5 मई को वडोदरा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय में ललित कला संकाय ने परीक्षा के दौरान हिंदू देवी-देवताओं को आपत्तिजनक तरीके से दिखाने के आरोप में दक्षिणपंथी भीड़ ने छात्रों और स्टाफ पर हमला किया था. बताया गया है कि चित्र बनाने वाले छात्र के ख़िलाफ़ कई धाराओं के तहत केस भी दर्ज किया गया था.
नई दिल्ली: वडोदरा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय (एमएसयू) के प्रतिष्ठित कला संकाय के पूर्व छात्रों (एलुमनाई) ने कुलपति को पत्र लिखकर 5 मई को परिसर के अंदर छात्रों और शिक्षकों पर हमला करने वाली भीड़ के खिलाफ ‘तत्काल कार्रवाई’ की मांग की है. उन्होंने छात्र निकाय, फैकल्टी और पूर्व छात्रों के निर्वाचित प्रतिनिधियों वाले एक स्वतंत्र निकाय द्वारा मामले जांच की भी मांग की है.
मामला एक छात्र द्वारा हिंदू देवी-देवताओं के कथित आपत्तिजनक चित्रण से जुड़ा है.
समाचार एजेंसी पीटीआई की दस मई को प्रकाशित खबर के अनुसार, ललित कला पाठ्यक्रम के एक छात्र के खिलाफ कथित तौर पर अपनी कलाकृतियों में हिंदू देवी-देवताओं को आपत्तिजनक तरीके से दिखाने के आरोप में पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की थी.
बताया गया था कि कुछ दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों ने पांच मई को विश्वविद्यालय के ललित कला संकाय परिसर में प्रदर्शन किया था. उनका आरोप था कि छात्रों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों में हिंदू देवी-देवताओं को आपत्तिजनक तरीके से दर्शाया गया है.
खबर के मुताबिक, पुलिस निरीक्षक आरजी जडेजा ने बताया था कि स्थानीय एबीवीपी कार्यकर्ता जयवीर सिंह राउलजी द्वारा दी गई शिकायत के आधार पर वडोदरा की सयाजीगंज पुलिस ने छात्र पर भारतीय दंड संहिता की धारा 295ए (किसी भी वर्ग के धर्म का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य करना) और 298 (किसी भी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से कुछ बोलना) के तहत मामला दर्ज किया था.
अपनी शिकायत में राउलजी ने कहा कि उन्हें पांच मई को अपने वॉट्सऐप पर कुछ आपत्तिजनक कलाकृतियों की तस्वीरें मिलीं जिन्हें कथित तौर पर ललित कला के छात्रों द्वारा तैयार किया गया था.
प्राथमिकी में कहा गया था कि यह कलाकृति क्योंकि अखबारों में छपी बलात्कार की खबरों की कतरन से तैयार कर विभिन्न देवी-देवताओं के कटआउट के तौर पर चिपकाई गई थीं, कुछ एबीवीपी कार्यकर्ता उन दावों की जांच के लिए ललित कला संकाय पहुंचे कि परीक्षा मूल्यांकन प्रक्रिया के तहत इन कलाकृतियों को संकाय के प्रदर्शनी क्षेत्र में सार्वजनिक रूप से दिखाया जाएगा.
प्राथमिकी के अनुसार, हालांकि जब एबीवीपी सदस्य संकाय में पहुंचे तो ये कलाकृतियां प्रदर्शनी क्षेत्र की दीवार पर नहीं थीं. कुछ पूछताछ के बाद कार्यकर्ताओं को पता चला कि ये कलाकृतियां आरोपी छात्र द्वारा तैयार की गई थीं.
प्राथमिकी में कहा गया कि जब आरोपी से इस बारे में पूछा गया तो उसने उन कलाकृतियों को बनाने की बात स्वीकार की, जिन्हें बाद में हटा दिया गया था. प्राथमिकी में कहा गया है कि छात्र ने यहां तक कहा था कि वह भविष्य में ऐसी कलाकृतियां फिर से बनाएगा.
भीड़ के हमले के तुरंत बाद ही विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विजय कुमार श्रीवास्तव ने छह मई को इस मामले की जांच कर रिपोर्ट सौंपने के लिये नौ सदस्यीय फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी का गठन किया .
रिपोर्ट के अनुसार, पांच मई को परिसर पहुंची भीड़ का नेतृत्व कथित तौर पर स्थानीय भाजपा नेता और आरएसएस के छात्र संगठन के पूर्व सदस्य हशमुख वाघेला ने किया था, उनके साथ एक हिंदू जागरण मंच का एक नेता भी था.
पूर्व छात्रों का वीसी को पत्र
अब विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों अपने पत्र में कुलपति से यह पूछते हुए कि परीक्षाओं के दौरान स्थानीय भाजपा नेता बिना किसी सजा के भय के कैंपस में हिंसक जुलूस का नेतृत्व कैसे कर सकते हैं, बेहतर सुरक्षा व्यवस्था की भी मांग की है.
घटना को ‘बहुत ही चिंताजनक’ और ‘परीक्षा प्रक्रिया में डाला गया हिंसक व्यवधान’, ‘सार्वजनिक संपत्ति और एक छात्र की कलाकृति से तोड़फोड़, ‘एक छात्र पर शारीरिक हमले और फैकल्टी के गजेटेड अफसरों, छात्रों और अन्य स्टाफ को शारीरिक और मौखिक ‘गंभीर’ करार देते हुए पूर्व छात्रों ने यह भी जानना चाहा है कि किस संदर्भ में और ‘किस वास्तविक एजेंडा के साथ’ उस छात्र की कलाकृतियों की तस्वीरें प्रसारित की गई थीं.
उनका कहना है, चूंकि यह छात्र इस साल पास हो रहे बैच से नहीं था, इसलिए उक्त तस्वीरें 1 मई को आयोजित एक गोपनीय परीक्षा प्रक्रिया का हिस्सा थीं, जिसके पांच दिन बाद 6 मई को उन्हें सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाना था.
शिक्षकों और छात्रों ने बताया है कि वे चित्र सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए नहीं थे क्योंकि उन्हें सबमिशन के हिस्से के रूप में स्वीकार नहीं किया गया था, इसलिए उन्हें तुरंत प्रदर्शन से हटा दिया गया था, इसके बावजूद भीड़ परिसर में पहुंच गई.
ख़बरों के अनुसार, वाघेला ‘आपत्तिजनक’ कलाकृतियों के खिलाफ एक ज्ञापन प्रस्तुत करने के लिए फैकल्टी पहुंचे थे, जिसके बारे में उन्हें ‘मालूम चला था.’ कलाकृतियों का विरोध करते हुए उन्होंने कहा, ‘छात्रों को अपनी हिंदू विरोधी मानसिकता दिखाने की आदत हो गई है.’
वीसी को भेजे गए पत्र में एलुमनाई ने कहा है, ‘इस तरह का हमला हम सभी के लिए, जो हमारे देश के सांस्कृतिक ताने-बाने और लोकतांत्रिक चरित्र, कला के छात्रों, निवासियों और व्यापक तौर पर इस देश के नागरिकों के बारे में चिंतित हैं, के लिए खतरे की घंटी है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘यह शैक्षणिक संस्थान जहां हम सभी पढ़े, कलाकार और नागरिकों के रूप में हमारी सामाजिक जिम्मेदारी के बारे में जरूरी सबक सीखने की जगह रहा है. यह एक ऐसा स्थान है जहां छात्रों को न केवल गलती करने और उनसे सीखने की अनुमति दी जाती है, बल्कि एक ऐसी जगह भी है जहां छात्र हमारे समाज में तस्वीरों की भूमिका के बारे में गहराई से और कई दृष्टिकोणों से सोचना सीखते हैं. यहीं हम सीखते हैं कि कैसे हम कलाकार के रूप में संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ अपनी भूमिका निभा सकते हैं.’
इन्हीं कारणों का हवाला देते हुए पूर्व छात्रों ने उस छात्र के साथ एकजुटता व्यक्त की, जिसे उस सिंडिकेट- जिसमें वाघेला एक सदस्य है- द्वारा निष्कासित कर दिया गया था और इस निर्णय को रद्द करने की मांग भी उठाई. यह सिंडिकेट विश्वविद्यालय में सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है.
एलुमनाई के बयान में कहा गया है, ‘शिक्षा का अधिकार हमारे संविधान के साथ-साथ मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा में भी निहित है. हम मानते हैं कि छात्र कुंदन यादव के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन सिंडिकेट द्वारा लिए गए एक निर्णय से हुआ है, जिसमें हसमुख वाघेला जैसे लोग और उनके समर्थक अभी भी बैठे हुए हैं, बावजूद इसके कि उन्होंने दिनदहाड़े विश्वविद्यालय की आचार संहिता और कायदों का उल्लंघन किया है.’
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वाघेला ने साल 2007 में एक सालाना मूल्यांकन परीक्षा में ईसा मसीह और देवी दुर्गा को चित्रित करने वाले एक स्नातकोत्तर छात्र की कलाकृति का विरोध किया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)