त्रिपुरा पुलिस ​​हिरासत में चकमा समुदाय की नाबालिग लड़की और युवक की मौत, न्यायिक जांच की मांग

त्रिपुरा के गोमती ज़िले का मामला. एक नाबालिग लड़की और युवक के बीच प्रेम संबंध था. दोनों के घर छोड़कर चले जाने के बाद लड़की के पिता ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी. बताया जाता है​ कि पुलिस द्वारा उन्हें हिरासत में लिए जाने के बाद उनके माता-पिता को ख़बर मिली कि दोनों ने ज़हर खा लिया. चकमा सामाजिक परिषद ने मामले की न्यायिक जांच की मांग के साथ ज़िम्मेदार पुलिसवालों को कड़ी सज़ा देने की मांग की है.

/
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

त्रिपुरा के गोमती ज़िले का मामला. एक नाबालिग लड़की और युवक के बीच प्रेम संबंध था. दोनों के घर छोड़कर चले जाने के बाद लड़की के पिता ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी. बताया जाता है​ कि पुलिस द्वारा उन्हें हिरासत में लिए जाने के बाद उनके माता-पिता को ख़बर मिली कि दोनों ने ज़हर खा लिया. चकमा सामाजिक परिषद ने मामले की न्यायिक जांच की मांग के साथ ज़िम्मेदार पुलिसवालों को कड़ी सज़ा देने की मांग की है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

अगरतला: त्रिपुरा के गोमती जिले के सिलाचारी में एक नाबालिग लड़की और एक युवक की पुलिस हिरासत में मौत के मामले ने तूल पकड़ना शुरू कर दिया है.

युवक और लड़की के बीच प्रेम संबंध था और वे चकमा जनजातीय समुदाय से ताल्लुक रखते थे. रविवार को समुदाय की एक सर्वोच्च प्रथागत संस्था ‘त्रिपुरा रेज्यो चकमा सामाजिक परिषद’ ने उनकी मौत की न्यायिक जांच की मांग की है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, परिषद ने कहा कि वे दोनों घर से तीन बार भाग चुके थे. संयोग से चकमा कानूनों के तहत तीन बार भाग चुके जोड़े को विवाहित माना जाता है, लेकिन उसके लिए दोनों की उम्र 18 साल से ऊपर होनी चाहिए. इस मामले में जहां युवक वयस्क था, वहीं लड़की 16 साल की थी.

परिषद ने कहा कि पहली बार घर से भाग जाने के बाद बड़ों ने अपने प्रथागत कानूनों के अनुसार हस्तक्षेप किया और लड़की के नाबालिग होने के कारण शादी की अनुमति नहीं दी. उसे उसके पिता को सौंप दिया गया. परिषद सचिव शांति बिकास चकमा ने बताया कि दूसरी बार भी उसे उसके अभिभावकों को सौंप दिया गया.

बताया जाता है​ कि एक अप्रैल को लड़की एक बार फिर युवक के साथ रहने के लिए घर छोड़कर चली गई थी.

परिषद ने स्वीकार किया कि चकमा समुदाय को ऐसा करने की आवश्यकता नहीं थी, लेकिन इसके कानूनों के तहत उन्होंने दोनों को रोकने के लिए पुलिस को इसमें शामिल करने का फैसला किया. इसलिए समुदाय के बुजुर्गों की सलाह पर लड़की के पिता ने स्थानीय पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई.

परिषद के अनुसार, वे केवल एहतियात के तौर पर पुलिस के पास गए थे और उनके बड़ों ने पुलिस से आग्रह किया था कि वे चकमा प्रथागत कानूनों के अनुसार इस मुद्दे से निपटने की अनुमति दें, खासकर जब लड़की और युवक त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद के अंतर्गत आते हैं.

परिषद ने पुलिस पर इसके बजाय दोनों को हिरासत में लेने और उनके बड़ों और अभिभावकों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया है.

रिपोर्ट के अनुसार, (हिरासत में लेने) इसके तुरंत बाद उनके माता-पिता को यह खबर मिली कि दोनों ने जहर खा लिया है. पहले उन्हें स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, वहां से उन्हें 23 अप्रैल को उदयपुर जिला अस्पताल और अगले दिन जीबीपी अस्पताल रेफर कर दिया गया. 24 अप्रैल को अगरतला लाए जाने के दौरान लड़की ने दम तोड़ दिया और अगले दिन युवक की भी मौत हो गई.

परिषद ने पुलिस पर लापरवाही और दोनों की मौत का आरोप लगाया है.

परिषद सचिव शांति बिकास चकमा ने कहा, ‘उन्होंने युवक और लड़की को हिरासत में ले लिया. उनकी तलाशी क्यों नहीं ली गई? उनका मेडिकल चेकअप क्यों नहीं कराया गया? निगरानी क्यों नहीं की गई? चूंकि लड़की नाबालिग थी, पुलिस ने उसे किशोर गृह क्यों नहीं भेजा? हम न्यायिक जांच और इसमें शामिल सभी लोगों के लिए कड़ी सजा देने की मांग करते हैं.’

त्रिपुरा शाही वंशज और टीआईपीआरए मोथा के प्रमुख प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने भी इस मुद्दे को उठाया है और बीते 30 अप्रैल को इसमें शामिल पुलिस अधिकारियों को जांच पूरी होने तक छुट्टी पर भेजने को कहा है.

दूसरी ओर पुलिस ने इस मामले पर बात करने से इनकार कर दिया. नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा कि दोनों मृतकों के रिश्तेदारों द्वारा इस घटना को लेकर रायबाड़ी और सिलाचारी पुलिस थानों में दो एफआईआर दर्ज की गई हैं.

और अधिक जानकारी देने से इनकार करते हुए उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक साक्ष्य अभी भी एकत्र किए जा रहे हैं. अधिकारी ने यह भी कहा कि हिरासत में रखे जाने के तुरंत बाद दोनों ने उल्टी करना शुरू कर दिया था, जिसका अर्थ था कि उन्होंने पहले कुछ खाया होगा.

रिपोर्ट के अनुसार, शांति चकमा ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब को राज्य के सभी चकमा-बहुल क्षेत्रों – पचारथल, कंचनपुर, लोंगट्राइवैली, गंडा ट्विसा, कारबुक, शांतिबाजार और अगरतला – के अधिकारियों के माध्यम से एक ज्ञापन सौंपा है. उन्होंने कहा कि यह समझाने की जिम्मेदारी थाने के प्रभारी अधिकारी पर है कि दोनों को जहर कहां से मिला.

आदिवासी निकाय ने सरकार से पीड़ित परिवारों को वित्तीय मुआवजा और नौकरी प्रदान करने के लिए भी कहा है और मांग की है कि ऐसी स्थितियों में आदिवासी बुजुर्गों का आदर और सम्मान किया जाए.

संयोग से प्रथागत आदिवासी कानूनों और राज्य कानूनों के बीच इस तरह के संघर्ष की संभावना को देखते हुए 2019 में मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने सभी आदिवासी समुदायों के समाजपति या बुजुर्गों के साथ एक बैठक की थी, जहां उन्होंने पुलिस से आदिवासी बुजुर्गों का सम्मान करने के लिए कहा था.

प्रथागत कानून एक आदिवासी समुदाय को नियंत्रित करने वाली सदियों पुरानी पारंपरिक न्यायिक प्रणाली का उल्लेख करते हैं. पिछले साल फरवरी में आदिवासी क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद ने प्रस्ताव पेश कर मिजो, काइपेंग और मोलसोम समुदायों के प्रथागत कानूनों को संहिताबद्ध करने की मांग की थी. यह विभिन्न स्वदेशी समुदायों के प्रथागत कानूनों को वैधता प्रदान करने पर भी विचार कर रहा था.

त्रिपुरा में 19 मान्यता प्राप्त स्वदेशी (आदिवासी) समुदाय हैं. उनमें से कई ने जनजातीय परिषद को प्रस्ताव के रूप में संहिताबद्ध प्रथागत कानून प्रस्तुत किए हैं. 2017 में राज्य सरकार ने जमातिया समुदाय के प्रथागत कानूनों को मान्यता दे दी थी.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq