एनडीएमसी सचिव ईशा खोसला द्वारा सभी विभागों के प्रमुखों को जारी एक आदेश में हिंदी को ‘भारत की आधिकारिक भाषा’ बताते हुए कहा गया है कि सभी आदेश, सर्कुलर और सूचनाएं अंग्रेज़ी के साथ हिंदी में लिखे जाने चाहिए. साथ ही अंग्रेज़ी के अलावा हिंदी में भी नोटिस बोर्ड और नेमप्लेट लगाए जाएं.
नई दिल्ली: देश के गैर-हिंदीभाषी क्षेत्रों में इस भाषा को ‘थोपने’ को लेकर चल रही बहस के बीच नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों और स्टाफ से हिंदी को ‘महत्व’ देने को कहा है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, हिंदी को ‘भारत की आधिकारिक भाषा’ बताते हुए सभी विभागों के प्रमुखों को जारी एक सर्कुलर में एनडीएमसी ने कहा कि सभी आदेश, सर्कुलर और सूचनाएं अंग्रेजी के साथ हिंदी में लिखी जानी चाहिए.
इसके साथ ही अधिकारियों से अंग्रेजी के अलावा हिंदी में नोटिस बोर्ड और नेमप्लेट लगाने को भी कहा गया है.
एनडीएमसी सचिव ईशा खोसला द्वारा हस्ताक्षरित सर्कुलर में कहा गया है, ‘राजभाषा अधिनियम के अनुसार, भारत की आधिकारिक भाषा हिंदी और देवनागरी लिपि है. दिल्ली ‘ए’ कैटेगरी में आती है और इसके मुताबिक सभी सरकारी काम अनिवार्य रूप से हिंदी में ही किए जाएं. इस प्रकार, नियमों का पालन करते हुए सभी विभागाध्यक्षों, अधिकारियों और कर्मचारियों को कार्यालय से संबंधित सभी परिपत्र, आदेश, फॉर्म आदि हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी में भी जारी करने चाहिए.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘विभागों में लगे सभी नोटिस बोर्ड और नेमप्लेट अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी होने चाहिए. परिषद के सभी विभागों में सभी कार्य सुचारू रूप से हिंदी में करें.
स्टाफ से यह भी कहा गया है कि यदि कोई शिकायत या प्रश्न भाषा में है तो कर्मचारियों को हिंदी में जवाब देना है. खोसला ने कहा कि राजभाषा अधिनियम 1963 उनकी वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाएगा.
हालांकि इस अख़बार ने जिन कर्मचारियों से बात की, उनमें से सभी ने कहा कि उन्हें अतीत में कभी ऐसा कोई सर्कुलर नहीं दिया गया.
एक कर्मचारी ने बताया कि हिंदी दिवस (14 सितंबर) के आसपास ऐसे आदेश आया करते थे, लेकिन इस तरह का कोई दस्तावेज पहले कभी नहीं मिला.’
इन कर्मचारियों ने इस बात पर भी जोर दिया कि दिल्ली विविध भाषा और लोगों वाला शहर है, एनडीएमसी में ही देश भर से आने वाले लोग काम करते हैं.
नगर निगम के हॉर्टिकल्चर विभाग के निदेशक सी. चेलामुथु ने कहा, ‘दिल्ली में लोग तमिल, तेलुगु, उड़िया, बांग्ला जैसी अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं, अलग अलग संस्कृति को मानते हैं. खुद एनडीएमसी में विभिन्न राज्यों के अधिकारी हैं जिन्होंने अपनी मातृभाषा में प्रतियोगी परीक्षा पास करके नौकरी हासिल की है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘मैं खुद तमिलनाडु से आता हूं और मैंने अपनी रुचि के चलते हिंदी बोलना-लिखना सीखा, हालांकि मैं बहुत अच्छे-से हिंदी नहीं लिख पाता हूं. अगर इस तरह के सर्कुलर आएंगे तो जो लोग केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए तैयारी कर रहे है, वो हतोत्साहित होंगे और मौके गंवाएंगे.’
उल्लेखनीय है कि बीते कई हफ़्तों से देश में हिंदी ‘थोपे’ जाने को लेकर खींचतान चल रही है. इसमें विभिन्न प्रदेशों के नेताओं के साथ अभिनेताओं, निर्देशकों की भी तीखी बहस सामने आई है.
यह बहस तब शुरू हुई है जब अप्रैल महीने की शुरुआत में संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक में अमित शाह ने कहा था, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फैसला किया है कि सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा है और इससे निश्चित रूप से हिंदी का महत्व बढ़ेगा. अब समय आ गया है कि राजभाषा को देश की एकता का महत्वपूर्ण अंग बनाया जाए. जब अन्य भाषा बोलने वाले राज्यों के नागरिक एक-दूसरे से संवाद करते हैं, तो यह भारत की भाषा में होना चाहिए.’
अमित शाह द्वारा हिंदी भाषा पर जोर दिए जाने की विपक्षी दलों ने तीखी आलोचना की थी और इसे भारत के बहुलवाद पर हमला बताया था. साथ ही विपक्ष ने सत्तारूढ़ भाजपा पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों के खिलाफ ‘सांस्कृतिक आतंकवाद’ के अपने एजेंडे को शुरू करने की कोशिश करने का आरोप लगाया था.
इतना ही नहीं तमिलनाडु भाजपा प्रमुख के. अन्नामलाई ने कहा था कि हम भारतीय हैं, इसे साबित करने के लिए हिंदी सीखने की जरूरत नहीं. उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी तमिलनाडु के लोगों पर हिंदी थोपे जाने को न तो स्वीकार करेगी और न ही इसकी अनुमति देगी.