देश की तीस फीसदी महिलाएं शारीरिक और यौन हिंसा की शिकार: सरकारी सर्वेक्षण

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, देश में 18-49 आयुवर्ग की 32% विवाहित महिलाओं ने शारीरिक, यौन या भावनात्मक वैवाहिक हिंसा का सामना किया है. रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के ख़िलाफ शारीरिक हिंसा के 80% से अधिक मामलों में अपराधी उनके पति रहे हैं.

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घरेलू हिंसा को लेकर नुक्कड़ नाटक करते कलाकार (फोटो साभार: विकीपीडिया/Biswarup Ganguly)

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, देश में 18-49 आयुवर्ग की 32% विवाहित महिलाओं ने शारीरिक, यौन या भावनात्मक वैवाहिक हिंसा का सामना किया है. रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के ख़िलाफ शारीरिक हिंसा के 80% से अधिक मामलों में अपराधी उनके पति रहे हैं.

घरेलू हिंसा को लेकर नुक्कड़ नाटक करते कलाकार. (फोटो साभार: विकीपीडिया/Biswarup Ganguly)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस) के अनुसार, देश की एक-तिहाई महिलाएं शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करती हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, देश में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा का प्रतिशत 31.2% से घटकर 29.3% हुआ है, वहीं, 18 से 49 वर्ष की आयु की 30% महिलाओं ने बताया कि उन्होंने 15 वर्ष की आयु से शारीरिक हिंसा का सामना किया. छह प्रतिशत महिलाओं ने  अपने जीवनकाल में किसी न किसी समय में यौन हिंसा का शिकार होने की बात कही.

बीते सप्ताह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया द्वारा जारी इस रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि शारीरिक या यौन हिंसा से पीड़ित महज 14 फीसदी महिलाएं ऐसी थीं, जिन्होंने इसके बारे में बताया.

उल्लेखनीय है कि नवीनतम एनएचएफएस सर्वेक्षण में 28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेश के 707 जिलों के 6.37 लाख परिवारों को शामिल किया गया है. वर्ष 2019-21 के दौरान कराए गए इस सर्वेक्षण में 7,24,115 महिलाओं और 1,01,839 पुरुषों ने हिस्सा लिया है.

एनएफएचएस -5 में कहा गया है कि इसकी और एनएफएचएस -4 की  तुलना संभव नहीं थी क्योंकि गहन तुलना संभव नहीं थी क्योंकि एनएफएचएस -4 में 15-49 आयु वर्ग की महिलाओं को शामिल किया गया था, जबकि एनएफएचएस-पांच 18-49 उम्र की महिलाओं के बारे में है.

सर्वेक्षण में पाया गया है कि 18-49 वर्ष की 32% विवाहित महिलाओं ने शारीरिक, यौन या भावनात्मक वैवाहिक हिंसा का सामना किया है. वैवाहिक हिंसा का सबसे आम शारीरिक हिंसा (28%) थी, जिसके बाद भावनात्मक हिंसा और यौन हिंसा रही है.

इस आंकड़े के विपरीत, देश में केवल 4% पुरुषों ने घरेलू हिंसा के मामलों का सामना किया.

महिलाओं के खिलाफ सबसे अधिक 48%  घरेलू हिंसा कर्नाटक में देखी गई है, इसके बाद बिहार, तेलंगाना, मणिपुर और तमिलनाडु का स्थान है. लक्षद्वीप में महिलाओं ने सबसे कम (2.1%)  घरेलू हिंसा का सामना किया.

सर्वे के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं (32%) के साथ शहरी क्षेत्रों (24%) की तुलना में अधिक शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है. साथ ही यह भी बताया गया है कि पीड़ित महिला और अपराधी पुरुष के शिक्षा और धन के बढ़ते स्तर के साथ हिंसा तेजी से घटती नजर आती है.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि स्कूली शिक्षा पूरी न करने वाली 40% महिलाओं को शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा, जबकि स्कूल गई 18 फीसदी महिलाएं शारीरिक हिंसा का शिकार बनीं. आर्थिक रूप से कमजोर 39 प्रतिशत ने ऐसी हिंसा का सामना किया और आर्थिक रूप से मजबूत 17 फीसदी औरतें शारीरिक हिंसा का निशाना बनीं.

सर्वे में सामने आया महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि महिलाओं के खिलाफ शारीरिक हिंसा के 80% से अधिक मामलों में अपराधी उनके पति हैं.

रिपोर्ट कहती है कि जिन पतियों ने स्कूली शिक्षा के 12 या अधिक वर्ष पूरे किए हैं, उनमें शारीरिक, यौन, या भावनात्मक वैवाहिक हिंसा करने की संभावना उन लोगों की तुलना में आधी (21%) होती है, जिनके पास (43%) स्कूली शिक्षा नहीं मिली.

बताया गया है, ‘पति के शराब के सेवन के स्तर के साथ शारीरिक या वैवाहिक यौन हिंसा का अनुभव बहुत भिन्न होता है. उन 23% महिलाओं, जिन के पति शराब नहीं पीते हैं, की तुलना में अक्सर शराब पीने वाले पुरुषों की पत्नियों (70% महिलाओं) ने शारीरिक या यौन हिंसा का सामना किया है.’

रिपोर्ट कहती है कि 40-49 आयुवर्ग की महिलाएं 18-19 उम्र वर्ग की महिलाओं की तुलना में अधिक हिंसा का शिकार बनती हैं.

35 प्रतिशत पुरुषों ने कहा कि गर्भनिरोधक अपनाना महिलाओं का काम

एनएफएचएस की रिपोर्ट यह भी बताती है कि देश के करीब 35.1 प्रतिशत पुरुषों का मानना ​​है कि गर्भनिरोधक अपनाना ‘महिलाओं का काम’ है. वहीं, 19.6 प्रतिशत पुरुषों का मानना ​​है कि गर्भनिरोधक का उपयोग करने वाली महिलाएं ‘स्वच्छंद’ हो सकती हैं.

एनएफएचएस -5 सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि चंडीगढ़ में सबसे अधिक 69 प्रतिशत पुरुषों का मानना है कि गर्भनिरोधक अपनाना महिलाओं का काम है और पुरुषों को इसके संबंध में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है.

वहीं, केरल में सर्वेक्षण में शामिल 44.1 प्रतिशत पुरुषों के अनुसार गर्भनिरोधक का उपयोग करने वाली महिलाएं ‘स्वच्छंद’ हो सकती हैं.

रिपोर्ट के अनुसार 55.2 प्रतिशत पुरुषों का कहना है कि अगर पुरुष कंडोम का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यह ज्यादातर मामलों गर्भधारण नहीं होने देता है.

सर्वेक्षण में शामिल पुरुषों में, करीब 64.7 प्रतिशत सिखों का मानना ​​था कि गर्भनिरोधक महिलाओं का काम है और पुरुषों को इस बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, जबकि सर्वेक्षण में शामिल हिंदुओं में यह संख्या 35.9 प्रतिशत और मुसलमानों के लिए 31.9 प्रतिशत थी.

इसमें कहा गया है कि आय के साथ ही आधुनिक गर्भ निरोधकों का उपयोग भी बढ़ता है और कम आय वाले समूह में 50.7 प्रतिशत महिलाएं इसका उपयोग करती हैं, वहीं उच्चतम आय वाले समूह में यह 58.7 प्रतिशत है.

आंकड़ों के अनुसार, कामकाजी महिलाओं के आधुनिक गर्भनिरोधक का उपयोग करने की अधिक संभावना है क्योंकि ऐसी 66.3 प्रतिशत महिलाएं आधुनिक गर्भनिरोधक पद्धति का उपयोग करती हैं जबकि गैर-कामकाजी समूह में यह प्रतिशत 53.4 प्रतिशत है.

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुतरेजा ने कहा कि यह रिपोर्ट उन तमाम सबूतों में से एक है जो साबित करता है कि विकास सबसे अच्छा गर्भनिरोधक है.

उन्होंने कहा कि यह चिंता का विषय है कि महिला नसबंदी अब भी गर्भनिरोधक का सबसे लोकप्रिय तरीका बना हुआ है. उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि परिवार नियोजन की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही बनी हुई है.

रोजगार करने वाली महिलाओं की संख्या में आंशिक वृद्धि

इसी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 15 से 49 साल उम्र की केवल 32 प्रतिशत विवाहित महिलाओं के पास रोजगार है. हालांकि, इनमें से 83 प्रतिशत को नकद आय होती है जबकि 15 प्रतिशत को कोई भुगतान नहीं किया जाता.

इस प्रकार एनएफएचएस सर्वेक्षण-4 के दौरान इस आयुवर्ग की 31 प्रतिशत महिलाओं के मुकाबले सर्वेक्षण-5 में रोजगार परक महिलाओं की संख्या 32 प्रतिशत हो गई है .

सर्वेक्षण के मुताबिक कमाई करने वाली महिलाओं की संख्या में भी इस दौरान तीन प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है.

एनएफएचएस के नवीनतम सर्वेक्षण में पुरुषों के रोजगार दर में कोई बदलाव नहीं देखा गया है. हालांकि, नकद कमाने वालों की संख्या इस अवधि में 91 प्रतिशत से बढ़कर 95 प्रतिशत हो गई है.

सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत में 15 से 49 वर्ष आयुवर्ग की केवल 32 प्रतिशत महिलाएं रोजगार से जुड़ी हैं जबकि उनकी तुलना में इसी आयुवर्ग के पुरुषों में यह दर 98 प्रतिशत है.

काम करने वाली लड़कियों और महिलाओं में 83 प्रतिशत नकद कमाती हैं जिनमें से आठ प्रतिशत वे हैं जिन्हें वेतन नकद और अन्य माध्यमों से मिलता है. वहीं, इस आयुवर्ग की 15 प्रतिशत काम करने वाली महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें उनके काम के लिए भुगतान नहीं किया जाता.

सर्वेक्षण के मुताबिक, महिलाओं की तुलना में इस आयुवर्ग में काम करने वाले 95 प्रतिशत पुरुष नकद कमाते हैं जबकि चार प्रतिशत को उनके काम के लिए भुगतान नहीं किया जाता.

सर्वेक्षण कहता है कि 15 से 19 वर्ष आयुवर्ग की काम करने वाली 22 प्रतिशत लड़कियों और महिलाओं को उनके काम की कोई पारिश्रमिक नहीं मिलता.

हालांकि, 25 साल और इससे अधिक उम्र की काम करने वाली महिलाओं में पारिश्रमिक नहीं मिलने की दर कम है और यह 13 से 17 प्रतिशत के बीच है.

सर्वेक्षण के मुताबिक, ‘एनएफएचएस-4 के बाद के चार साल में स्वयं कमाने का फैसला लेने वाली महिलाओं की संख्या में मामूली वृद्धि हुई है और यह 82 प्रतिशत से बढ़कर 85 प्रतिशत हो गई है.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि पति के बराबर या अधिक कमाने वाली महिलाओं की संख्या एनएफएचएस-4 के मुकाबले घटी है और यह 42 प्रतिशत से कम होकर 40 प्रतिशत पर आ गई है.

पूनम मुतरेजा ने इस डेटा के बारे में कहा कि ये आंकड़े महिलाओं के जीवन में उल्लेखनीय बदलाव को इंगित नहीं करते.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)