विश्व खाद्य दिवस: दुनिया में भूखे लोगों की क़रीब 23 फ़ीसदी आबादी भारत में रहती है

तमाम योजनाओं के ऐलान और बहुत सारे वादों के बावजूद देश में भूख व कुपोषण से प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ रही है.

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तमाम योजनाओं के ऐलान और बहुत सारे वादों के बावजूद देश में भूख व कुपोषण से प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ रही है.

Children Food Wikimedia Commons
प्रतीकात्मक फोटो (साभार: Wikimedia Commons)

हम एक ऐसे देश के निवासी है जहां बड़ी संख्या में लोग भूख और कुपोषण के शिकार हैं. हो सकता है यह बात लोगों को बुरी लगे लेकिन आंकड़े यही हकीकत बयां करते हैं. भारत को वैश्विक महाशक्ति और वैश्विक गुरु बनाए जाने के जुमलों के बीच आई एक रिपोर्ट हमारी पोल खेलती है.

इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) की ओर से वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) पर जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के 119 विकासशील देशों में भूख के मामले में भारत 100वें स्थान पर है. इससे पहले 2016 की रिपोर्ट में भारत 97वें स्थान पर था. यानी इस मामले में साल भर के दौरान देश की हालत और बिगड़ी है और भारत को ‘गंभीर श्रेणी’ में रखा गया है.

आईएफपीआरआई के अनुसार समूचे एशिया में सिर्फ अफगानिस्तान और पाकिस्तान उससे पीछे हैं. यानी पूरे एशिया में भारत की रैंकिग तीसरे सबसे खराब स्थान पर है. भूख से निपटने में भारत अपने पड़ोसी देशों से काफी पीछे रह गया है. रिपोर्ट के मुताबिक चीन (29वें), नेपाल (72वें), म्यांमार (77वें), श्रीलंका (84वें) और बांग्लादेश (88वें) स्थान पर हैं.

वैश्विक भूख सूचकांक चार संकेतकों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाता है. ये हैं- आबादी में कुपोषणग्रस्त लोगों की संख्या, बाल मृत्युदर, अविकसित बच्चों की संख्या और अपनी उम्र की तुलना में छोटे कद और कम वजन वाले बच्चों की तादाद.

आईएफपीआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पांच साल तक की उम्र के बच्चों की कुल आबादी का पांचवां हिस्सा अपने कद के मुकाबले बहुत कमजोर है. इसके साथ ही एक-तिहाई से भी ज्यादा बच्चों की लंबाई अपेक्षित रूप से कम है. भारतीय महिलाओं का हाल भी बहुत बुरा है. युवा उम्र की 51 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं यानी उनमें खून की कमी है.

गौरतलब है कि हमारे सरकारी आंकड़े भी कुछ इससे इतर बात नहीं करते हैं. इसी साल अप्रैल महीने में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने संसद को बताया था कि देश में 93 लाख से ज़्यादा बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार हैं.

उन्होंने बताया कि भारत सरकार की एजेंसी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनपीएसएस) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, देश में कुल 93.4 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण (सीवियर एक्यूट मालन्यूट्रिशन- एसएएम) के शिकार हैं. इसमें से 10 प्रतिशत को चिकित्सा संबंधी जटिलताओं के वजह से एनआरसी में भर्ती की ज़रूरत पड़ सकती है.

एक आंकड़े के मुताबिक आज देश में 21 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित हैं. दुनिया भर में ऐसे महज तीन देश जिबूती, श्रीलंका और दक्षिण सूडान हैं, जहां 20 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित हैं.

इसका साफ मतलब यह है कि तमाम योजनाओं के ऐलान और बहुत सारे वादों के बावजूद अगर देश में भूख व कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या ये है तो योजनाओं को लागू करने में कहीं न कहीं भारी गड़बड़ियां और अनियमितताएं हैं.

एक बात और 12 साल पहले 2006 में जब पहली बार यह सूची बनी थी, तब भी हमारा स्थान 119 देशों में 97वां था. जाहिर है, 12 साल बाद भी हम जहां थे, वहीं पर खड़े हैं. यानी इस बीच भारत में कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा सच्चाई में कोई भी बदलाव नहीं आया है.

वैसे यह पहली रिपोर्ट नहीं हैं जो भुखमरी को लेकर इस कटु सच्चाई से रूबरू कर रही है. 2016 में राष्ट्रीय पोषण निगरानी ब्यूरो (एनएनएमबी) के एक सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आई थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि ग्रामीण भारत में जहां लगभग 70 फीसदी लोग रहते हैं, वहां लोग स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक पोषक का कम उपभोग कर रहे हैं.

रिपोर्ट में कहा गया कि ग्रामीण भारत का खान-पान अब उससे भी कम हो गया है, जैसा 40 वर्ष पहले था. इसके अनुसार, 1975-79 की तुलना में आज औसतन ग्रामीण भारतीय को 500 कैलोरी, 13 ग्राम प्रोटीन, पांच मिलीग्राम आयरन, 250 मिलीग्राम कैल्शियम व करीब 500 मिलीग्राम विटामिन-ए कम मिल रहा है.

इसमें कहा गया है कि औसतन तीन वर्ष से कम उम्र के बच्चे, प्रतिदिन 300 मिलीलीटर दूध की बजाय 80 मिलीलीटर दूध का उपभोग करते हैं. यह आंकड़े बताते हैं कि क्यों इसी सर्वेक्षण में 35 फीसदी ग्रामीण पुरुष और महिलाएं कुपोषित और 42 फीसदी बच्चे कम वजन के पाए गए हैं.

ऐसे आंकड़े हमारे आर्थिक चमक-दमक के दावों को भोथरा करते हैं, शायद इसीलिए इस पर कोई कार्रवाई करने के बजाय सरकार ने 2015 में इस राष्ट्रीय पोषण निगरानी ब्यूरो को ही भंग कर दिया.

फिलहाल जरूरत इस बात है भुखमरी से लड़ाई में केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और वैश्विक संगठन अपने-अपने कार्यक्रमों को बेहतर स्वरूप और अधिक उत्तरदायित्व के साथ लागू करें.

संयुक्त राष्ट्र के अंग खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) में भारतीय प्रतिनिधि श्याम खडका कहते हैं कि भुखमरी से निपटने के लिए एफएओ ने इस वर्ष विश्व खाद्य दिवस के अवसर पर नारा दिया है, ‘प्रवासियों का भविष्य बदलें, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास में निवेश करें.’

वे आगे कहते हैं, ‘खाद्य सुरक्षा हासिल करने के लिए कृषि उत्पादन महत्वपूर्ण है, क्योंकि करीब 99 फीसदी खाद्य की आपूर्ति कृषि से होती है. टिकाऊ कृषि और ग्रामीण विकास हमें गरीबी, भूख, असमानता, बेरोजगारी, पर्यावरण क्षरण और जलवायु परिवर्तन जैसे प्रवास के मूल कारणों से निपटने के लिए रास्ता सुझाते हैं. जब तक कृषि का संकट कम नहीं होता, स्वास्थ्य व पोषण के साथ-साथ अन्य बुनियादी ढांचे से जुड़ी समस्याओं का समाधान नहीं होता है.’

वैश्विक हालात भी बदतर

हालांकि, वैश्विक स्तर पर भी आंकड़ा बद से बदतर ही हुआ है. संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन का आकलन है कि पिछले 15 वर्षों में पहली बार भूख का आंकड़ा बढ़ा है. जहां एक ओर वैश्विक खाद्य भंडार 72.05 करोड़ टन के साथ रिकॉर्ड तेजी से बढ़ रहा है, वहीं कुपोषित लोगों की संख्या 2015 में करीब 78 करोड़ थी जो 2016 में बढ़कर साढ़े 81 करोड़ हो गयी है.

आईएफपीआरआई की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि दुनिया में भुखमरी बढ़ रही है और जिस तरह के हालात बन रहे हैं उससे 2030 तक भुखमरी मिटाने का अंतरराष्ट्रीय लक्ष्य भी खतरे में पड़ गया है. कुल आबादी के लिहाज से देखें तो एशिया महाद्वीप में भुखमरी सबसे ज्यादा है और उसके बाद अफ्रीका और लैटिन अमेरिका का नंबर आता है.

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