श्रीलंका: आर्थिक संकट के बीच राष्ट्रपति ने एक महीने में दूसरी बार देश में आपातकाल की घोषणा की

आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में जनता द्वारा पिछले कई सप्ताह से राष्ट्रपति और सरकार के इस्तीफ़े की मांग के बीच एक बार फ़िर आपातकाल लागू करने का फैसला लिया गया है. हालांकि, इस्तीफे के बढ़ते दबाव के बावजूद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया है.

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श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की इस्तीफे की मांग करते हुए लोग विरोध प्रदर्शन कर हैं. (फोटो: रॉयटर्स)

आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में जनता द्वारा पिछले कई सप्ताह से राष्ट्रपति और सरकार के इस्तीफ़े की मांग के बीच एक बार फ़िर आपातकाल लागू करने का फैसला लिया गया है. हालांकि, इस्तीफे के बढ़ते दबाव के बावजूद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया है.

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की इस्तीफे की मांग करते हुए लोग विरोध प्रदर्शन कर हैं. (फोटो: रॉयटर्स)

कोलंबो: श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने देश में एक बार फिर आपातकाल की घोषणा कर दी है, जो कि शुक्रवार मध्यरात्रि से प्रभावी हो गया. राष्ट्रपति कार्यालय के मीडिया प्रभाग ने यह जानकारी दी.

अभूतपूर्व आर्थिक संकट को लेकर देश भर में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बीच सिर्फ एक महीने में दूसरी बार आपातकाल की घोषणा की गई है. इससे पहले राजपक्षे ने उनके निजी आवास के बाहर जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन के बाद एक अप्रैल को भी आपातकाल की घोषणा की थी. हालांकि, पांच अप्रैल को इसे वापस ले लिया गया था.

आपातकाल के तहत पुलिस और सुरक्षा बलों को मनमाने तरीके से किसी को भी गिरफ्तार करने और हिरासत में रखने की शक्ति मिल जाती है.

मीडिया प्रभाग के मुताबिक, राजपक्षे का यह निर्णय जनता की सुरक्षा और आवश्यक सेवाओं को बरकरार रखने के लिए है ताकि देश का सुचारू रूप से संचालन सुनिश्चित हो सके.

श्रीलंका में जनता द्वारा पिछले कई सप्ताह से राष्ट्रपति और सरकार के इस्तीफे की मांग के बीच आपातकाल लागू करने का फैसला लिया गया है. हालांकि, इस्तीफे के बढ़ते दबाव के बावजूद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके बड़े भाई व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया है.

इस बीच शुक्रवार को प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को उस समय दबाव का सामना करना पड़ा, जब मंत्रिमंडल की विशेष बैठक के दौरान उनके इस्तीफे की मांग की गई.

सूत्रों ने कहा, ‘मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान कई तरह के विचार रखे गए और कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि प्रधानमंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए.’

सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने बैठक के दौरान कहा कि अगर उनका उत्तराधिकारी मौजूदा आर्थिक संकट को हल कर सकता है तो वह पद छोड़ सकते हैं, हालांकि, प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि वह इस्तीफा दे देंगे.

सूत्रों ने बताया कि महिंदा राजपक्षे ने यह भी कहा है कि अगर किसी अंतरिम सरकार का गठन होता है तो वह इसके प्रमुख होंगे.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, 76 वर्षीय प्रधानमंत्री के समर्थकों ने उनसे बने रहने के लिए जोर दिया था, क्योंकि जनता की मांग उनके छोटे भाई राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे के लिए अधिक है.

वहीं, 72 वर्षीय राष्ट्रपति कुछ हफ्तों से चाहते हैं कि सर्वदलीय अंतरिम सरकार बनाने के लिए प्रधानमंत्री इस्तीफा दें.

इससे पहले दिन में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनकी सरकार के इस्तीफे की मांग को लेकर व्यापार संघ शुक्रवार को देशव्यापी हड़ताल पर रहे. स्वास्थ्य, डाक, बंदरगाह और अन्य सरकारी सेवाओं से जुड़े ज्यादातर व्यापार संघ हड़ताल में शामिल रहे.

हालांकि सत्तारूढ़ दल के समर्थक कई व्यापार संघ इसमें शामिल नहीं थे.

जॉइंट ट्रेड यूनियन एक्शन ग्रुप के रवि कुमुदेश ने कहा, ‘2000 से अधिक व्यापार संघ हड़ताल में शामिल हैं. हालांकि, हम आपात सेवाएं प्रदान कर रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘इस एक दिवसीय हड़ताल का मकसद राष्ट्रपति को यह बताना है कि उन्हें अपनी सरकार के साथ इस्तीफा दे देना चाहिए. यदि हमारे अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया गया तो हम 11 मई से तब तक हड़ताल करेंगे जब तक सरकार इस्तीफा नहीं दे देती.’

वहीं, शिक्षक संघ के महिंदा जयसिंघे ने कहा कि स्कूल के शिक्षक व प्रधानाध्यापक भी आज की हड़ताल में शामिल हैं. निजी बस संचालकों ने कहा कि डीजल के लिए ईंधन स्टेशन पर लंबी कतारों के कारण उनके लिए सेवाएं देना मुश्किल हो गया है.

निजी बस मालिकों के संघ के गामुनु विजेरत्ने ने कहा, ‘बसें चलाने के लिए डीजल नहीं है.’

गौरतलब है कि बृहस्पतिवार को संसद तक विरोध-प्रदर्शन करने वाले छात्रों ने संसद के मुख्य द्वार पर डेरा डाल दिया था. पुलिस ने बीती रात उन पर आंसू गैस के गोले छोड़े, लेकिन भारी बारिश में भी वे धरने पर बैठे रहे.

श्रीलंका अपनी आजादी के बाद से सबसे बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और लोगों को आवश्यक वस्तुओं की कमी के साथ ही भारी बिजली कटौती झेलनी पड़ रही है.

1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता के बाद से श्रीलंका अभूतपूर्व आर्थिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है. यह संकट आंशिक रूप से विदेशी मुद्रा की कमी के कारण है, जिसका अर्थ है कि देश मुख्य खाद्य पदार्थों और ईंधन के आयात के लिए भुगतान नहीं कर सकता है.

9 अप्रैल से पूरे श्रीलंका में हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे हैं, क्योंकि सरकार के पास महत्वपूर्ण आयात के लिए पैसे खत्म हो गए हैं; आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू गई हैं और ईंधन, दवाओं और बिजली की आपूर्ति में भारी कमी है.

बढ़ते दबाव के बावजूद राष्ट्रपति राजपक्षे और उनके बड़े भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया है. गुरुवार को उन्होंने संसद में एक महत्वपूर्ण चुनाव जीता, जब उनके उम्मीदवार ने डिप्टी स्पीकर पद की दौड़ में जीत हासिल की.

बता दें कि इससे पहले राष्ट्रपति ने देश में बदतर आर्थिक हालात को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर एक अप्रैल को सार्वजनिक आपातकाल की घोषणा की थी. तीन अप्रैल को होने वाले व्यापक विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर आपातकाल लगाया गया था.

इसके बाद सरकार ने पूरे देश में कर्फ्यू लगा दिया था. कर्फ्यू और आपातकाल के बावजूद विरोध प्रदर्शन जारी रहे. इस दौरान नाराज प्रदर्शनकारियों ने सत्तारूढ़ दल के वरिष्ठ नेताओं के आवास का घेराव कर सरकार से आर्थिक संकट को हल करने का आग्रह किया था.

बाद में श्रीलंका के सभी कैबिनेट मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया था और राष्ट्रपति ने विपक्ष को सरकार में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था. बाद में कर्फ्यू और आपातकाल हटा दिए गए, लेकिन राष्ट्रपति ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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