नगालैंड फायरिंग: पुलिस ने 30 सैन्यकर्मियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की

दिसंबर 2021 में मोन ज़िले के ओटिंग और तिरु गांवों के बीच सेना की गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत हो गई थी. नगालैंड पुलिस ने मेजर रैंक के एक अधिकारी समेत 21 पैरा स्पेशल फोर्स के 30 जवानों के ख़िलाफ़ आरोपपत्र दायर करते हुए कहा कि उन्होंने मानक संचालन प्रक्रिया और नियमों का पालन नहीं किया था, न ही फायरिंग से पहले नागरिकों की पहचान सुनिश्चित की गई थी.

छह दिसंबर 2021 को मोन जिले में सशस्त्र बलों की गोलीबारी में मारे गए नागरिकों के अंतिम संस्कार में शामिल हुए परिजन और स्थानीय लोग. (फोटो: रॉयटर्स)

दिसंबर 2021 में मोन ज़िले के ओटिंग और तिरु गांवों के बीच सेना की गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत हो गई थी. नगालैंड पुलिस ने मेजर रैंक के एक अधिकारी समेत 21 पैरा स्पेशल फोर्स के 30 जवानों के ख़िलाफ़ आरोपपत्र दायर करते हुए कहा कि उन्होंने मानक संचालन प्रक्रिया और नियमों का पालन नहीं किया था, न ही फायरिंग से पहले नागरिकों की पहचान सुनिश्चित की गई थी.

छह दिसंबर 2021 को मोन जिले में सशस्त्र बलों की गोलीबारी में मारे गए नागरिकों के अंतिम संस्कार में शामिल हुए परिजन और स्थानीय लोग. (फोटो: रॉयटर्स)

दीमापुर: नगालैंड पुलिस ने चार दिसंबर, 2021 को मोन जिले के ओटिंग-तिरू इलाके में सेना के एक अभियान के दौरान 14 आम लोगों की मौत के मामले में मेजर रैंक के एक अधिकारी सहित ‘21 पैरा स्पेशल फोर्स’ के 30 कर्मियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया है.

आरोपपत्र में सैनिकों की टीम पर हत्या और गैर इरादतन हत्या का आरोप लगाया गया है. आरोपपत्र से पहले की जांच में पाया गया कि स्पेशल फोर्स की अभियान टीम ने मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) और अभियान के दौरान नियमों का पालन नहीं किया तथा अंधाधुंध गोलीबारी की, जिससे छह नागरिकों की तत्काल मौत हो गई और दो अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए.

चुमौकेदिमा पुलिस परिसर में शनिवार को संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए नगालैंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) टी. जॉन लोंगकुमर ने कहा कि तिजित पुलिस थाने का मामला दिसंबर 2021 की ओटिंग घटना से संबद्ध है, जिसमें सेना की गोलीबारी में 14 लोग गलत पहचान के चलते मारे गए थे.

राज्य अपराध पुलिस थाना ने पांच दिसंबर को सेना के अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302, 304 और 34 के तहत फिर से मामला दर्ज किया और जांच एक विशेष जांच दल (एसआईटी) को सौंप दी गई.

उन्होंने कहा कि इस मामले में ‘एसआईटी ने पेशेवर और गहन जांच की’, जिसमें विभिन्न अधिकारियों और स्रोतों से प्राप्त प्रासंगिक महत्वपूर्ण दस्तावेज, केंद्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) गुवाहाटी, हैदराबाद और चंडीगढ़ से वैज्ञानिक राय और तकनीकी सहित विभिन्न सबूत शामिल हैं. जांच के दौरान राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान से साक्ष्य एकत्र किए गए.

डीजीपी ने कहा कि जांच पूरी हो गई है और आरोपपत्र जिला एवं सत्र न्यायालय, मोन को 30 मई, 2022 को सहायक लोक अभियोजक, मोन के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था.

उन्होंने कहा कि एक मेजर, दो सूबेदार, आठ हवलदार, चार नायक, छह लांस नायक और नौ पैराट्रूपर्स सहित 21 पैरा स्पेशल फोर्स की अभियान टीम के 30 सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है.

डीजीपी ने कहा कि अभियोजन की मंजूरी की मांग वाली अपराध जांच विभाग (सीआईडी) ​​की रिपोर्ट इस साल अप्रैल के पहले सप्ताह में सैन्य मामलों के विभाग को भेजी गई थी और मई में फिर से पत्र भेजा गया था. उन्होंने कहा कि अभियोजन की मंजूरी का अभी इंतजार है.

उन्होंने बताया कि इस बीच 30 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी मिलने तक आरोपपत्र दाखिल कर  दिया गया है.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, चार्जशीट दायर होने की जानकारी मिलने पर इस घटना में अपना इकलौता बेटा गंवाने वाले चेम्वांग कोन्याक ने कहा कि आरोपपत्र स्पष्ट दिखाता है कि सैनिकों की गलती थी.

उन्होंने कहा, ‘इससे साबित होता है कि सेना के जवानों की गलती थी. लेकिन अब बड़ा सवाल यह है कि क्या उन्हें सजा मिलेगी? हम पीड़ा में हैं, व्यथित हैं. क्या हमें इंसाफ मिलेगा? हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि इस मामले की सुनवाई जल्द से जल्द होने दें ताकि हमें न्याय मिल सके.’

रिपोर्ट के अनुसार, नगालैंड सरकार ने केंद्र से चार्जशीट में नामजद जवानों के खिलाफ कार्रवाई की इजाजत मांगी है. राज्य पुलिस ने भी रक्षा मंत्रालय को पत्र भेजकर कार्रवाई की मंजूरी देने का निवेदन किया है.

राज्य का एक बड़ा हिस्सा सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आफस्पा) के तहत आता है, जो सुरक्षा बलों को केंद्र की मंजूरी के बिना कानूनी कार्रवाई से बचाता है.

सेना की एक अलग टीम, जो सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का हिस्सा है, भी घटना की जांच कर रही है.

पुलिस ने बताया कि जांच से पता चला है कि मेजर रैंक के एक अधिकारी के नेतृत्व में 31 कर्मियों वाली 21 पैरा स्पेशल फोर्स की अल्फा टीम ने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खापलांग) (युंग आंग) (एनएससीएन-के (वाईए) और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) कैडर के एक समूह की क्षेत्र में मौजूदगी के बारे में खुफिया सूचना के आधार पर तीन दिसंबर, 2021 को ओटिंग तिरु क्षेत्र में एक अभियान शुरू किया था.

चार दिसंबर, 2021 को अपराह्न लगभग 4:20 बजे अपर तिरु और ओटिंग विलेज के बीच लोंगखाओ में घात लगाकर वहां मौजूद 21 पैरा स्पेशल फोर्स की ऑपरेशन टीम ने सफेद बोलेरो पिकअप वाहन पर गोलियां चला दीं, जिसमें ओटिंग गांव के आठ आम आदमी सवार थे.

उन्होंने कहा कि जिनमें से ज्यादातर तिरु में कोयला खदानों में मजदूर के रूप में काम करते थे. उन्होंने इन लोगों की न तो सही पहचान सुनिश्चित की थी और न ही हमले से पहले उन्हें कोई चुनौती दी थी.

डीजीपी ने कहा कि जांच से पता चला है कि ओटिंग और तिरु के ग्रामीण जब लापता ग्रामीणों की तलाश में घटनास्थल पर पहुंचे और रात करीब आठ बजे बोलेरो पिकअप वाहन मिला तो वे शव मिलने पर हिंसक हो गए और और 21 पैरा स्पेशल फोर्स के जवानों तथा ग्रामीणों के बीच हाथापाई शुरू हो गयी.

उन्होंने कहा कि एक पैराट्रूपर की मौत हो गई और हाथापाई के परिणामस्वरूप 21 पैरा स्पेशल फोर्स टीम के 14 कर्मियों को चोटें आईं. इसके चलते मेजर ने रात करीब 10 बजे गोली चलाने का आदेश दिया. दूसरी घटना में सात ग्रामीणों को विशेष बल ने मार गिराया.

डीजीपी ने कहा कि 21 पैरा एसएफ द्वारा दायर शिकायत के आधार पर 21 पैरा एसएफ के एक पैराट्रूपर की मौत और अन्य कर्मियों पर हमला तथा सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ तिरु पुलिस थाना ने 11 दिसंबर, 2021 को आईपीसी की धारा 326, 435, 302, 307 और 34 तथा शस्त्र अधिनियम की धारा 25 (1 ए) के तहत एक अलग प्राथमिकी दर्ज की थी.

इस घटना के कारण अगले दिन मोन शहर में कानून व्यवस्था की गंभीर स्थिति पैदा हो गई थी, जिसमें गुस्साई भीड़ ने सार्वजनिक स्थानों पर तोड़फोड़ की और असम राइफल्स चौकी पर भी हमला किया, जिसमें जवाबी गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गई.

ज्ञात हो कि घटना के चलते दिसंबर 2021 में राज्य भर में कई विरोध प्रदर्शन हुए और नागरिक संस्थाओं, विभिन्न छात्र संगठनों, नेताओं, सरकार प्रमुखों, विचारकों और कार्यकर्ताओं ने एक सुर में आफस्पा को हटाने की मांग उठाई थी.

इनका कहना था कि यह कानून सशस्त्र बलों को बेलगाम शक्तियां प्रदान करता है और यह मोन गांव में फायरिंग जैसी घटनाओं के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है.

19 दिसंबर 2021 को नगालैंड विधानसभा ने केंद्र सरकार से पूर्वोत्तर, खासतौर से नगालैंड से आफस्पा हटाने की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया था.

इसी दौरान, दिसंबर 2021 में ही केंद्र ने नगालैंड की स्थिति को अशांत और खतरनाक करार दिया तथा आफस्पा के तहत 30 दिसंबर से अगले छह महीने के लिए पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)