केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम देश की धर्म-निरपेक्षता के ख़िलाफ़ है. यहां किसी को भी धर्म के आधार पर नागरिकता तय करने का अधिकार नहीं है. हमारा देश भारत के संविधान में उल्लिखित धर्म-निरपेक्षता के सिद्धांत पर काम करता है. आजकल धर्म-निरपेक्षता को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है. इसे लेकर एक ख़ास वर्ग के लोग ख़ासे चिंतित हैं.
तिरुवनंतपुरम: केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने बृहस्पतिवार को कहा कि उनकी सरकार विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) को लागू नहीं करेगी.
केरल में अपनी सरकार की पहली वर्षगांठ समारोह के समापन के अवसर पर आयोजित एक समारोह में मुख्यमंत्री ने कहा, ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर सरकार की स्थिति स्पष्ट स्थिति है और यह जारी रहेगा.’
उन्होंने कहा कि जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों ने अक्सर कहा है कि कानून लागू किया जाएगा. उन्होंने कहा, ‘इस मामले पर राज्य सरकार का स्पष्ट रुख है. इसमें कोई बदलाव नहीं होगा.’
विजयन ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम देश की धर्म-निरपेक्षता के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि यहां किसी को भी धर्म के आधार पर नागरिकता तय करने का अधिकार नहीं है.
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने कहा, ‘हमारा देश भारत के संविधान में उल्लिखित धर्म-निरपेक्षता के सिद्धांत पर काम करता है. आजकल धर्म-निरपेक्षता को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है. इसे लेकर एक खास वर्ग के लोग खासे चिंतित हैं. हाल ही में एक घटना में लोगों का एक समूह धर्म के आधार पर नागरिकता का निर्धारण कर रहा था. केरल सरकार ने इस घटना के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया है.’
उन्होंने कहा, ‘लोगों में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में कई सर्वेक्षण किए जा रहे हैं, लेकिन यहां हमारे समाज के सबसे गरीब परिवारों की पहचान करने के लिए एक सर्वेक्षण पूरा किया गया है. इस सर्वेक्षण के तहत आगे की कार्रवाई की जाएगी.’
एलडीएफ सरकार की पहली वर्षगांठ समारोह में बोलते हुए, केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने दोहराया कि राज्य नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को लागू नहीं करेगा.
विजयन ने कहा, ‘राज्य सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है कि धर्म के आधार पर नागरिकता का निर्धारण नहीं किया जाएगा.’
यह उल्लेख करते हुए कि ऐसे मामलों को तय करने के लिए संविधान सर्वोच्च है, उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने संवैधानिक सिद्धांतों के आधार पर इस मुद्दे पर अपना यह रुख अख्तियार किया है.
पिछले महीने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में कहा था कि कोविड-19 महामारी समाप्त होने के बाद कानून लागू किया जाएगा.
अमित शाह ने कहा था, ‘हम नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) को लागू करेंगे, जिस क्षण कोविड-19 लहर समाप्त हो जाएगी.’
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 जो 11 दिसंबर, 2019 को भारत की संसद द्वारा पारित किया गया था, लेकिन अभी तक लागू नहीं किया गया है.
बता दें कि इस कानून के बनने के बाद देश भर में महीनों तक विरोध प्रदर्शनों का दौर चला था, जो कि कोविड-19 महामारी के कारण थम गया. कानून को आलोचकों द्वारा मुस्लिम विरोधी और असंवैधानिक बताया जाता रहा है.
सीएए के तहत 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को फास्ट-ट्रैक तरीके से भारतीय नागरिकता दी जाएगी. हालांकि, जब तक नियम नहीं बनाए जाते हैं, क़ानून लागू नहीं हो सकता है.
पिछले साल मई में केंद्र सरकार ने उपरोक्त तीन देशों के हिंदू, मुस्लिम, जैन, पारसी, ईसाई और बौद्ध समुदाय के लोगों को, जो भारत के 13 जिलों में रह रहे हैं, को देश की नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमति दी थी. हालांकि, आवेदन नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत मांगे गए थे, क्योंकि संशोधित अधिनियम (सीएए) से संबंधित नियमों को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)