यूएपीए का प्रावधान राजद्रोह से भी ज्यादा ख़तरनाक: जस्टिस मदन बी. लोकुर

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी. लोकुर ने राजद्रोह क़ानून को लेकर शीर्ष अदालत के हालिया आदेश को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि इस क़ानून में कुछ अपवाद थे जहां राजद्रोह के आरोप लागू नहीं किए जा सकते पर यूएपीए की धारा 13 के तहत कोई अपवाद नहीं हैं. यदि यह प्रावधान बना रहता है, तो यह बद से बदतर स्थिति में जाने जैसा होगा.

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जस्टिस मदन बी. लोकुर. (फोटो: द वायर)

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी. लोकुर ने राजद्रोह क़ानून को लेकर शीर्ष अदालत के हालिया आदेश को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि इस क़ानून में कुछ अपवाद थे जहां राजद्रोह के आरोप लागू नहीं किए जा सकते पर यूएपीए की धारा 13 के तहत कोई अपवाद नहीं हैं. यदि यह प्रावधान बना रहता है, तो यह बद से बदतर स्थिति में जाने जैसा होगा.

जस्टिस मदन बी. लोकुर. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मदन बी. लोकुर ने शनिवार को कहा कि राजद्रोह पर शीर्ष अदालत का 11 मई का आदेश ‘महत्वपूर्ण’ है.

वहीं, उन्होंने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) के एक प्रावधान के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए कहा कि यह ‘खराब से बदतर स्थिति में जाने’ जैसा है.

‘राजद्रोह से आजादी’ कार्यक्रम में पूर्व न्यायाधीश ने शीर्ष अदालत द्वारा पारित अंतरिम आदेश के मायने समझाने की कोशिश की.

शीर्ष अदालत ने आजादी से पूर्व के राजद्रोह कानून के तहत देश में सभी कार्यवाहियों पर तब तक के लिए रोक लगा दी है जब तक कि कोई ‘उपयुक्त’ सरकारी मंच इसकी फिर से जांच नहीं करता और निर्देश दिया कि केंद्र और राज्य अपराध का हवाला देते हुए कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं करेंगे.

लोकुर ने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि सरकार राजद्रोह के प्रावधान के बारे में क्या करेगी लेकिन मेरी राय में वह इसे हटा देगी. लेकिन उतना ही चिंताजनक यूएपीए में धारा 13 का एक समानांतर प्रावधान है जो कहता है कि जो कोई भी भारत के खिलाफ असंतोष पैदा करना चाहता है या करने का इरादा रखता है.’

उन्होंने कहा, ‘राजद्रोह में यह सरकार के खिलाफ असंतोष है लेकिन यूएपीए प्रावधान में यह भारत के खिलाफ असंतोष है, बस यही अंतर है. राजद्रोह में कुछ अपवाद थे जहां राजद्रोह के आरोप लागू नहीं किए जा सकते लेकिन यूएपीए की धारा 13 के तहत कोई अपवाद नहीं हैं. यदि यह प्रावधान बना रहता है, तो यह खराब से बदतर स्थिति में जाने जैसा होगा.’

पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि राज्य असंतोष के रूप में क्या देखता है, यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है, यह बहुत खतरनाक है क्योंकि यूएपीए के तहत जमानत प्राप्त करना कठिन है.

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने 11 मई के अपने आदेश में राजद्रोह के मामलों में जांच पर रोक लगा दी थी तथा देश भर में राजद्रोह कानून के तहत लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाहियों पर रोक लगा दी थी.

पूर्व न्यायाधीश ने कहा, ‘देश भर में लंबित मुकदमे और राजद्रोह कानून के तहत सभी कार्यवाहियों पर यह यथास्थिति एक नुकसानदेह हिस्सा है. मान लीजिए कि एक व्यक्ति जो निर्दोष है, लेकिन राजद्रोह के तहत उसके खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया गया है और चाहता है कि मुकदमा पूरा हो जाए, तो उसे कुछ समय इंतजार करना होगा.’

उन्होंने कहा, ‘इसी तरह, अगर किसी को राजद्रोह के तहत दोषी ठहराया जाता है और उसने अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर की है, तो उसे भी इस तरह की यथास्थिति को हटाए जाने तक इंतजार करना होगा.’

लोकुर ने कहा कि बेहतर होता अगर शीर्ष अदालत ने इस यथास्थिति का आदेश नहीं दिया होता और इसके बजाय ऐसे लोगों को राहत देने के लिए एक तंत्र तैयार करना चाहिए था.

उन्होंने युवा पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि का उल्लेख किया, जिनके पासपोर्ट पर रोक लगा दी गई और वह कोपेनहेगन के एक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए नहीं जा सकीं क्योंकि उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया था.

लोकुर ने कहा, ‘जो लोग राजद्रोह के प्रावधान का सामना कर रहे हैं उन्हें कुछ सुरक्षा की आवश्यकता है, क्योंकि यदि उनके मुकदमे पर रोक लगा दी जाती है तो उन्हें निर्णय आने के लिए अनिश्चितकाल तक इंतजार करना होगा. यह यथास्थिति आदेश कुछ समस्या पैदा कर सकता है.’

दो महिला पत्रकारों पेट्रीशिया मुखिम और अनुराधा भसीन की तरफ से शीर्ष अदालत में राजद्रोह मामले में पेश हो चुकीं वकील-कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर ने भी 11 मई के आदेश को महत्वपूर्ण करार दिया.

ग्रोवर ने कहा कि मुखिम और भसीन जैसी याचिकाकर्ताओं का मानना है कि राजद्रोह कानून प्रेस की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है और इसे रोकना एक महत्वपूर्ण कदम है.

उन्होंने कहा कि जब राजद्रोह का प्रावधान आईपीसी में जोड़ा गया तो यह एक गैर-संज्ञेय अपराध था लेकिन बाद में यह संज्ञेय अपराध बन गया.

मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने झारखंड के आदिवासी इलाकों में हुए पत्थरगढ़ी आंदोलन का उल्लेख किया, जिसके बारे में उन्होंने दावा किया कि 11,109 लोगों पर राजद्रोह के आरोप लगाए गए थे.

‘पत्थलगड़ी’ शब्द झारखंड के उन इलाकों में इस्तेमाल होने वाले आदिवासी शब्द से आया है जहां किसी गांव के महत्वपूर्ण निर्णय की घोषणा या सीमा को चिह्नित करने के लिए एक पत्थर की पट्टिका लगाई जाती है.

उन्होंने कहा कि पुलिस द्वारा दर्ज किए गए 30 मामलों में से 21 में आदिवासी लोगों के खिलाफ राजद्रोह का आरोप लगाया गया था, जिसमें 138 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया.

डुंगडुंग ने कहा कि वे अन्य नागरिक समाज संगठनों और सदस्यों के साथ सरकार पर इन मामलों को वापस लेने के लिए दबाव बनाने में सफल रहे और कुछ मामलों को वापस ले लिया गया.

एनजीओ अनहद और सतर्क नागरिक संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम का संचालन आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने किया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)