असम: मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा के ख़िलाफ़ चुनाव आचार संहिता उल्लंघन का मामला खारिज़

अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी और एक ‘न्यूज़ लाइव’ समाचार चैनल द्वारा मई 2019 में हिमंता बिस्वा शर्मा के ख़िलाफ़ यह मामला दर्ज किया गया था. शर्मा उस समय असम में सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री थे. उन पर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था. उनकी पत्नी ‘न्यूज़ लाइव’ की अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक हैं.

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बेटे नंदिल और पत्नी रिंकी भुइयां शर्मा के साथ असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा. (फोटो: पीटीआई)

अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी और एक ‘न्यूज़ लाइव’ समाचार चैनल द्वारा मई 2019 में हिमंता बिस्वा शर्मा के ख़िलाफ़ यह मामला दर्ज किया गया था. शर्मा उस समय असम में सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री थे. उन पर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था. उनकी पत्नी ‘न्यूज़ लाइव’ की अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक हैं.

बेटे नंदिल और पत्नी रिनिकी भुइयां शर्मा के साथ असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा. (फोटो: पीटीआई)

गुवाहाटी: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा पर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के कथित उल्लंघन से संबंधित निचली अदालत में दायर एक मुकदमे को खारिज कर दिया है.

जस्टिस रूमी कुमारी फूकन की एकल पीठ ने शर्मा के खिलाफ दर्ज मुकदमे को रद्द कर दिया और कामरूप मेट्रोपॉलिटन के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की सभी कार्यवाही और टिप्पणियों को निरस्त कर दिया.

10 जून के अपने आदेश में जस्टिस फूकन ने कहा, ‘निचली अदालत में दर्ज मुकदमा कानून के अनुरूप नहीं है, इसलिए उसे खारिज किया जाता है.’

मई 2019 में अतिरिक्त मुख्य चुनाव अधिकारी द्वारा शर्मा और न्यूज़ लाइव टीवी चैनल के खिलाफ लोकसभा चुनाव के दौरान कथित तौर पर आचार संहिता का उल्लंघन करने का मामला दर्ज किया गया था. हिमंता​ बिस्वा शर्मा उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की सरकार में मंत्री थे.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, कामरूप मेट्रोपॉलिटन के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एके बरुआ ने 25 फरवरी को शर्मा और उनकी पत्नी रिनिकी भुइयां शर्मा, जो न्यूज लाइव की अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक हैं, पर 2,000 रुपये का जुर्माना लगाया था और दोनों को 21 मार्च को अदालत में पेश होने का आदेश दिया था.

इस आदेश को चुनौती देते हुए और मामले को रद्द करने की अपील करते हुए शर्मा ने 28 फरवरी को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और एक आपराधिक याचिका दायर की थी.

जस्टिस फूकन ने कहा, ‘मजिस्ट्रेट कार्यवाही करते समय अपने न्यायिक विवेक का निर्वहन करने में पूरी तरह विफल रहे हैं. एक न्यायिक अधिकारी का आचरण व्यक्तिगत भावना और लक्षणों से ऊपर होना चाहिए और प्रत्येक आदेश को ठोस और उचित आधार पर स्थापित किया जाना चाहिए, जो वर्तमान मामले में परिलक्षित नहीं होता है.’

उन्होंने कहा, ‘यह कहा जाता है कि ‘न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि होते हुए भी दिखना चाहिए’ … (ट्रायल) कोर्ट ने उक्त आदेश में कुछ अवलोकन भी किए जो स्वयं-विरोधाभासी हैं और इसे कम करना मुश्किल है, क्योंकि यह प्रक्रिया के अनुरूप नहीं है. शिकायत के मामले में पालन किया जाना है.’

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग द्वारा लगाया गया निषेध उस क्षेत्र में किसी भी चुनाव के लिए मतदान के समापन के लिए निर्धारित समय के साथ समाप्त होने वाले 48 घंटों के दौरान मतदान क्षेत्र पर लागू होता है.

आदेश में जोड़ा, ‘वर्तमान मामले में 10 अप्रैल, 2019 को गुवाहाटी में प्रसारित समाचार के समय, अगले 48 घंटों में गुवाहाटी में कोई मतदान नहीं होना था, क्योंकि अधिसूचना के अनुसार 23 अप्रैल, 2019 को गुवाहाटी में मतदान होने वाला था.’

हाईकोर्ट ने कहा, ‘जाहिर है उपरोक्त आदेश पारित करते हुए सीजेएम ने अधिकार क्षेत्र को पार कर लिया. न्याय वितरण प्रणाली का एक अधिकारी होने के नाते कोई भी एक जांच अधिकारी के रूप में अभियोजन पक्ष के मामलों का संचालन नहीं कर सकता है.’

अदालत ने कहा कि चूंकि मूल शिकायतकर्ता ने न तो मामले को आगे बढ़ाया और न ही निर्देशानुसार प्रासंगिक दस्तावेज पेश किए, ऐसी शिकायत गैर-अभियोजन के लिए खारिज किए जाने योग्य है.

बीते 2 मार्च को याचिका की पहली सुनवाई के दौरान जस्टिस फूकन ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की अदालत में चल रही मामले की सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी थी और सभी रिकॉर्ड मंगवाए थे.

शर्मा ने भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई), मुख्य चुनाव आयुक्त, ईसीआई के वरिष्ठ प्रधान सचिव, राज्य चुनाव विभाग, मुख्य चुनाव अधिकारी और विबेकानंद फूकन के खिलाफ याचिका दायर की थी, जो मई 2019 में तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य चुनाव अधिकारी थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)