भारत में सरकार के आलोचक मीडिया संगठनों पर दबाव, उत्पीड़न किया जा रहा: अमेरिकी रिपोर्ट

भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर अमेरिकी विदेश विभाग की 'कंट्री रिपोर्ट्स ऑन ह्यूमन राइट्स' रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में ऐसे भी मामले देखे गए हैं, जहां विशेष रूप से पत्रकारों को उनके पेशेवर काम के लिए निशाना बनाया गया या उनका क़त्ल कर दिया गया.

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(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर अमेरिकी विदेश विभाग की ‘कंट्री रिपोर्ट्स ऑन ह्यूमन राइट्स’ रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में ऐसे भी मामले देखे गए हैं, जहां विशेष रूप से पत्रकारों को उनके पेशेवर काम के लिए निशाना बनाया गया या उनका क़त्ल कर दिया गया.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

नई दिल्लीः भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर एक हालिया रिपोर्ट में अमेरिकी विदेश विभाग ने उन कई मामलों को उजागर किया है, जहां प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लंघन किया गया.

रिपोर्ट में कहा गया कि ऐस कई मामले हैं, जहां सरकार ने उसकी आलोचना करने वाले मीडिया संगठनों पर दबाव बनाया या उसे प्रताड़ित किया.

इस रिपोर्ट को उसी दिन जारी किया गया, जब भारत, अमेरिका 2+2 वार्ता समाप्त हुई थी और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा था कि उनका देश भारत में सरकारी अधिकारियों द्वारा मानवाधिकरों के हनन के बढ़ते मामलों पर नजर रखे हुए है.

उन्होंने यह बयान एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिए थे, जिसमें अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शामिल थे.

सिंह और जयशंकर ने उस दिन ब्लिंकन के उस बयान का खंडन नहीं किया था. हालांकि, विदेश मंत्री जयशंकर ने बाद में कहा था कि भारत दरअसल अमेरिका और भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों पर हमले को लेकर चिंतित है.

सालाना कंट्री रिपोर्ट्स ऑन ह्यूमन राइट्स के 2021 संस्करण में अमेरिकी विदेश विभाग ने व्यक्तिगत और नागरिक स्वतंत्रता के उल्लंघन को लेकर अपनी चिंता जताई.

इस रिपोर्ट का भारतीय खंड प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अधिकार के उल्लंघन से जुड़ा हुआ है.

इस रिपोर्ट में व्यवस्थित रूप से उन मामलों को सूचीबद्ध किया गया है, जहां सरकारी और गैर सरकारी कारकों के चलते प्रेस की स्वतंत्रता खतरे में है. रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसे मामले भी हैं, जहां सरकार या सरकार से जुड़े लोगों ने कथित तौर पर सरकार की आलोचना करने वाले मीडिया संगठनों पर दबाव बनाया या उनका उत्पीड़न किया. ऑनलाइन ट्रोलिंग के जरिये भी प्रताड़ित किया गया.

रिपोर्ट में कहा गया कि फ्रीडम हाउस एंड ह्यूमन राइट्स वॉच सहित अंतरराष्ट्रीय निगरानी संगठनों ने भारत में मीडिया के लोकतांत्रिक अधिकारों में गिरावट और उनके लगातार उत्पीड़न का दस्तावेजीकरण किया है.

अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट में कहा गया, ‘ऐसे भी मामले हैं, खासकर राज्यों में, जहां पत्रकारों को उनके पेशेवर काम के चलते मार दिया गया या निहित स्वार्थों के चलते निशाना बनाया गया. जून में उत्तर प्रदेश में एक अखबार कम्पू मेल के पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी की कथित तौर पर अवैध रेत खनन को लेकर उनकी खोजी रिपोर्ट के लिए दो बंदूकधारियों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी. यूनेस्को के महानिदेशक ऑड्रे अजोले ने मामले पर संज्ञान लिया और प्रशासन से ‘गनप्वॉइंट सेंसरशिप’ को खत्म करने को कहा.’

अमेरिकी रिपोर्ट में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन के जिन मामलों का जिक्र किया गया है, उनमें स्टैंडअप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी और चार अन्य लोगों की गिरफ्तारी के मामले शामिल हैं, जिन पर कथित तौर पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगाकर स्टेज पर परफॉर्म नहीं करने दिया गया.

पिछले साल मई में मणिपुरी सामाजिक कार्यकर्ता एरेंड्रो लीचोम्बम को कोविड-19 के इलाज के रूप में गाय के गोबर और गोमूत्र की वकालत करने वाले भाजपा के एक नेता की आलोचना करते फेसबुक पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया था. उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत हिरासत में लेने के दो महीने बाद उनके वकीलों के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद उन्हें जमानत दी गई.

जुलाई 2021 में एक कैथोलिक पादरी फादर जॉर्ज पोन्नैया को फादर स्टेन स्वामी के लिए प्रार्थना सभा में भाषण देने के लिए गिरफ्तार किया गया. एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए वयोवृद्ध और कई बीमारियों से जूझ रहे फादर स्टेन स्वामी की इलाज का इंतजार करते हुए जेल में मौत हो गई थी. फादर जॉर्ज पर ‘प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के खिलाफ कथित तौर पर हेट स्पीच’ का आरोप था. बाद में उन्हें मद्रास हाईकोर्ट ने सशर्त जमानत दी थी.

रिपोर्ट में स्थानीय और राष्ट्रीय स्तरों पर ऐसे सरकारी अधिकारियों को सूचीबद्ध किया गया है, जो शारीरिक उत्पीड़न और हमलों, मालिकों पर दबाव बनाने, स्पॉन्सरों को निशाना बनाने, झूठे मुकदमों को बढ़ावा देने और कुछ क्षेत्रों में संचार सेवाओं जैसे मोबाइल फोन और इंटरनेट को बाधित कर और आवाजाही को अवरुद्ध कर मीडिया संगठनों को डराने-धमकाने में शामिल हैं.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम सूचकांक 2021 में भारत को पत्रकारों के लिए बहुत ही खतरनाक देश बताया गया है.

रिपोर्ट में बताया गया कि इंडिया टुडे के एंकर राजदीप सरदेसाई, नेशनल हेराल्ड की सीनियर कंसल्टिंग एडिटर मृणाल पांडे, कौमी आवाज के संपादक जफर आगा, कारवां के संस्थापक परेश नाथ, संपादक अनंत नाथ, कार्यकारी संपादक विनोद के. जोस और सांसद शशि थरूर पर मामले दर्ज किए गए.

उन पर गणतंत्र दिवस 2021 पर किसानों की ट्रैक्टर रैली के कवरेज को लेकर राजद्रोह का आरोप लगाया गया, जब हिंसक घटनाएं हुईं. उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी से राहत दी.

2021 की शुरुआत में सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और स्ट्रीमिंग सेवाओं को नियंत्रित करने वाले आईटी नियम 2021 अधिसूचित किए.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने चिंता जताई कि इन नियमों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित होगी और कई मीडिया संगठनों ने इन नियमों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की.’

मीडिया संगठनों ने कहा कि आईटी नियम 2021 असंवैधानिक और निजता के अधिकार की गारंटी देने वाले सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले के मानकों के विपरीत हैं.

द वायर  उन संगठनों में से एक है, जिसने सरकार के इन नए आईटी नियमों को चुनौती दी थी.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने आईटी नियमों के प्रावधानों पर आंशिक रोक लगाने का आदेश दिया था. इन नए नियमों के तहत डिजिटल न्यूज वेबसाइटों को त्रिस्तरीय शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने की जरूरत है.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘कोविड-19 के दौरान विशेष रूप से कोरोना की दूसरी लहर के दौरान इससे निपटने को लेकर सरकार की नाकामी को लेकर रिपोर्टिंग करने को लेकर सरकार ने मीडिया समूहों को निशाना बनाया था. जून में उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कोविड-19 लॉकडाउन की आलोचना करने को लेकर एक रिपोर्ट के लिए स्क्रोल की संपादक सुप्रिया शर्मा पर मामला दर्ज किया था. उन पर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था.’

इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन का अनुरोध करने वाले लोगों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए थे. अप्रैल में अपने दादा के लिए ऑक्सीजन का बंदोबस्त करने का प्रयास करने के लिए ट्वीट करने की वजह से 26 साल के एक युवक पर मामला दर्ज किया गया.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चेताया कि राज्यों को सोशल मीडिया पर महामारी के संबंध में अपनी शिकायतों को साझा करने के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए.

रिपोर्ट में कहा गया कि यूपी पुलिस ने 15 जून को ट्विटर, द वायर, पत्रकार राना अयूब, सबा नकवी, ऑल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर, कांग्रेस नेता सलमान निजामी, मस्कूर उस्मानी और समा मोहम्मद पर एक बुजुर्ग मुस्लिम शख्स पर हमले के वीडियो को पोस्ट करने के लिए उन पर सांप्रदायिक अशांति फैलाने का मामला दर्ज किया था.

रिपोर्ट बताती है कि हिंदी मीडिया में विरोध की मुट्ठीभर आवाजों में से एक और देश में हिंदी में दूसरा सर्वाधिक पढ़े जाने वाले हिंदी अखबार दैनिक भास्कर को कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अपनी रिपोर्टिंग के लिए काफी सराहा गया था. अखबार ने गंगा नदी के तट पर बड़ी संख्या में दफ़न किए गए शवों सहित कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सरकार द्वारा मौतों के आंकड़ों को जानबूझकर छिपाने को उजागर किया गया था.

इसके बाद आयकर विभाग ने पिछले साल जुलाई में 32 स्थानों पर दैनिक भास्कर समूह पर छापेमारी की थी.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘सरकारी सूत्रों ने कहा कि ये छापेमारी मीडिया समूह द्वारा कथित तौर पर कर चोरी के परिणामस्वरूप थे. वहीं, मीडिया समूह का दावा है कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान की गई खोजी रिपोर्टिंग के चलते बदले की कार्रवाई के तहत ऐसा किया गया.’

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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