रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि नेपाल को छोड़कर भारत के अन्य पड़ोसी देशों की रैंकिंग में भी गिरावट आई है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स और नौ अन्य मानवाधिकार संगठनों ने भारतीय अधिकारियों से पत्रकारों और ऑनलाइन आलोचकों को उनके काम के लिए निशाना बनाना बंद करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि आतंकवाद और देशद्रोह क़ानूनों के तहत उन पर मुक़दमा चलाना बंद कर देना चाहिए.
नई दिल्ली: विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत पिछले साल के 142वें स्थान से फिसलकर 150वें स्थान पर आ गया है. एक वैश्विक मीडिया निगरानीकर्ता द्वारा मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई.
‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ (आरएसएफ) द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि नेपाल को छोड़कर भारत के अन्य पड़ोसी देशों की रैंकिंग में भी गिरावट आई है, जिसमें पाकिस्तान 157वें, श्रीलंका 146वें, बांग्लादेश 162वें और म्यांमार 176वें स्थान पर पहुंच गए हैं. यह रैंकिंग कुल 180 देशों की है.
आरएसएफ 2022 विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक के अनुसार, नेपाल वैश्विक रैंकिंग में 76वें स्थान पर पहुंच गया है. जबकि पिछले साल, उसे 106वें, पाकिस्तान को 145वें, श्रीलंका को 127वें, बांग्लादेश को 152वें और म्यांमार को 140वें स्थान पर रखा गया था.
इस साल नॉर्वे पहले) डेनमार्क (दूसरे), स्वीडन (तीसरे) एस्टोनिया (चौथे) और फिनलैंड (पांचवें) स्थान पर है, जबकि उत्तर कोरिया 180 देशों और क्षेत्रों की सूची में सबसे नीचे है.
रूस को इस रिपोर्ट में 155वें स्थान पर रखा गया है, जो पिछले साल 150वें स्थान से नीचे था, जबकि चीन दो पायदान ऊपर चढ़ते हुए 175वें स्थान पर आ गया. पिछले साल चीन 177वें स्थान पर था.
इंडिया: मीडिया फ्रीडम अंडर थ्रेट
अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन ने अपनी वेबसाइट पर एक बयान में कहा, ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स और नौ अन्य मानवाधिकार संगठन भारतीय अधिकारियों से पत्रकारों और ऑनलाइन आलोचकों को उनके काम के लिए निशाना बनाना बंद करने का आग्रह करते हैं.’
बयान में आगे कहा गया, ‘विशेष रूप से आतंकवाद और देशद्रोह कानूनों के तहत उन पर मुकदमा चलाना बंद कर देना चाहिए.’
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने कहा, ‘भारतीय अधिकारियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करना चाहिए और आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के लिए राजनीति से प्रेरित आरोपों में हिरासत में लिए गए किसी भी पत्रकार को रिहा कर देना चाहिए और उन्हें निशाना बनाना तथा स्वतंत्र मीडिया का गला घोंटना बंद करना चाहिए.’
इसने कहा, ‘अधिकारियों द्वारा पत्रकारों को निशाना बनाने के साथ-साथ असहमति पर व्यापक कार्रवाई ने हिंदू राष्ट्रवादियों को ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों तरह से भारत सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को धमकाने, परेशान करने और दुर्व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित किया है.’
आरएसएफ की ओर से जारी इस सूचकांक में भारत संबंधी रिपोर्ट को ‘इंडिया: मीडिया फ्रीडम अंडर थ्रेट’ नाम दिया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, पत्रकारों को निशाना बनाने के लिए भारतीय अधिकारियों को इजरायली निर्मित स्पायवेयर पेगासस का इस्तेमाल करने में फंसाया गया है.
मालूम हो कि जुलाई 2021 में एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम, जिसमें द वायर भी शामिल था, ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिये दुनियाभर में नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई या फिर वे संभावित निशाने पर थे.
इस पड़ताल के मुताबिक, इजरायल की एक सर्विलांस तकनीक कंपनी एनएसओ ग्रुप के कई सरकारों के क्लाइंट्स की दिलचस्पी वाले ऐसे लोगों के हजारों टेलीफोन नंबरों की लीक हुई एक सूची में 300 सत्यापित भारतीय नंबर हैं, जिन्हें मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, न्यायपालिका से जुड़े लोगों, कारोबारियों, सरकारी अधिकारियों, अधिकार कार्यकर्ताओं आदि द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है.
पेगासस प्रोजेक्ट के तहत पाया गया कि निगरानी के लिए संभावित लक्ष्यों की एक लीक सूची में 40 से अधिक भारतीय पत्रकारों के नंबर थे. भारत सरकार ने इन आरोपों की जांच के प्रयासों को बार-बार रोका है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स और नौ अन्य मानवाधिकार संगठनों ने कहा कि यह निगरानी के माहौल को कायम रखता है, जिसके परिणामस्वरूप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ता है.
इन मानवाधिकार संगठनों ने कहा, भाजपा के नेतृत्व वाले उत्तर प्रदेश राज्य में अधिकारियों ने सरकार की आलोचना करने वाली सामग्री और सोशल मीडिया पोस्ट प्रकाशित करने के लिए पत्रकारों के खिलाफ बार-बार झूठे आरोप लगाए हैं.
कमेटी अगेंस्ट असॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट्स की फरवरी 2022 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि 2017 में भाजपा नेता योगी आदित्यनाथ के राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद से अधिकारियों ने 66 पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए हैं. इसके अलावा 48 अन्य पत्रकारों पर शारीरिक हमला किया गया है.
हिंदी भाषा के मीडिया में रिपोर्टिंग करने वाले छोटे शहरों और गांवों के पत्रकारों को अधिकारियों द्वारा निशाना बनाए जाने और उन पर मुकदमा चलाने का और भी अधिक जोखिम होता है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, इन मानवाधिकार संगठनों ने कहा है कि अधिकारियों द्वारा पत्रकारों को निशाना बनाए जाने के साथ-साथ असंतोष पर व्यापक कार्रवाई ने हिंदू राष्ट्रवादियों को भारत सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से धमकाने, परेशान करने और दुर्व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित किया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकारियों ने फर्जी आतंकवाद और देशद्रोह के आरोपों में पत्रकारों को गिरफ्तार किया है और आलोचकों और स्वतंत्र समाचार संगठनों को नियमित रूप से निशाना बनाया है, जिसमें उनके कार्यस्थलों पर छापेमारी भी शामिल है.
साथ ही यह भी जोड़ा है कि पत्रकार और ऑनलाइन आलोचक भी सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और 2021 के आईटी नियमों के तहत प्रशासन की आलोचनात्मक सामग्री के लिए मुकदमों का जोखिम उठाते हैं.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि बार-बार इंटरनेट बंद होने से पत्रकारों को अपना काम करने की क्षमता में बाधा आती है, जिसमें ऑनलाइन जानकारी तक पहुंच और प्रसार शामिल है.
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है, ‘मीडिया की स्वतंत्रता पर ये प्रतिबंध भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा नागरिक समाज पर बढ़ती कार्रवाई के बीच आते हैं, जो मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, छात्रों, सरकारी आलोचकों को और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाने और उन पर मुकदमा चलाने के लिए देशद्रोह, आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों का उपयोग कर रही है. अल्पसंख्यक समूहों के पत्रकार और जम्मू-कश्मीर के पत्रकार विशेष रूप से जोखिम में हैं.’
आरएसएफ 2022 विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारत के तीन पत्रकार संगठनों ने एक संयुक्त बयान में कहा, ‘नौकरी की असुरक्षा बढ़ी हैं, वहीं प्रेस की स्वतंत्रता पर हमलों में तेजी से वृद्धि देखी गई है. भारत ने इस संबंध में रैंकिंग में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है.’
इंडियन वुमंस प्रेस क्लब, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और प्रेस एसोसिएशन ने कहा, ‘पत्रकारों को मामूली कारणों से कठोर कानूनों के तहत कैद किया गया है और कुछ मौकों पर सोशल मीडिया मंच पर मौजूद कानून के स्वयंभू संरक्षकों से उन्हें जान को खतरे का सामना करना पड़ा है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)