैं. इसलिए अब कानून निर्माताओं के लिए जरूरी है कि वे खामोशी की आवाज को सुनें.’
हालांकि हाईकोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया है कि वह इस बात पर चर्चा नहीं कर रहा है कि क्या वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए, अदालत ने कहा कि यह मसला विधायिका के विचार करने के लिए है.
कोर्ट ने कहा, ‘यह अदालत केवल पति पर अपनी पत्नी पर द्वारा लगाए गए बलात्कार का आरोप पर बात कर रही है.’
पीठ ने कहा, ‘यदि बलात्कार के आरोप को कथित अपराधों के खंड से हटा दिया जाता है, तो यह इस मामले के विशेष तथ्यों के आलोक में शिकायतकर्ता पत्नी के साथ बहुत अन्याय होगा और याचिकाकर्ता की दैहिक इच्छाओं को लाभ पहुंचाने के समान होगा. इसलिए मेरे विचार में जो मुद्दा उठा है, वह अभियोजन के पक्ष में है और याचिकाकर्ता के खिलाफ है.’
अदालत ने कहा कि पति को हमला या बलात्कार करने पर प्राप्त छूट ‘असीमित नहीं हो सकती’ क्योंकि किसी भी कानून में मिलने वाली कोई भी छूट इतनी असीमित नहीं हो सकती कि यह समाज के खिलाफ अपराध करने का लाइसेंस बन जाए.
अदालत ने पत्नी की इस शिकायत पर कि पति ने उनकी बेटी के सामने शारीरिक संबंध बनाने को मजबूर किया, पॉक्सो अधिनियम के तहत भी आरोप तय करने की इजाज़त दी है.
अदालत का यह आदेश ऐसे समय पर आया है जब देश की कई अदालतें मैरिटल रेप के मामलों में पति को प्राप्त छूट के खिलाफ याचिकाएं सुन रही हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)