कनाडा के दक्षिण एशियाई प्रवासी समूह ने ‘भारत में मुस्लिमों के नरसंहार के आह्वान’ की निंदा की

कनाडा में दक्षिण एशियाई प्रवासियों के एक समूह ने बयान जारी कर भारत में हाल के महीनों में बढ़ी मुस्लिम विरोधी हिंसा, हिजाब विवाद और रामनवमी के आसपास हुई सांप्रदायिक हिंसा की निंदा की है. उन्होंने मांग की है कि भारत सरकार देश में मुस्लिम और अल्पसंख्यक समुदायों का उत्पीड़न रोके और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखे.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

कनाडा में दक्षिण एशियाई प्रवासियों के एक समूह ने बयान जारी कर भारत में हाल के महीनों में बढ़ी मुस्लिम विरोधी हिंसा, हिजाब विवाद और रामनवमी के आसपास हुई सांप्रदायिक हिंसा की निंदा की है. उन्होंने मांग की है कि भारत सरकार देश में मुस्लिम और अल्पसंख्यक समुदायों का उत्पीड़न रोके और संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखे.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्लीः कनाडा में दक्षिण एशियाई प्रवासी समूह ने बयान जारी कर ‘सत्तारूढ़ भाजपा से जुड़े हुए दक्षिणपंथी समूहों द्वारा भारत में मुस्लिम समुदाय पर की गई हिंसा’ की ताजा घटनाओं की निंदा की.

रिपोर्ट के अनुसार, इस बयान में कहा गया है कि बीते कुछ महीनों में ‘हिंदू-फासीवादी समूहों द्वारा इस्लामोफोबिक और स्त्री विरोधी गतिविधियों’ में लगातार वृद्धि देखी गई है.

बयान में हाल में हुई कुछ घटनाओं का जिक्र किया गया है, जिनमें इस तरह की पहली घटना के तौर पर रामनवमी के आसपास हुई मुस्लिम विरोधी घटनाएं हैं.

बयान में कहा गया कि रामनवमी के नौ दिन के पर्व पर हिंदुओं को नौ दिनों तक शाकाहारी भोजन खाने की जरूरत होती है लेकिन इस मौके का इस्तेमाल दौरान दक्षिणपंथी राष्ट्रवादियों ने मांसाहार भोजन बेचने वाली दुकानों पर हमले के रूप में किया.

बयान में विशेष तौर पर आरएसएस की युवा इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) का उल्लेख किया गया, जिन्होंने मांस पर प्रतिबंध की मांग की और मांस विक्रेताओं पर हमला किया, जो अमूमन मुस्लिम या कथित निम्न जातियों से जुड़े हुए लोग होते हैं.

बयान में यह भी कहा गया कि मांस पर प्रतिबंध की मांग सिर्फ उन्हीं राज्यों तक सीमित नहीं थी, जहां भाजपा सत्ता में थी. छोटो कारोबारों को मांस बेचने से रोकने में नगरपालिका अधिकारी भी शामिल हो गए.

बयान में यह भी बताया गया कि किस तरह से मुस्लिम विक्रेताओं को न सिर्फ मांस बेचने से रोकने पर बल्कि कर्नाटक में मंदिर में मनाए जाने वाले त्योहारों में अपना सामान बेचने के लिए भी मुस्लिम विक्रेताओं को निशाना बनाया गया.

बयान में कहा गया कि ‘विश्वविद्यालयों जैसे धर्मनिरपेक्ष स्थानों को भी नहीं बख्शा गया.’

बयान में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) कैंपस में रामनवमी पर हुई हिंसा का उल्लेख करते हुए कहा गया कि एबीवीपी से जुड़े हुए छात्रों ने कैंपस में रामनवमी के दौरान परोसे जा रहे मांसाहारी भोजन का विरोध किया, जिससे दो समूहों के बीच झड़प हुई.

बयान में हैदराबाद यूनिवर्सिटी में हुई घटना का भी उल्लेख किया गया है, जहां कथित तौर पर एबीवीपी सदस्यों ने कैंपस में हिंदू देवताओं राम और हनुमान के चित्र लगाकर ‘हिंदू बहुसंख्यकवाद का खुले तौर पर प्रदर्शन किया और अल्पसंख्यक समुदायों को उकसाने का प्रयास’ किया.

बयान में देशभर से आ रही उन ख़बरों का भी उल्लेख है, जिनमें बताया गया कि 10 अप्रैल को ‘भाजपा से जुड़े समूहों’ ने मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा की धमकी दी. मुस्लिमों के घर और दुकानें नष्ट कर दी गई या उन्हें आग लगा दी गई और सांप्रदायिक नारेबाजी की गई.

बयान में कहा गया, ‘हमें नाराजगी है कि प्रशासन की दक्षिणपंथी भीड़ द्वारा की गई हिंसा में मिलीभगत थी, जिन्होंने भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की भाजपा की नीति के अनुरूप देश की मुस्लिम आबादी के नरसंहार का आह्वान किया.’

बयान में देश में इस्लामोफोबिया और स्त्री द्वेष की बढ़ रही प्रवृत्ति के संदर्भ में मुस्लिम समुदाय पर हुई हिंसा की ताजा घटनाओं का उल्लेख किया गया है.

बयान में कहा गया कि हिजाब प्रतिबंध को लेकर कर्नाटक में विवाद हुआ, जहां मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनकर कॉलेज परिसर में प्रवेश नहीं करने दिया गया और हिजाब पहनकर परीक्षाएं भी नहीं देने दी गई. बयान में इन घटनाओं को मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ ‘रंगभेद जैसी स्थिति’ बताया गया है.

बयान में इस संबंध में सरकार के पाखंड को भी उजागर किया गया कि किस तरह हिंदू छात्रों को भगवा कपड़े पहनने और कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने को लेकर अपनी धार्मिक पहचान का सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया.

बयान में चिंता जताई गई कि इन घटनाओं से व्यक्त की गई मुस्लिम विरोधी भावना सिर्फ सरकार की नीतियों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह एक गहरा सामाजिक ध्रुवीकरण उजागर करती है कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सभी क्षेत्रों में मुस्लिमों पर हमले हो रहे हैं.

बयान के अंत में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इस ‘नरसंहारीय हिंसा’ पर ध्यान देने की अपील की गई है, जो भाजपा और उनके समर्थकों द्वारा की जा रही है. इस हिंसा में भारतीय न्यायपालिका और अन्य सरकारी संस्थानों की मिलीभगत का आरोप लगाते हुए कहा गया कि हिंसा के पीड़ितों को न्याय मिलने की थोड़ी बहुत ही उम्मीद है.

साथ ही, यह भी कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भाजपा सरकार पर लगातार दबाव बनए रखने की जरूरत है. उन्होंने बयान में तीन मांगें रखी हैं, जिन्हें वे चाहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा भारत सरकार के समक्ष उठाया जाए:

1) देश के विभिन्न हिस्सों में मुस्लिमों के खिलाफ हालिया हिंसा को अंजाम देने वाले हिंदू दक्षिणपंथी समूहों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की जाए.

2) इन नृजातीय (एथनिक) हिंसा के शिकार पीड़ितों को तुरंत और बिना किसी शर्त के मुआवजा दिया जाए.

3) भारत में मुस्लिम और अल्पसंख्यक समुदायों के उत्पीड़न को रोका जाए और भारतीय संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाया रखा जाए.

इस पूरे बयान को नीचे दिए गए लिंक पर पढ़ सकते हैं.

South Asian Diaspora in Canada Condemns Hindutva Violence by The Wire on Scribd