बीते 30 मार्च को यूपी बोर्ड की 12वीं की अंग्रेज़ी परीक्षा का पेपर लीक हो गया था. इस संबंध में ख़बर लिखने के कारण बलिया के तीनों पत्रकारों को गिरफ़्तार किया गया था. इनमें से दो पत्रकारों- अजित ओझा और दिग्विजय सिंह ने कहा कि अधिकारियों ने ख़ुद को बचाने के लिए पत्रकारों को फंसाया था.
‘मैं 27 दिन की जेल यात्रा का किसी भयानक दुःस्वप्न मानकर भूला दूंगा बशर्ते हम लोगों की गिरफ़्तारी के खिलाफ पत्रकारों की बनी एकता और संघर्ष का जज्बा कायम रहे. बलिया के पत्रकारों ने जिस जज्बे के साथ संघर्ष किया, अपने को धूप में जलाया और पूरे देश में इस आंदोलन का समर्थन मिला, उसी की देन है कि हम तीनों पत्रकार आज जेल से बाहर हैं और हमारे खिलाफ थोपी गई गंभीर आपराधिक धाराएं सरकार को हटानी पड़ी है.’
यह कहना है बलिया में बोर्ड परीक्षा पेपर लीक की खबर लिखने के कारण गिरफ्तार किए गए पत्रकार अजित ओझा का. आजमगढ़ जेल में 27 दिन रहने के बाद रिहा हुए पत्रकार अजित ओझा और दिग्विजय सिंह ने द वायर से बातचीत में विस्तार से पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. साथ ही बताया कि किस तरह उन्हें और साथी पत्रकार मनोज गुप्ता को बलिया जिला प्रशासन ने पेपर लीक कांड में अपनी गर्दन बचाने के लिए फर्जी केस दर्ज कराकर गिरफ्तार कराया और प्रताड़ित किया.
दोनों पत्रकारों की पीड़ा है कि साजिश रचकर उन्हें जेल भिजवाने वाले अधिकारियों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
अजित ओझा डेढ़ दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में हैं. उन्होंने 2004 से पत्रकारिता शुरू की. हिंदुस्तान, अमर उजाला सहित कई छोटे-बड़े अखबारों में काम किया. गाजीपुर, मऊ में रहे और फिर मार्च 2020 में वापस बलिया आ गए. तभी से वे अमर उजाला से जुड़े हैं. पत्रकारिता से जुड़ने के पहले वे 2002 में एससी कॉलेज बलिया में छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके थे.
अजित ओझा ने बताया, मुझे 30 मार्च की दोपहर 12 बजे ऑफिस से गिरफ्तार किया गया. उस समय ऑफिस में चपरासी और विज्ञापन का एक व्यक्ति मौजूद था. मेरे ब्यूरो चीफ मौजूद नहीं थे. मैंने गिरफ्तार करने आए बलिया कोतवाल से कहा कि ब्यूरो चीफ 15 मिनट में आने वाले हैं, तब तक रुक जाइए. मैंने पूछा कि क्या मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है तो कोतवाल ने कहा कि पूछताछ के लिए कोतवाली चलना होगा. मैंने जोर दिया कि ब्यूरो चीफ के आने तक वह रुकें और जो कुछ पूछना है, यहीं पूछ लें. इस पर कोतवाल ने मेरे साथ जबरदस्ती शुरू कर दी और कंधे पर हाथ डाल अपराधियों की तरह पकड़ कर कोतवाली ले गए.’
‘मुझे बाद में पता चला कि दफ्तर से निकलने के बाद ही कई थाने की फोर्स मेरे घर पहुंच गई थी. जब पुलिस बल को पता चला कि मैं घर से ऑफिस के लिए निकल चुका हूं तो घर से लौट आए. इस बीच हल्दी थाने के थानेदार का कई बार मोबाइल पर फोन आया. चूंकि मैं बाइक चला रहा था इसलिए मैंने कॉल रिसीव नहीं की. ऑफिस पहुंच कर कॉल बैक किया तो थानेदार पूछने लगा कि मैं कहां हूं. मैने उनको बताया कि ऑफिस में हूं. इसके कुछ देर बाद ही बलिया कोतवाल मेरे दफ्तर पहुंचे और गिरफ्तार कर कोतवाली ले आए.’
उन्होंने आगे बताया, ‘कोतवाली में कोतवाल ने मुझसे मेरा मोबाइल मांगा तो मैंने दे दिया. मैंने कोतवाल को बताया कि सुबह पहले जिला विद्यालय निरीक्षक और फिर डीएम का फोन आया था. दोनों ने मुझसे अंग्रेजी प्रश्न पत्र की वायरल काॅपी मांगी. मैंने पहले तो मना किया लेकिन दोनों अधिकारियों ने जब यह कहा कि वे इसके जरिये पेपर लीक करने वालों तक पहुंचना चाहते हैं तो मैंने विश्वास कर दोनों के वॉट्सऐप पर वायरल पेपर भेज दिया.’
‘मैंने कोतवाल को यह भी बताया कि एक दिन पहले भी डीआईओएस और डीएम का फोन आया था और उन्होंने मुझसे हाईस्कूल संस्कृत पेपर लीक होने के बारे में पूछा था. डीएम ने मुझसे कहा कि वे उनका बहुत सम्मान करते हैं क्योंकि वे अच्छी पत्रकारिता कर रहे हैं. उस दिन एएसपी, जिला सूचना अधिकारी ने भी मुझे फोन किया था. डीएम ने मुझसे यह भी कहा था कि यह एक बड़ा मामला है. इस तरह की अगर कोई बात जानकारी में आए तो वे सीधे मेरे पर्सनल नंबर पर फोन कर लिया करें. मैंने उनसे कहा कि हम लोग हर खबर में संबंधित विभाग या अधिकारी का पक्ष जरूर लिखते हैं. इस खबर में भी जिला प्रशासन का पक्ष दिया गया है.’
ओझा ने जोड़ा, ‘संस्कृत का पेपर आउट होने के बारे में भी हम लोगों ने डीएम का बयान प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि इस संबंध में जांच कमेटी बना दी गई है और कमेटी जांच कर रही है कि लीक पर्चा बलिया जिले का है या किसी और जिले का. मैंने डीएम से यह भी कहा कि आपके मांगने पर लीक पेपर की वायरल काॅपी जरूर भेज रहा हूं लेकिन मुझे डर लग रहा है कि उल्टे मेरे खिलाफ कार्यवाही न हो जाए क्योंकि कुछ वर्ष पहले बोर्ड परीक्षा का पेपर लीक होने की खबर छापने में पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज कर लिया गया था. डीएम ने मुझे आश्वस्त किया कि मेरे खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होगी.’
ओझा का मानना है कि डीएम पर विश्वास कर वह धोखे का शिकार हुुए. उन्होंने बताया कि डीएम के फोन के पहले जिला सूचना अधिकारी ने उनसे फोन पर कहा कि डीएम साहब आपकी बहुत प्रशंसा करते हैं. जिला सूचना अधिकारी ने करीब 16 मिनट तक बातचीत की थी और अधिकतर समय उनकी तारीफ करते रहे.
ओझा आगे बताते हैं, ‘मैंने कोतवाल से बताया कि मैने वायरल प्रश्न पत्र डीआईओएस और डीएम के अलावा और किसी को नहीं भेजा है. चाहे तो वे मेरा मोबाइल चेक कर सब जान लें. कोतवाल ने कुछ देर मोबाइल देखने के बाद मुझे दे दिया. मुझे शक हुआ कि कहीं मेरे मोबाइल से छेड़छाड़ कर सबूत प्लांट न कर दिए जाएं. मेरे मोबाइल से अधिकारियों से जो भी बातचीत हुई थी, वह सब कॉल रिकॉर्ड में दर्ज थी. इसी वक्त तमाम पत्रकार साथी कोतवाली पहुंच गए और मेरी गिरफ़्तारी को लेकर सवाल करते हुए प्रदर्शन करने लगे. पत्रकारों ने मुझे कोतवाल के चेंबर से बुलाकर धरना-प्रदर्शन में बैठा लिया. मैंने अपने कुछ पत्रकार साथियों से कहा कि वे मेरे मोबाइल से सभी कॉल रिकॉर्ड का बैकअप ले लें क्योंकि मेरे साथ साजिश हो रही है. कई पत्रकारों ने मेरे मोबाइल से सभी कॉल रिकॉर्ड व अन्य डेटा का बैकअप ले लिया.’
वे आगे कहते हैं, ‘उन्होंने मुझे दिन में 12 बजे गिरफ्तार किया गया लेकिन मेरे खिलाफ एफआईआर अपरान्ह 4.30 बजे दर्ज की गई. मेरी गिरफ़्तारी दोपहर 12 बजे मेरे ऑफिस से हुई लेकिन रिकॉर्ड में मेरी गिरफ़्तारी शहर के एक चौराहे से शाम 6.30 बजे दिखाई गई और यह लिखा गया कि मैं भागने के फिराक में था तभी मुझे पकड़ लिया गया. मुझे शाम साढ़े सात बजे तक कोतवाली में रखा गया और फिर मेडिकल कराने ले जाया गया. गिरफ़्तारी के बाद मुझे किसी से मिलने नहीं दिया गया और न ही जेल भेजने के पहले मुझे कपड़े व जरूरी सामान लेने दिया गया.’
उनका आरोप है, ‘पुलिस अधिकारी मेरे परिजनों व पत्रकारों को मेरी लोकेशन के बारे में झूठी सूचना देते रहे. कभी मुझे पुलिस लाइन तो कभी गड़वार, फेफना और चितबड़ा गांव थाने ले जाया गया और देर रात आजमगढ़ जेल पहुुंचाया गया. मेरे साथ डीआईओएस को भी जेल लाया गया. जेल में जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर बैरक में आया ही था कि रात 12 बजे एसओजी आजमगढ़ की टीम आ गई. मुझे लगा कि ये लोग मुझे यहां से उठाकर कहीं दूसरी जगह ले जाएंगे. मुझे एनकाउंटर की भी आशंका हुई. जेल के बंदी रक्षकों ने देर रात मुझसे पूछताछ का विरोध किया और कहा कि पूछताछ के लिए सुबह आएं. इसके बावजूद कुछ देर एसओजी की टीम ने मुझसे पूछताछ की. इस दौरान बंदीरक्षक वहां मौजूद रहे. पूछताछ के बाद एसओजी टीम में शामिल लोगों और बंदी रक्षकों ने मेरी प्रति सहानुभूति दिखाई और कहा कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है. वे सिस्टम के शिकार हुए हैं.’
अजित ओझा कहते हैं कि जेल के अंदर 72 घंटे बहुत कठिन थे. उनके पास पहनने के लिए कपड़े नहीं थे. एक बंदी ने उन्हें गुड़ और पानी दिया. छोटी-सी बैरक में करीब सवा सौ लोग थे.
वे आगे बताते हैं, ‘दूसरे दिन जब पत्रकार दिग्विजय सिंह, मनोज गुप्ता सहित 15 और लोग इसी मामले में गिरफ्तार होकर आजमगढ़ जेल आ गए. दिग्विजय सिंह मेरे लिए कपड़े भी लेकर आए थे. तीसरे दिन एसटीएफ जेल में पहुंची और एक घंटे तक मुझसे अकेले में पूछताछ की. फिर मुझे और दिग्विजय सिंह को एक साथ बैठाकर पूछताछ की गई. पूछताछ के बाद एसटीएफ के अधिकारी ने किसी से फोन पर बातचीत करते हुए कहा कि अधिकारियों ने अपनी गर्दन बचाने के लिए पत्रकारों को फंसा दिया है. एसटीएफ के एक अधिकारी ने कहा कि उन लोगों को सीएम के आदेश पर पूछताछ के लिए भेजा गया है. गिरफ्तारी के समय पत्रकार दिग्विजय सिंह द्वारा कही गईं बातें वायरल हो गई हैं. इसी सिलसिले में सच्चाई जानने के लिए आप लोगों से पूछताछ के लिए हमें कहा गया है.’
अजित ओझा ने कहा कि पेपर लीक की घटना में चार दिन के अंदर 44 लोग गिरफ्तार होकर आए. इसमें से तमाम लोग ऐसे थे जिनका पेपर लीक कांड से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था.
पत्रकार ने बताया कि पुलिस और प्रशासन ने उनकी संपत्ति, बैंक खातों की भी जांच-पड़ताल की ताकि उनके खिलाफ केस को खड़ा किया जा सके लेकिन पुलिस और प्रशासन को मुंह की खानी पड़ी.
योगी सरकार को सच से नफरत है, इसका चरित्र फासीवादी हो गया है: दिग्विजय सिंह
इस मामले में गिरफ्तार किए गए पत्रकार 65 वर्षीय दिग्विजय सिंह चार दशक से अधिक समय से पत्रकारिता कर रहे हैं. वे जनवार्ता, स्वतंत्र भारत जैसे अखबारों में काम कर चुके हैं और लंबे समय से अमर उजाला से जुड़े हैं.
छात्र जीवन में जेपी आंदोलन में सक्रिय और छात्र संघर्ष युवा वाहिनी से जुड़े सिंह ने कशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से पढ़ाई की है.
उन्होंने बताया कि उन्हें संस्कृत परीक्षा का पेपर लीक होने की खबर 28 मार्च को मिली थी और जब उन्हें अपने सूत्र से वॉट्सऐप पर लीक पेपर की काॅपी मिली तो उन्होंने इसकी खबर जिला मुख्यालय पर भेजी. यह खबर कुछ स्थानीय पोर्टल पर भी आई. यह खबर अभी चल ही रही थी कि इंटरमीडिएट अंग्रेजी का प्रश्न पत्र भी लीक होने की खबर आ गई और वॉट्सऐप पर इसके पेपर वायरल होने लगा. यह खबर भी उनके अखबार में छपी.
सिंह ने बताया, ’30 मार्च की सुबह सीओ रसड़ा का फोन आया और पेपर लीक के बारे में पूछा. फिर एसओ नगरा का फोन आया कि थाने पर आ जाइए. जब मैं थाने पहुंचा तो एसओ भोजन कर रहे थे. भोजन करते हुए ही उन्होने पेपर लीक और खबर देने वाले सूत्र के बारे में पूछा, जिस पर मैंने सूत्र की पहचान बताने से साफ इनकार कर दिया.’
उन्होंने आगे बताया, ‘दोपहर ढाई बजे एडीशनल एसपी का फोन आया कि नगरा डाक बंगले पर आ जाइए. मैं और मनोज गुप्ता रसड़ा थाने पहुंचे. वहां एडीशनल एसपी ने इंस्पेक्टर, रसड़ा से कहा कि उन लोगों का बयान ले लिया जाए. वहां हमें शाम सात बजे तक रोका गया और फिर रसड़ा थाने भेज दिया गया. अगले दिन उन्हें दोपहर के पहले नगरा थाने लाया गया. कुछ देर बाद उन्हें हवालात में बंद कर दिया गया. करीब डेढ़ घंटे तक हम दोनों हवालात में रहे. इसके बाद नगरा सीएचसी पर मेडिकल कॉलेज ले जाया गया. फिर हम दोनों सहित इसी मामले में गिरफ्तार किए 15 लोगों को बलिया में मजिस्टेट के सामने प्रस्तुत करने के लिए भेजा गया.’
सिंह बताते हैं , ‘मेरे खिलाफ नामजद एफआईआर नहीं थी. नगरा थाने में ‘अज्ञात कतिपय अराजक तत्व व शिक्षा माफिया’ के नाम एफआईआर दर्ज कराई गई थी और विवेचना में मेरा नाम शामिल कर लिया गया था.’
दिग्विजय सिंह ने बताया, ‘जब हम बलिया कचहरी पहुंचे तो वहां कई पत्रकार मिले. सभी के चेहरे लटक रहे थे और वे कुछ बोल नहीं रहे थे. मैं समझ गया कि अजित ओझा, मनोज गुप्ता और मेरी गिरफ्तारी से पत्रकारों में निराशा है. मैंने उनका मनोबल बढ़ाने के लिए नारेबाजी शुरू कर दी. कई पत्रकारों ने अपने मोबाइल और कैमरे से मेरी बाइट रिकॉर्ड की जो कुछ ही देर में वायरल हो गई. यहां से मुझे आजमगढ़ जेल भेज दिया गया.’
सिंह ने आगे बताया, ‘हमें जिस बैरक में रखा गा था वहां सोने भर की भी बमुश्किल जगह थी. पहली रात तो मैंने बैठे-बैठे गुजारी. दो अप्रैल को एसटीएफ की टीम पूछताछ करने जेल आई. हमने उनसे साफ कहा कि हमने पत्रकारिता धर्म का निर्वहन किया है. बलिया जिले में नकल और पेपर लीक की घटना को छुपाने के लिए हमें फंसाया गया.’
वे कहते हैं, ‘योगी सरकार को सच से नफरत है. सरकार का चरित्र फासीवादी हो गया है. इसी का लाभ लेकर नौकरशाह बेलगाम हो गए हैं. बलिया में डीएम, एसपी तानाशाही कर रहे हैं. पूरे जिले में बोर्ड परीक्षा के दौरान संगठित स्तर पर नकल हुई. केंद्र आवंटन में मनमानी और पैसे का खेल खेला गया. पेपर लीक से जब भांडा फूटा तो पत्रकारों को फंसाकर मामले को दूसरा रूप देने की कोशिश हुई.’
उन्होंने कहा, ‘हमारे समर्थन में जिस तरह पत्रकार, अधिवक्ता, व्यापारी, छात्र-युवा और राजनीतिक दल साथ में आए वह अभूतपूर्व था. यह बागी बलिया की खासियत है कि वह अन्याय बर्दाश्त नहीं करती. हमारी लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक हमें झूठे मामलों में फंसाने के जिम्मेदार डीएम, एसपी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो जाती.’
उल्लेखनीय है कि तीनों पत्रकारों की रिहाई के बाद बलिया के भाजपा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त के आश्वासन पर पत्रकारों ने अपना आंदोलन एक पखवाड़े के लिए स्थगित कर दिया था.
भाजपा सांसद ने आश्वासन दिया था कि सरकार इस मामले में कार्रवाई करेगी लेकिन अभी तक डीएम, एसपी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
संयुक्त पत्रकार संघर्ष मोर्चा के प्रमुख सदस्य एवं भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के प्रांतीय प्रमुख महासचिव मधुसूदन सिंह ने बताया कि आंदोलन के दूसरे दौर के बारे में विचार-विमर्श किया जा रहा है. जल्द ही इसकी घोषणा की जाएगी.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)