एक ऑनलाइन बहस के दौरान लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर रविकांत चंदन ने काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद पर एक की किताब का हवाला दिया था, जिसमें उन कथित परिस्थितियों का वर्णन किया गया है जिसके तहत विवादित स्थान पर मंदिर नष्ट कर उसके स्थान पर एक मस्जिद बनाई गई थी. इस संबंध में पुलिस ने प्रोफेसर के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों ने बीते मंगलवार (10 मई) को लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी के एक प्रोफेसर की उन टिप्पणियों को लेकर उन्हें धमकाया और उनके साथ मारपीट की, जो उन्होंने वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद पर किया था.
विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रवि कांत चंदन ने हिंदी समाचार मंच ‘सत्य हिंदी’ द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन बहस के दौरान की गईं टिप्पणियों के लिए हिंदुत्ववादी संगठन ने अपना गुस्सा जाहिर किया.
रविकांत चंदन ने बहस के दौरान आंध्र प्रदेश के एक स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिक नेता पट्टाभि सीतारमैया की किताब ‘फेदर्स एंड स्टोन्स’ की एक कहानी का हवाला दिया था, जिसमें उन कथित परिस्थितियों का वर्णन किया गया है जिसके तहत विवादित स्थान पर एक मंदिर को नष्ट कर दिया गया था और उसके स्थान पर एक मस्जिद बनाई गई थी.
1946 में प्रकाशित ‘फेदर्स एंड स्टोन्स’ सीतारमैया द्वारा लिखी गई एक जेल डायरी है, जब उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अहमदनगर में अंग्रेजों द्वारा कैद किया गया था और लेखक ने इसे ‘हास्य, बुद्धि और ज्ञान की पुस्तक’ के रूप में वर्णित किया था.
हालांकि, इस बहस की एक संपादित क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल कर दी गई, जिसमें रवि कांत चंदन द्वारा किताब के बारे में दी गई यह जानकारी गायब कर दी गई है.
जैसे ही क्लिप वायरल हुई विभिन्न हिंदू संगठनों के सदस्यों ने उनकी टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया कि प्रोफेसर, जो एक दलित हैं, ने हिंदू देवताओं का अपमान किया है. इस आक्रोश ने अंतत: एबीवीपी सदस्यों और अन्य लोगों ने विश्वविद्यालय परिसर में धावा बोल दिया, भड़काऊ नारे लगाए और उन्हें धमकी भी दी.
इसके बाद इंटरनेट पर एक वीडियो सामने आया जिसमें आक्रोशित भीड़ 2020 के दिल्ली दंगों के लिए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा लगाए गए नारे ‘देश के गद्दारों को… गोली मारो सा*** को’, लगाते हुए नजर आ रही है. हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस ने हिंसा का आह्वान करने वालों के खिलाफ नहीं, बल्कि खुद प्रोफेसर के खिलाफ कार्रवाई की है.
After a professor of Lucknow Univ. produced evidence over the Gyanvyapi row during a TV debate, ABVP members assembled at the proctor's office at Lucknow university and raised slogans against the professor (Ravikant). FIR was registered against the professor. pic.twitter.com/0iLhS1AilR
— Urooj Khan TOI (@UroojkhanTOI) May 10, 2022
विश्वविद्यालय के एक छात्र अमन दुबे की शिकायत के आधार पर प्रो. चंदन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. एफआईआर में उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए (धर्म आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), 504 (शांति भंग साबित करने के इरादे से जान-बूझकर अपमान), 505(2) (पूजा करने के स्थान पर शरारतपूर्ण बयान) और आईटी अधिनियम की धारा 66 के तहत आरोप लगाए गए हैं.
एफआईआर में दावा किया गया है कि प्रोफेसर की टिप्पणियों ने विश्वविद्यालय परिसर में हिंदू छात्रों की भावनाओं को आहत किया था और उन्होंने परिसर में छात्रों पर हमला करने के लिए बाहर से गुंडों को बुलाया था.
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्वविद्यालय के अधिकारियों और लखनऊ पुलिस के हस्तक्षेप के बाद भीड़ को प्रोफेसर से दूर किया गया.
प्रो. चंदन ने एबीवीपी के आरोपों का जवाब देते हुए अपना एक वीडियो भी अपलोड किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे पर चर्चा के दौरान उन्होंने ‘फेदर्स एंड स्टोन्स’ किताब से उपर्युक्त कहानी सुनाई.
वीडियो में वे कहते हैं, ‘वायरल वीडियो में पुस्तक और लेखक के लिए दिया गया मेरा संदर्भ हटा दिया गया था और यह कहा गया कि मैंने हिंदू धर्म का अनादर किया, जो मेरा इरादा नहीं था. मैं बस कहानी सुना रहा था और मैंने यह भी उल्लेख किया कि यह एक कहानी थी, वास्तविक तथ्य नहीं.’
इसके बाद वह बताते हैं कि कैसे एबीवीपी के सदस्यों और अन्य लोगों ने विश्वविद्यालय में परेशानी पैदा की.
एबीवीसी के सदस्यों से हुई बातचीत पर प्रोफेसर ने कहा, ‘मैंने उन्हें पूरा वीडियो देखने के लिए कहा, ताकि उनकी गलत धारणाओं को दूर किया जा सके. मैंने इसके बारे में फेसबुक पर भी पोस्ट किया था.’
उन्होंने आगे कहा, ‘मैं एक दलित हूं और बाबासाहेब आंबेडकर, उनके विचार और आदर्श का अनुयायी हूं. मुझे लगता है कि यह तथ्य कि मैं दलित हूं, इसलिए मेरी आवाज को दबाया जा रहा है और भारत के लिए जो आदर्श आंबेडकर स्थापित करना चाहते थे, उसे खत्म करने की कोशिश की जा रही है.’
गौरतलब है कि विश्व वैदिक सनातन संघ के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह विसेन के नेतृत्व में राखी सिंह तथा अन्य ने अगस्त 2021 में अदालत में एक वाद दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पास स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और अन्य देवी-देवताओं की सुरक्षा की मांग की थी.
इसके साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित सभी मंदिरों और देवी-देवताओं के विग्रहों की वास्तविक स्थिति जानने के लिए अदालत से सर्वे कराने का अनुरोध किया था.
अदालत ने अधिकारियों को 10 मई से पहले इस स्थान का एक वीडियो सर्वेक्षण और रिकॉर्ड करने का निर्देश दिया था. जबकि मस्जिद समिति ने यहां पर वीडियोग्राफी के आदेश पर आपत्ति जताई थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्थानीय अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली मस्जिद समिति की याचिका को खारिज कर दिया था.
बहरहाल प्रो. चंदन के साथ हुई इस घटना के बाद शिक्षाविदों के एक समूह ने एबीवीपी के कार्यों की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया और मांग की कि भीड़ के सदस्यों पर कार्रवाई की जाए.
बयान के अनुसार, ‘हम मांग करते हैं कि दोषियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए. बहस और असहमति का माहौल, जो एक शिक्षण संस्थान के लिए महत्वपूर्ण और एक लोकतांत्रिक समाज के लिए आवश्यक है, तुरंत बहाल किया जाए. डॉ. रविकांत और उनके परिवार को सभी आवश्यक सुरक्षा प्रदान की जाए.’
बयान में इस घटना को ‘असहिष्णुता और बहुसंख्यक संप्रदायवाद और हिंसा का एक उदाहरण बताया गया, जो पूरे देश में विशेष रूप से भाजपा शासित राज्यों में आदर्श बनता जा रहा है.
इन शिक्षाविदों में रूपरेखा वर्मा, प्रो. चमन लाल, वंदना मिश्रा, रमेश दीक्षित, मधु गर्ग, अतर हुसैन, लाल बहादुर सिंह, नदीम हसनैन, रामदत्त त्रिपाठी, प्रभात पटनायक, असद जैदी, शाइरा नईम, सिद्धार्थ कलहंस आदि शामिल हैं.
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