हसदेव अरण्य में खनन जारी रखने के फैसले पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कायम

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने की कोशिश करने वालों को पहले बिजली और एयर-कंडीशनर, पंखे और कूलर का उपयोग बंद करना चाहिए और फिर इसके लिए लड़ना चाहिए. लोग दावा कर रहे हैं कि 8 लाख पेड़ काटे जाएंगे, जबकि वास्तव में इस साल सिर्फ़ 8,000 पेड़ ही काटे जाएंगे.

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भूपेश बघेल. (फोटो: पीटीआई)

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने की कोशिश करने वालों को पहले बिजली और एयर-कंडीशनर, पंखे और कूलर का उपयोग बंद करना चाहिए और फिर इसके लिए लड़ना चाहिए. लोग दावा कर रहे हैं कि 8 लाख पेड़ काटे जाएंगे, जबकि वास्तव में इस साल सिर्फ़ 8,000 पेड़ ही काटे जाएंगे.

भूपेश बघेल. (फोटो: पीटीआई)

रायपुर: अपनी पार्टी कांग्रेस के साथ-साथ विपक्ष के नेताओं के स्थानीय लोगों के साथ विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के बावजूद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हसदेव अरण्य के जंगलों में खनन की अनुमति देने के अपने फैसले पर कायम नजर आ रहे हैं.

भूपेश बघेल ने बीते तीन जून को कहा कि ‘कुछ लोग’ खनन परियोजनाओं पर गलत सूचना फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कांकेर में मीडिया को संबोधित करते हुए बघेल ने कहा, ‘इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने की कोशिश करने वालों को पहले बिजली और एयर-कंडीशनर, पंखे और कूलर का उपयोग बंद करना चाहिए और फिर इसके लिए लड़ना चाहिए. लोग दावा कर रहे हैं कि 8 लाख पेड़ काटे जाएंगे, जबकि हकीकत में इस साल सिर्फ 8,000 पेड़ ही काटे जाएंगे.

उन्होंने कहा कि इस मुद्दे से वास्तव में चिंतित लोगों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि क्या आदिवासी समुदायों के लोगों को मुआवजा मिला है और क्या नियम के अनुसार वृक्षारोपण हो रहा है.

लोगों की बेहतरी और उनके वन अधिकारों से समझौता नहीं करने पर जोर देते हुए बघेल ने कहा, ‘लेकिन कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधन, जो रोजगार के अवसर पैदा करते हैं और औद्योगिक विकास की रीढ़ हैं, का खनन करना होगा.’

बघेल के इस बयान से एक दिन पहले ही जिला प्रशासन ने कहा था कि खनन परियोजना की स्वीकृति के लिए आयोजित ग्राम सभा वैध है.

मालूम हो कि बघेल साल 2018 में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रमुख थे और उस समय राज्य के उत्तरी हिस्से में स्थित हसदेव अरण्य जंगलों में कोयला खनन के मुखर विरोधी थे.

हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय विरोध कर रहे हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, असहमति की आवाज सिर्फ क्षेत्र के आदिवासियों या विपक्ष की ओर से ही नहीं आ रही है, बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस का एक वर्ग भी इस परियोजना के खिलाफ है. यहां तक ​​कि पिछले महीने ही पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इस क्षेत्र में खनन के बारे में आपत्ति व्यक्त की थी.

यह विशाल जंगल अपनी जैव विविधता के साथ-साथ कोयले के भंडार के लिए जाना जाता है. यह जंगल एक बड़ी आदिवासी आबादी वाले कोरबा, सुजापुर और सरगुजा जिलों के तहत आता है. महानदी की सहायक नदी हसदेव नदी इससे होकर बहती है.

वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लाभ के लिए जंगल को बर्बाद करने के लिए पिछली भाजपा सरकार और अडाणी एंटरप्राइजेज पर हमला किया था.

अब उनका कहना है कि उनकी सरकार ने बीते मार्च में परसा पूर्व-केटे बेसन (पीईकेबी) कोयला ब्लॉक में 1,136 हेक्टेयर में कोयला खनन के लिए मंजूरी सभी ​नियमों का पालन सुनिश्चित करते हुए दे दी थी.

रिपोर्ट के अनुसार, परसा​ और पीईकेबी दोनों कोयला ब्लॉक राजस्थान के स्वामित्व में हैं, जहां उनकी ही पार्टी कांग्रेस की सरकार है.

भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की जंगल में कोयले की निकासी के खिलाफ सलाह देने के बावजूद राजस्थान सरकार राज्य में बिजली उत्पादन के लिए कोयले की कमी का हवाला देते हुए खदानों को चालू करने के लिए बेताब थी.

इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया है, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद और भारतीय वन्यजीव संस्थान के दो अध्ययनों ने ‘इस क्षेत्र में जैव विविधता के महत्व को रेखांकित किया है कि खनन निस्संदेह इसे प्रभावित करेगा.’

इस साल की शुरुआत में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बघेल से क्षेत्र में खनन को मंजूरी देने का आग्रह करने के लिए रायपुर के लिए उड़ान भरी थी. अडाणी इंटरप्राइजेज को दोनों ब्लॉकों में माइन डेवलेपर और ऑपरेटर की जिम्मेदारी प्रदान की गई है.

खनन के खिलाफ आंदोलन करने वाले संगठनों ने से एक ‘छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन’ ने दावा किया कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन से 1,70,000 हेक्टेयर वन नष्ट हो जाएंगे और मानव-हाथी संघर्ष शुरू हो जाएगा.

हसदेव अरण्य जंगल को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर 2010 में पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था.

हालांकि, इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी, जिसमें बाद 2013 में खनन शुरू हो गया था.

केंद्र सरकार ने 21 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंजूरी दी थी. परसा आदिवासियों के आंदोलन के बावजूद क्षेत्र में आवंटित छह कोयला ब्लॉकों में से एक है.

खनन गतिविधि, विस्थापन और वनों की कटाई के खिलाफ एक दशक से अधिक समय से चले प्रतिरोध के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने बीते छह अप्रैल को हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंजूरी दे दी थी.

यह अंतिम मंजूरी सूरजपुर और सरगुजा जिलों के तहत परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए भूमि के गैर वन उपयोग के लिए दी गई थी.