कर्नाटक के मांड्या ज़िले में स्थित श्रीरंगपट्टनम क़िले के अंदर जामिया मस्जिद में हिंदुत्ववादी समूहों ने 4 जून को पूजा करने की धमकी दी है, जिसके चलते क्षेत्र में 3 जून की शाम से 5 जून तक धारा 144 लगा दी गई है. हिंदुत्ववादी समूहों ने दावा किया है कि मस्जिद का निर्माण हनुमान मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया गया था.
नई दिल्ली: कर्नाटक के मांड्या जिले के श्रीरंगपट्टनम शहर में एक मस्जिद में हिंदुत्व समूहों द्वारा घुसने और 4 जून को पूजा करने की धमकी के बीच अधिकारियों ने 3 जून की शाम से 5 जून तक धारा 144 लागू करने का निर्णय लिया है.
द न्यूज मिनट की रिपोर्ट के मुताबिक, की तहसीलदार श्वेता रवींद्र ने शहर में निषेधाज्ञा लागू कर दी है, जिससे किसी भी जुलूस, विरोध या यात्रा को होने से रोका जा सके. दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 अन्य प्रतिबंधों के बीच चार या अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाती है.
हिंदुत्व समूहों ने दावा किया है कि श्रीरंगपट्टनम किले में स्थित जामिया मस्जिद का निर्माण हनुमान मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया गया था. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, मस्जिद पर फारसी शिलालेख कहते हैं कि टीपू सुल्तान ने 1782 ईस्वी में मस्जिद-ए-अला नामक इस मस्जिद का निर्माण किया था.
रिपोर्टों के अनुसार, हिंदुत्ववादी समूहों द्वारा बुलाए गए ‘श्रीरंगपट्टनम चलो’ मार्च को अनुमति देने से इनकार कर दिया गया है. फिर भी विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे समूह मस्जिद में प्रवेश करने और पूजा करने की बात पर अड़े हैं. कुख्यात श्रीराम सेना के मुखिया प्रमोद मुतालिक ने भी ‘श्रीरंगपट्टनम चलो’ के आह्वान का समर्थन किया है.
द न्यूज मिनट के अनुसार, कुछ हिंदू कार्यकर्ताओं ने एक ज्ञापन सौंपकर जिला प्रशासन से एक वैसा ही सर्वेक्षण कराने के लिए कहा है, जैसा कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में किया गया था.
ज्ञानवापी मस्जिद के बाद कई हिंदू समूहों ने मस्जिदों में सर्वेक्षण कराने के लिए इसी तरह के अनुरोध पेश किए हैं.
हालांकि, पूजा स्थल अधिनियम, 1991 में कहा गया है कि एक मस्जिद, मंदिर, चर्च या सार्वजनिक पूजा का कोई भी स्थान जो 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में था, उसी धार्मिक चरित्र को बनाए रखेगा जो उस दिन था और इसे अदालतों या सरकार द्वारा नहीं बदला जा सकता है.
कानून कहता है कि किसी भी अदालत के समक्ष 15 अगस्त 1947 की स्थिति में लंबित किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप के बदलाव के संबंध में कानूनी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी, लेकिन कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी.
अयोध्या मामले का फैसला हिंदू पक्षकारों के पक्ष में करते हुए भी सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के कानून की वैधता को बरकरार रखा था. इसलिए संविधान विशेषज्ञ मानते हैं कि भले ही सबूत सामने आते हैं कि कोई पूजा स्थल पहले से ही मौजूद एक अन्य पूजा स्थल को ध्वस्त करने के बाद बनाया गया था, तब भी इसका स्वरूप बदला नहीं जा सकता है, जो 15 अगस्त 1947 को था, वही बना रहेगा.