नगालैंड: ग़लत पहचान के चलते सेना द्वारा 14 नागरिकों की हत्या मामले में कोर्ट ऑफ इंक्वायरी पूरी

सेना के पूर्वी कमान के प्रमुख पी. कलीता ने कहा कि यह ग़लत पहचान और निर्णय की त्रुटि का मामला था. सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी पूरी हो गई है और अभी इसकी पड़ताल की जा रही है. हमें एसआईटी की रिपोर्ट भी मिली है और दोनों का विश्लेषण किया जा रहा है. नगालैंड के मोन जिले में पिछले साल दिसंबर में सैनिकों की गोलीबारी में 14 नागरिकों के मौत हो गई थी.

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सशस्त्र बलों द्वारा कथित तौर पर मारे गए 14 लोगों को उनके रिश्तेदारों और स्थानीय लोगों ने नगालैंड के मोन शहर में छह दिसंबर 2021 को श्रद्धांजलि दी. (फोटो: पीटीआई)

सेना के पूर्वी कमान के प्रमुख पी. कलीता ने कहा कि यह ग़लत पहचान और निर्णय की त्रुटि का मामला था. सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी पूरी हो गई है और अभी इसकी पड़ताल की जा रही है. हमें एसआईटी की रिपोर्ट भी मिली है और दोनों का विश्लेषण किया जा रहा है. नगालैंड के मोन जिले में पिछले साल दिसंबर में सैनिकों की गोलीबारी में 14 नागरिकों के मौत हो गई थी.

नगालैंड के मोन जिले में बीते पांच दिसंबर को सशस्त्र बलों द्वारा कथित तौर पर मारे गए 14 नागरिकों की मौत पर स्थानीय लोगों ने कैंडल मार्च निकाला. (फोटो: पीटीआई)

गुवाहाटी: सेना के पूर्वी कमान के प्रमुख ने सोमवार को कहा कि नगालैंड में गोलीबारी की घटना की ‘कोर्ट ऑफ इंक्वायरी’ पूरी कर ली गई है.

पिछले साल दिसंबर में राज्य के मोन जिले के ओटिंग इलाके में सैनिकों की गोलीबारी में 14 नागरिकों के मौत हो गई थी. इलाके में एक असफल अभियान और उसके बाद हुई हत्याओं को लेकर सेना ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (सीओआई) शुरू की थी, जबकि राज्य सरकार ने घटना की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था.

पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल आरपी कलीता ने कहा, ‘यह गलत पहचान और निर्णय की त्रुटि का मामला था. सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी पूरी हो गई है और अभी इसकी पड़ताल की जा रही है. हमें एसआईटी की रिपोर्ट भी मिली है और दोनों का विश्लेषण किया जा रहा है.’

उन्होंने कहा कि अगर कोई चूक या किसी के द्वारा गलती पाई जाती है तो उसके पद के बारे में विचार किए बगैर कार्रवाई की जाएगी.

लेफ्टिनेंट जनरल कलीता ने कहा कि सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (आफस्पा) दशकों से पूर्वोत्तर राज्य में लागू है और अशांत इलाकों में सैनिकों को कुछ छूट देता है, लेकिन यह कानून निरंकुश नहीं है.

सैन्य कमांडर ने कहा, ‘मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) का पालन करना होता है. कई बार (एसओपी से) भटकाव हुए हैं. जब भी कोई भटकाव हुआ है, ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई है. इस मामले में भी सैन्य अधिनियम और देश के कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी.’

ओटिंग में सैन्यकर्मियों द्वारा गोलीबारी में लोगों की मौत के बाद नगालैंड में आफस्पा को हटाने की मांग को लेकर व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे.

आफस्पा सुरक्षा बलों को बिना किसी पूर्व वारंट के कार्रवाई करने और किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार देता है, इसके अलावा सुरक्षा बलों को किसी की हत्या करने पर गिरफ्तारी और अभियोजन से छूट प्रदान करता है.

नगालैंड के सात जिलों के 15 थाना क्षेत्रों से बीते एक अप्रैल से आफस्पा को हटा दिया गया. इसके अलावा मणिपुर के छह जिलों में 15 पुलिस थाना क्षेत्र और असम के 23 जिलों में पूरी तरह से और एक जिले में आंशिक रूप से आफस्पा हटा दिया गया था.

नगालैंड सरकार ने ओटिंग में सेना की गोलीबारी में मारे गए आम ना​गरिकों के मामले की जांच के लिए गठित पांच सदस्यीय एसआईटी का विस्तार कर उसे 22 सदस्यीय जांच दल बना दिया और इसे सात समूहों में विभाजित किया था.

सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का नेतृत्व मेजर जनरल रैंक के एक अधिकारी ने किया.

बीते मार्च महीने में नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने कहा था कि कथित हत्या की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के नतीजे केंद्र से दोषियों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी मिलने के बाद सार्वजनिक किए जा सकते हैं.

गौरतलब है कि पिछले साल चार और पांच दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग और तिरु गांवों के बीच सेना की गोलीबारी में कम से कम 14 नागरिकों के मौत हो गई थी. ऐसा दावा किया गया था कि यह घटना गलत पहचान का नतीजा थी.

गोलीबारी की पहली घटना तब हुई जब चार दिसंबर (2021) की शाम कुछ कोयला खदान के मजदूर एक पिकअप वैन में सवार होकर घर लौट रहे थे.

सेना की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि जवानों को प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-के (एनएससीएन-के) के युंग ओंग धड़े के उग्रवादियों की गतिविधि की सूचना मिली थी और इसी गलतफहमी में इलाके में अभियान चला रहे सैन्यकर्मियों ने वाहन पर कथित रूप से गोलीबारी की, जिसमें छह मजदूरों की जान चली गई.

अधिकारियों ने बताया था कि जब ये मजदूर अपने घर नहीं पहुंचे तो स्थानीय युवक और ग्रामीण उनकी तलाश में निकले तथा इन लोगों ने सेना के वाहनों को घेर लिया था. इस दौरान हुई धक्का-मुक्की व झड़प में एक सैनिक की मौत हो गई और सेना के वाहनों में आग लगा दी गई थी. इसके बाद सैनिकों द्वारा आत्मरक्षार्थ की गई गोलीबारी में सात और लोगों की जान चली गई थी.

इस घटना के खिलाफ उग्र विरोध और दंगों का दौर अगले दिन पांच दिसंबर 2021 को भी  जारी रहा और गुस्साई भीड़ ने कोन्याक यूनियन और असम राइफल्स कैंप के कार्यालयों में तोड़फोड़ की और उसके कुछ हिस्सों में आग लगा दी. तब सुरक्षा बलों द्वारा हमलावरों पर की गई जवाबी गोलीबारी में कम से कम एक और नागरिक की मौत हो गई, जबकि दो अन्य घायल हो गए थे.

घटना के बाद विभिन्न छात्र संगठन और राजनीतिक दल सेना को विशेष अधिकार देने वाले आफस्पा हटाने की मांग किया था.

नगालैंड में इन हत्याओं के बाद से राजनेताओं, सरकार प्रमुखों, विचारकों और कार्यकर्ताओं ने एक सुर में आफस्पा को हटाने की मांग उठाई थी. इनका कहना था कि यह कानून सशस्त्र बलों को बेलगाम शक्तियां प्रदान करता है और यह मोन गांव में फायरिंग जैसी घटनाओं के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है.

पिछले साल 19 दिसंबर 2021 को नगालैंड विधानसभा ने केंद्र सरकार से पूर्वोत्तर, खास तौर से नगालैंड से आफस्पा हटाने की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया था. प्रस्ताव में ‘मोन जिले के ओटिंग-तिरु गांव में चार दिसंबर को हुई इस दुखद घटना में लोगों की मौत की आलोचना की गई थी.

इसी दौरान पिछले साल दिसंबर में केंद्र ने नगालैंड की स्थिति को अशांत और खतरनाक करार दिया तथा आफस्पा के तहत 30 दिसंबर से छह और महीने के लिए पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)