कर्नाटक हाईकोर्ट की एक पीठ सलीम ख़ान नाम के एक शख़्स की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. उनके ख़िलाफ़ 2020 में यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था. एनआईए के अनुसार, ख़ान अल-हिंद समूह से जुड़े हुए हैं, जो कथित तौर पर आतंकी गतिविधियों में शामिल है.
नई दिल्लीः कर्नाटक हाईकोर्ट का कहना है कि किसी ऐसे संगठन, जिसे सरकार ने प्रतिबंधित नहीं किया है, की ‘जिहादी बैठकों’ में शामिल होना आतंकी कृत्य के समान नहीं है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस बी. वीरप्पा और जस्टिस एस. रचाइच की पीठ सलीम खान नाम के एक शख्स की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. खान के खिलाफ 2020 में यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था.
एनआईए के मुताबिक, खान अल-हिंद समूह से जुड़े हुए हैं, जो कथित तौर पर आतंकी गतिविधियों में शामिल है.
खान को जमानत देते हुए अदालत ने कहा, ‘यूए(पी)ए की अनुसूची के तहत प्रतिबंधित संगठन नहीं होने वाले समूह की बैठकों में केवल भाग लेना और अल-हिंद समूह का सदस्य बनना, प्रशिक्षण सामग्री खरीदना और सह-सदस्यों के लिए रहने का प्रबंध करना अपराध नहीं है, जो यूएपीए अधिनियम की धारा 2 (के) या धारा 2 (एम) के प्रावधानों के तहत कहा गया है.’
हालांकि, समान मामले में अदालत ने एक अन्य व्यक्ति मोहम्मद जैद को यह कहकर जमानत देने से इनकार कर दिया कि आईएसआईएस से जुड़े एक आतंकी गैंग के सदस्य के रूप में उनकी अपराध में ‘सक्रिय भागीदारी’ रही है.
पृष्ठभूमि
रिपोर्ट के अनुसार, बेंगलुरू पुलिस से मिली सूचना के आधार पर 10 जनवरी 2020 को सुद्दागुंटेपल्या पुलिस स्टेशन ने खान और जैद सहित 17 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया.
उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 152ए (विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देना), 121ए (युद्ध छेड़ना, युद्ध छेड़ने का प्रयास करना), 120बी (आपराधिक साजिश), 122 (युद्ध छेड़ने की मंशा से हथियार इकट्ठा करना), 123 (भ्रष्ट गतिविधि), 124ए (राजद्रोह), 125 (भारत सरकार के साथ गठबंधन में किसी भी एशियाई शक्ति के खिलाफ युद्ध छेड़ना) और यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा), 18 (साजिश के लिए सजा) और 20 (आतंकी संगठन के सदस्य के रूप में सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया.
इसके बाद एनआईए ने इन 17 लोगों के खिलाफ दोबारा एफआईआर दर्ज की. इस बीच खान को 20 जनवरी 2020 को गिरफ्तार किया गया और जैद को वॉरंट के तहत नौ मार्च 2020 को हिरासत में लिया गया. आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं, आर्म्स एक्ट और यूएपीए के तहत 13 जुलाई 2020 को चार्जशीट दर्ज की गई.
आरोपियों ने एनआईए की विशेष अदालत से जमानत लेने की कोशिश की लेकिन असफल रहे, जिसके बाद उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख किया.
अदालत में जिरह
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता एस. बालाकृष्णन ने अदालत को बताया कि यह सच है कि आरोपी अल-हिंद समूह के सदस्य हैं लेकिन यह भी बताया कि यह संगठन कोई प्रतिबंधित आतंकी संगठन नहीं है.
उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि एफआईआर में दर्ज सात जुलाई 2019 से 10 जनवरी 2020 तक छह महीने की अवधि के दौरान आरोपियों की संलिप्तता वाली कोई घटना नहीं हुई.
आरोपियों के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के अभियोजन पक्ष के आरोपों पर बालकृष्णन ने अदालत को बताया कि वह कोई भी साक्ष्य पेश करने में असफल रहे और यह भी बताया कि आरोपी आईएसआईएस के सदस्य नहीं हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, उन्हें यूएपीए की धारा 18 (साजिश रचने) के अभियोजन पक्ष की याचिका में भी त्रुटि मिली.
उन्होंने कहा कि आतंकी कृत्य करने के लिए किसी को उकसाने, निर्देश देने या सलाह देने के लिए कोई सामग्री जरूर होनी चाहिए.
उन्होंने बताया कि आरोपी किसी प्रतिबंधित संगठन से जुड़े हुए नहीं हैं.
बालकृष्णन ने अदालत को बताया, ‘अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ कोई भी आरोप सिद्ध करने में असफल रहे.’
इस पर एनआईए ने विशेष सार्वजनिक अभियोजक पी. प्रसन्ना कुमार ने आरोपियों के खिलाफ अपने आरोपों को दोहराते हुए कहा कि उन्होंने कई षड्यंत्रकारी बैठकों में शिरकत की, जिसका एफआईआर में विस्तृत रूप से विवरण है.
अदालत ने दोनों पक्षों की जिरह सुनने के बाद कहा, ‘मौजूदा मामले में अभियोजन पक्ष ने आरोपी नंबर 11 (सलीम खान) के खिलाफ आतंकवादी कृत्य में उसकी संलिप्तता या आतंकवादी गिरोह या संगठन का सदस्य होने या आतंकवाद को प्रशिक्षण देने के बारे में कोई भी सामग्री पेश नहीं की है, जैसा कि आरोपपत्र की जांच में देखा जा सकता है.’
खान को जमानत देते हुए अदालत ने आदेश दिए कि उन्हें दो लाख रुपये के बॉन्ड और समान राशि के दो मुचलकों पर जमानत पर रिहा किया जाए.
हालांकि, जैद के मामले में अदालत ने कहा कि वह आईएसआईएस से जुड़े लोगों से जुड़े हुए थे, जो यूएपीए के प्रावधानों के तहत प्रतिबंधित संगठन है.