केंद्र के फैसले का स्वागत करती हूं, लेकिन आफ़स्पा को निरस्त किया जाना चाहिए: इरोम शर्मिला

मानवाधिकार कार्यकर्ता शर्मिला ने कहा है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है. हम इस औपनिवेशिक क़ानून को कब तक बरक़रार रखेंगे? उग्रवाद से लड़ने के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद किए जाते हैं, जिनका उपयोग पूर्वोत्तर के समग्र विकास के लिए किया जा सकता है. आफ़स्पा प्रगति की राह में एक रोड़ा है.

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इरोम शर्मिला. (फोटो: द वायर/अखिल कुमार)

मानवाधिकार कार्यकर्ता शर्मिला ने कहा है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है. हम इस औपनिवेशिक क़ानून को कब तक बरक़रार रखेंगे? उग्रवाद से लड़ने के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद किए जाते हैं, जिनका उपयोग पूर्वोत्तर के समग्र विकास के लिए किया जा सकता है. आफ़स्पा प्रगति की राह में एक रोड़ा है.

इरोम शर्मिला. (फोटो: द वायर/अखिल कुमार)

कोलकाता: सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (आफस्पा) को निरस्त करने की मांग को लेकर 16 साल तक भूख हड़ताल पर रहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने असम, नगालैंड और मणिपुर में इस कानून के दायरे में आने वाले क्षेत्रों की संख्या कम करने के केंद्र के फैसले का स्वागत किया है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह ‘कठोर, औपनिवेशिक कानून’ पूरी तरह से वापस लिया जाना चाहिए.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीते 31 मार्च को पूर्वोत्तर के उन तीन राज्यों में ‘अशांत क्षेत्रों’ की संख्या में कमी की घोषणा की, जहां सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम, 1958 लागू है.

गृह मंत्रालय के अनुसार, नगालैंड के सात जिलों के 15 पुलिस थाना क्षेत्रों, मणिपुर के छह जिलों में 15 पुलिस थाना क्षेत्र और असम के 23 जिलों में पूरी तरह से और एक जिले में आंशिक रूप से आफस्पा हटाया जा रहा है.

‘मणिपुर की लौह महिला’ के रूप में मशहूर शर्मिला ने आफस्पा को ‘दमनकारी कानून’ करार दिया और कहा कि यह कभी भी उग्रवाद से निपटने का समाधान नहीं रहा है.

उन्होंने टेलीफोन पर समाचार एजेंसी ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार के दौरान कहा, ‘मैं आफस्पा के दायरे में आने वाले क्षेत्रों की संख्या कम करने के केंद्र के फैसले का स्वागत करती हूं. यह सही दिशा में उठाया गया एक सकारात्मक कदम है. लेकिन कानून को निरस्त किया जाना चाहिए, क्योंकि यह कोई समाधान नहीं है.’

शर्मिला ने कहा, ‘भारत एक लोकतांत्रिक देश है. हम इस औपनिवेशिक कानून को कब तक बरकरार रखेंगे? लोग इसका खामियाजा क्यों भुगतें? उग्रवाद से लड़ने के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद किए जाते हैं, जिनका उपयोग पूर्वोत्तर के समग्र विकास के लिए किया जा सकता है. आफस्पा प्रगति की राह में एक रोड़ा है.’

इरोम शर्मिला ने आफस्पा के खिलाफ 16 साल चली अपनी भूख हड़ताल 2016 में समाप्त कर दी थी.

नगालैंड में दिसंबर, 2021 में सेना के जवानों द्वारा गलत पहचान के कारण 14 आम नागरिकों के कथित तौर पर मारे जाने के बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गई थी और लोगों ने आफस्पा हटाने की मांग की थी. लोगों ने आफस्पा को हटाने के लिए कई हफ्तों तक प्रदर्शन किया था. मांग पर विचार करने के लिए केंद्र ने एक उच्चस्तरीय समिति गठित की थी.

शर्मिला ने कहा, ‘मणिपुर में कानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी खराब नहीं है कि आफस्पा लगाया जाए. इसके लागू होने से केवल नौकरशाहों और राजनेताओं को ही लाभ मिलता है. इससे बेरोजगार युवाओं में गलतफहमी पैदा होती है. आम लोग ही इसके शिकार होते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘आप ताकत के दम पर लोगों को नहीं जीत सकते. सरकार को पूर्वोत्तर के लोगों का दिल जीतने की कोशिश करनी चाहिए. एक बार जब आम लोगों और सत्ता में बैठे लोगों के बीच वास्तविक संबंध बन जाएंगे, तो चीजें बेहतर होंगी.’

पूर्वोत्तर के लोगों को देश के अन्य हिस्सों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, यह बात को ध्यान में रखते हुए 2017 में मणिपुर ​विधानसभा का असफल चुनाव लड़ने वाले इरोम शर्मिला ने कहा कि आफस्पा को निरस्त करने से क्षेत्र के लोगों और ‘मुख्य भारत’ के बीच की दूरी भी कम हो जाएगी.

साल 2000 में मणिपुर की राजधानी इंफाल के पास मालोम में एक बस स्टॉप पर सुरक्षा बलों द्वारा 10 नागरिकों को कथित रूप से मार दिए जाने के बाद इरोम ने आफस्पा के खिलाफ अपनी भूख हड़ताल शुरू की थी.

उन्होंने 2016 में इसे समाप्त करने से पहले 16 साल तक शांतिपूर्ण प्रतिरोध जारी रखा था. 50 वर्षीय इस नागरिक अधिकार कार्यकर्ता ने 2017 में शादी की और अब अपने परिवार के साथ दक्षिण भारत में बस गई हैं.

मालूम हो कि उत्तर-पूर्व के तीन राज्यों (मणिपुर, असम, नगालैंड) में उग्रवाद से निपटने के लिए आफस्पा दशकों से लागू है.

आफस्पा सुरक्षा बलों को अभियान चलाने और बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की शक्ति प्रदान करता है और अगर सुरक्षा बलों की गोली से किसी की मौत हो जाए तो भी यह उन्हें गिरफ्तारी और अभियोजन से संरक्षण प्रदान करता है.

मानवाधिकार कार्यकर्ता आरोप लगाते रहे हैं कि अक्सर लोगों को गिरफ्तार करने, घरों पर छापा मारने या यहां तक कि गोली मारने के लिए इस कानून का दुरुपयोग किया जाता रहा है.

इस कानून के कथित ‘कड़े’ प्रावधानों के कारण समूचे पूर्वोत्तर और जम्मू कश्मीर से इसे पूरी तरह से हटाने के लिए प्रदर्शन होते रहे हैं.

वर्ष 2015 में त्रिपुरा से और 2018 में मेघालय से आफस्पा को पूरी तरह से हटा दिया था. अरुणाचल प्रदेश के कानून राज्य के सिर्फ तीन जिलों और एक अन्य जिले के दो थाना क्षेत्रों में लागू हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)