कोयला खदान परियोजनाओं का विरोध कर रहे ग्रामीणों के समर्थन में सरगुजा पहुंचे राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा, ‘जब हमारे पास 80 साल का कोयला भंडार है और हमने 2030 तक बिजली के लिए कोयले पर निर्भरता पूरी तरह से छोड़ देने का फ़ैसला किया है, तब घने जंगलों और जैव विविधता से भरपूर हसदेव को क्यों नष्ट करें. अगर मेरे वश में होता तो मैं यहां खनन नहीं होने देता.’
अंबिकापुर: छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कोयला खदान परियोजनाओं का विरोध कर रहे स्थानीय ग्रामीणों के समर्थन में सोमवार को सरगुजा जिले के हसदेव अरण्य क्षेत्र के गांवों का दौरा किया और कहा कि यदि विरोध करने वालों पर लाठी गोली चली तब इसे झेलने वाले वह पहले व्यक्ति होंगे.
मंत्री ने यह भी कहा कि वह दिल्ली जाएंगे और पार्टी नेता राहुल गांधी को प्रदर्शनकारियों के दर्द और उनकी मांगों से अवगत कराएंगे.
सिंहदेव की यह टिप्पणी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा यह कहने के एक दिन बाद आई है कि जो लोग हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन का विरोध कर रहे हैं, उन्हें पहले अपने घरों की बिजली बंद करनी चाहिए.
मंत्री के कार्यालय से जारी बयान में कहा गया है कि सिंहदेव ने सोमवार को जिले के उदयपुर विकासखंड के घाटबर्रा, हरिहरपुर, साल्ही और बासन गांव का दौरा किया. उन्होंने आंदोलनकारियों को आश्वासन दिया कि वह उनकी लड़ाई में उनके साथ खड़े हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, क्षेत्र में चल रहे विरोध प्रदर्शन में एक सभा को संबोधित करते हुए, सिंहदेव ने कहा, ‘आप मुझे मुख्यमंत्री के रूप में संबोधित कर रहे हैं, मैं सिर्फ एक विधायक हूं. अगर मेरे वश में होता तो मैं हसदेव अरण्य में खनन नहीं होने देता.’
हरिहरपुर में ग्रामीणों को संबोधित करते हुए सिंहदेव ने कहा, ‘अगर कोयले की जरूरत है तब वन भूमि के बजाय मैदानी क्षेत्र को लिया जाना चाहिए. जब हमारे पास 80 साल का कोयला भंडार है और हमने 2030 तक बिजली पैदा करने के लिए कोयले पर निर्भरता पूरी तरह से छोड़ देने का फैसला किया है, तब हम घने जंगलों और जैव विविधता से भरपूर हसदेव को क्यों नष्ट करें. मुझे लगता है कि इस (खनन) पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. अगर हम बिजली की जरूरत के लिए हसदेव के जंगल को नष्ट कर देते हैं, तो इसका हमारे पर्यावरण पर बहुत प्रभाव पड़ेगा.’
आज घाटबर्रा एवं परसा में उदयपुर ब्लॉक में प्रस्तावित नवीन कोल खदानों को खोलने के विरुद्ध वनों की कटाई को रोकने एकजुट हुए ग्रामीणों से मुलाक़ात हुई।
इस दौरान ग्रामीणजन से संवाद कर उनका पक्ष जाना एवं सभी को एकजुट रहकर अपनी बात रखने का आग्रह किया। pic.twitter.com/WwXaXrl8Pv
— T S Singhdeo (@TS_SinghDeo) June 6, 2022
मंत्री ने कहा, ‘मैं यहां देर से (विरोध में) इसलिए आया हूं क्योंकि जब तक आप एकजुट नहीं होंगे, मेरे लिए कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा. मैं आपकी लड़ाई में हमेशा आपके साथ हूं, लेकिन आपको भी एक होना है. फिर चाहे गोली चलाई जाए या लाठीचार्ज किया जाए, मैं सबसे पहले सामने होउंगा. अगर आप बंटे हुए हैं तब हमारे लिए आपके साथ खड़ा होना मुश्किल हो जाता है इसलिए आपको एकजुट रहना चाहिए.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पिछले 95 दिनों विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों से मिलने वाले एकमात्र राज्य के मंत्री सिंहदेव ने कहा कि उन्होंने सरगुजा जिला कलेक्टर से फिर से ग्राम सभा आयोजित करने के लिए बात की है.
सत्तारूढ़ कांग्रेस की सरगुजा जिला इकाई से मिले समर्थन के बाद सिंहदेव प्रभावित गांवों में गए. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को सुना और कहा, ‘अगर लोग कहते हैं कि वे एक नई ग्रामसभा चाहते हैं, जो यह तय करें कि वे खनन चाहते हैं, तो उन्हें एक नई ग्रामसभा मिलनी चाहिए. मैं सुझाव दूंगा कि केवल प्रभावित क्षेत्र के लोगों को ही प्रवेश दिया जाए.’
उन्होंने उन स्थलों का निरीक्षण किया जहां पेड़ काटने के बदले में वृक्षारोपण का दावा किया जा रहा था. उन्होंने कहा, ‘मुझे कोई वृक्षारोपण नहीं मिला. लोगों के गुस्से की यही वजह है.’
बता दें कि इससे पहले कांकेर में मीडिया को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था, ‘इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने की कोशिश करने वालों को पहले बिजली और एयर-कंडीशन, पंखे और कूलर का उपयोग बंद करना चाहिए और फिर इसके लिए लड़ना चाहिए. लोग दावा कर रहे हैं कि 8 लाख पेड़ काटे जाएंगे, जबकि हकीकत में इस साल सिर्फ 8,000 पेड़ ही काटे जाएंगे.
मालूम हो कि साल 2018 में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रमुख के तौर पर बघेल राज्य के उत्तरी हिस्से में स्थित हसदेव अरण्य जंगलों में कोयला खनन के मुखर विरोधी रहे हैं.
हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय विरोध कर रहे हैं.
इस साल की शुरुआत में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बघेल से क्षेत्र में खनन को मंजूरी देने का आग्रह करने के लिए रायपुर पहुंचे थे. अडानी इंटरप्राइजेज को दोनों ब्लॉकों में माइन डेवलपर और ऑपरेटर की जिम्मेदारी प्रदान की गई है.
खनन के खिलाफ आंदोलन करने वाले संगठनों ने से एक ‘छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन’ ने दावा किया कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन से 1,70,000 हेक्टेयर वन नष्ट हो जाएंगे और मानव-हाथी संघर्ष शुरू हो जाएगा.
हसदेव अरण्य जंगल को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर 2010 में पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था. हालांकि, इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी, जिसमें बाद 2013 में खनन शुरू हो गया था.
केंद्र सरकार ने 21 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंजूरी दी थी. परसा आदिवासियों के आंदोलन के बावजूद क्षेत्र में आवंटित छह कोयला ब्लॉकों में से एक है.
खनन गतिविधि, विस्थापन और वनों की कटाई के खिलाफ एक दशक से अधिक समय से चले प्रतिरोध के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने बीते छह अप्रैल को हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंजूरी दी थी.
यह अंतिम मंजूरी सूरजपुर और सरगुजा जिलों के तहत परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए भूमि के गैर वन उपयोग के लिए दी गई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)