जर्मन विदेश मंत्री के बयान के बाद भारत ने कहा- कश्मीर मसले में बाहरी हस्तक्षेप की ज़रूरत नहीं

जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बेरबॉक ने मंगलवार को इस्लामाबाद में उनके पाकिस्तानी समकक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी के साथ एक प्रेस वार्ता में कहा था कि कश्मीर समस्या के समाधान में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका है और वे उसका समर्थन करते हैं. वहीं, भारत ने कहा है कि इस द्विपक्षीय मसले में किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं है.

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विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची. (फोटो साभार: एएनआई)

जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बेरबॉक ने मंगलवार को इस्लामाबाद में उनके पाकिस्तानी समकक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी के साथ एक प्रेस वार्ता में कहा था कि कश्मीर समस्या के समाधान में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका है और वे उसका समर्थन करते हैं. वहीं, भारत ने कहा है कि इस द्विपक्षीय मसले में किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची. (फोटो साभार: एएनआई)

नई दिल्ली: जर्मन विदेश मंत्री द्वारा भारत-पाकिस्तान के रिश्ते सुधारने और कश्मीर मसले के समाधान में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका की बात कहने के बाद भारत ने स्पष्ट किया है कि यह द्विपक्षीय मसला है, जिसमें किसी अन्य पक्ष के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है.

ज्ञात हो कि जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बेरबॉक ने मंगलवार को इस्लामाबाद में उनके पाकिस्तानी समकक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी के साथ की गई एक प्रेस वार्ता कहा था कि पाकिस्तान और भारत के बीच एक रचनात्मक दृष्टिकोण और विश्वास बहाली के उपाय उनके संबंधों में सुधार और कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, बेरबॉक ने पत्रकारों से कहा था कि ‘कश्मीर में मानवाधिकार’ सुनिश्चित करने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका है, और पाकिस्तान और भारत के बीच संबंधों को सुधारने के लिए ‘दोनों पक्षों का रचनात्मक दृष्टिकोण’ अपनाना ही का एकमात्र तरीका है.’

उन्होंने आगे कहा था कि ‘संयुक्त राष्ट्र की नींव यह है कि मानवाधिकार अविभाज्य हैं और ऐसा दुनिया के हर क्षेत्र के लिए है. कश्मीर के लिए भी यही दृष्टिकोण है. और इसलिए हम कश्मीर की स्थिति को लेकर संयुक्त राष्ट्र का समर्थन करते हैं.’

इसके साथ ही बेरबॉक ने साल 2021 में नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम को लेकर सहमति जताने के कदम का स्वागत भी किया था.

उन्होंने यह भी जोड़ा था कि जर्मनी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का हिस्सा नहीं था, लेकिन उसने यूएनएचआरसी और इसके जैसे निकायों में (कश्मीर पर) समर्थन की पेशकश की है.

उन्होंने कहा, ‘हम मानते हैं कि आगे बढ़ने के लिए दोनों पक्षों द्वारा एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना और आपसी विश्वास बढ़ाना ही एकमात्र रास्ता है. पिछले साल नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम को लागू करने का द्विपक्षीय समझौता एक सकारात्मक कदम था. इसी दिशा में और कदम भी उठाए जाने चाहिए. यह अलग-अलग सरकारों की ताकत होती है कि अगर कोई उकसावा हो तब वे इस पर प्रतिक्रिया न दें और  अपने सिद्धांतों, साथ ही अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों के साथ खड़े रहें.’

हालांकि भारत ने किसी बाहरी हस्तक्षेप की बात को सिरे से नकार दिया है.

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, ‘यह द्विपक्षीय मसला है और इसमें किसी भी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं है.’

हालांकि उन्होंने बेरबॉक के बयान पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, लेकिन साथ में यह जोड़ा कि जम्मू कश्मीर पर भारत का रुख स्पष्ट है. यह कहना काफी है कि इसका समाधान द्विपक्षीय तरीके से ही निकाला जा सकता है. हमें नहीं लगता कि किसी बाहरी हस्तक्षेप की जरूरत है या ऐसा करने से कोई हल निकल सकता है.

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