गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के बाद उत्तराखंड ऐसा पांचवां भाजपा शासित राज्य है, जिसने हिंदू धर्मग्रंथों को शामिल करने के लिए अपना स्कूली पाठ्यक्रम संशोधित करने की बात कही है.
नई दिल्ली: चार राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकारों द्वारा स्कूलों में भगवद गीता पढ़ाने के बाद उत्तराखंड सरकार ने स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में वेद, गीता और रामायण सहित हिंदू धर्मग्रंथों को शामिल करने की घोषणा की है.
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, राज्य के शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के अमल के साथ उत्तराखंड सरकार हिंदू ग्रंथों को भी शामिल करने के लिए अपने पाठ्यक्रम को संशोधित करेगी.
Uttarakhand | National Education Policy will be implemented in the upcoming session. We'll be including Vedas, Gita, Ramayana & history of Uttarakhand in the syllabus after taking suggestions from the public & consulting the academicians: State Education minister Dhan Singh Rawat pic.twitter.com/bFN8ujxMmK
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) May 2, 2022
उन्होंने कहा, ‘हम जनता से सुझाव और शिक्षाविदों से सलाह लेने के बाद पाठ्यक्रम में वेद, गीता, रामायण और उत्तराखंड के इतिहास को शामिल करेंगे.’
टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया है कि रावत ने एक अलग समारोह में पाठ्यक्रम में उपनिषदों को भी शामिल करने की बात कही. उन्होंने कहा कि इन ग्रंथों को लाने का उद्देश्य ‘स्कूली छात्रों को उनकी संस्कृति और पारंपरिक भारतीय ज्ञान से रूबरू कराना है.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, प्रदेश के शिक्षा मंत्री डॉ. धनसिंह रावत ने दून विश्वविद्यालय में हुए एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि छात्रों को अपनी संस्कृति और समृद्ध ज्ञान परंपरा के बारे में जानकारी होनी चाहिए और इसलिए इन ग्रंथों की सामग्री को शैक्षिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने पर विचार हो रहा है.
इस संबंध में उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में स्कूल पाठ्यक्रम राज्यों को तैयार करना है. मंत्री ने यह भी कहा कि इस बारे में कोई भी निर्णय लेने से पहले आम लोगों और अभिभावकों के सुझाव भी लिए जाएंगे.
इस बारे में संपर्क किए जाने पर उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि अपनी संस्कृति के बारे में पढ़ाए जाने में कोई बुराई नहीं है लेकिन अच्छा होगा कि शिक्षा मंत्री इससे पहले स्वयं प्रदेश की शख्सियतों का अध्ययन कर लें.
उन्होंने कहा, ‘वेद, संस्कृति से हमारा कोई विरोध नहीं है. जो इन्हें पढ़ना चाहता है, उसे यह मौका मिलना चाहिए लेकिन जबरदस्ती कुछ नहीं होना चाहिए.’
हालांकि, उन्होंने कहा कि इससे पहले उत्तराखंड के छात्रों को प्रदेश के बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए और इसके अलावा, सरकार को रोजगार परक शिक्षा पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए जिससे बच्चे अपनी आजीविका कमा सकें.
उल्लेखनीय है कि इससे पहले मार्च महीने में गुजरात सरकार ने विधानसभा में बताया था कि भगवद गीता शैक्षणिक वर्ष 2022-23 से राज्य भर में कक्षा 6 से 12 के लिए स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा होगी.
द वायर ने तब बताया था कि गुजरात के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी ने कहा था कि ‘भगवद गीता में निहित मूल्यों और सिद्धांतों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का यह निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लाई गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप है.
वघानी ने कहा, ‘एनईपी आधुनिक और प्राचीन संस्कृति, परंपराओं और ज्ञान प्रणालियों सिखाने की बात करती है ताकि छात्रों को भारत की समृद्ध और विविध संस्कृति पर गर्व महसूस हो.’
गुजरात सरकार की घोषणा के दो हफ्ते बाद हिमाचल प्रदेश के शिक्षा मंत्री ने भी बताया था कि राज्य में कक्षा 9, 10, 11 और 12 के स्कूली छात्रों को इस शैक्षणिक सत्र से भगवद गीता पढ़ाई जाएगी.
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार अप्रैल महीने में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि राज्य सरकार कॉलेज पाठ्यक्रम में गीता को शामिल करने पर विचार कर रहा है.
कर्नाटक सरकार ने भी कहा है कि वह राज्य के स्कूलों में गीता को ‘नैतिक शिक्षा’ के हिस्से के रूप में पेश करने पर विचार कर रही है.
Our culture is completely different from that of people living in north India. There's no caste system in Tamil culture. Concept of practice of Manu Dhrama isn't in Tamil Nadu. These people who speak Manu Dharma don't know the south of our country: DMK MP TKS Elangovan pic.twitter.com/H1ce6PGKvg
— ANI (@ANI) May 2, 2022
इस बीच डीएमके के सांसद टीकेएस एलंगोवन ने इस फैसले को लेकर भाजपा नेताओं को आड़े हाथों लिया है.
एएनआई के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘इन (भाजपा) नेताओं के साथ समस्या यह है कि वे नहीं जानते कि भारत क्या है. भारत के दक्षिणी हिस्से में तिरुक्कुसल हमारी प्रमुख किताब है. हमारे पास कई साहित्य और देवता थे. उत्तर के विपरीत हमारा समतामूलक समाज है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारी संस्कृति उत्तर भारत में रहने वाले लोगों से बिल्कुल अलग है. तमिल संस्कृति में कोई जाति व्यवस्था नहीं है. मनु धर्म के अभ्यास की अवधारणा तमिलनाडु में नहीं है. मनु धर्म बोलने वाले ये लोग हमारे देश के दक्षिण को नहीं जानते हैं.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)