जम्मू कश्मीर: सेना संचालित स्कूल ने ड्रेस कोड पर दी सफाई, कहा- हिजाब नहीं, नक़ाब पर रोक

बारामूला के एक स्कूल ने 25 अप्रैल को जारी सर्कुलर में शिक्षिकाओं से स्कूल अवधि के दौरान हिजाब पहनने से परहेज़ करने को कहा था. बाद में इसमें संशोधन करते हुए स्कूल ने बताया कि उसने नक़ाब पहनने से मना किया है क्योंकि यह विशेष तौर पर सक्षम बच्चों का स्कूल है और बच्चों को भावभंगिमा के ज़रिये पढ़ाया जाता है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

बारामूला के एक स्कूल ने 25 अप्रैल को जारी सर्कुलर में शिक्षिकाओं से स्कूल अवधि के दौरान हिजाब पहनने से परहेज़ करने को कहा था. बाद में इसमें संशोधन करते हुए स्कूल ने बताया कि उसने नक़ाब पहनने से मना किया है क्योंकि यह विशेष तौर पर सक्षम बच्चों का स्कूल है और बच्चों को भावभंगिमा के ज़रिये पढ़ाया जाता है.

(फोटो: रॉयटर्स)

श्रीनगर: जम्मू एवं कश्मीर के बारामूला जिले में सेना द्वारा संचालित एक स्कूल ने अपने कर्मचारियों को ड्यूटी के दौरान हिजाब नहीं पहनने के निर्देश को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. प्रदेश के मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने स्कूल के इस कदम की आलोचना की है.

हालांकि, इसके बाद स्कूल ने बुधवार को संशोधित सर्कुलर जारी कर हिजाब शब्द की जगह नकाब शब्द का इस्तेमाल किया.

बारामूला के डैगर परिवार स्कूल के प्रधानाचार्य ने 25 अप्रैल को जारी किए गए सर्कुलर में शिक्षिकाओं से स्कूल अवधि के दौरान हिजाब पहनने से परहेज करने को कहा है ताकि छात्र सहज महसूस कर सकें और शिक्षकों एवं कर्मचारियों से बातचीत के लिए आगे आ सकें.

इस स्कूल की स्थापना भारतीय सेना ने पुणे स्थित परोपकारी संगठन इंद्राणी बालन फाउंडेशन के साथ मिलकर की थी.

हालांकि, स्कूल के इस सर्कुलर से कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में कई महीनों से चल रहे हिजाब विवाद के मामले ने तूल पकड़ा. इसके बाद जल्द ही सेना ने स्पष्टीकरण जारी किया कि आखिर क्यों स्कूल के स्टाफ को स्कूल अवधि के दौरान नकाब नहीं पहनने को कहा गया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सेना के प्रवक्ता इमरोन मुसावी ने कहा कि डैगर परिवार स्कूल बधिर बच्चों सहित विशेष तौर पर सक्षम बच्चों का संस्थान है.

उन्होंने कहा, ‘उन्हें (बच्चों) चेहरे की भावभंगिमा के जरिये समझाया जाता है. अगर कोई शिक्षक नकाब पहनती हैं तो वह कैसे पढ़ाएगी ? बच्चे क्या देखेंगे?’

इस बीच, स्कूल और सेना के स्पष्टीकरण के बावजूद 25 अप्रैल को ट्विटर पर वायरल इस सर्कुलर को लेकर कश्मीर के कई विपक्षी नेताओं की कड़ी प्रतिक्रियाएं आईं.

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने इस सर्कुलर की निंदा करते हुए कहा, ‘जम्मू कश्मीर पर भाजपा का शासन है, यह अन्य राज्यों की तरह नहीं है, जहां उन्होंने बुलडोजर से अल्पसंख्यकों के घर ढहा दिए और उन्हें अपनी मर्जी से पोशाक पहनने की मंजूरी नहीं दी.’

इसी तरह नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने संवाददाताओं से कहा कि सरकार को किसी व्यक्ति द्वारा उसके धर्म का पालन करने के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और उम्मीद करनी चाहिए कि कर्नाटक को जम्मू कश्मीर लाने की कोशिश बंद की जाए.

यूथ नेशनल कॉन्फ्रेंस की बैठक में अब्दुल्ला ने कथित तौर पर कहा कि यह मुद्दा हिजाब से परे है. इस दौरान हलाल मीट पर प्रतिबंध और मस्जिदों में लाउडस्पीकर से अजान बजाने से जुड़े मुद्दे भी उठाए गए.

उल्लेखनीय है कि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि सहित नेताओं और हिंदुत्व कार्यकर्ताओं ने कहा कि हलाल मीट ‘आर्थिक जिहाद’ का हिस्सा है. उन्होंने हिंदुओं से मुस्लिम विक्रेताओं से मीट खरीदना बंद करने का आह्वान किया था.

वहीं, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे द्वारा महाराष्ट्र में मस्जिदों को अल्टीमेटम जारी करने के बाद से अजान विवाद शुरू हुआ था.

ठाकरे ने उन्हें अल्टीमेटम दिया था कि तीन मई तक लाउडस्पीकर पर अजान बजाना बंद करें, ऐसा नहीं होने पर वह और उनकी पार्टी कार्यकर्ता लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा बजाएंगे. ठाकरे के इस बयान से राज्य में विवाद खड़ा हुआ, जिससे राज्य में महाविकास अघाड़ी गठबंधन के तहत शिवसेना के समर्थकों और विपक्षी दलों के बीच तनातनी हुई.

अब्दुल्ला ने कहा, ‘क्या वे मंदिरों में माइक का इस्तेमाल नहीं करते? क्या वे गुरुद्वारों में माइक का इस्तेमाल नहीं करते? वे करते हैं लेकिन आपको सिर्फ हमारा माइक ही पसंद नहीं.’

उन्होंने कहा, इस देश में सभी को अपने धर्म का पालन करने की आजादी है. यह हमारे संविधान में निहित है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं, जिसका मतलब है कि सभी धर्म बराबर हैं. मुझे नहीं लगता कि किसी सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)