गृह मंत्रालय के अनुसार, नगालैंड के सात ज़िलों के 15 थाना क्षेत्र, मणिपुर के छह ज़िलों में 15 थाना क्षेत्र और असम के 23 ज़िलों में पूरी तरह से और एक ज़िले में आंशिक रूप से आफ़स्पा हटाया जा रहा है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा उग्रवाद ख़त्म करने के लिए किए गए कई समझौतों के फलस्वरूप आफ़स्पा के तहत आने वाले इलाकों को घटाया जा रहा है.
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बृहस्पतिवार को ऐलान किया कि दशकों बाद एक अप्रैल से नगालैंड, असम और मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आफस्पा) के तहत आने वाले अशांत क्षेत्रों को घटाया जा रहा है.
गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि इस फैसले का मतलब यह नहीं है कि उग्रवाद प्रभावित इन राज्यों से आफस्पा को पूरी तरह से हटाया जा रहा है, बल्कि यह कानून तीन राज्यों के कुछ इलाकों में लागू रहेगा.
गृह मंत्रालय के अनुसार, नगालैंड के सात जिलों के 15 पुलिस थाना क्षेत्रों, मणिपुर के छह जिलों में 15 पुलिस थाना क्षेत्र और असम के 23 जिलों में पूरी तरह से और एक जिले में आंशिक रूप से आफस्पा हटाया जा रहा है.
करीब तीन महीने पहले केंद्र ने नगालैंड से आफस्पा को हटाने की संभावना को देखने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की थी. नगालैंड में पिछले साल दिसंबर में सेना ने ‘गलत पहचान’ के मामले में 14 आम लोगों को मार दिया था.
शाह ने ट्विटर पर कहा, ‘एक अहम कदम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्णायक नेतृत्व में भारत सरकार ने नगालैंड, असम और मणिपुर में दशकों बाद सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून के तहत आने वाले अशांत इलाकों को घटाने का फैसला किया है.’
In a significant step, GoI under the decisive leadership of PM Shri @NarendraModi Ji has decided to reduce disturbed areas under Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) in the states of Nagaland, Assam and Manipur after decades.
— Amit Shah (@AmitShah) March 31, 2022
गृह मंत्री ने कहा कि सुरक्षा में सुधार, निरंतर प्रयासों के कारण तेज़ी से हुए विकास, मोदी सरकार द्वारा उग्रवाद खत्म करने के लिए किए गए कई समझौतों और पूर्वोत्तर में स्थायी शांति के फलस्वरूप आफस्पा के तहत आने वाले इलाकों को घटाया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अटूट प्रतिबद्धता की वजह से दशकों से उपेक्षा झेल रहा हमारा पूर्वोत्तर क्षेत्र अब शांति, समृद्धि और अभूतपूर्व विकास का गवाह बन रहा है. मैं पूर्वोत्तर के लोगों को इस अहम मौके पर बधाई देता हूं.’
पूर्वोत्तर के इन तीन राज्यों में दशकों से आफस्पा लागू है, जिसका मकसद क्षेत्र में उग्रवाद से निपटने के लिए तैनात सुरक्षा बलों की मदद करना है.
आफस्पा सुरक्षा बलों को अभियान चलाने और बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की शक्ति प्रदान करता है और अगर सुरक्षा बलों की गोली से किसी की मौत हो जाए तो भी यह उन्हें गिरफ्तारी और अभियोजन से संरक्षण प्रदान करता है.
इस कानून के कथित ‘कड़े’ प्रावधानों के कारण समूचे पूर्वोत्तर और जम्मू कश्मीर से इसे पूरी तरह से हटाने के लिए प्रदर्शन होते रहे हैं.
वर्ष 2015 में त्रिपुरा से और 2018 में मेघालय से आफस्पा को पूरी तरह से हटा दिया था.
समूचे असम में 1990 से अशांत क्षेत्र अधिसूचना लागू है. स्थिति में अहम सुधार को देखते हुए एक अप्रैल से असम के 23 जिलों से आफस्पा पूरी तरह हटाया जा रहा है, जबकि एक जिले से यह आंशिक रूप से खत्म किया जा रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, असम में आफ्स्पा कार्बी आंगलोंग, पश्चिम कार्बी आंगलोंग, दीमा हसाओ, डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, चराईदेव, शिवसागर, गोलाघाट, जोरहाट और कछार के लखीपुर उपखंड के जिलों में लागू रहेगा.
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा कि राज्य के 78,438 वर्ग किमी के भौगोलिक क्षेत्र में से 31,724.94 वर्ग किमी ‘अशांत क्षेत्र’ की स्थिति में है. उन्होंने कहा कि यह अधिनियम ऊपरी असम और पहाड़ी जिलों में लागू रहेगा.
उन्होंने कहा, ‘ऊपरी असम में उल्फा-आई अभी भी सक्रिय है और हमने उस क्षेत्र में अन्य उग्रवादी समूहों की गतिविधियों पर भी ध्यान दिया है. कार्बी आंगलोंग और दीमा हसाओ के पहाड़ी जिलों में हमने कार्बी समूहों के साथ एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन दिमासा उग्रवादी संगठन (दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी) के साथ हमारी बातचीत एक उन्नत चरण में है. जिस क्षण हम डीएनएलए के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर करेंगे, हम पहाड़ी जिलों से आफस्पा को वापस लेने में सक्षम होंगे.’
शर्मा ने कहा कि कछार जिले के लखीपुर में हमार (Hmar) आतंकवादी समूह के अलावा कई अन्य उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं.
इंफाल नगरपालिका के क्षेत्र को छोड़कर पूरे मणिपुर में 2004 से आफस्पा लागू है. बृहस्पतिवार के फैसले के बाद मणिपुर के छह जिलों के 15 थाना क्षेत्रों को एक अप्रैल से अशांत क्षेत्र अधिसूचना से बाहर कर दिया जाएगा.
मणिपुर में इंफाल घाटी के जिरीबाम, थौबल, बिष्णुपुर, काकचिंग, इंफाल पूर्व और इंफाल पश्चिम जिलों के 15 पुलिस स्टेशनों से अशांत क्षेत्र का दर्जा आंशिक रूप से हटा दिया गया है. यह अधिनियम पहाड़ी जिलों में लागू है.
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा, ‘हम अशांत क्षेत्रों के टैग को पूरी तरह से हटाने के लिए केंद्र पर दबाव बनाना जारी रखेंगे.’ उन्होंने कहा कि राज्य इरोम शर्मिला को आफस्पा के खिलाफ उनके संघर्ष के लिए भी सम्मानित करेगा.
मणिपुर की कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला ने कानून को हटवाने के लिए 16 साल तक भूख हड़ताल की. उन्होंने नौ अगस्त 2016 को अपनी भूख हड़ताल खत्म कर दी थी. उन्हें मणिपुर की लौह महिला (Iron Lady) के नाम से जाना जाता है.
आफस्पा 2015 में अरुणाचल प्रदेश के तीन जिलों की असम से लगती 20 किलोमीटर की पट्टी पर और नौ अन्य जिलों के 16 थाना क्षेत्रों में लागू था.
इसका दायरा आहिस्ता-आहिस्ता कम किया गया और अब अरुणाचल प्रदेश के कानून राज्य के सिर्फ तीन जिलों और एक अन्य जिले के दो थाना क्षेत्रों में लागू हैं.
पूरे नगालैंड में 1995 से अशांत क्षेत्र अधिसूचना लागू है. केंद्र सरकार ने चरणबद्ध तरीके से आफस्पा हटाने के लिए गठित समिति की सिफारिशों को मान लिया है.
नगालैंड के सात जिलों के 15 थाना क्षेत्रों से एक अप्रैल से अशांत क्षेत्र अधिसूचना को हटाया जा रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार, नगालैंड के मोन जिले में सेना द्वारा गलत पहचान के कारण नागरिकों की हत्या के बाद गठित एक उच्चस्तरीय समिति की सिफारिश को केंद्र ने स्वीकार कर लिया और 1 अप्रैल से चरणबद्ध तरीके से आफ्स्पा को वापस लेने का निर्णय लिया.
4,138 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से आफ्स्पा हटाया जाएगा, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 25 प्रतिशत है. शामटोर, त्सेमिन्यु और त्युएनसांग जिलों को पूरी तरह से छूट दी गई है, जबकि कोहिमा, मोकोकचुंग, वोखा और लोंगलेंग को आंशिक रूप से आफस्पा से छूट दी गई है.
नगालैंड में बीते दिसंबर में 14 नागरिकों की हत्या ने तानव बढ़ा दिया था जहां लोगों ने आफस्पा को हटाने के लिए कई हफ्तों तक प्रदर्शन किया.
हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव से पहले, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने कहा था कि वह और मणिपुर के लोग चाहते हैं कि आफस्पा को हटाया जाए लेकिन सुरक्षा एजेंसियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को देखना होगा.
गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि 2014 की तुलना में 2021 में पूर्वोत्तर में उग्रवादी घटनाओं में 74 फीसदी की कमी आई है. इसी तरह इस अवधि में सुरक्षा कर्मियों और आम लोगों की मौत होने की घटनाएं भी क्रमश: 60 और 84 फीसदी कम हुई हैं.
प्रधानमंत्री के शांतिपूर्ण और समृद्ध विजन (दृष्टि) को साकार करने के लिए गृह मंत्री ने क्षेत्र के सभी राज्यों के साथ निरंतर आधार पर संवाद किया. इसके बाद, कई चरमपंथी समूहों ने अपने हथियार डाल दिए और संविधान और मोदी सरकार की नीतियों में अपना विश्वास व्यक्त किया.
प्रवक्ता ने बताया कि आज यह सभी लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं और पूर्वोत्तर की शांति एवं विकास में हिस्सा ले रहे हैं. उन्होंने बताया कि पिछले कुछ सालों में करीब सात हजार उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया है.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री समूचे पूर्वोत्तर को चरमपंथ से मुक्त कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
मालूम हो कि पिछले साल चार दिसंबर को मणिपुर के पड़ोसी राज्य नगालैंड के मोन जिले में सेना की एक टुकड़ी द्वारा की गई गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत के बाद पूर्वोत्तर से आफस्पा को वापस लेने की मांग तेज हो गई है.
बीते 19 दिसंबर को नगालैंड विधानसभा ने केंद्र सरकार से पूर्वोत्तर, खास तौर से नगालैंड से आफस्पा हटाने की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया था. प्रस्ताव में ‘मोन जिले के ओटिंग-तिरु गांव में चार दिसंबर को हुई इस दुखद घटना में लोगों की मौत की आलोचना की गई थी.
नगालैंड में हालिया हत्याओं के बाद से राजनेताओं, सरकार प्रमुखों, विचारकों और कार्यकर्ताओं ने एक सुर में आफस्पा को हटाने की मांग उठाई थी.
इन्होंने कहा था कि यह कानून सशस्त्र बलों को बेलगाम शक्तियां प्रदान करता है और यह मोन गांव में फायरिंग जैसी घटनाओं के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)